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मंगलवार, 31 मार्च 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष श्री कैलाश चंद्र अग्रवाल के चार गीत -- ये गीत उनके गीत संग्रह 'तुम्हारी पूजा के स्वर' से लिए गए हैं । यह उनकी छठी काव्य कृति है जिसका प्रकाशन लगभग 31 साल पहले सन 1989 में हुआ था। इसे प्रकाशित किया था प्रभात प्रकाशन दिल्ली ने। इस संग्रह में उनके जनवरी 1986 से फरवरी 1988 की समयावधि में रचे गए 71 गीत संग्रहीत हैं । संग्रह की 21 पेज में भूमिका लिखी है श्री राम शंकर त्रिपाठी फैजाबाद ने ----
मुरादाबाद की साहित्यकार अस्मिता पाठक की कविता --कोरोना कर्फ्यू
मार्च में लगे कर्फ्यू की उस शाम
अपने आलीशान संसार की सतह पर खड़े होकर
एक सी आवाजों के अंधाधुंध शोर में
क्या तुम सुन पाए थे ?
कान के एक छोर से
बच्चों के रोने चीखने की आवाजों के बीच
दबी हुई धीमी व्यग्र बूढ़ी-जवान आवाजें
जो तुमसे बहुत दूर
-बहुत ही दूर- स्थित कमरे में
किसी चलचित्र की तरह चल रही थीं?
सहसा तुमने भी महसूस किया?
फटे-खुरदुरे हाथों पर बने
पुराने घावों की जलन को
जब वे उलझन में कुछ पुराने नोट
और सिक्के निकालते समय
डब्बे की स्टील वाली सतह से
बार-बार टकरा रहे थे?
नहीं ?
नहीं सुन पाए न तुम ?
-शंखों, थालियों के
तर्कहीन शोर में-
मजबूर मेहनतकश के हाथों से छूटती,
-स्टेशन पर दुविधा में भागते पैरों के बीच-
ऊँचे प्रतिरोध में गिरती पसीने की
खानाबदोश बूंदों को...
जिन्होंने खड़ा किया था कभी
तुम्हारा सुरक्षित संसार..
***अस्मिता पाठक
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार जितेंद्र कमल आनन्द का गीत --च॔दन-सी महकी सांसों से सरक रहा आँचल प्रेम-प्रीति के नयनों में फिर आँज रहा काजल।
संस्मृतियों के स्वर्ण झरोखे झाँक रहा साजन
प्रेम-प्रीति के नैनों में फिर आँज रहा काजल
मधुर यामिनी,मधुर मोहिनी,रति-रसिका रमणी
करती है क्रीड़ाएं मधुमय होकर अलबेली
नयनों में छबियों का नर्तन मनहर होता है
रात चाँदनी संग चन्द्रमा करते अठखेली
मौन पिरोये मुक्ता-मणियाँ, अंक भरे बादल
प्रेम-प्रीति के नयनों में फिर आँज रहा काजल ।।
बीत गया है कब का बचपन अब यौवन है आया
जीवन का सौंदर्य सँजोये बनी सहेली है
कोई न चिंतन,कोई न मंथन, बात करे कोई
शरमायी है अनबोली वह नयी नवेली है
च॔दन-सी महकी सांसों से सरक रहा आँचल
प्रेम-प्रीति के नयनों में फिर आँज रहा काजल।।
रजनी भी अनुकूल हुयी है,मंजिल दूर नहीं
एक सुधाकर उग आया है मानो अम्बर में
मुस्काता यह कौन, करों के पल्लव से छूता
एक कमल या हुआ सुवासित मानो सरवर में
चली हवा मदहोश हुआ दिल ,बदन हुआ मादल।
प्रेम- प्रीति के नयनों में फिर आँज रहा काजल ।।
✍ जितेन्द्र कमल आनंद
साँई बिहार कालोनी,
रामपुर -244901
उत्तर प्रदेश, भारत
मो :7017711018
सोमवार, 30 मार्च 2020
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना --रचता है वही इतिहास जो मन में ठान लेता है
जब लम्बा हो सफ़र
तब भला कौन सोता है
जो करे व्यर्थ आज को
बाद में वही तो रोता है
कर गुज़रता है वही कुछ
मन में जिसके हौसला होता है
चैन कहाँ होता है उसे
आँखो में जिसके ख़्वाब होता है
नही पड़ता फ़र्क़ एक हार से
जीत का जब मन में ख़्याल होता है
नामुनकिन को जो करेगा मुमकिन
भीड़ में अकेला तू वो शख़्स होता है
जो छिपा हुआ बादलों में अभी
उस फलक पर तेरा नाम होता है
जो जानता है इस राज को
अकेला तू वो शख़्स होता है
ठहरेगी नज़र उसपर एक दिन
आज जो चेहरा आम होता है
पहचान जब बनेगी तुम्हारी
हर कोई फिर अपना होता है
ये कड़वा सच है मगर
कामयाबी के पीछे ही जहाँ होता है
रचता है वही इतिहास
जो मन में ठान लेता है
जब लम्बा हो सफ़र
तब भला कौन सोता है
*** प्रीति चौधरी
फ्रेंड्स कालोनी
गजरौला, अमरोहा
मोबाइल फोन नम्बर- 9634395599
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष दुर्गादत्त त्रिपाठी के तेरह गीत --- ये गीत उनके काव्य संग्रह तीर्थ शिला से लिए गए हैं । इस संग्रह का प्रकाशन कवि श्री दुर्गादत्त त्रिपाठी नागरिक अभिनंदन समिति मुरादाबाद द्वारा लगभग 48 साल पूर्व मई 1972 में किया गया था । इस संग्रह में श्री दुर्गादत्त त्रिपाठी जी के 67 गीत संग्रहीत हैं ।अभिनंदन समिति के अध्यक्ष गिरधर दास पोरवाल थे ।
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
रविवार, 29 मार्च 2020
मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम की कविता --वैसा ही काटना पड़ता है जो जैसा बोता है
जिसे हमने पहले पहल,बहुत हल्के में लिया,
हंसी ठिठोली में,अंडरस्टीमेट कर दिया।
देखते-भालते ,जी का जंजाल बन गया,
मजाक समझ रहे थे हम,जिंदगी पर सवाल बन गया।
कथाओं में,कहानियों में,कीमती मोबाइलों में,
थानों में,कोतवाली में,सरकारी फाइलों में।
अखबारों में,टीवी में,गीतों में,गजलों-चुटकुलों में,
आंकड़ों में,अफवाहों में,ख्यालों में,अटकलों में।
रास्तों में,चौराहों में,महलों में,झोपड़ी में,
गरीबों में,अमीरों में,प्रधान सेवक की खोपड़ी में।
अब तो दिन-रात,उसी के नाम का रोना धोना है।
बे लगाम नरभक्षी,तानाशाह सा कोरोना है।।
आदमी आजकल,घर का ना घाट का है।
निठल्ला दो कौड़ी का,बाजार का ना हाट का है।।
कोरोना ईस्ट इंडिया कंपनी की तर्ज पर,संबंधों में जहर घाेलता है।
असुरक्षा के डर से,एक दूसरे का मन डोलता है।।
सगे संबंधी भी,एक दूसरे के पास फटकने से डरते हैं।
दूर से ही संकेतों के माध्यम से,काम चलाऊ बातें करते हैं।।
आज मैंने आवाज लगाई-बेटे यहां आओ।
झटपट छोटू बोला -पापा ज्यादा स्मार्ट मत बनो,जो कुछ भी कहना है,दूर से ही बताओ।।
देखकर उसका कॉन्फिडेंस,लेवल मेरा लूज़ हो गया।
जीरो वाट का अपना बल्ब,फ्यूज हो गया।।
रात्रि के चौथे प्रहर में,बड़ी सावधानी से श्रीमती जी की ओर।
कुछ मांगने के लिए,
जैसे ही हिलाई पवित्र संबंधों की डोर।।
झिड़कते हुए वैधानिक चेतावनी
वाले अंदाज में,मचाने लगी शोर।
तुम्हारे नाम की बची नहीं है शर्म हया।
अपनी उम्र का लिहाज धरो,मुझ पर खाओ रहम दया।।
मुंह पर मास्क ठीक से बांधाे,हाथ लाइफबॉय से धो कर आओ।
ज्यादा आफत मत काटो,शरीफों की तरह सो जाओ।।
भाई साहब बाहर जाएं,तो पुलिस लठियाती है।
घर के अंदर,घर वाले धकियाते हैं।।
कोई राजी से दो बात करने को तैयार नहीं,
डॉक्टरों के दल की तरह,सख्त लहजे में बतियाते हैं।।
और अधिक क्या कहें-सुनें,बात शीशे की तरह बिल्कुल साफ है।
यह कोरोना कोई महामारी नहीं,
हम सब के द्वारा किया गया महापाप है।।
प्रकृति के साथ अप्राकृतिक व्यसन-वासनाओं का परिणाम, ऐसा ही होता है।
वैसा ही काटना पड़ता है मित्रों,जो जैसा बोता है।।
*** त्यागी अशोक कृष्णम्
कुरकावली
संभल
उत्तरप्रदेश,भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719059703
मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की रचना -- घर के भीतर रहकर खुद को ही नहीं ,सब को बचाना है.
भयभीत नहीं होना है
हिम्मत से इसे हराना है
बढ़ाकर प्रतिरोधक क्षमता
इससे टकराना है.
संयम और समझदारी से
इस विकट स्थिति से निपटना है
घर के भीतर रहकर
खुद को ही नहीं ,सब को बचाना है.
अनगिनत बार हम सबको
अपने हाथों को धोना है
नाक आंख और मुंह से
हाथों को नहीं लगाना है.
बुरा दौर है बुरा वक्त है
यह सभी ने माना है
गुजर जाएंगे यह लम्हे
मुश्किल में भी मुस्काना है.
रोने धोने से कुछ नहीं होता
हाथों को बस धोना है
संयम बरतो मानव जाति
कोरोना को हराना है.
***राशि सिंह
वेब ग्रीन, रामगंगा विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार एवं संगीतज्ञ अमितोष शर्मा की गजल --सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल | यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ||
पेश-ऐ-ख़िदमत है आप सब की पसंदीदा ग़ज़ल मिश्र किरवानी में composed
मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत -- दूरी बना के बात करो मैं कोरोना हूँ , हाथों से दूर हाथ करो मैं कोरोना हूँ। ....
दूरी बना के बात करो
मैं कोरोना हूँ
हाथों से दूर हाथ करो
मैं कोरोना हूँ।
आने का मेरे तुमको
पता चल न पाएगा
अर्से के बाद उभरूँगा
यह टल न पाएगा
साबुन से हाथ साफ करो
मैं कोरोना हूँ।
दूरी बना के--------------
जीने का वक़्त मेरा
बहुत अलग-अलग है
मिनटों से लेके वक्त
कई रोज़ तलक है
मुझसे न कोई आस करो
मैं कोरोना हूँ।
दूरी बना के--------------
मैं जिंदगी को हर तरह
लाचार करूँगा
दुश्मन की तरह सभी से
व्यवहार करूँगा
घरों में खुद को बन्द करो
मैं कोरोना हूँ।
दूरी बना के--------------
आया हूँ बहुत दूर से
जाऊंगा कहाँ तक
तुम ही मुझे पहुँचा ओगे
जाना है जहां तक
जंजीर को तबाह करो
मैं कोरोना हूँ।
दूरी बना के--------------
बच्चों को,बुजुर्गोंको माफ
कर नहीं सकता
जीने के लिए जाप कभी
कर नहीं सकता
बचने का हर प्रयास करो
मैं कोरोना हूँ।
दूरी बना के-------------
मेरी कोई दवा न
कोई वेक्सीन है
मुझसे बचाव करना ही
सबसे हसीन है
मुझसे नहीं मज़ाक करो
मैं कोरोना हूँ।
दूरी बना के---------------
*** वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
बुद्धि विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719275453मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा का गीत --ईश्वर रक्षा करें हमारी,ये ही दुहाई लगाओ अब, अफवाहों से दूर रहो,अफवाहें न फैलाओ अब।
देखो कितना कोरोना ने,दुनिया को मजबूर किया,
अपनों को अपनों से इसने,कितना है अब दूर किया।
कौन कहे कि हमने अपने,पैर कुल्हाड़ी मारी है,
संस्कार सब भूल गए और निकट बुलाई बीमारी है।
इस संकट के कारणवश,व्यापार हमारे ध्वस्त हुए,
गुरुकुल शिक्षा बंद हुई,बच्चों के हौसले पस्त हुए।
पुलिस परेशां बहुत हुई,और डॉक्टर भी हैं डरे हुए,
कोरोना की जिद के आगे,भारी क्रोध से भरे हुए।
और परीक्षा लो ना इनकी,इनका अब सहयोग करो,
इस बीमारी से बचना है तो,घर में रहकर योग करो।
देश हमारा हमसे है अब इतना भर तो सोचो तुम,
अपने दम पर करो सुरक्षा,दूजे पर न छोड़ो तुम।
सोच विचार का वक्त नहीं ये,घर में ही खुद कैद रहो,
समेट न ले कोरोना हमको,खुद इतना मुस्तैद रहो।
वर्ना अपने इन बच्चों को,कैसा भारत देंगे हम
श्मशान बना गर देश हमारा,क्या उत्तर फिर देंगे हम।
अभी समय को पहचानो तुम और गुरिल्ला युद्ध करो,
इकजुट होकर कोरोना की,हर राह अवरूद्ध करो।
ईश्वर रक्षा करें हमारी,ये ही दुहाई लगाओ अब,
अफवाहों से दूर रहो,अफवाहें न फैलाओ अब।
***अतुल कुमार शर्मा
प्रेमशंकर वाटिका के सामने
बरेली सराय
सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8273011742
9759285761
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत --कैसी प्रलय मचाई कोरोना, है अतीव दुखदाई कोरोना, खोज-खोज कर मार रही है- है अति क्रूर कसाई कोरोना।....
रोको नरसंहार कोरोना
_________________
कैसी प्रलय मचाई कोरोना,
है अतीव दुखदाई कोरोना,
खोज-खोज कर मार रही है-
है अति क्रूर कसाई कोरोना।
कोरोना वैश्विक महामारी,
इसके आगे दुनिया हारी,
बड़े यत्न से जड़ें काट दीं -
फिर भी इसका उगना जारी।
नहीं ज्ञात है कारण इसका,
कैसे करें निवारण इसका,
संकट में सरकार पड़ी है-
क्योंकर रुके प्रसारण इसका।
हो रहे तुम पर शोध कोरोना,
छोड़ दो अपना क्रोध कोरोना,
बाल- वृद्ध को दे दो माफी-
है तुमसे अनुरोध कोरोना।
मान ली हमने हार कोरोना,
तड़प रहा परिवार कोरोना,
इसे न भूखा मार कोरोना-
रोक दे नरसंहार कोरोना।
विनती बारम्बार कोरोना,
करता है संसार कोरोना,
अपनी दारुण गाथा का अब-
कर दे उपसंहार कोरोना।
*** डॉ.विश्व अवतार जैमिनी
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी --अंतिम पत्र
*अंतिम पत्र
---------------------------
....अब कुछ ही आखिरी साँसें बची हैं। कोरोना के इलाज के लिए आइसोलेशन वार्ड में कई दिन से भर्ती हूँ।अब साँस लेने में भी बेहद तकलीफ हो रही है। पूरा शरीर थकान से भरा हुआ लगता है। जैसे शरीर में कोई जान ही नहीं रह गई है। नाक का बहना, ठंड लगना इन सब से शुरुआत हुई थी और अब हालत आखिरी दौर में पहुँच चुकी है। हो सकता है, आजकल में ही मुझे वेंटिलेटर पर जाना पड़े और फिर उसके बाद शायद मैं कभी ठीक न हो पाऊँ।
दरअसल गलती मेरी ही है । मैंने कभी भी कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया । जरा याद करो, प्रधानमंत्री जी ने 21 दिन का लॉकडाउन घोषित किया था और तब मैंने यही कहा था कि यह सब बेकार की बातें हैं। हम लोगों को कोरोना - वोरोना कुछ नहीं होगा । हम सब गली- मोहल्ले में आपस में मिलते जुलते रहे । यहाँ तक कि पुलिस आती थी । लाठियाँ फटकारती थी और हम पुलिस को देख कर घरों में छुप जाते थे। पुलिस डाँट कर वापस चली जाती थी और हम फिर अपने घरों से बाहर निकल कर खेलकूद ,मौज मस्ती तथा सामूहिक बातचीत में व्यस्त हो जाते थे।
सचमुच पुलिस को नहीं बल्कि अपने आप को धोखा दे रहे थे । मेरी उम्र 60 साल से ऊपर थी । मुझे तो यह समझना चाहिए था कि कोरोना वायरस का खतरा सबसे ज्यादा मुझ पर है । बच्चों पर है , युवाओं पर भी है ।
मुझे सब को समझाना चाहिए था। न समझें तो डाँटना भी चाहिए था। पूरे मोहल्ले की नाराजगी मोल लेने के बाद भी मुझे सोशल डिस्टेंसिंग यानि कम से कम एक मीटर की दूरी बनाए रखनी चाहिए थी। लेकिन उसकी भी जरूरत ही क्या थी ? अपने घरों में कुंडी बंद करके हमें कैद कर लेना चाहिए था , जो हमने नहीं किया ।सबसे मिलते रहे । बाजारों में जब मन चाहा चले गए । बिना किसी काम के कुछ खरीदारी के नाम पर । बल्कि हमने सैर-सपाटा चालू रखा ।
पता नहीं कोरोना के किस बीमार को मैंने छू दिया कि वह बीमारी मुझे लग गई। यह भी हो सकता है कि मैंने सीधे-सीधे उस बीमार को न छुआ हो। बल्कि उस बीमार ने जिन चीजों को छुआ हो, मैंने उन चीजों को छुआ हो और फिर वह बीमारी मुझ तक आ गई हो ।
कारण कुछ भी हो ,दोष तो मेरा ही है । मैं घर से निकला ही क्यों ?यह लक्ष्मण रेखा थी जो मुझे लाँघनी नहीं चाहिए थी ,और जिसका दुष्परिणाम आज मैं जीवन और मृत्यु के बीच झूलता हुआ महसूस कर रहा हूँ। यह कितनी भयावह मृत्यु रहेगी ! यह एक ऐसी बीमारी से होगी , जब आखिरी समय मेरे पास कोई नहीं होगा । मैं किसी के कंधे पर सिर रखकर अपने दर्द को साझा भी तो नहीं कर सकता ! किसी के गले से लिपट कर रो भी तो नहीं सकता ! आखिरी सफर में आखिरी साँसों को किसी के साथ बाँट भी तो नहीं सकता ! यह अकेलापन मुझे और भी खाए जा रहा है ।
न कोई मेरे साथ है और न शायद अंतिम संस्कार में भी कोई साथी हो पाएगा । मैं चाहता भी नहीं कि किसी को अब मेरे कारण कोई तकलीफ उठाना पड़े । मैंने वैसे ही समाज के साथ गद्दारी की है । जी हाँ ! समाज के साथ गद्दारी ! जब मुझे घर पर रहना था ,तो मैं बाहर क्यों निकला ? यह असामाजिकता नहीं तो क्या है ? यह समाज को खतरे में डालने वाली कार्यवाही नहीं तो और क्या कही जाएगी ? जानबूझकर चीजों को गंभीरता में न लेना , उनका मजाक बनाना और यह सोच लेना कि बीमारी हम लोगों को नहीं लगेगी ,यह सबसे बड़ी गलतफहमी थी जिसको फैलाने में मैं शामिल रहा ।
आज मैं अपने परिवार और पूरे समाज से हाथ जोड़कर माफी माँगता हूँ। यद्यपि मेरा अपराध माफी देने लायक तो नहीं है , लेकिन फिर भी एक बदनसीब को हो सके तो माफ कर देना ।
निवेदक
एक बदनसीब
"""""
* ** रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 99 97 61 5451
शनिवार, 28 मार्च 2020
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की गजल -जब तक ना इजाजत हो रहें घर में ही अपने । हम दुश्मने इंसां का हर एक नक्श मिटा दें ।।
आओ चलो दुश्मने इंसां को मिटा दें ।
रिश्तो को निभाएं चलो नफरत को मिटा दें ।।
हर सिम्त करें चश्मे मोहब्बत के रवां हम ।
हम मुल्क से अपने हर अंधेरे मिटां दें ।।
जब तक ना इजाजत हो रहें घर में ही अपने ।
हम दुश्मने इंसां का हर एक नक्श मिटा दें ।।
घर में ही करें पूजा पढ़ें अपनी नमाजे़ं ।
हम अपने घरों के सभी शैतान मिटा दें ।।
गुरबानी भजन कुरां हर एक घर में रवां हो ।
दुश्मने ईमां की हर पहचान मिटा दें ।।
मिलने में मुहाजिर से रखें फासला बाहम ।
हम दर्दे जिगर के सभी शुब्हात मिटा दें ।।
महफ़ूज़ और मोहतात रहें अपने वतन में ।
हर सिम्त से ख़दशात की दीवार मिटा दें ।।
हम सब्रो सुकूं से रहें बस अपने घरों में ।
बीमारी के हम जिंसो ज़ररात मिटा दें ।।
बस रहमो-करम का तेरे तालिब है मुजाहिद ।
हम अपने वतन पे ये दिलो जान लुटा दें ।।
***मुजाहिद चौधरी
हसनपुर
जनपद अमरोहा
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की गजल -- करनी है उसकी मदद, पूरा रखकर ध्यान आसपास में गर दिखे, भूखा या बीमार
कोरोना का है कहर, जूझ रहा संसार
बढ़ते ही अब जा रहे, इसके हुये शिकार
घर की सीमा में रहो, करो एक ये काम
कोरोना का बस यही, देखो है उपचार
जल को भी करना नहीं है हमको बर्बाद
हाथों को ये ध्यान रख, धोना बारंबार
हाथ जोड़ कर ही करो, सबको यहाँ प्रणाम
हाथ मिलाने के नहीं, अपने हैं संस्कार
खड़ी सामने मौत है, इसका रखना ध्यान
खतरनाक देखो बड़ा , कोरोना का वार
करनी है उसकी मदद, पूरा रखकर ध्यान
आसपास में गर दिखे, भूखा या बीमार
इक दूजे से दूर रह, टूटेगी जब चेन
हो जाएगी पूर्णतः, कोरोना की हार
कोरोना की मार ने, दिया ‘अर्चना’ वक़्त
चिंताओं को छोड़कर, खुद से कर लो प्यार
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कुंडली --कोरोना यह वायरस, लगे मौत का द्वार , दूर रहो इससे सभी, कहता है संसार ।....
कोरोना यह वायरस, लगे मौत का द्वार ,
दूर रहो इससे सभी, कहता है संसार ।
कहता है संसार,यही सबको समझाओ ,
समझो मत यह खेल,हंसी में नहीं उड़ाओ ।
कहे विश्नोई यह,नहीं तुम धीरज खोना,
साहस से लो काम,भागे तभी कोरोना ।
---------💐💐---------
कोरोना वायरस से,बच सकती है जान ।
करो नमस्ते दूर से, रक्खो इतना ध्यान ।
***अशोक विश्नोई
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना -- हमको अब न सताओ तुम कोरोना अब मान जाओ तुम
माफ़ी तुमसे माँग रहे है
शांत अब हो जाओ तुम
कोरोना अब मान जाओ तुम
माना ग़लती हुई थी हमसे
दूरियाँ रिश्तों में फैली थी कबसे
दूर हो गए अब गले शिकवे
हमको अब न सताओ तुम
कोरोना अब मान जाओ तुम
घर क्या है सब भूल गए थे
मोहमाया में डूब गए थे
रुक गए अब जो दौड़ रहे थे
जहाँ हो अब ठहर जाओ तुम
कोरोना अब मान जाओ तुम
माफ़ कर दो हमें एक बार
सबक़ मिला हमें इस बार
घरवालों से ही है घरबार
निवेदन है अब जाओ तुम
कोरोना अब मान जाओ तुम
*** प्रीति चौधरी
फ्रेंड्स कालोनी
गजरौला, अमरोहा
मोबाइल फोन नम्बर- 9634395599
शुक्रवार, 27 मार्च 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार शिव अवतार रस्तोगी सरस की रचना --घातक रोग महा कोरोना ऐसा रोग किसी को हो ना।....
घातक रोग महा कोरोना
ऐसा रोग किसी को हो ना।
आंख नाक मुंह रखें बचाकर
नजला, खांसी कभी न होना।1.
इक्किस दिन घर अंदर रहना।
गली सड़क पर पैर न धरना।
लक्ष्मण रेखा खिंची हुई है,
अंदर ही सुख दुख सब सहना।2.
रखें परस्पर हम सब दूरी।
बस, कुछ दिन की है मजबूरी।
स्वयं वायरस, मर जाएंगे
मगर सुरक्षा रक्खें पूरी।3.
रोग भयानक घिर कर आया
अखिल विश्व में यह मंडराया।
अभी नहीं उपचार मिला है
हर कोई इससे घबराया ।।4.
मिले न संयम बिना सुरक्षा।
आत्म- नियंत्रण सबसे अच्छा।
अलग -थलग हम रहें स्वयं ही
तब ही संभव सबकी रक्षा ।5.
कदम तीसरा पड़े कभी ना।
वरना ,मुश्किल होगा जीना ।
महाप्रलय का दृश्य उपस्थित
सोच- सोच आ रहा पसीना।6.,
*** शिव अवतार रस्तोगी सरस
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत ---आसमानी आंधियां हों या जमीनी व्याधियां सूक्ष्म जीवी वायरस से हो रहीं बरबादियाँ एक होंगे सभी इसकी चेन टूटेगी तभी....
भूल जाओ बंधु सारे
गिले शिकवों को अभी
रह नहीं सकते अकेले
हम ज़माने में कभी।
-----------
एकता में ही छुपा है
हम सभी का हौसला
टूटकर बिखरे नअपने
प्यार का यह घौंसला
सोचकर आगे बढ़ोगे
मिलेगी मंज़िल तभी।
भूल जाओ----------
दूर होगी हर मुसीबत
जान लोगे एक दिन
साथचलनेकीहकीकत
मान लोगे एक दिन
साजिशें भी शर्तिया ही
हार मानेंगी जभी।
भूल जाओ-----------
आसमानी आंधियां हों
या जमीनी व्याधियां
सूक्ष्म जीवी वायरस से
हो रहीं बरबादियाँ
एक होंगे सभी इसकी
चेन टूटेगी तभी
भूल जाओ-----------
जिंदगी में एकता के
मंत्र का सम्मान हो
एकता पर ही हमारे
देश को अभिमान हो
फूट आपस की बनेगी
क्रूरतम अभिशाप भी।
भूल जाओ-----------
जाति धर्मों के मिटा दें
फासले मिलकर गले
घोर संकट की घड़ी में
मैल अंतस का धुले
तभीतो कल्याण होगा
चैन पाएंगे सभी।
भूल जाओ-----------
💐💐💐
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
गिले शिकवों को अभी
रह नहीं सकते अकेले
हम ज़माने में कभी।
-----------
एकता में ही छुपा है
हम सभी का हौसला
टूटकर बिखरे नअपने
प्यार का यह घौंसला
सोचकर आगे बढ़ोगे
मिलेगी मंज़िल तभी।
भूल जाओ----------
दूर होगी हर मुसीबत
जान लोगे एक दिन
साथचलनेकीहकीकत
मान लोगे एक दिन
साजिशें भी शर्तिया ही
हार मानेंगी जभी।
भूल जाओ-----------
आसमानी आंधियां हों
या जमीनी व्याधियां
सूक्ष्म जीवी वायरस से
हो रहीं बरबादियाँ
एक होंगे सभी इसकी
चेन टूटेगी तभी
भूल जाओ-----------
जिंदगी में एकता के
मंत्र का सम्मान हो
एकता पर ही हमारे
देश को अभिमान हो
फूट आपस की बनेगी
क्रूरतम अभिशाप भी।
भूल जाओ-----------
जाति धर्मों के मिटा दें
फासले मिलकर गले
घोर संकट की घड़ी में
मैल अंतस का धुले
तभीतो कल्याण होगा
चैन पाएंगे सभी।
भूल जाओ-----------
💐💐💐
वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
मुरादाबाद के साहित्यकार केपी सिंह सरल की रचना --हे परम पिता हे करुणा निधि तुम शीघ्र धरा पर आ जाओ
हे परम पिता हे करुणानिधि तुम शीघ्र धरा पर आ जाओ।
अब तड़फ रही मानव योनि तुम इसके कष्ट मिटा जाओ।।
दुनिया में हाहाकार मचा सब तेरी आस लगाए हैं। भारी विपदा आ गयी यहां दानव ने सभी सताए हैं।
अब चक्र हाथ में लेकर प्रभु दुश्मन के ऊपर छा जाओ।
हे परम पिता हे करुणानिधि तुम शीघ्र धरा पर आ जाओ
कुछ पाप कर्म हमने कीन्हे जिनका फल आगे आया है ।
हम भूल गये महिमा तेरी उसका ही प्रतिफल पाया है।।
हम जोड़ हाथ करें विनती इस कोरोना को जला जाओ ।
हे परम पिता हे करुणानिधि तुम शीघ्र धरा पर आ जाओ ।।
*** के० पी० सिंह 'सरल'
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
अब तड़फ रही मानव योनि तुम इसके कष्ट मिटा जाओ।।
दुनिया में हाहाकार मचा सब तेरी आस लगाए हैं। भारी विपदा आ गयी यहां दानव ने सभी सताए हैं।
अब चक्र हाथ में लेकर प्रभु दुश्मन के ऊपर छा जाओ।
हे परम पिता हे करुणानिधि तुम शीघ्र धरा पर आ जाओ
कुछ पाप कर्म हमने कीन्हे जिनका फल आगे आया है ।
हम भूल गये महिमा तेरी उसका ही प्रतिफल पाया है।।
हम जोड़ हाथ करें विनती इस कोरोना को जला जाओ ।
हे परम पिता हे करुणानिधि तुम शीघ्र धरा पर आ जाओ ।।
*** के० पी० सिंह 'सरल'
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार आदर्श भटनागर का गीत -- एक-एक मीटर की दूरी से रहो दूर से बात करो देखो भीड़ न लगने पाए यहां वहां इस देश में
कोरोना का खतरा देखो
मंडरा रहा है देश में
बार-बार धो हाथ, रहो घर
कहीं ना जाओ देश में
सेनीटाइज रखो हाथ को
कहीं से आओ नहाओ तुम
सावधान हो अफवाहों से
रहो सुरक्षित देश में
एक-एक मीटर की दूरी से
रहो दूर से बात करो
देखो भीड़ न लगने पाए
यहां वहां इस देश में
देखो नियम से रह लो भाई
कहा सुनो सरकार का
सुनो डॉक्टर क्या कहते हैं
भटको नाही देश में
बार-बार आदर्श सुझाये
बात पते की ही करता
जगो जगाओ सबको भाई
रहो सुरक्षित देश में
** आदर्श भटनागर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मंडरा रहा है देश में
बार-बार धो हाथ, रहो घर
कहीं ना जाओ देश में
सेनीटाइज रखो हाथ को
कहीं से आओ नहाओ तुम
सावधान हो अफवाहों से
रहो सुरक्षित देश में
एक-एक मीटर की दूरी से
रहो दूर से बात करो
देखो भीड़ न लगने पाए
यहां वहां इस देश में
देखो नियम से रह लो भाई
कहा सुनो सरकार का
सुनो डॉक्टर क्या कहते हैं
भटको नाही देश में
बार-बार आदर्श सुझाये
बात पते की ही करता
जगो जगाओ सबको भाई
रहो सुरक्षित देश में
** आदर्श भटनागर
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
गुरुवार, 26 मार्च 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ राकेश चक्र के दोहे --योग, सैर अपनाइये, तन-मन रहे निरोग। संस्कृति अपनी ही भली, कहते आए लोग।।
*कोरोना के चक्र में, फँसा सकल संसार।
मानव के दुष्कृत्य से, विपदा अपरंपार।।
*हर कोई भयभीत है, मान रहा अब हार।
कार कोठियां रह गईं, धन सारा बेकार।
*चमत्कार विज्ञान के, हुए सभी निर्मूल।
जान बूझकर ये मनुज, करता जाए भूल।।
*बड़े-बड़े योद्धा डरे, कोरोना को देख।
पर मानव सुधरे नहीं, लिखे प्रलय का लेख।।
*धन-दौलत की चाह में, करे प्रकृति को क्रुद्ध।
दोहन अतिशय ये करें, करता नियम विरुद्ध।।
*मुश्किल में अब जान है ,घर में ही सब कैद।
बलशाली भी डर गए,डरे चिकित्सक वैद।।
*अभी समय है चेत जा, तज दे तू अज्ञान।
काँधा देने के लिए, मिलें नहीं इंसान।।
*भौतिक सुख सुविधा नहीं, अपने भव की सोच।
फास्टफूड ही कर रहा , लगी सोच में मोच।।
*शाकाहारी भोज में , मिलता है आनन्द।
चाइनीज भोजन करे, सबकी मति है मन्द।।
*योग, सैर अपनाइये, तन-मन रहे निरोग।
संस्कृति अपनी ही भली, कहते आए लोग।।
*श्रम करने से ही सदा , तन का अच्छा हाल।
आलस मोटा कर रहा, बने स्वयं का काल।।
*व्यसनों में है आदमी, झूठा चाहे चैन।
मन भी बस में है नहीं, भाग रहा दिन रैन।।
***डॉ राकेश चक्र
90 बी
शिवपुरी
मुरादाबाद 244001
उ.प्र . भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456201857
Rakeshchakra00@gmail.com
मानव के दुष्कृत्य से, विपदा अपरंपार।।
*हर कोई भयभीत है, मान रहा अब हार।
कार कोठियां रह गईं, धन सारा बेकार।
*चमत्कार विज्ञान के, हुए सभी निर्मूल।
जान बूझकर ये मनुज, करता जाए भूल।।
*बड़े-बड़े योद्धा डरे, कोरोना को देख।
पर मानव सुधरे नहीं, लिखे प्रलय का लेख।।
*धन-दौलत की चाह में, करे प्रकृति को क्रुद्ध।
दोहन अतिशय ये करें, करता नियम विरुद्ध।।
*मुश्किल में अब जान है ,घर में ही सब कैद।
बलशाली भी डर गए,डरे चिकित्सक वैद।।
*अभी समय है चेत जा, तज दे तू अज्ञान।
काँधा देने के लिए, मिलें नहीं इंसान।।
*भौतिक सुख सुविधा नहीं, अपने भव की सोच।
फास्टफूड ही कर रहा , लगी सोच में मोच।।
*शाकाहारी भोज में , मिलता है आनन्द।
चाइनीज भोजन करे, सबकी मति है मन्द।।
*योग, सैर अपनाइये, तन-मन रहे निरोग।
संस्कृति अपनी ही भली, कहते आए लोग।।
*श्रम करने से ही सदा , तन का अच्छा हाल।
आलस मोटा कर रहा, बने स्वयं का काल।।
*व्यसनों में है आदमी, झूठा चाहे चैन।
मन भी बस में है नहीं, भाग रहा दिन रैन।।
***डॉ राकेश चक्र
90 बी
शिवपुरी
मुरादाबाद 244001
उ.प्र . भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456201857
Rakeshchakra00@gmail.com
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का गीत -घर के बाहर जो निकलेगा उसका बंटाधार शुरू हुआ सबसे लंबा इक्किस दिन का इतवार
छुट्टी मिली सभी को ऐसी पहली-पहली बार
शुरू हुआ सबसे लंबा इक्किस दिन का इतवार
(1)
घर के भीतर ही रहना है बाहर कहीं न जाना
कोई नौकर - चाकर इन इक्कीस दिनों कब आना
खुद करने के लिए काम सब हो जाओ तैयार
शुरू हुआ सबसे लंबा इक्किस दिन का इतवार
(2)
कर लो घर की साफ-सफाई सीखो दाल बनाना
रोटी कैसे बेली जाती कैसे बनता खाना
कैसे धोते और सुखाते कपड़े करो विचार
शुरू हुआ सबसे लंबा इक्किस दिन का इतवार
(3)
महिलाओं को कुछ ज्यादा आराम दिलाना अच्छा
घर के कामों में पतियों का हाथ बँटाना अच्छा
एक साथ रहने - जीने का दें प्रभु को आभार
शुरू हुआ सबसे लंबा इक्किस दिन का इतवार
(4)
इस छुट्टी में नहीं किसी को पिकनिक कहीं मनाना
इस छुट्टी में नहीं किसी को होटल जाकर खाना
इस छुट्टी में बंद सिनेमा हॉल मॉल बाजार
शुरू हुआ सबसे लंबा इक्किस दिन का इतवार
(5)
सोचो दुनिया ने कब ऐसी बीमारी थी झेली
सारे यमदूतों पर भारी यह ही एक अकेली
घर के बाहर जो निकलेगा उसका बंटाधार
शुरू हुआ सबसे लंबा इक्किस दिन का इतवार
(6)
आमदनी सब बंद हो गई कैसे हँसे हँसाए
रुकी कमाई सब की आखिर बिना काम पर जाए
बटुए में सबके हैं पैसे गिनती के बस चार
शुरू हुआ सबसे लंबा इक्किस दिन का इतवार
(7)
जीवन का सौंदर्य परिश्रम - छुट्टी का शुभ नाता
छह दिन करके काम सातवाँ दिन छुट्टी का भाता
घर में बैठा लगातार कहलाता है बेकार
शुरू हुआ सबसे लंबा इक्किस दिन का इतवार
(8)
रखो तीन फुट तन की दूरी कोरोना मजबूरी
मन से मन की भेंट मौहल्ले की करना पर पूरी
दुखी पड़ोसी है तो समझो खुद को जिम्मेदार
शुरू हुआ सबसे लंबा इक्किस दिन का इतवार
----------------------------------------------
*** रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
उत्तर प्रदेश , भारत
मोबाइल 999 7615 451
बुधवार, 25 मार्च 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार अमितोष शर्मा की गजल --बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है | मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है |।
बेवजह घर से निकलने की ज़रूरत क्या है |
मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है |
सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल |
यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ||
ज़िन्दगी एक नियामत, इसे सम्हाल के रख |
क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है ||
दिल बहलने के लिए घर मे वजह हैँ काफ़ी |
यूँ ही गलियों मे भटकने की ज़रूरत क्या है ||
मुस्कुराकर, आंख झुकना भी अदब होता है |
हाथ से हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है ||
लोग जब हाथ मिलाते हुए कतराते हों |
ऐसे रिश्तों को निभाने की ज़रूरत क्या है ||
अमितोष शर्मा ग़ज़ल
मौत से आंख मिलाने की ज़रूरत क्या है |
सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल |
यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ||
ज़िन्दगी एक नियामत, इसे सम्हाल के रख |
क़ब्रगाहों को सजाने की ज़रूरत क्या है ||
दिल बहलने के लिए घर मे वजह हैँ काफ़ी |
यूँ ही गलियों मे भटकने की ज़रूरत क्या है ||
मुस्कुराकर, आंख झुकना भी अदब होता है |
हाथ से हाथ मिलाने की ज़रूरत क्या है ||
लोग जब हाथ मिलाते हुए कतराते हों |
ऐसे रिश्तों को निभाने की ज़रूरत क्या है ||
अमितोष शर्मा ग़ज़ल
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मरगूब हुसैन की रचना -- कोरोना का इलाज नहीं है, सावधानी ही बचाव है
कोरोना कोई मज़ाक नहीं, भयंकर ये बीमारी है।
हर ओर फैला है ये तो, अब परेशां दुनिया सारी है।
इतने पर भी मेरे देश में, लोग नहीं दिखते गंभीर।
ऐसे में भी जागे हम ना, तो हम सब की मतमारी है।
कोरोना का इलाज नहीं है, सावधानी ही बचाव है।
सावधानी तुम बरतलो ज़्यादा, सबका यही सुझाव है।
फैल गया इसका संक्रमण, मुश्किल होगी बहुत हमें।
अपना लो तुम ठोस क़दम बस, मर्ज़ी का ये चुनाव है।
यह बात मैं सबसे कहता, मसखरी का यह दौर नहीं।
ऐसा लगता तुमको शायद, इस त्रासदी पर ग़ौर नहीं।
भयाभयता तुम कोरोना की, चीन ईरान इटली से पूछो।
चौकन्ने तुम रहो हमेशा, इलाज़ इसका कोई और नहीं।
जनता कर्फ्यू बेहतर उपाय, पीएम के तुम साथ चलो।
समझो इसको बोझ नहीं, हाथों में लेकर हाथ चलो।
कर्फ्यू से टूटेगी चेन, फिर कोरोना भी निश्चित हारेगा।
एका में अपार है ताक़त, मिलजुल कर बस साथ चलो।
उठो चलो आगे बढ़ जाओ, कोरोना को दूर भगाओ।
महाआपदा बीमारी को, देश में अपने मत ठहराओ।
सुरक्षित रहे देश मेरा बस, चाहत है मरग़ूब की ये तो।
रखो हौंसला और आगे तुम,बढ़ते जाओ बढ़ते जाओ।
**मरग़ूब हुसैन
गुलिस्तां हाउस
दानिशमंदान
अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 94125 87622
मंगलवार, 24 मार्च 2020
मुरादाबाद के ( वर्तमान में मुंबई ) साहित्यकार प्रदीप गुप्ता की कविता -- अजीब वक्त से वाबस्ता हैं हम
अजीब वक्त से वाबस्ता हैं इन दिनों
करने लगे हैं अपने ही लोगों से अलग रहने की दुआ ।
कल एक मित्र बड़ी मोहब्बत से
लिट्टी चोखा दे गए
जिसे उनकी मेम साहब ने बड़े जतन से पकाया था ।
यक़ीन मानिए वो ऐसे ही रखा रहा
कई बार सोचा खाऊं या न खाऊं ,
जबकि पहले उनके हाथ में की बनी चीज़ों का
बेसब्री से इन्तजार रहता था ।
मेरे घर का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता था
मित्रों व अजनबियों के लिए भी ,
इन दिनों बंद ही रहता है ,
एक तो घंटी बजती ही नहीं
अगर घंटी बज भी गयी तो
दरवाज़ा खोलने के लिए
कदम आगे बढ़ते ही नहीं ।
और तो और , सौंदर्य बोध तेल लेने चला गया है
खूबसूरत चेहरा देख कर अब
होंठ सीटी बजाने के लिए गोल होते ही नहीं
दिमाग़ की तात्कालिक प्रतिक्रिया यही होती है
ये मास्क लगा कर निकले होते तो अच्छा होता ।
जो बच्चे गोदी में आने के लिए मचलते थे
उन्हें देख के मन करता है
दूर ही रहो तो बेहतर है ।
एक ही झटके में
चली गयी है रिश्तों की गरमाहट
सिमट गए हैं सभी रिश्ते एक फ़ोन काल तक ।
हम अपने बनाए हुए हैं
ऐसे टापू पर बैठ गए हैं
जहां न आती है कोई बस , रेल या कोई फ़्लाइट
हम हैं और साथ में लम्बी तन्हाई ।
कैसे वक्त से वाबस्ता हैं हम इन दिनों ।
** प्रदीप गुप्ता
B-1006 Mantri Serene
Mantri Park, Film City Road , Mumbai 400065
करने लगे हैं अपने ही लोगों से अलग रहने की दुआ ।
कल एक मित्र बड़ी मोहब्बत से
लिट्टी चोखा दे गए
जिसे उनकी मेम साहब ने बड़े जतन से पकाया था ।
यक़ीन मानिए वो ऐसे ही रखा रहा
कई बार सोचा खाऊं या न खाऊं ,
जबकि पहले उनके हाथ में की बनी चीज़ों का
बेसब्री से इन्तजार रहता था ।
मेरे घर का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता था
मित्रों व अजनबियों के लिए भी ,
इन दिनों बंद ही रहता है ,
एक तो घंटी बजती ही नहीं
अगर घंटी बज भी गयी तो
दरवाज़ा खोलने के लिए
कदम आगे बढ़ते ही नहीं ।
और तो और , सौंदर्य बोध तेल लेने चला गया है
खूबसूरत चेहरा देख कर अब
होंठ सीटी बजाने के लिए गोल होते ही नहीं
दिमाग़ की तात्कालिक प्रतिक्रिया यही होती है
ये मास्क लगा कर निकले होते तो अच्छा होता ।
जो बच्चे गोदी में आने के लिए मचलते थे
उन्हें देख के मन करता है
दूर ही रहो तो बेहतर है ।
एक ही झटके में
चली गयी है रिश्तों की गरमाहट
सिमट गए हैं सभी रिश्ते एक फ़ोन काल तक ।
हम अपने बनाए हुए हैं
ऐसे टापू पर बैठ गए हैं
जहां न आती है कोई बस , रेल या कोई फ़्लाइट
हम हैं और साथ में लम्बी तन्हाई ।
कैसे वक्त से वाबस्ता हैं हम इन दिनों ।
** प्रदीप गुप्ता
B-1006 Mantri Serene
Mantri Park, Film City Road , Mumbai 400065
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक के दोहे --- भीड़ रोकने में करें , शासन का सहयोग। वरना बढ़ता ही यहाँ , जायेगा यह रोग। --
संकट के इस काल में , माने यह दस्तूर।
हाथ मिलाने से हमें , रहना है अब दूर।।
मेलजोल में इन दिनों , संयम से लें काम।
'कोरोना' पर लग सके,जिससे शीघ्र विराम।।
भीड़ रोकने में करें , शासन का सहयोग।
वरना बढ़ता ही यहाँ , जायेगा यह रोग।।
साफ़ सफ़ाई कीजिए,रखिए खुद को क्लीन।
डर जायेगा आपसे , 'कोविड नाइन्टीन'।।
साहस रख संघर्ष को,रहते जो तैयार।
हर विपदा -बाधा सदा ,माने उनसे हार ।।
सावधान रहकर सतत , इस संकट में आप।
अपने अपने इष्ट का , करते रहिए जाप।।
***ओंकार सिंह विवेक
रामपुर-उ0प्र0
मोबाइल फोन नंबर 9897214710
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की गजल -- गर प्यार है खुद से तो ज़रा दूर रहो सबसे । वो मौत बुलाने में तकल्लुफ भी नहीं करता
दस्तक नहीं देता वो इशारा भी नहीं करता ।
शातिर है बड़ा आने की खबर भी नहीं करता ।।
आ जाता है खामोशी से वो मेरे बदन में ।
फिर छोड़के जाने का इरादा भी नहीं करता ।।
हो जाए खबर कोई तो तूफान मचे है ।
फिर अपनों से मिलना वो गवारा भी नहीं करता ।।
गर प्यार है खुद से तो ज़रा दूर रहो सबसे ।
वो मौत बुलाने में तकल्लुफ भी नहीं करता ।।
तनहाई में रहकर करो महफ़ूज़ जहां को ।
मज़हबो मिल्लत की वो परवाह भी नहीं करता ।।
अपना हंसी चेहरा ना छुओ हाथों से अपने ।
नाज़ुक हो या मासूम मुरव्वत भी नहीं करता ।।
ना हाथ मिलाओ ना लो बांहों में किसी को ।
वो प्यार मोहब्बत की क़दर भी नहीं करता ।।
मैं घर में हूं मुझे घर में ही रहना है मुजाहिद ।
तन्हा मुझे रहना यूं परेशां भी नहीं करता ।।
**मुजाहिद चौधरी एडवोकेट
हसनपुर
जनपद अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का गीत --बन्द घरों में रहने को अब होना है तैयार हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार
हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार
गले मिलेगा इक दूजे से पूरा ये संसार
आज बनाता हम सबका ही आने वाला कल है
मानव को मिलता उसकी ही हर करनी का फल है
मांसाहार छोड़कर खाना है बस शाकाहार
हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार
बार बार अपने हाथों को रगड़ रगड़ कर धोना
जिम्मेदारी खूब निभाना लापरवाह मत होना
ऐसे ही इस महा असुर का करना है संहार
हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार
जनता कर्फ्यू का पालन हम सबको ही करना है
आगामी दुष्परिणामों से चेतन मन रहना है
बन्द घरों में रहने को अब होना है तैयार
हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार
सोच समझ कर देखभाल कर बस निर्णय लेना है
फैल रही इन अफवाहों पर कान नहीं देना है
कोरोना के हर प्रहार पर करो पलट कर वार
हो जाएगी इक दिन देखो कोरोना की हार
*************** गजल******************
मुफ्त में मिल गया है कोरोना
जान लेवा बना है कोरोना
विश्व का युद्ध अब छिड़ा कैसा
वार बम से बड़ा है कोरोना
जान ले लीं हज़ारों की इसने
दर्द ही दे रहा है कोरोना
ध्यान चेतावनी पे दो लोगो
छूने से फैलता है कोरोना
चलती साँसों का है बड़ा दुश्मन
लगता यमराज सा है कोरोना
'अर्चना' हो सभी अलग जाओ
अब इसी पर टिका है कोरोना
************कुंडली ************
घर की सीमा से नहीं, अपने कदम निकाल
कोरोना बन जाएगा, वरना तेरा काल
वरना तेरा काल,फैलता ये जायेगा
फिर इस पर कंट्रोल, न कोई कर पायेगा
लड़ें 'अर्चना' वीर, हमारे ज्यूँ सीमा पर
करना है वो काम, हमारी सीमा है घर
**डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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