गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं पुरातत्ववेत्ता स्मृति शेष सुरेंद्र मोहन मिश्र के दो गीत -- ये गीत लिए गए हैं लगभग 56 साल पूर्व सन 1964 में हिंदी साहित्य निकेतन द्वारा प्रकाशित साझा काव्य संग्रह 'तीर और तरंग 'से। मुरादाबाद जनपद के 39 कवियों के इस काव्य संग्रह का संपादन किया था गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्ता ने । भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने ।






     ::::: प्रस्तुति :::::::
           
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
 मुरादाबाद 244001
  उत्तर प्रदेश, भारत
  मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में गाजियाबाद निवासी ) डॉ कुंअर बेचैन के दो गीत और परिचय । ये गीत वर्ष 1964 में प्रकाशित मुरादाबाद जनपद के कवियों के साझा काव्य संकलन "तीर और तरंग" में प्रकाशित हुए थे। संभवत: ये उनके पहले गीत होंगे जो किसी साझा संकलन में प्रकाशित हुए होंगे। यह संकलन हिन्दी साहित्य निकेतन संभल द्वारा गिरिराज शरण अग्रवाल और नवल किशोर गुप्त के संपादन में प्रकाशित हुआ था। भूमिका लिखी थी डॉ गोविंद त्रिगुणायत ने.....






 ::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी ---नेकलेस


   लॉकडाउन को समाप्त हुए आज ग्यारहवाँ दिन था । दीपक ने अपनी सर्राफे की दुकान हमेशा की तरह खोली तथा काउंटर साफ करने के बाद गद्दी पर बैठ गया। बाजार में सन्नाटा था । पिछले दस दिन से यही चल रहा था कि दीपक आकर दुकान खोलता था, गद्दी पर बैठता था और फिर शाम को खाली हाथ घर वापस लौट जाता था। बिक्री के नाम पर बोहनी तक नहीं होती थी ।
          ग्यारहवें दिन भी दीपक उदास बैठा था। सोच रहा था कि शायद आज भी कोई ग्राहक न आए ,लेकिन तभी सामने से नई कॉलोनी वाली मिसेज शर्मा दुकान पर चढ़ीं।  उन्हें देखकर दीपक की आँखों में चमक आ गई । लॉकडाउन से थोड़े दिन पहले ही तो मिसेज शर्मा दुकान पर आकर एक सोने का नेकलेस पसंद करके गई थीं। कीमत बयालीस हजार रुपए बैठी थी । नेकलेस उन्हें पसंद आ रहा था लेकिन इतने पैसे की गुंजाइश नहीं थी । अतः "बाद में कभी आऊंगी "-कह कर चली गई थीं। आज जब आईं तो दीपक को लगा कि शायद आज कुछ बिक्री हो जाए ।
          "बैठिए मिसेज शर्मा ! क्या नेकलेस.." दीपक का इतना कहना ही था कि मिसेज शर्मा ने कहा " हाँ! नेकलेस के बारे में ही आई हूँ।"
        सुनकर दीपक खुशी से उछल पड़ा। वाह ! आज का दिन तो बहुत अच्छा रहा। लेकिन यह खुशी मुश्किल से आधा मिनट ही टिकी होगी क्योंकि मिसेज शर्मा ने अपने पर्स में से एक पुराना टूटा- फूटा नेकलेस निकाला और कहा " लालाजी ! आप से ही तीन- चार साल पहले खरीदा था । अब बेचने की नौबत आ गई..." कहते हुए मिसेज शर्मा की आँखें भर आई थीं।
        दीपक से भी कुछ और नहीं पूछा गया। उसने नेकलेस तोला और हिसाब लगाकर मिसेज शर्मा को बता दिया " नेकलेस छत्तीस हजार रुपए का बैठ रहा है । आप कहें तो रुपए दे दूँ?"
     " हाँ! रुपए दे दीजिए । इसी लिए तो लाई हूँ।"
         तिजोरी से रुपए निकालकर दीपक ने मिसेज शर्मा को दे दिए । मिसेज शर्मा रुपए ले कर चली गईं। उनके जाने के बाद दीपक ने नेकलेस को तिजोरी में रखने के लिए हाथ बढ़ाया लेकिन फिर कुछ सोच कर उसने नेकलेस को अपनी कमीज की जेब में रख लिया और बुदबुदाकर स्वयं से कहने लगा "मुझे भी तो घर-खर्च चलाने के लिए नेकलेस गलाना ही पड़ेगा ।"-उसकी आंखें भी यह बुदबुदाते हुए भर आई थीं।

 *** रवि प्रकाश
 बाजार सर्राफा
 रामपुर
उत्तर प्रदेश
 *मोबाइल 99976 15451*

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी--- लॉक डाउन



"ये लीजिये,चाय पी लीजिये,"मीनू ने अखबार पढ़ते हुए सुमित के आगे पड़ी टेबल पर चाय रखते हुए कहा ।सुमित ने मुस्कुराते हुऐ ,"शुक्रिया जनाब" कहा तो मीनू हौले से हँसते हुऐ बोली,"ओहो..क्या बात है ..!आजकल बड़े शुक्रिया अदा करने लगे हो।" "हाँ...बस यूँ ही..आज मन किया कि तुम्हें शक्रिया  बोलूँ..!वाहहह!!चाय तो बड़ी अच्छी बनी है..।"सुमित ने चाय पीते हुऐ कहा तो मीनू भी हँसते हुऐ बोली,"हार्दिक आभार आपका जी...."फिर दोनो ही जोर से हँस पड़े।"मीनू रसोई में जाकर नाश्ता बनाने लगी। सुमित को अपने अस्पताल जाने की तैयारी करते देख चिंतित स्वर में बोली,"सुनो अपना ध्यान रखना,कोरोना बहुत तेजी से फैल रहा है,अस्पताल में पता नहीं कैसे कैसे मरीज आते होंगे।""ओके बाबा"मैं अपना पूरा ध्यान रखूँगा,पर तुम और बच्चे घर के भीतर ही रहना,इस महामारी का अभी तक कोई इलाज नहीं मिला है।घर में रहना ही इससे बचने का एकमात्र उपाय है।" "जानती हूँ..।...इसलिये तुम्हारे जाते ही घर में ताला लगा देती हूँ..चलो अब नाश्ता करो...देर हो रही है.।"मीनू ने कहा।
पिछले सात आठ दिन से सुमित  के  पूरे घर का माहौल ही बदला हुआ  सा लग रहा था ।वैसे तो  कोरोना के देश में फैलने के  कारण मन मस्तिष्क में एक   तनाव सा बना हुआ  तो था, पर लगता था कि घर में कुछ नयापन सा है।वैसे तो घर में कोई कमी न थी,पर ऐसा माहौल भी पहले कभी न बना था।बात बात पर बच्चों पर झुंझलाने वाली मीनू न जाने कितने समय बाद बच्चों के इतने करीब थी।बच्चे भी खुश थे कि उन्हें माँ के दुलार के साथ प्रतिदिन कुछ नया व्यंजन भी खाने को  मिल रहा था। छत पर रखे गमले जो कभी पानी को भी तरस जाया करते थे ,आज मौसमी फूलों से लद गये हैं।जिस स्टोर रुम में कोई सामान न मिलता था,वहाँ भी एक सुघड़ता दिखने लगी थी ।घर के दर्पण जिन्हें वो बदलने की सोच रहे थे,सब चमचमा रहे थे।  पूरा घर अनुशासित और व्यवस्थित नज़र आने लगा था ।जिन रुमालों  और मौजौं को अथक प्रयास से भी वह कभी ढूँढ न पाता था,वो करीने से उसकी अलमारी में रखे मिलने लगे थे।जो बच्चे हमेशा ऊलूल जुलूल कार्टून देखते थे,वो भी अब दूरदर्शन पर उसी बेसब्री से रामायण के आने की प्रतीक्षा करने लगे थे,जैसे कभी वह अपने बचपन में पूरे परिवार के साथ रामायण देखने की प्रतीक्षा करता था।अभी तक उसे यही लगता था कि आजकल के बच्चे कलयुगी हो गये हैं,और धार्मिकता और भारतीय संस्कृति से विमुख हो गये हैं।पर उन्हें भगवान राम के दुख में दुखी तथा उनके शौर्य पर रोमांचित होते देख,अपना बचपन याद आ गया था।सोच रहा था कि बच्चे नहीं बदले,हम लोगों ने ही कभी सही प्रयास नहीं किया। मीनू एक शिक्षिका थी और घर व बाहर दोनो को अच्छे से निभाने की कोशिश करती थी।सुमित एक सरकारी अस्पताल में डाक्टर था।नौकरी के चक्कर में दोनो चाहते हुए भी कभी अपने परिवार व बच्चों को समय नहीं दे पाये थे।मीनू को गर्मियों व सर्दियों की छुट्टियाँ ज्यादा गरमी और ज्यादा ठंड के कारण कुछ विशेष अच्छी न लगती थीं। हमेशा झुंझलायी रहने वाली मीनू को अब एक अरसे के बाद अपने घर को सँवारने,बच्चों और पति पर अपना स्नेह और प्रेम उडेलने का अवसर मिला था। घर परिवार को एक साथ खिलखिलाता देख नाश्ता करता हुआ  सुमित मन ही मन मुस्कुरा उठा और धीरे से बड़बड़ाया, "लाक डाउन इतना भी बुरा नहीं है।"

‌***मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
‌मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार नवाज अनवर खान की कहानी ---बदला


चिंटू सड़क पर टहल रहा था तभी अचानक एक तेज़ रफ़्तार कार ने उसे ज़ोरदार टक्कर मार दी। चिंटू लहूलुहान होकर गिर पड़ा और सड़क पर तड़पने लगा। उसके ऊपर से सैकड़ों वाहन गुज़र गये उसे कोई बचाने नहीं आया। करीब 15 मिनट तड़पने के बाद चिंटू ने दम तोड़ दिया।
चिंटू की मौत की ख़बर सुनकर उसके परिवार में कोहराम मच गया क्योंकि दो महीने पहले ही उसके छोटे भाई मिंटू की मौत भी एक तेज़ रफ़्तार बस के नीचे आने से हो गयी थी। जैसे-तैसे चिंटू का अंतिम संस्कार कर दिया गया लेकिन अब उसका परिवार और सब्र नहीं कर सकता था चिंटू के पापा सरपंच शेरा से मिलने उनके घर गए शेरा ने चिंटू की मौत पर अपनी संवेदनाएं व्यक्त कीं।
"आखिर कब तक हमारे बच्चे ऐसे ही मरते रहेंगे कुछ तो करना होगा सरपंच साहब" चिंटू के पापा ने कहा और बहुत देर की वार्तालाप के बाद एक सभा का आयोजन करने का निर्णय लिया गया और शेरा ने गांव में एक सभा करने की घोषणा कर दी। सभा हुई, जिसमें दूर दराज़ के गांवों से आये कुत्तों ने अपनी आपसी रंजिशें भुलाते हुए इस सभा में भाग लिया।
चिंटू के पापा माइक पर आये और उन्होंने बोलना शुरू किया- आख़िर कब तक वफ़ादारी दिखाएंगे हम लोग, कब तक चिंटू और मिंटू की तरह ऐसे अपनों को खोतें रहेंगे, ऐसे चुपचाप बैठकर अपनों की मौतें कब तक देखें, कब तक... अगर हमने अब कोई बड़ा कदम नहीं उठाया तो हमारे अपने ऐसे ही हमें छोड़कर जाते रहेंगे आज मिंटू, कल चिंटू, फिर कोई और....हमारी जाति ही खत्म न हो जाये मुझे तो अब यह डर भी सता रहा है। क्या कुछ नहीं करते हम इंसानों के लिए रात-रात भर जागते हैं कि कहीं इनके घरों में कोई बाहरी न घुस जाये फिर भी इनके बच्चे हम पर ईंटे मारते हैं, इन्हें गुस्सा आता है तो कभी भी डंडा मार देते हैं। अभी पीछे चिंटू की माँ को तेज़ का ज़ुकाम था वो दवाई के लिए भटक रही थी अचानक एक इंसानी बच्चे ने उसपर पानी डाल दिया क्या यह अन्याय नहीं है, क्या ज़ुकाम इनको ही होता है, क्या हम लोग बस इनके अत्याचार सहने के लिए बने हैं?
चिंटू के पापा भावुक हो गए और मंच पर ही रो पड़े, खुद सरपंच शेरा ने आकर उन्हें संभाला और ज़मीन पर बिठाया।
शेरा ने माइक सँभालते हुए कहा- अब वक्त आ गया है हम लोग अपनी आपसी रंजिशें भुला दें और अपने परिवारों की हिफाज़त के लिए कुछ बड़ा कदम उठाएं। शेरा ने आगे कहा कि अगर किसी के पास कोई सुझाव है तो वह माइक पर आकर सबको बताये।
कुछ गांव के कुत्तों का कहना था कि इंसान जहां कहीं भी दिखे उसको लपककर काट लो और उसका इतना मांस नोंच लो की वह मर जाये। लेकिन शेरा ने कहा कि हम भी अगर इंसानों की तरह ही बेगुनाहों की जान लेंगे तो उनमें और हम में क्या फ़र्क रह जायेगा।
कुछ कुत्तों ने इंसानी घरों में घुसकर लूटपाट करने की सलाह दी। वह कह रहे थे की इंसानों के घर में जो भी रखा हो उसे मुँह में दबाकर ले आओ चाहे वह खाने का न भी हो, अगर खाने का न हो तो उसको सड़क पर व्यर्थ कर दो और इंसानों का खूब नुकसान करो।
हालांकि कुछ बूढ़े कुत्ते यह भी कह रहे थे की हमें खुद ही अपने बच्चों का ख्याल रखना चाहिए, उन्हें सड़क तक जाने ही न दो जो कोई इंसान उन्हें रौंदकर चला जाये।
बहुत सारे कुत्तों ने अपने-अपने सुझाव दिए लेकिन सरपंच शेरा कोई ऐसी तकनीक की खोज कर रहे थे जिससे इंसानी क़ौम को साफ-साफ पता चल जाये की अब कुत्ते खामोश नहीं बैठेंगे और वह उनसे बदला ले रहे हैं। सरपंच शेरा की मंशा थी की हम ज़्यादा आतंक भी न मचाएं और इंसानों को सबक भी सिखा दिया जाये। वह दूरदर्शी थे उन्हें पता था कि अगर कुत्ते इस प्रकार के किर्याकलाप करेंगे जो सुझाव दिए गए हैं तो इंसानों को गुस्सा भी आएगा और कुत्तों पर होने वाले अत्याचार और ज़्यादा बढ़ जाएंगे।
अंततः शेरा ने एक नई तकनीक खोज ली और देखते ही देखते हज़ारों की तादाद में कुत्ते शांतिपूर्वक सड़कों पर उतर आये। सारे मुख्य मार्गों को कुत्तों ने अपने कब्ज़े में ले लिया। भौं-भौं की आवाज़ें आसमान को छूने लगीं। कुत्तों के सड़कों पर उतर आने से सारा ट्रैफिक जाम हो गया। पुलिस अफसरों ने कुत्तों को सड़कों से भगाने की खूब कोशिश की लेकिन जैसे ही कोई पुलिस वाला कुत्तों के करीब आता, बहुत सारे कुत्ते उससे लिपट जाते और काट लेते तो पुलिस वालों की हिम्मत भी नहीं हो रही थी की वह उनके नज़दीक जाएँ। वह गोली भी नहीं चला सकते थे क्योंकि हज़ारो कुत्तों की भीड़ में सबको तो मारा नहीं जा सकता था।
पुलिस कमिश्नर ने फौरन कुत्तों की भाषा समझने और कुत्तों को उनकी भाषा में ही समझाने वाली टीम को बुला लिया। वह टीम पूरी तैयारी के साथ आई उन अफसरों के कपड़ों पर कुत्ते नहीं काट सकते थे।
जैसे ही उनका अधिकारी कुत्तों की तरफ बढ़ा कुत्ते भी उसे काटने के लिए दौड़े लेकिन वह काट नहीं पाए। बार बार कई कुत्ते काटने का प्रयास कर रहे थे लेकिन काट नहीं पा रहे थे।
यह देखकर शेरा समझ गया कि यह कोई इंसानी अधिकारी है और उसने सारे कुत्तों को एक किनारे होने का आदेश दिया।
अब सारे कुत्ते सड़क के किनारे हो गए और गोल घेरा बनाकर खड़े हो गए बीच में सिर्फ़ उस टीम के अधिकारी, सरपंच शेरा और चिंटू-मिंटू के मम्मी-पापा थे।
उन्होंने भौंक-भौंककर और रो-रोकर अपनी बात कहना शुरू की और चिंटू-मिंटू की मौत के बारे में अधिकारी को सारी बात बताई। अधिकारी ने उनकी समस्या सुनकर उनकी भाषा में समझाना शुरू किया और इंसानी कानूनों में सुधार होने की बात कही और शेरा व बाकी सारे कुत्तों को उनकी सुरक्षा का आश्वासन दिया और उनसे सड़क से हट जाने की विनती की। शेरा के आदेश पर सब कुत्ते अपने-अपने गांवों को लौट गए। फिर कभी किसी इंसानी वाहन ने किसी कुत्ते को नहीं कुचला अगर कोई कुत्ता सामने आ भी जाता तो वाहन चालक एकदम ब्रेक लगा लेते और कुत्तों को भी मरने से बचाने की पूरी कोशिश ऐसे ही करते जैसे इंसानों को बचाने की किया करते थे।


***नवाज़ अनवर ख़ान
च 21, कबीर नगर, एमडीए कालोनी,
 निकट प्रेम वंडर लैंड
 मुरादाबाद-244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मो. +91 8057490457

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल के साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कहानी --ईश्वर जिंदा है



एक छोटे कस्बे में स्वाभिमानी परिवार रहता था जिसमें पति पत्नी और उसके दो बच्चे मीना और कृष्णा जोकि क्रमशः कक्षा पांच और कक्षा तीन में पढ़ते थे,कम संसाधनों में ही जीवनयापन कर रहे थे।दोनों बच्चों का मजबूर पिता,मुरारी टिक्की का ठेला लगाकर,अपने परिवार का पालन-पोषण करता था।यह अलग बात है कि वह केवल अपने कर्तव्य का ही पालन कर रहा था,अल्प आय के कारण,पोषण तो दूर की बात थी।बच्चों को पोषक तत्वों की जानकारी तो थी क्योंकि स्कूल में शिक्षक ने उनको पाठ पढ़ाया था लेकिन फलों,दालों और हरी सब्जियों का स्वाद,उन बच्चों को कम ही मिल पाता था।खैर यह परिवार,संतोष धारण करके,कम इच्छाओं का बोझ लेकर,चिंताओं से मुक्त होकर जी रहा था,लेकिन ईश्वर भी अपने भक्तों की परीक्षा समय-समय पर लेते ही रहते हैं,भले ही दुष्टों को दुष्टता करने का पूरा मौका देते रहें।
एक बार,जानलेवा महामारी से शहर कर्फ्यू ग्रस्त हो गया,लोग घरों में कैद हो गये,बाहर निकलने पर पुलिस का खौफ और आवारा घूमते पशु भी,अपनी रोटी का इंतजार करने लगे।मुरारी का ठेला भी घर में कैद हो गया और ठेले के साथ ही,उनका खाना-दाना और रोजमर्रा की चीजें भी अप्राप्त हो गईं,जैसे-तैसे 4 दिन कटने के बाद,स्टोर हुआ राशन भी जवाब दे गया और साथ ही परिवार के सदस्यों का धैर्य भी। मुरारी और उसकी पत्नी जयंती इस मुसीबत पर गहन चिंतन करने लगे,इतने में बच्ची मीना ने अपनी गुल्लक,(जिसमें सुबह की पूजा के बाद धर्मार्थ ₹1 रोजाना डाला जाता था)को तोड़ दिया।
 सिक्कों की खनक के साथ ही,सबके चेहरों पर खुशी झलकने लगी। जयंती,सिक्कों की पोटली बनाकर,आटा-चावल आदि लेने को बाजार गई। लाला रूपकिशोर को पैसे गिनवाए तथा उतनी ही कीमत का राशन मांगा।लाला को पूरा किस्सा समझते देर न लगी,लाला ने पूरे 1 महीने का राशन उसको बांध दिया। पैसे ना लेने की बात कहते हुए,लाला ने कहा कि इस समय आपके घर पर पैसों का अभाव होगा इसलिए मैं उधार कर लेता हूं,यह पैसे फिर दे देना।लेकिन स्वाभिमानी जयंती ने लाला की बात नहीं मानी,उसने सिक्के की पोटली थमा दी और फिर लाला ने बिना झिझक,सिक्कों की पोटली ले ली। जैसे ही जयंती गई,तुरंत लाला ने, वो पोटली,अपने आसन के ऊपर बने भगवान के मंदिर में,भगवान से क्षमा मांगते हुए रख दी।कुछ दिनों के झंझावात के बाद, कर्फ्यू के बादल छटे, महामारी शांत हुई और चहल-पहल शुरू हुई।
लाला रूपकिशोर,मुरारी के घर गया और सिक्कों की पोटली देकर कहा- ''मुझे माफ कर देना, मेरे अंदर का इंसान अभी जिंदा है,ईश्वर ने मुझे,दूसरों के काम में आने लायक बनाया है तो फिर मैं ईश्वर से धोखा क्यों करूं?मेरे ईश्वर,आपकी पत्नी,जयंती के रूप में,मेरी परीक्षा लेने पहुंचे थे,और मैं नहीं चाहता कि मैं उनकी परीक्षा में असफल हो जाऊं इसलिए तुम यह सिक्के,भगवान के मंदिर में रख दो, किसी अन्य जरूरतमंद के काम आऐंगे।''
मुरारी और जयंती के आंखों में आंसू आ गए,रोते हुए भारी आवाज में,मुरारी ने कहा - ''सचमुच ईश्वर जिंदा है,जिस दिन लोगों के आंखों की शर्म,ह्रदय में दया-करुणा और दिलों में सहानुभूति मर जाएगी,मैं समझूंगा कि ईश्वर मर गया।''

***अतुल कुमार शर्मा
संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8273011742, 9759285761

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा --- गधत्व


"हट हट ....चल चल चल... ."
आसमान पर काले घनघोर बादल घिर आये थे। खराब हो चुके मौसम के बीच, बाग में बेफ़िक्र घूम रहे अपने प्रिय गधों को घर के भीतर करने का प्रयास करते हुए हरिया लगातार चिल्ला रहा था। गधे भी किसी निराली मिट्टी के ही बने थे, भीतर जाने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
"हssssट .......चल......अंदर... हsssट...",
गधों की बेफ़िक्री से परेशान होकर बौखलाया हरिया अब डंडा लेकर उन पर पिल पड़ा था।  उसकी मेहनत रंग लाई और गधे खराब होते मौसम के बीच आखिरकार घर के भीतर चले गए।
हरिया के चेहरे पर अब संतोष की लकीरें उभर रही थीं क्योंकि, उसने अपने प्यारे गधों को खराब मौसम से बचाते हुए, सुरक्षित घर के भीतर कर लिया था।

***राजीव 'प्रखर'
डिप्टी गंज
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघु कथा --आनन्द


अरे -अरे बेटा  मांझे को ढीला करो वरना  पतंग कट जाएगी...आवाज   सुनकर जब मैंने बाहर देखा तो पड़ोस में रहने वाला सुनील अपने बेटे को पतंग उड़ाने  की बारीकियां समझा रहा था। देखकर मन में अजीब सी खुशी महसूस हुई कि आज कितने दिन...साल बाद सुनील को अपनी इच्छा पूरी करने का मौका मिला है।
    एक समय था जब सुनील पतंग उड़ाने में नंबर-1 था... उसके पापा उसे बार-बार पढ़ाई के लिए कहते थे परंतु उसका मन पढ़ाई में न लगकर पतंग में ज्यादा लगता था । चोरी छिपे घर की छत पर पहुंचकर भरी दोपहर  में पतंग उड़ाना उसकी दिनचर्या  था.... जिसके लिए   रोज अपने पिताजी की डांट और मार दोनों खाता था परंतु आज 18- 20 साल बाद उसे इस तरह खुश देख कर मन को बड़ी शांति  मिल रही थी ,जबसे उसके पापा का स्वर्गवास हुआ है, वह सुबह 6:00 बजे से रात को 11:00 बजे तक घर में ही बनाई हुई दुकान पर बुझे मन से पूरे दिन बैठा रहता है और ग्राहकों को सामान देता रहता है।उसे मुस्कराते हुए  शायद ही कभी किसी ने देखा हो... परंतु आज कोरोना वायरस के कारण पूरे देश मे लॉकडाउन होने से उसका  पुराना शौक  पुनः  जीवित हो गया ।  वह अपने बेटे के साथ बहुत खुश नजर आ रहा है।

***स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की कहानी --बेजुबान कुत्ते


लॉक डाउन के कारण मनीष कई दिन से अपने घर में था,ना वह खुद बाहर निकल रहा था और ना ही अपने परिवार के किस सदस्य को उसने बाहर निकलने दिया था । उसने मंदिर जाना भी छोड़ दिया था और पूजा-पाठ भी वह घर पर ही करता था ।           नौदुर्गे में पूरे व्रत रखने वाला मनीष एक साधारण सा इंसान था । एक दो बार जरूरत का सामान उसने अपने घर के सामने ही आए हुए ठेले वालों से खरीद लिया था । वह अक्सर मोहल्ले के युवाओं से सड़क पर ना आने और घर के बाहर खड़े ना होने की निरंतर अपील भी करता रहता था ।
    आज घर में ब्रेड नहीं थी, जब उसकी पत्नी सुनीता ने उसको ब्रेड लाने के लिए कहा,तो मनीष बाहर ब्रेड लेने चला गया ।जैसे ही वह घर से बाहर निकला मनीष को मौहल्ले के 3-4 कुत्तों ने घेर लिया । मनीष डर रहा था, कोई कुत्ता उसको काट नहीं रहा था,लेकिन वह उसको आगे जाने भी नहीं दे रहे थे । कुत्ते बार-बार खड़े हो जाते और मनीष के चारों ओर चक्कर काट रहे थे, मनीष की समझ में नहीं आ रहा था क्या करे ? तभी सामने देख रहे दुकानदार सलीम ने मनीष को आवाज देकर कहा कि कुत्ते भूखे हैं,और ये आपसे कुछ खाने को मांग रहे हैं । आप आहिस्ता आहिस्ता आ जाइए और मनीष आहिस्ता आहिस्ता सलीम की दुकान तक पहुंच गया और दुकान से ग्लूकोज बिस्किट का पैकेट लेकर जैसे ही कुत्तों को डाला, वे बिस्किट बड़े प्रेम से खाने लगे और जब पैकेट खत्म हो गया तो बिना कुछ कहे वहां से चले गए ।
   अब जब भी मनीष घर से बाहर निकलता, वे सारे कुत्ते मनीष के पैरों में लोटने लगते और मनीष भी  अपनी जेब में बिस्किट का पैकेट लेकर ही निकलता,शायद मनीष बेजुबानों का दर्द समझने लगा था,और बेजुबान कुत्ते भी मनीष के प्यार को पहचानने लगे थे । मनीष सोचता काश देश और दुनिया भर में सांप्रदायिकता और आतंकवाद फैलाने वाले जातिवाद धर्मवाद की लड़ाई लड़ने वाले इंसान बेजुबानों की इन भावनाओं को समझ पाते ...

***मुजाहिद चौधरी
हसनपुर
जनपद अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार फरहत अली खान की लघुकथा --वादा



“ये अजीब वबा फैली कि सारी दुनिया मुसीबत में है।”

“हाँ, मगर इस का एक अच्छा पहलू भी नज़र आया। अगर कुछ को छोड़ दिया जाए तो लॉक-डाउन में देश का हर आदमी घर में बैठा है। सब ने एकता का सबूत दिया। इस इम्तेहान की घड़ी में ये बहुत बड़ी बात है।”

“हाँ, बड़ी बात तो है। मगर हमारी एकता का असली इम्तेहान तो तब होगा जब हम इस महामारी से बचने में कामयाब हो जाएँगे।”

“मतलब...?”

“मतलब ये कि इस वक़्त तो हमारा एक साथ होना फिर भी आसान है, क्यूँ कि इस महामारी से हम सभी को बराबर तौर से ख़तरा है। लेकिन जब ये बुरा दौर गुज़र जाएगा और तब अगर हम में से किसी एक पर कोई मुसीबत आती है, तो ये देखने वाली बात होगी कि हम सब उस एक के साथ खड़े होते हैं या नहीं। दर अस्ल तब ही हमारी एकता का असली इम्तेहान होगा। तब भी हम इसी तरह एकजुट रहेंगे न?”

“.....”

“.....”

“हाँ, ज़रूर। हम तब भी एकजुट रहेंगे। उस एक के लिए आवाज़ बुलंद करेंगे, उस के साथ खड़े होंगे।”

“हमारी एकता सलामत रहे।”

***फरहत अली खान
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार मंगलेश लता यादव की कहानी -- एक चिट्ठी बच्चों के नाम


प्यारे बच्चों,
              बहुत बहुत प्यार
अत्र कुशलं तत्रास्तु । आशा ही नही वरन् पूरी उम्मीद करती हूँ कि आप भी अपने माता पिता भाई बहन सभी के साथ सकुशल होगे,  आगे समाचार यह है आप लोगो से मुलाकात हुई काफी लम्बा समय हो गया और आपकी कौई खैर खबर भी नही मिल रही तो सोचा क्यों न आपको पत्र लिखूँ  ।    जैसा कि आप सभी इस समय समाचार पत्रों एवं टीवी पर देख रहे कि  आजकल पूरे विश्व मे मानवजाति पर कितना गहरा संकट छाया हुआ है कोरोना वायरस ने हम सब के जीवन को खतरे मे डाल दिया है ।
हम सब की जिंदगी बहुत मजे मे व्यतीत हो रही थी । कुछ की परीक्षा समाप्त होकर परिणाम का इंतजार था तो कौई आगामी परीक्षा की तैयारी मे था हम भी तो  आपके परीक्षाफल को बड़े मनोयोग से बना रहै थे, लेकिन अचानक सब कुछ बदल गया और हम घरो मै केद होन को मजबूर हो गऐ  अब आपस मे हमारा कौई सम्पर्क नही हो रहा  है अत  आपको पत्र द्वारा कुछ बातें बताना चाहती हूँ ध्यान से पढें।हम सब आपके अभिभावक, माता- पिता हैं एवं हम सबसे बड़ा आपका कोई शुभचिंतक नहीं हो सकता है। आप अवगत हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण से पूरे देश को मिलकर लड़ाई लडनी है। मा. प्रधानमंत्री जी ने स्वयं सभी का आह्वान किया है और जनता कर्फ्यु में सहयोग मांगा है।अत: हम सब आपसे अपील करते हैं कि कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के लिए सभी बच्चे अपने- अपने घरों,हास्टल अथवा जहाँ भी हैं, वहीं रहें। रेल,बस,हवाई जहाज से या किसी भी तरह के भीड़_भाड़ बाले वाहनों/ सार्वजनिक साधनों से यात्रा न करें। इस प्रकार के साधनों से यात्रा करने पर भी संक्रमण व्यापक रूप से फैलता है। पुनः अपील है कि प्यारे बच्चों घर, हास्टल या जहाँ हैं,वहीं पर सुरक्षित रहें एवं देश की इस लड़ाई में सहयोग करें।आप अपने हाथ साबुन से एक नियमित अन्तराल पर अच्छी तरह से धोयें।
      और हाँ हम सब फिरसे जल्दी ही मिलेंगे और पुनः अपने उन पुराने दिनो में  लौटेंगे। जब तक लाकडाउन  है तब तक आप मे से कौई बाहर ना निकले । इन छुट्टियों का सदुपयोग करना अपनी प्रोजेक्ट फाईल तैयार करना जिसमे कोरोना के बारे मे विस्तार से लिखना चित्र सहित वर्णन करना है । अपने माता पिता और छोटे भाई बहनों का विशेष ध्यान रखना  । अपनी मां के साथ घरेलू कामो मे हाथ बटाना । पत्र ज्यादा लम्बा हो गया है शेष अगले पत्र मे लिखूंगी। अपनी कुशलता का समाचार शीघ्र देना । अपने माता पिता को मेरा नमस्कार कहना और छोटे बच्चों को प्यार ।
                   आपकी प्यारी मैडम
                     मंगलेश लता यादव
                             मुरादाबाद

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष ललित भारद्वाज के कुछ मुक्तक-- ये मुक्तक उनके मुक्तक संग्रह 'प्रतिबिंब' से लिए गए हैं। इस कृति का प्रकाशन लगभग 43 साल पहले सन 1977 में हुआ था और इसे प्रकाशित किया था प्रभायन प्रकाशन 41ए, गांधी नगर, मुरादाबाद 244001 ने । इस कृति में उनके 200 मुक्तक संग्रहित हैं। कृति की भूमिका प्रो. महेंद्र प्रताप द्वारा लिखी गई ।










            ::::::;;;;;;;:प्रस्तुति ::;;;;;;;::::::::
           
             डॉ मनोज रस्तोगी
             8, जीलाल स्ट्रीट
             मुरादाबाद 244001
            उत्तर प्रदेश, भारत
            मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यकार पूनम गुप्ता की कविता ---कोरोना सबके आगे खड़ा है , तुम भी कुछ करो ना


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी शायर स्मृति शेष रईस रामपुरी की गजल जिसे प्रस्तुत कर रहे हैं मुरादाबाद के संगीतकार विनीत मोहन गोस्वामी


मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की गजल --रो रही जिंदगी अब हँसा दीजिये ....


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की गजल --बुरी लगती न रिश्वत देनी हमको काम के आगे, हुई हैं आम अब कितनी ये भ्रष्टाचार की बातें


छुपाती मीडिया भी है बहुत सरकार की बातें
बहुत घूमी हुई होती हैं अब अखबार की बातें

कभी प्रॉमिस कभी टेडी कभी तो रोज डे मनते
जुबां पर आजकल सबके ही देखो प्यार की बातें

ये नेता खुद तो चलते हैं सदा विपरीत धारा के
मगर जनता से करते हैं नदी की धार की बातें

किसी को याद अपने फ़र्ज़  तो रहते नहीं देखो
यहाँ सब चीखकर करते मगर अधिकार की बातें

बुरी लगती न रिश्वत देनी हमको काम के आगे
हुई हैं आम अब कितनी ये भ्रष्टाचार की बातें

नहीं पथ छोड़ना सच का यहाँ डरकर विरोधों से
जहाँ पर फूल हैं होंगी वही पर खार की बातें

जगाना 'अर्चना' है जोश लोगों के दिलों में अब
कलम से हो रही हैं इसलिये ललकार की बातें

***डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 31 मार्च 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की गजल -- घर के अंदर ही रहो, निकलो कहीं न आप। बार बार ये कह रही, लोगों से सरकार।।



 मचा हुआ चहुँ ओर है , भीषण हाहाकार।
 झेल रहा सारा जगत , कोरोना की मार।।

घर के अंदर ही रहो, निकलो कहीं न आप।
बार बार ये कह रही, लोगों से सरकार।।

बाहर जाओ गर कभी, रखना खुद का ध्यान।
कहीं संक्रमण से नहीं , हो जाना बीमार।।

पालन दिल से हम करें, निर्देशों का रोज।
हो जायेगी कुंद तब , कोरोना की धार ।।

संकट की है ये घड़ी, मत खोना तुम होश।
दृढ़ निश्चय को धार कर, देना  इसको हार।।

कोरोना के कीट ने, जीना किया मुहाल।
चौपट इसने कर दिये, सारे कारोबार।।

इक दूजे से दूर से, ममता करनी बात ।
जीवन से बढ़ कर नहीं, कोई भी उपहार।।

डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष श्री कैलाश चंद्र अग्रवाल के चार गीत -- ये गीत उनके गीत संग्रह 'तुम्हारी पूजा के स्वर' से लिए गए हैं । यह उनकी छठी काव्य कृति है जिसका प्रकाशन लगभग 31 साल पहले सन 1989 में हुआ था। इसे प्रकाशित किया था प्रभात प्रकाशन दिल्ली ने। इस संग्रह में उनके जनवरी 1986 से फरवरी 1988 की समयावधि में रचे गए 71 गीत संग्रहीत हैं । संग्रह की 21 पेज में भूमिका लिखी है श्री राम शंकर त्रिपाठी फैजाबाद ने ----








                    :::::::::प्रस्तुति:::::::::

                    *** डॉ मनोज रस्तोगी
                    8, जीलाल स्ट्रीट
                    मुरादाबाद 244001
                    उत्तर प्रदेश, भारत
                    मोबाइल फोन नंबर 9456687822             

मुरादाबाद की साहित्यकार अस्मिता पाठक की कविता --कोरोना कर्फ्यू


मार्च में लगे कर्फ्यू की उस शाम
अपने आलीशान संसार की सतह पर खड़े होकर
एक सी आवाजों के अंधाधुंध शोर में
क्या तुम सुन पाए थे ?
कान के एक छोर से
बच्चों के रोने चीखने की आवाजों के बीच
दबी हुई धीमी व्यग्र बूढ़ी-जवान आवाजें
जो तुमसे बहुत दूर
-बहुत ही दूर- स्थित कमरे में
किसी चलचित्र की तरह चल रही थीं?
सहसा तुमने भी महसूस किया?
फटे-खुरदुरे हाथों पर बने
पुराने घावों की जलन को
जब वे उलझन में कुछ पुराने नोट
और सिक्के निकालते समय
डब्बे की स्टील वाली सतह से
बार-बार टकरा रहे थे?
नहीं ?
नहीं सुन पाए न तुम ?
-शंखों, थालियों के
तर्कहीन शोर में-
मजबूर मेहनतकश के हाथों से छूटती,
-स्टेशन पर दुविधा में भागते पैरों के बीच-
ऊँचे प्रतिरोध में गिरती पसीने की
खानाबदोश बूंदों को...
जिन्होंने खड़ा किया था कभी
तुम्हारा सुरक्षित संसार..

***अस्मिता पाठक
मुरादाबाद
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार जितेंद्र कमल आनन्द का गीत --च॔दन-सी महकी सांसों से सरक रहा आँचल प्रेम-प्रीति के नयनों में फिर आँज रहा काजल।




संस्मृतियों के स्वर्ण झरोखे झाँक रहा साजन
प्रेम-प्रीति के नैनों में फिर आँज रहा काजल

मधुर यामिनी,मधुर मोहिनी,रति-रसिका रमणी
करती है क्रीड़ाएं मधुमय होकर अलबेली
नयनों में छबियों का नर्तन मनहर होता है
रात चाँदनी संग चन्द्रमा करते अठखेली

मौन पिरोये मुक्ता-मणियाँ, अंक भरे बादल
प्रेम-प्रीति के नयनों में फिर आँज रहा काजल ।।


बीत गया है कब का बचपन अब यौवन है आया
जीवन का सौंदर्य सँजोये बनी सहेली है
कोई न चिंतन,कोई न मंथन, बात करे कोई
शरमायी है अनबोली वह नयी नवेली है

च॔दन-सी महकी सांसों से  सरक रहा आँचल
प्रेम-प्रीति के नयनों में फिर आँज रहा काजल।।

रजनी भी अनुकूल हुयी है,मंजिल दूर नहीं
एक सुधाकर उग आया है मानो अम्बर में
मुस्काता यह कौन, करों के पल्लव से छूता
एक कमल या हुआ सुवासित मानो सरवर में

चली हवा मदहोश हुआ दिल ,बदन हुआ मादल।
प्रेम- प्रीति के नयनों में फिर आँज रहा काजल ।।

✍ जितेन्द्र कमल आनंद
साँई बिहार कालोनी,
रामपुर -244901
उत्तर प्रदेश, भारत
मो :7017711018

सोमवार, 30 मार्च 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना --रचता है वही इतिहास जो मन में ठान लेता है



जब लम्बा हो सफ़र
तब भला कौन सोता है

जो करे व्यर्थ आज को
बाद में वही तो रोता है

कर गुज़रता है वही कुछ
मन में जिसके हौसला होता है

चैन कहाँ होता है उसे
आँखो में जिसके ख़्वाब होता है

नही पड़ता फ़र्क़ एक हार से
जीत का जब मन में ख़्याल होता है

नामुनकिन को जो करेगा मुमकिन
भीड़ में अकेला तू वो शख़्स होता है

जो छिपा हुआ बादलों में अभी
उस फलक पर तेरा नाम होता है

जो जानता है इस राज को
अकेला तू वो शख़्स होता है

ठहरेगी नज़र उसपर एक दिन
आज जो चेहरा आम होता है

पहचान जब बनेगी तुम्हारी
हर कोई फिर अपना होता है

ये कड़वा सच है मगर
कामयाबी के पीछे ही जहाँ होता है

रचता है वही  इतिहास
जो  मन में ठान लेता है

जब लम्बा हो सफ़र
तब भला कौन सोता है

*** प्रीति चौधरी
फ्रेंड्स कालोनी
गजरौला, अमरोहा
मोबाइल फोन नम्बर- 9634395599


                  

साहित्यिक मुरादाबाद ब्लॉग के संदर्भ में


मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष दुर्गादत्त त्रिपाठी के तेरह गीत --- ये गीत उनके काव्य संग्रह तीर्थ शिला से लिए गए हैं । इस संग्रह का प्रकाशन कवि श्री दुर्गादत्त त्रिपाठी नागरिक अभिनंदन समिति मुरादाबाद द्वारा लगभग 48 साल पूर्व मई 1972 में किया गया था । इस संग्रह में श्री दुर्गादत्त त्रिपाठी जी के 67 गीत संग्रहीत हैं ।अभिनंदन समिति के अध्यक्ष गिरधर दास पोरवाल थे ।




















   :::::::::::::::प्रस्तुति::::: ::::::::
   डॉ मनोज रस्तोगी
    8, जीलाल स्ट्रीट
     मुरादाबाद 244001
      उत्तर प्रदेश, भारत
      मोबाइल फोन नंबर 9456687822

रविवार, 29 मार्च 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम की कविता --वैसा ही काटना पड़ता है जो जैसा बोता है





जिसे हमने पहले पहल,बहुत हल्के में लिया,
हंसी ठिठोली में,अंडरस्टीमेट कर दिया।
देखते-भालते ,जी का जंजाल बन गया,
मजाक समझ रहे थे हम,जिंदगी पर सवाल बन गया।
कथाओं में,कहानियों में,कीमती मोबाइलों में,
थानों में,कोतवाली में,सरकारी फाइलों में।
अखबारों में,टीवी में,गीतों में,गजलों-चुटकुलों में,
आंकड़ों में,अफवाहों में,ख्यालों में,अटकलों में।
रास्तों में,चौराहों में,महलों में,झोपड़ी में,
गरीबों में,अमीरों में,प्रधान सेवक की खोपड़ी में।
अब तो दिन-रात,उसी के नाम का रोना धोना है।
बे लगाम नरभक्षी,तानाशाह सा  कोरोना है।।
आदमी आजकल,घर का ना घाट का है।
निठल्ला दो कौड़ी का,बाजार का ना हाट का है।।
कोरोना ईस्ट इंडिया कंपनी की तर्ज पर,संबंधों में जहर घाेलता है।
असुरक्षा के डर से,एक दूसरे का मन डोलता है।।
सगे संबंधी भी,एक दूसरे के पास फटकने से डरते हैं।
दूर से ही संकेतों के माध्यम से,काम चलाऊ बातें करते हैं।।
आज मैंने आवाज लगाई-बेटे यहां आओ।
झटपट छोटू बोला -पापा ज्यादा स्मार्ट मत बनो,जो कुछ भी कहना है,दूर से ही बताओ।।
देखकर उसका कॉन्फिडेंस,लेवल मेरा लूज़ हो गया।
जीरो वाट का अपना बल्ब,फ्यूज हो गया।।
रात्रि के चौथे प्रहर में,बड़ी सावधानी से श्रीमती जी की ओर।
कुछ मांगने के लिए,
जैसे ही हिलाई पवित्र संबंधों की डोर।।
झिड़कते हुए वैधानिक चेतावनी
वाले  अंदाज में,मचाने लगी शोर।
तुम्हारे नाम की बची नहीं है शर्म हया।
अपनी उम्र का लिहाज धरो,मुझ पर खाओ रहम दया।।
मुंह पर मास्क ठीक से बांधाे,हाथ लाइफबॉय से धो कर आओ।
ज्यादा आफत मत काटो,शरीफों की तरह सो जाओ।।
भाई साहब बाहर जाएं,तो पुलिस लठियाती है।
घर के अंदर,घर वाले धकियाते हैं।।
कोई राजी से दो बात करने को तैयार नहीं,
डॉक्टरों के दल की तरह,सख्त लहजे में बतियाते हैं।।
और अधिक क्या कहें-सुनें,बात शीशे की तरह बिल्कुल साफ है।
यह कोरोना कोई महामारी नहीं,
हम सब के द्वारा किया गया महापाप है।।
प्रकृति के साथ अप्राकृतिक व्यसन-वासनाओं का परिणाम, ऐसा ही होता है।
वैसा ही काटना पड़ता है मित्रों,जो जैसा बोता है।।

*** त्यागी अशोक कृष्णम्
कुरकावली
संभल
उत्तरप्रदेश,भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719059703

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की रचना -- घर के भीतर रहकर ​खुद को ही नहीं ,सब को बचाना है.


भयभीत नहीं होना है
​हिम्मत से इसे हराना है
​बढ़ाकर प्रतिरोधक क्षमता
​इससे टकराना है.

​ संयम और समझदारी से
​ इस विकट स्थिति से निपटना है
​ घर के भीतर रहकर
​ खुद को ही नहीं ,सब को बचाना है.

​ अनगिनत बार हम सबको
​ अपने हाथों को  धोना है
​ नाक आंख और मुंह से
​ हाथों को नहीं लगाना है.

​ बुरा दौर है बुरा वक्त है
​ यह  सभी ने माना है
​ गुजर जाएंगे यह लम्हे
​ मुश्किल में भी मुस्काना है.

​ रोने धोने से कुछ नहीं होता
​ हाथों को  बस धोना है
​ संयम बरतो मानव जाति
​ कोरोना को हराना है.


​ ***राशि सिंह
​वेब ग्रीन, रामगंगा विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत




मुरादाबाद के साहित्यकार एवं संगीतज्ञ अमितोष शर्मा की गजल --सबको मालूम है बाहर की हवा है क़ातिल | यूँ ही क़ातिल से उलझने की ज़रूरत क्या है ||


पेश-ऐ-ख़िदमत है आप सब की पसंदीदा ग़ज़ल मिश्र किरवानी में composed


मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत -- दूरी बना के बात करो मैं कोरोना हूँ , हाथों से दूर हाथ करो मैं कोरोना हूँ। ....



दूरी    बना  के  बात  करो
मैं            कोरोना        हूँ
हाथों  से   दूर  हाथ   करो
मैं            कोरोना       हूँ।
      
आने    का    मेरे   तुमको
पता     चल    न    पाएगा
अर्से   के   बाद   उभरूँगा
यह     टल     न    पाएगा
 साबुन से हाथ साफ करो
मैं             कोरोना      हूँ।
दूरी बना के--------------

जीने    का   वक़्त    मेरा
बहुत    अलग-अलग   है
मिनटों    से   लेके    वक्त
कई     रोज़    तलक    है
मुझसे न कोई  आस करो
मैं            कोरोना       हूँ।
दूरी बना के--------------

मैं  जिंदगी  को  हर  तरह
लाचार               करूँगा
दुश्मन की  तरह सभी  से
व्यवहार             करूँगा
घरों में खुद को बन्द करो
मैं           कोरोना       हूँ।
दूरी बना के--------------

आया   हूँ  बहुत   दूर   से
जाऊंगा      कहाँ      तक
तुम  ही  मुझे पहुँचा ओगे
जाना     है    जहां    तक
जंजीर  को  तबाह   करो
मैं          कोरोना        हूँ।
दूरी बना के--------------

बच्चों को,बुजुर्गोंको माफ
कर         नहीं     सकता
 जीने के लिए जाप कभी
कर         नहीं     सकता
बचने का हर प्रयास करो
मैं          कोरोना        हूँ।
दूरी बना के------------- 

मेरी     कोई     दवा     न    
कोई        वेक्सीन       है
मुझसे  बचाव  करना  ही
सबसे       हसीन        है
मुझसे नहीं  मज़ाक  करो
मैं          कोरोना        हूँ।
दूरी बना के---------------

    
***  वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
बुद्धि विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
 मोबाइल फोन नंबर  9719275453
       

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा का गीत --ईश्वर रक्षा करें हमारी,ये ही दुहाई लगाओ अब, अफवाहों से दूर रहो,अफवाहें न फैलाओ अब।



देखो कितना कोरोना ने,दुनिया को मजबूर किया,
अपनों को अपनों से इसने,कितना है अब दूर किया।

कौन कहे कि हमने अपने,पैर कुल्हाड़ी मारी है,
संस्कार सब भूल गए और निकट बुलाई बीमारी है।

इस संकट के कारणवश,व्यापार हमारे ध्वस्त हुए,
गुरुकुल शिक्षा बंद हुई,बच्चों के हौसले पस्त हुए।

पुलिस परेशां बहुत हुई,और डॉक्टर भी हैं डरे हुए,
कोरोना की जिद के आगे,भारी क्रोध से भरे हुए।

और परीक्षा लो ना इनकी,इनका अब सहयोग करो,
इस बीमारी से बचना है तो,घर में रहकर योग करो।

देश हमारा हमसे है अब इतना भर तो सोचो तुम,
अपने दम पर करो सुरक्षा,दूजे पर  न छोड़ो तुम।

सोच विचार का वक्त नहीं ये,घर में ही खुद कैद रहो,
समेट न ले कोरोना हमको,खुद इतना मुस्तैद रहो।

वर्ना अपने इन बच्चों को,कैसा भारत देंगे हम
श्मशान बना गर देश हमारा,क्या उत्तर फिर देंगे हम।

अभी समय को पहचानो तुम और गुरिल्ला युद्ध करो,
इकजुट होकर कोरोना की,हर राह अवरूद्ध करो।

ईश्वर रक्षा करें हमारी,ये ही दुहाई लगाओ अब,
अफवाहों से दूर रहो,अफवाहें न फैलाओ अब।

***अतुल कुमार शर्मा
प्रेमशंकर  वाटिका के सामने
बरेली सराय
सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 8273011742
9759285761 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी का गीत --कैसी प्रलय मचाई कोरोना, है अतीव दुखदाई कोरोना, खोज-खोज कर मार रही है- है अति क्रूर कसाई कोरोना।....



रोको नरसंहार कोरोना
_________________

कैसी प्रलय मचाई कोरोना,
है अतीव दुखदाई कोरोना,
खोज-खोज कर मार रही है-
है अति क्रूर कसाई कोरोना।
   कोरोना वैश्विक महामारी,
   इसके आगे दुनिया हारी,
   बड़े यत्न से जड़ें काट दीं -
   फिर भी इसका उगना जारी।
नहीं ज्ञात है कारण इसका,
कैसे करें निवारण इसका,
संकट में सरकार पड़ी है-
क्योंकर रुके प्रसारण इसका।
     हो रहे तुम पर शोध कोरोना,
     छोड़ दो अपना क्रोध कोरोना,
     बाल- वृद्ध को दे दो माफी-
     है तुमसे अनुरोध कोरोना।
मान ली हमने हार कोरोना,
तड़प रहा‌ परिवार कोरोना,
इसे न भूखा मार कोरोना-
रोक दे नरसंहार कोरोना।
      विनती बारम्बार कोरोना,
      करता है संसार कोरोना,
      अपनी दारुण गाथा का अब-
      कर दे उपसंहार कोरोना।


*** डॉ.विश्व अवतार जैमिनी
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी --अंतिम पत्र



*अंतिम पत्र
---------------------------
       ....अब कुछ ही आखिरी साँसें बची हैं। कोरोना के इलाज के लिए  आइसोलेशन वार्ड में कई दिन से भर्ती हूँ।अब साँस लेने में भी बेहद तकलीफ हो रही है। पूरा शरीर थकान से भरा हुआ लगता है। जैसे शरीर में कोई जान ही नहीं रह गई है।  नाक का बहना, ठंड लगना इन सब से शुरुआत हुई थी और अब हालत आखिरी दौर में पहुँच चुकी है। हो सकता है, आजकल में ही मुझे वेंटिलेटर पर जाना पड़े और फिर उसके बाद शायद मैं कभी ठीक न हो पाऊँ।
       दरअसल गलती मेरी ही है । मैंने कभी भी कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया । जरा याद करो, प्रधानमंत्री जी ने 21 दिन का लॉकडाउन  घोषित किया था और तब मैंने यही कहा था कि यह सब बेकार की बातें हैं। हम लोगों को कोरोना - वोरोना कुछ नहीं होगा । हम सब गली- मोहल्ले में आपस में मिलते जुलते रहे । यहाँ तक कि पुलिस आती थी । लाठियाँ फटकारती थी और हम पुलिस को देख कर घरों में छुप जाते थे। पुलिस डाँट कर वापस चली जाती थी और हम फिर अपने घरों से बाहर निकल कर खेलकूद ,मौज मस्ती तथा सामूहिक बातचीत में व्यस्त हो जाते थे।
         सचमुच पुलिस को नहीं बल्कि अपने आप को धोखा दे रहे थे । मेरी उम्र 60 साल से ऊपर थी । मुझे तो यह समझना चाहिए था कि कोरोना वायरस का खतरा सबसे ज्यादा मुझ पर है । बच्चों पर है , युवाओं पर भी है ।
          मुझे सब को समझाना चाहिए था। न समझें तो डाँटना भी चाहिए था। पूरे मोहल्ले की नाराजगी मोल लेने के बाद भी मुझे सोशल डिस्टेंसिंग  यानि  कम से कम एक मीटर की दूरी बनाए रखनी चाहिए थी। लेकिन उसकी भी जरूरत ही क्या थी ? अपने घरों में कुंडी बंद करके हमें कैद कर लेना चाहिए था , जो हमने नहीं किया ।सबसे मिलते रहे । बाजारों में जब मन चाहा चले गए । बिना किसी काम के कुछ खरीदारी के नाम पर । बल्कि हमने सैर-सपाटा चालू रखा ।
     पता नहीं कोरोना के किस बीमार को मैंने छू दिया कि वह बीमारी मुझे लग गई। यह भी हो सकता है कि मैंने सीधे-सीधे उस बीमार को न छुआ हो। बल्कि उस बीमार ने जिन चीजों को छुआ हो, मैंने उन चीजों को छुआ हो और फिर वह बीमारी मुझ तक आ गई हो ।
       कारण कुछ भी हो ,दोष तो मेरा ही है । मैं घर से निकला ही क्यों ?यह लक्ष्मण रेखा थी जो मुझे लाँघनी नहीं चाहिए थी ,और जिसका दुष्परिणाम आज मैं जीवन और मृत्यु के बीच झूलता हुआ महसूस कर रहा हूँ। यह कितनी भयावह मृत्यु रहेगी !  यह एक ऐसी बीमारी से होगी , जब आखिरी समय मेरे पास कोई नहीं होगा । मैं किसी के कंधे पर सिर रखकर अपने दर्द को साझा भी तो नहीं कर सकता  ! किसी के गले से लिपट कर रो भी तो नहीं सकता ! आखिरी सफर में आखिरी साँसों को किसी के साथ बाँट भी तो नहीं सकता ! यह अकेलापन मुझे और भी खाए जा रहा है ।
                न कोई मेरे साथ है और न शायद अंतिम संस्कार में भी कोई साथी हो पाएगा । मैं चाहता भी नहीं कि किसी को अब मेरे कारण कोई तकलीफ उठाना पड़े । मैंने वैसे ही समाज के साथ गद्दारी की है । जी हाँ ! समाज के साथ गद्दारी ! जब मुझे घर पर रहना था ,तो मैं बाहर क्यों निकला ? यह असामाजिकता नहीं तो क्या है ? यह समाज को खतरे में डालने वाली कार्यवाही नहीं तो और क्या कही जाएगी ? जानबूझकर चीजों को गंभीरता में न लेना , उनका मजाक बनाना और यह सोच लेना कि बीमारी हम लोगों को नहीं लगेगी ,यह सबसे बड़ी गलतफहमी थी जिसको फैलाने में मैं शामिल रहा ।
              आज मैं अपने परिवार और पूरे समाज से हाथ जोड़कर माफी माँगता हूँ। यद्यपि मेरा अपराध माफी देने लायक तो नहीं है , लेकिन फिर भी एक बदनसीब को हो सके तो माफ कर देना ।
निवेदक 
एक बदनसीब
"""""


 * ** रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
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शनिवार, 28 मार्च 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की गजल -जब तक ना इजाजत हो रहें घर में ही अपने । हम दुश्मने इंसां का हर एक नक्श मिटा दें ।।


आओ चलो दुश्मने इंसां को मिटा दें ।
रिश्तो को निभाएं चलो नफरत को मिटा दें ।।

हर सिम्त करें चश्मे मोहब्बत के रवां हम ।
हम मुल्क से अपने हर अंधेरे मिटां दें ।।

जब तक ना इजाजत हो रहें घर में ही अपने ।
हम दुश्मने इंसां का हर एक नक्श मिटा दें ।।

घर में ही करें पूजा पढ़ें अपनी नमाजे़ं ।
हम अपने घरों के सभी शैतान मिटा दें ।।

गुरबानी भजन कुरां हर एक घर में रवां हो ।
दुश्मने ईमां की हर पहचान मिटा दें ।।

मिलने में मुहाजिर से रखें फासला बाहम ।
हम दर्दे जिगर के सभी शुब्हात मिटा दें ।।

महफ़ूज़ और मोहतात रहें अपने वतन में ।
हर सिम्त से ख़दशात की दीवार मिटा दें ।।

हम सब्रो सुकूं से रहें बस अपने घरों में  ।
बीमारी के हम जिंसो ज़ररात मिटा दें ।।

बस रहमो-करम का तेरे तालिब है मुजाहिद ।
हम अपने वतन पे ये दिलो जान लुटा दें ।।


***मुजाहिद चौधरी
हसनपुर
जनपद अमरोहा

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की गजल -- करनी है उसकी मदद, पूरा रखकर ध्यान आसपास में गर दिखे, भूखा या बीमार


कोरोना का है कहर, जूझ रहा संसार
बढ़ते ही अब जा रहे, इसके हुये शिकार

घर की सीमा में रहो, करो एक ये काम
कोरोना का बस यही, देखो है उपचार

जल को भी करना नहीं है हमको बर्बाद
हाथों को ये ध्यान रख, धोना बारंबार

हाथ जोड़ कर ही करो, सबको यहाँ प्रणाम
हाथ मिलाने के नहीं, अपने हैं संस्कार

खड़ी सामने मौत है, इसका रखना ध्यान
खतरनाक देखो बड़ा , कोरोना का वार

करनी है उसकी मदद, पूरा रखकर ध्यान
आसपास में गर दिखे, भूखा या बीमार

इक दूजे से दूर रह, टूटेगी जब चेन
हो जाएगी पूर्णतः, कोरोना की हार

कोरोना की मार ने, दिया ‘अर्चना’ वक़्त
चिंताओं को छोड़कर, खुद से कर लो प्यार


डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत