गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार फरहत अली खान की लघुकथा --वादा



“ये अजीब वबा फैली कि सारी दुनिया मुसीबत में है।”

“हाँ, मगर इस का एक अच्छा पहलू भी नज़र आया। अगर कुछ को छोड़ दिया जाए तो लॉक-डाउन में देश का हर आदमी घर में बैठा है। सब ने एकता का सबूत दिया। इस इम्तेहान की घड़ी में ये बहुत बड़ी बात है।”

“हाँ, बड़ी बात तो है। मगर हमारी एकता का असली इम्तेहान तो तब होगा जब हम इस महामारी से बचने में कामयाब हो जाएँगे।”

“मतलब...?”

“मतलब ये कि इस वक़्त तो हमारा एक साथ होना फिर भी आसान है, क्यूँ कि इस महामारी से हम सभी को बराबर तौर से ख़तरा है। लेकिन जब ये बुरा दौर गुज़र जाएगा और तब अगर हम में से किसी एक पर कोई मुसीबत आती है, तो ये देखने वाली बात होगी कि हम सब उस एक के साथ खड़े होते हैं या नहीं। दर अस्ल तब ही हमारी एकता का असली इम्तेहान होगा। तब भी हम इसी तरह एकजुट रहेंगे न?”

“.....”

“.....”

“हाँ, ज़रूर। हम तब भी एकजुट रहेंगे। उस एक के लिए आवाज़ बुलंद करेंगे, उस के साथ खड़े होंगे।”

“हमारी एकता सलामत रहे।”

***फरहत अली खान
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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