संस्मृतियों के स्वर्ण झरोखे झाँक रहा साजन
प्रेम-प्रीति के नैनों में फिर आँज रहा काजल
मधुर यामिनी,मधुर मोहिनी,रति-रसिका रमणी
करती है क्रीड़ाएं मधुमय होकर अलबेली
नयनों में छबियों का नर्तन मनहर होता है
रात चाँदनी संग चन्द्रमा करते अठखेली
मौन पिरोये मुक्ता-मणियाँ, अंक भरे बादल
प्रेम-प्रीति के नयनों में फिर आँज रहा काजल ।।
बीत गया है कब का बचपन अब यौवन है आया
जीवन का सौंदर्य सँजोये बनी सहेली है
कोई न चिंतन,कोई न मंथन, बात करे कोई
शरमायी है अनबोली वह नयी नवेली है
च॔दन-सी महकी सांसों से सरक रहा आँचल
प्रेम-प्रीति के नयनों में फिर आँज रहा काजल।।
रजनी भी अनुकूल हुयी है,मंजिल दूर नहीं
एक सुधाकर उग आया है मानो अम्बर में
मुस्काता यह कौन, करों के पल्लव से छूता
एक कमल या हुआ सुवासित मानो सरवर में
चली हवा मदहोश हुआ दिल ,बदन हुआ मादल।
प्रेम- प्रीति के नयनों में फिर आँज रहा काजल ।।
✍ जितेन्द्र कमल आनंद
साँई बिहार कालोनी,
रामपुर -244901
उत्तर प्रदेश, भारत
मो :7017711018
बहुत सुन्दर सृजन आदरणीय गुरुदेव🙏
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