शुक्रवार, 21 अप्रैल 2023

मुरादाबाद जनपद के मूल निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ कुंअर बेचैन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित नई दिल्ली की साहित्यकार डॉ कीर्ति काले का संस्मरणात्मक आलेख...... विद्वत्ता, विनम्रता एवं विचारशीलता का अद्भुत समन्वय थे डॉ कुंअर बेचैन ....


तुम ही भरी बहार से आगे निकल गए

तुम मेरे इन्तजार से आगे निकल गए

विद्वत्ता, विनम्रता एवं विचारशीलता का अद्भुत समन्वय थे डॉ कुंअर बेचैन जी। बहुत सारे लोग बहुत विद्वान होते हैं। विद्वत्ता का दर्प उन्हें विनम्र नहीं रहने देता और वे अहंकारी हो जाते हैं। कुछ विनम्र तो होते हैं लेकिन दुर्भाग्यवश वे विद्वान नहीं होते। विरले ही होते हैं जो विद्वान और विनम्र दोनों एक साथ हों। विद्वान एवं विनम्र होने के साथ साथ व्यक्ति विचारशील भी रहे ऐसा तो दुर्लभ से भी दुर्लभतम है। गीत के शलाका पुरुष और ग़ज़ल के उस्ताद आदरणीय डॉ कुंअर बेचैन जी इसी तीसरी अति विशिष्ट श्रेणी में आते थे। अत्यन्त विद्वान,अति विनम्र एवं सतत् विचारशील।

     डॉ कुंअर बेचैन जी ऐसे चंद कवियों में से एक हैं जो कवि सम्मेलनों मे जितने सक्रिय एवं लोकप्रिय थे, प्रकाशन की दृष्टि से भी उतने ही प्रतिष्ठित थे। इनके साहित्य पर पन्द्रह से भी अधिक पी एच डी के शोधग्रंथ प्रकाशित हो चुके हैं। अनेक गीत, नवगीत, ग़ज़ल, बाल कविता संग्रह, महाकाव्य, उपन्यास आपके प्रकाशित हो चुके हैं। आपने हिन्दी छन्दों के आधार पर ग़ज़ल का व्याकरण लिखा। यह डॉ कुंवर बेचैन जी की हिन्दी एवं उर्दू के नवोदित लेखकों के लिए महत्वपूर्ण देन है।

     मैंने जबसे कविता का कखगघ समझा तब से डॉ कुंअर बेचैन जी से परिचय है। कवि सम्मेलन जगत में आने के पश्चात हजारों यात्राएँ साथ में कीं। लाखों मंचों पर आपका सान्निध्य प्राप्त हुआ। देश विदेश में आपके साथ जाना हुआ।कवि सम्मेलनों से इतर भी सदा मार्गदर्शन और आशीर्वाद मिलता रहा। जब आपके न होने का दुखद समाचार मिला था तो कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ।आपके परम शिष्य चेतन आनन्द जी को फोन किया तो उनकेे हिचकियों भरे रुदन ने दुखद सूचना पर मुहर लगा दी।आप तो ठीक हो रहे थे न ! दो एक दिन में आपको अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी और अचानक !

बहुत सारे दृश्य आंखों के सामने उमड़ घुमड़ रहे हैं ।

दुबई यात्रा पर जब हम साथ गए थे तब वहां इंडियन स्कूल में कवि सम्मेलन था। कवि सम्मेलन के मंच पर जब सारे कवियों के साथ मैं और डॉ कुंअर बेचैन जी पहुंचे तब स्कूल की प्रिंसिपल साहिबा दौड़ कर हमारे पास आईं और उन्होंने सबके सामने डॉ कुंअर बेचैन जी के चरण स्पर्श किए और बोला आज हमारा अहोभाग्य है कि आप के चरण हमारे विद्यालय में पड़े। शायद आपको मालूम है या नहीं, आपकी कविताएं हमारे विद्यालय के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती हैं। कई बच्चे आप की कविताएं खूब मन से गाते हैं। इतना बड़ा व्यक्तित्व डॉ कुंअर बेचैन जी का और इतने सहज कि क्या कहूं।कोई भी अच्छा काम करने पर ₹10 इनाम  देते थे। मंच पर भी इतने सरल इतने सहज। 

  कभी किसी की निंदा करते हुए मैंने देखा ही नहीं डॉ कुंवर बेचैन जी को। सदा अपने से छोटों की और अपने से बड़ों की प्रशंसा ही करते थे। छोटों का मार्गदर्शन भी करते थे तो प्रोत्साहित करते हुए। उनकी गलतियां बताते थे तो वह भी ऐसे जिससे वह हतोत्साहित ना हों। 

    एक घटना का स्मरण और हो रहा है ।अभी कुछ दिनों पहले मैं प्रेरणा दर्पण साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के सिलसिले में उनसे बात कर रही थी ।बातचीत के दौरान डॉक्टर साहब ने बताया कि बहुत सारी चीजें उन्होंने शुरू कीं। जैसे पुस्तकें प्रकाशित कराईं तो पुस्तकों के प्रत्येक पृष्ठ पर कवि एवं प्रकाशक का उल्लेख अवश्य किया। इसके पीछे का कारण यह है कि पुस्तके तो कई सालों तक रहती हैं। कालांतर में पुस्तकों के पृष्ठ अलग-अलग हो जाते हैं। तब बिखरे हुए पृष्ठों पर प्रकाशित सामग्री के रचयिता कौन है इस बारे में पता करना कठिन हो जाता है । हम से पूर्व अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुईं  जिनके पृष्ठों पर कवि का नाम प्रकाशित नहीं था। इसलिए वे रचनाएं विवादास्पद रहीं। हमने बहुत विचार करने के बाद अपनी पुस्तकों के प्रत्येक पृष्ठ पर अपना नाम मुद्रित करवाया। कई लोगों ने इस बात का उपहास भी किया लेकिन बाद में इसी प्रक्रिया को उन्होंने भी अपनाया। मुझे याद आया कि जब मेरी पुस्तक  "हिरनीला मन" डॉ कुंअर बेचैन जी के मार्गदर्शन में प्रकाशित हुई थी तब उसके प्रत्येक पृष्ठ पर मेरा एवं प्रकाशक का नाम अंकित हुआ था। यह डॉ कुंअर बेचैन जी की दूरदर्शिता एवं विचार शीलता का एक उदाहरण है। ऐसे अनेक प्रसंग हैं जो डॉक्टर साहब की विचार शीलता को उद्घाटित करते हैं। 

    सन 2018 को भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद की ओर से 6 कवि जिनमें कुंअर बेचैन जी एवं मैं भी सम्मिलित थे 15 दिन की इंग्लैंड काव्य यात्रा पर गए थे। वहां डॉक्टर साहब के इतने चाहने वाले श्रोता थे कि मत पूछिए ।प्रत्येक शहर में प्रत्येक कवि सम्मेलन के बाद बहुत बड़ी संख्या में श्रोता  कुंअर बेचैन जी को घेर कर खड़े हो जाते थे और उनके ऑटोग्राफ लेने लगते थे। डॉक्टर साहब इतने सरल इतने सहज कि आकाश की ऊंचाई पर होते हुए भी सदा हमारे साथ बड़ी विनम्रता से व्यवहार करते थे। हम उनसे मजाक भी कर लेते थे साथ में खूब कविताएं सुनते सुनाते थे । आज वे दिन बहुत याद आ रहे हैं ।

बहुत कम लोग जानते हैं कि कुंअर जी बहुत अच्छे चित्रकार भी थे।उनकी प्रकाशित अधिकांश पुस्तकों पर उनके द्वारा बनाए गए रेखा चित्र हैं।जब भी डॉ साहब अपनी पुस्तक किसी को भेंट करते थे तो प्रथम पृष्ठ पर शुभकामनाओं के साथ हस्ताक्षर करने से पहले बहुत सुन्दर चित्र बनाकर विशेष आशीर्वाद देते थे।

   एक बात और बताना चाहूंगी। डॉ कुंअर बेचैन जी को कोई भी लेखक, रचनाकार पुस्तक भेंट करता था तो डॉक्टर साहब उस पुस्तक की राशि लेखक को अवश्य देते थे ।वह ना लेना चाहे तब भी जबरदस्ती उसकी जेब में रख देते थे ।इसके पीछे बहुत ठोस कारण था। वे कहते थे कि आजकल कोई भी प्रकाशक बिना पैसे लिए लेखकों की पुस्तकें प्रकाशित नहीं करता। पुस्तक प्रकाशन में कितना परिश्रम एवं धन लगता है यह मैं भली-भांति जानता हूं। इसलिए किसी की भी पुस्तक मैं बिना मूल्य चुकाए नहीं लेता।और हाँ, मैं अपनी पुस्तक बिना मूल्य लिए देता भी नहीं हूं। मुझे याद आया जब डॉक्टर साहब ने अपना महाकाव्य "पांचाली" मुझे दिया तब अधिकार पूर्वक आदेशात्मक स्वर में मुझसे ₹500 मांगे यह कहते हुए की यह राशि मैं आपसे इसलिए ले रहा हूं जिससे आपको पुस्तकें खरीद कर पढ़ने का अभ्यास रहे।

पिछले पचास,पचपन वर्षों से डॉ कुंअर बेचैन जी हिन्दी कवि सम्मेलनों का इतिहास लिखने के लिए सामग्री एकत्रित कर रहे थे। प्रत्येक मंच पर वे कागज कलम लेकर मंच पर होने वाली हर गतिविधि को लिखते थे। जैसे शहर एवं स्थान का नाम, संयोजक, संचालक आयोजक एवं अध्यक्ष का नाम ,मंचासीन कवियों का नाम, किस कवि ने कौन सी कविता सुनाई उसकी प्रमुख पंक्तियां, कवि सम्मेलन में घटित होने वाली महत्वपूर्ण घटनाएं आदि आदि। पिछले 55 वर्षों से निरंतर लिखकर बहुत बड़ी संख्या में सामग्री एकत्रित कर ली थी डॉक्टर साहब ने ।अब समय था उस एकत्रित सामग्री पर मनन करके उसे ऐतिहासिक रूप देने का। लेकिन ईश्वर ने इतना अवकाश कुंवर जी को नहीं दिया। उनके लिखे इतने सारे पृष्ठ किसी न किसी फाइल में सुरक्षित होंगे। किसी न किसी डायरी में "कवि सम्मेलन का इतिहास" की रूपरेखा अंकित होगी। हमारा दायित्व है कि हम हमारी संपूर्ण सामर्थ्य के साथ डॉक्टर साहब के अधूरे कार्य को पूर्ण करें। ईश्वर हमें शक्ति दे कि हम यह कार्य कर पाएँ। 

   हॉस्पिटल में एडमिट होने के तीन-चार दिन पहले मैंने डॉ कुंवर बेचैन जी को फोन किया और उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली। दूरदर्शन द्वारा मेरे व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर एक कार्यक्रम बनाने की योजना थी जिसमें कुछ व्यक्तियों को मेरे बारे में बोलने के लिए कहा गया था ।जब मैंने यह बात डॉक्टर साहब को बताई तो वह बोले देखो न कीर्ति जी मेरा कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि मैं आप पर बहुत कुछ बोलना चाहता हूं लेकिन आज मेरा स्वास्थ्य साथ नहीं दे रहा। गला बहुत खराब हो गया है। मैं अभी आपसे बातें भी बहुत मुश्किल से कर पा रहा हूं। मैंने कहा कोई बात नहीं डॉ साहब आप ठीक हो जाइए उसके बाद  वीडियो बना दीजिएगा ।मैं दूरदर्शन वालों को बता देती हूं। अगले दिन फिर डॉक्टर साहब का फोन आया और वे भारी मन से क्षमा मांगते हुए कहने लगे की मेरा बुखार अभी तक नहीं उतरा है ।मैं और आपकी चाचीजी अब अस्पताल में भर्ती होने जा रहे हैं ।वापस आ गए तो सबसे पहला काम आपका ही  करूंगा ।देखो ना आज कहने को बहुत कुछ है लेकिन कह नहीं पा रहा ।इतना विवश, इतना असहाय मैंने स्वयं को कभी भी महसूस नहीं किया ।मैंने बोला नहीं डॉक्टर साहब ऐसा मत कहिए। आप बिल्कुल ठीक हो कर आएंगे। हम साथ में बैठकर गोष्ठी करेंगे फिर आप जी भर कर बोलिएगा। बस डॉ कुंवर बेचैन जी से यही अंतिम बातचीत थी मेरी। आज अत्यन्त द्रवित ह्रदय से मैं उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रही हूं ।

    डॉक्टर साहब के  दुनिया भर में अनेक शिष्य हैं जिसने भी डॉ कुंअर बेचैन जी को सुना है अथवा पढ़ा है अथवा जो उनसे मिला है वो उनके आकर्षण से बच नहीं सका है। 

आपकी अनेक काव्य पंक्तियां याद आ रही हैं जैसे-


जितनी दूर नयन से सपना

जितनी दूर अधर से हँसना

बिछुए जितनी दूर कुंआरे पाँव से

उतनी दूर पिया तुम मेरे गाँव से।


नदी बोली समुन्दर से

मैं तेरे पास आई हूँ

मुझे भी गा मेरे शायर

मैं तेरी ही रुबाई हूँ।


मीठापन जो लाया था मैं गाँव से

कुछ दिन शहर रहा अब कड़वी ककड़ी है।


कल स्वयं की व्यस्तताओं से निकालूंगा समय कुछ

फिर भरूंगा कल तुम्हारी माँग में सिन्दूर

मुझको माफ करना

आज तो सचमुच बहुत देर ऑफिस को हुई है।


ज़िन्दगी का अर्थ मरना हो गया है

और जीने के लिए हैं

दिन बहुत सारे।


जिसे बनाया वृद्ध पिता के श्रमजल ने

दादी की हँसुली अम्मा की पायल ने

उस पक्के घर की कच्ची दीवारों पर

मेरी टाई टँगने से कतराती है।


जिस दिन ठिठुर रही थी,कुहरे भरी नदी में,

माँ की उदास काया,लेने चला था चादर, मैं मेजपोश लाया


सूखी मिट्टी से कोई भी मूरत न कभी बन पाएगी

जब हवा चलेगी ये मिट्टी खुद अपनी धूल उड़ाएगी

इसलिए सजल बादल बनकर बौझार के छींटे देता चल

ये दुनिया सूखी मिट्टी है तू प्यार के झींटे देता चल।


ऐसी अनेक गीत पंक्तियाँ हैं डॉ साहब की जो कवि सम्मेलन में श्रोताओं को मंत्रबिद्ध कर देती थीं।

ग़ज़लें भी एक से बढ़कर एक थीं।आपकी ग़ज़लों में भी गीत जैसी तन्मयता थी,गीत जैसा तारतम्य था।


पूरी धरा भी साथ दे तो और बात है

पर तू जरा भी साथ दे तो और बात है

चलने को एक पाँव से भी चल रहे हैं लोग

पर दूसरा भी साथ दे तो और बात है


दिल पे मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना

जैसे बहते हुए पानी पे हो पानी लिखना


दो चार बार हम जो कभी हँस हँसा लिए

सारे जहाँ ने हाथ में पत्थर उठा लिए

संटी तरह मुझको मिले ज़िन्दगी के दिन

मैंने उन्हीं को जोड़ के कुछ घर बना लिए।


ज़िन्दगी यूं भी जली,यूँ भी जली मीलों तक

चाँदनी चार कदम धूप चली मीलों तक


ये सोचकर मैं उम्र की ऊँचाईयाँ चढ़ा

शायद यहाँ,शायद यहाँ,शायद यहाँ है तू

पिछले कई जन्मों से तुझे ढ़ूढ़ रहा हूँ

जाने कहाँ,जाने कहाँ,जाने कहाँ है तू


ग़मों की आँच पे आँसूं उबालकर देखो

बनेंगे रंग किसी पर भी डालकर देखो

तुम्हारे दिल की चुभन भी जरूर कम होगी

थेकिसी के पाँव से काँटा निकालकर देखो


साँचे में हमने और के ढ़लने नहीं दिया

दिल मोम का था फिर भी पिघलने नहीं दिया

चेहरे को आज तक भी तेरा इंतज़ार है

हमने गुलाल और को मलने नहीं दिया।


असंख्य पंक्तियाँ हैं, असीमित स्मृतियाँ हैं। क्या लिखूं और क्या छोड़ूं।


1जुलाई 1942 को मुरादाबाद जिले के उमरी नामक गाँव में जन्में डॉ कुंअर बेचैन जी ने अपने जीवन में अनेक कष्ट सहे।इनका पूरा जीवन संघर्षों का महासमर रहा।बचपन में ही सिर से माता पिता का साया उठ गया था।बड़ी बहन और जीजाजी ने  पालन-पोषण किया। फिर बहन भी स्वर्ग सिधार गई। जीजाजी इन्हें लेकर चन्दौसी आ गए।चन्दौसी में ही आगे की शिक्षा ग्रहण की।

प्रकाशित पुस्तकें

गीत/नवगीत संग्रह - पिन बहुत सारे,भीतर साँकल बाहर साँकल,उर्वर्शी हो तुम, झुलसो मत मोरपंख,एक दीप चौमुखी,नदी पसीने की, दिन दिवंगत हुए

ग़ज़ल संग्रह - शामियाने कांच के, महावर इंतजारों का ,रस्सियाँ पानी की, पत्थर की बांसुरी, दीवारों पर दस्तक, नाव बनता हुआ कागज, आग पर कंदील, आंधियों में पेड़, आठ सुरों की की बांसुरी, आंगन की अलगनी, तो सुबह हो, कोई आवाज देता है, 

कविता संग्रह -नदी तुम रुक क्यों गई, शब्द एक लालटेन, 

महाकाव्य - पांचाली 

ललित उपन्यास : मरकत द्वीप की मणि

बाल कविताएँ,हायकू,दोहे, अनेक पुस्तकों की भूमिकाएँ



✍️ डॉ कीर्ति काले 

बी702,न्यू ज्योति अपार्टमेंट सैक्टर 4 प्लॉट नंबर 27, द्वारका, नई दिल्ली, भारत

E mail : kirti_kale@yahoo.com

मोबाइल फोन नंबर 9868269259

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-04-2023) को  "बंजर हुई जमीन"    (चर्चा अंक 4658)   पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-04-2023) को  "बंजर हुई जमीन"    (चर्चा अंक 4658)   पर भी होगी।
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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज रविवार (23-04-2023) को  "बंजर हुई जमीन"    (चर्चा अंक 4658)   पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  6. आदरणीय कीर्ति जी, आपने महान कवि कुंवर बेचैन जी के बार में अनमोल जानकारी दी है, उनकी कविताएँ कई बार पढ़ी हैं और टीवी, रेडियो पर सुनी हैं, आज उनकी कुछ कविताओं के अंश और ग़ज़ल के शेर पढ़कर मन किसी और ही दुनिया में पहुँचा गया, आभार, उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि !

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  7. अपने किसी भी प्रिय का जाना जाने कितनी यादें छोड़ जाता है, जो रह रह हमारे सामने आकर हमें बेचैन कर देता हैं। कवि कुंवर बेचैन जी के बारे में जितना कहें कम होगा , आपने बहुत ही अच्छे से उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये है। उन्हें हार्दिक श्रंद्धाजलि!

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