रविवार, 29 मार्च 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम की कविता --वैसा ही काटना पड़ता है जो जैसा बोता है





जिसे हमने पहले पहल,बहुत हल्के में लिया,
हंसी ठिठोली में,अंडरस्टीमेट कर दिया।
देखते-भालते ,जी का जंजाल बन गया,
मजाक समझ रहे थे हम,जिंदगी पर सवाल बन गया।
कथाओं में,कहानियों में,कीमती मोबाइलों में,
थानों में,कोतवाली में,सरकारी फाइलों में।
अखबारों में,टीवी में,गीतों में,गजलों-चुटकुलों में,
आंकड़ों में,अफवाहों में,ख्यालों में,अटकलों में।
रास्तों में,चौराहों में,महलों में,झोपड़ी में,
गरीबों में,अमीरों में,प्रधान सेवक की खोपड़ी में।
अब तो दिन-रात,उसी के नाम का रोना धोना है।
बे लगाम नरभक्षी,तानाशाह सा  कोरोना है।।
आदमी आजकल,घर का ना घाट का है।
निठल्ला दो कौड़ी का,बाजार का ना हाट का है।।
कोरोना ईस्ट इंडिया कंपनी की तर्ज पर,संबंधों में जहर घाेलता है।
असुरक्षा के डर से,एक दूसरे का मन डोलता है।।
सगे संबंधी भी,एक दूसरे के पास फटकने से डरते हैं।
दूर से ही संकेतों के माध्यम से,काम चलाऊ बातें करते हैं।।
आज मैंने आवाज लगाई-बेटे यहां आओ।
झटपट छोटू बोला -पापा ज्यादा स्मार्ट मत बनो,जो कुछ भी कहना है,दूर से ही बताओ।।
देखकर उसका कॉन्फिडेंस,लेवल मेरा लूज़ हो गया।
जीरो वाट का अपना बल्ब,फ्यूज हो गया।।
रात्रि के चौथे प्रहर में,बड़ी सावधानी से श्रीमती जी की ओर।
कुछ मांगने के लिए,
जैसे ही हिलाई पवित्र संबंधों की डोर।।
झिड़कते हुए वैधानिक चेतावनी
वाले  अंदाज में,मचाने लगी शोर।
तुम्हारे नाम की बची नहीं है शर्म हया।
अपनी उम्र का लिहाज धरो,मुझ पर खाओ रहम दया।।
मुंह पर मास्क ठीक से बांधाे,हाथ लाइफबॉय से धो कर आओ।
ज्यादा आफत मत काटो,शरीफों की तरह सो जाओ।।
भाई साहब बाहर जाएं,तो पुलिस लठियाती है।
घर के अंदर,घर वाले धकियाते हैं।।
कोई राजी से दो बात करने को तैयार नहीं,
डॉक्टरों के दल की तरह,सख्त लहजे में बतियाते हैं।।
और अधिक क्या कहें-सुनें,बात शीशे की तरह बिल्कुल साफ है।
यह कोरोना कोई महामारी नहीं,
हम सब के द्वारा किया गया महापाप है।।
प्रकृति के साथ अप्राकृतिक व्यसन-वासनाओं का परिणाम, ऐसा ही होता है।
वैसा ही काटना पड़ता है मित्रों,जो जैसा बोता है।।

*** त्यागी अशोक कृष्णम्
कुरकावली
संभल
उत्तरप्रदेश,भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719059703

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