रविवार, 27 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल की जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार सीमा रानी की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में --- फैशन की इस आंधी में ....


 

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग की ग़ज़ल --बूथ लूटने बड़के भैया, नेताजी के साथ रहे ,अब राशन डीलर बनवाना उनकी जिम्मेदारी है


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार संतोष कुमार शुक्ल सन्त का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में ----हम मिलकर आज हिन्दी के ही गीत गाएंगे


 

शनिवार, 26 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल के दो मुक्तक उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह द्वारा रचित मां सरस्वती वंदना उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर) निवासी साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में ----हिन्दी सबसे प्यारी है, भाषा भारतवर्ष की


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की ग़ज़ल उन्हीं की हस्तलिपि में --एक मासूम से चेहरा पल में कातिल लगने लगता है, आंख मिलाकर शरमाना भी अच्छा लगता है ...


 

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के दोहे उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत उन्हीं की हस्तलिपि में --- जाने क्या आज ऐसी हैं मजबूरियां, जो कि इंसानियत से बढ़ीं दूरियां ...


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल ( वर्तमान में नोएडा )निवासी साहित्यकार अटल मुरादाबादी की रचना ....उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल की चांदपुर( जनपद बिजनौर)निवासी साहित्यकार ऋतुबाला रस्तौगी की रचना उन्हीं की हस्तलिपि में


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की गीतिका ---लड़कियां ,उन्हीं की हस्तलिपि में .....


 

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ) निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी के दोहे


 

मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर)निवासी साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी की रचना ----दिल में खिले हुए थे कुछ ,यादों के महके से गुलाब । मादक गंध ले साथ में , हम चले आये हैं कहाँ ??

शहरी  शोर  से मुंह  मोड़ ,सघन कोलाहल को छोड़ ।

चलते हुएअनजान राह में , हम  चले आये  हैं  कहाँ ??


शाखा शाखा की अकड़ , बिसरा हर फूल की चुभन ।

शीतल छाया की चाह में , हम  चले   आये  हैं  कहाँ ??


अनंत सिंधु के उस पार तक , वीराना    ही   वीराना ।

निर्मल संतृप्ति की आस में , हम चले आये  हैं कहाँ ??


दिल में खिले हुए थे कुछ ,यादों के महके से गुलाब ।

मादक  गंध  ले  साथ  में , हम  चले  आये  हैं कहाँ ??


दूर - दूर तक पसरे रेत पर , खामोशियों  के   निशां ।

एक सृजन की अभिलाष में ,हम चले आये हैं कहाँ ??

   

 ✍️ डा. अशोक रस्तोगी, अफजलगढ़ (बिजनौर)

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघु नाटिका----बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

*पात्र*------लाखन सिंह, उसकी वृद्धा माँ, लाखन की तीसरी पत्नी कमला, डाक्टर रीना व सूत्रधार।

सूत्रधार----(मंच पर गाते हुए प्रवेश करता है।)

जय गणपति जय गणेश।
जय गौरा जय महेश।
जय माँ वागीश्वरी
हर मन के तम निशेष।
जय भू,जय अनल,जल
जय नभ,जय पवन शेष।
होवे सब की कृपा,
विकसित हो मेरा देश।
विकसित हो मेरा देश।
विकसित हो मेरा देश।

(देवताओं को शीश नवाता है।पुनः दर्शकों की ओर मुख करके)
उपस्थित सम्मानित जन को,
करबद्ध हो शीश नवाता हूँ।
जनमन के जागरण हेतु,
मैं एक कथा सुनाता हूँ।
एक बार की बात कहूँ मैं
एक गाँव था बसा सुदूर।
उसी गाँव में एक चौधरी,
धन-पद के मद में था चूर।
अपनी मूंछों पर हरदम,
वह हाथ फेरता रहता था।
मूंछों वाला ही इस जग में
है सम्मानित कहता था।
उसकी ऐसी बातों पर,
माँ उसका समर्थन करती थी।
है पुरुष प्रधान,जगत सारा,
वह नारी,नारी से चिढ़ती थी।
कहती थी पुत्र वही सीढ़ी,
जो स्वर्ग द्वार तक जाती है।
बेटी तो धन पराया है,
किसी और वंश की थाती है।
ऐसे विचार वाले घर में,
इक गर्भवती बहू रोती है।
पुत्र रतन की आशाओं का,
बोझ शीश पर ढोती है।
बोझ शीश पर ढोती है।
(सूत्रधार गाता हुआ मंच से एक ओर को निकल जाता है।)

*दृश्य-एक*

(आलीशान कोठी का एक सर्वसुविधायुक्त कक्ष जिसमें पलंग पर एक गर्भवती महिला बैठी है और कुछ घबरायी हुई सी है।युवती की वय और संकोचमिश्रित आचरण उसके पहली बार गर्भवती होने के संकेत दे रहे हैं।तभी कमरे में एक वृद्धा प्रवेश करती है। युवती उठने का प्रयास करती है।)

वृद्धा-----अर्ररर् कमला बहू रहने दो,आराम से बैठी रहो। तुम्हारी कोख में मेरे वंश का चिराग पल रहा है।(गर्भ की ओर बढ़े ममत्व से देखती हुई)मेरे कान्हा, मेरे किरसन मुरारी!जब मेरे अंगना अवतरेंगे,तब पूरा जिला देखेगा चौधरी की आन बान शान।मोती लुटाऊँगी, मोती।
(युवती सकुचाकर वृद्धा से कुछ कहने का प्रयास करती है)

युवती----अअअअम्मा जी।

वृद्धा----(बड़े लाड़ से)हाँ,बोल बेटा।

युवती-----अअअअम्मा जी वो मैं कह रही थी अगर बिटिया हुई तोअ...

वृद्धा----(अत्यधिक आवेश में आकर बीच में बात काटती हुई) खबरदार बहू जो ऐसी मनहूस बातें की तो। स्वामी जी का आशीर्वाद लेकर आयी हूँ इस बार मैं।तेरे गले में ये जो ताबीज़ है इस बात का पक्का प्रमाण है कि बेटा ही होगा।

युवती-----(साहस बटोरकर)पर माँ जी मैंने सुना ऐसा ताबीज़ तो पहले दोनों दीदियों को भी आपने बांधा था,पर पुत्र जनना तो दूर वह दोनों तो अपनी जान भी गंवा बैठी।

वृद्धा----(क्रोध से तिलमिलाते हुए)बस कर छोकरी!चार अक्षर क्या पढ़ लिये बड़ों से ज़बान लड़ायेगी।(हड़बड़ाकर)उन दोनों ने.... उन दोनों ने तो....ताबीज़ की कद्र नहीं की थी जिसका फल उन्हें मिला।पर तूझे ऐसी भूल नहीं करने दूँगी। (बाहर की ओर मुख करके जोर से आवाज लगाती है) लाखन,बेटा लाखन!

लाखन सिंह----(लम्बी चौड़ी कद-काठी का एक अधेड़ कमरे में प्रवेश करता है)कहो माँ जी कोई परेशानी है क्या?

वृद्धा----बेटा!जरा बहू का ध्यान रखना गले से ताबीज़ न निकले,बच्ची है अभी,भला बुरा नहीं जानती। प्यार से माने तो ठीक ,वरना चौधरी के वंश की बात है।तरीके और भी हैं.... (युवती को धमकाने वाली तीखी नजरों से देखती है)

लाखन सिंह---(मूँछों पर ताव देते हुए)माँजी तुम तो हुकुम करो,परिंदा भी पर न फड़फड़ायेगा तुम्हारी मर्जी के बगैर।

वृद्धा----मेरा लाल जुग जुग जीवे।(माँ बेटा जहाँ प्रसन्न वदन हैं,वहीं युवती के चेहरे पर भय के भाव हैं)

सूत्रधार-----
तो इस तरह भय्या बहनों,
वह नारी डरायी जाती थी।
बेटा बेटा बेटा होवे,
यह धुन रटवायी जाती थी।
पर कोमल अंगी वह नारी,
थी ज्ञानशक्ति से भरी हुई।
लगी थी सोचने निराकरण,
वह विगत दृश्य से डरी हुई।
सहसा उसके मन में फिर,
समाधान इक आ गया।
शोकाकुल चेहरे पर उसके,
आस उजाला छा गया।
अपनी खास सहेली को,
उसने संदेशा भिजवाया।
सारा हाल उपाय सहित,
विस्तार से उसको समझाया।
धीरे-धीरे-धीरे भय्या,
वह मोड़ समय का आ गया।
असह दर्द में थी महिला,
चिन्ता का बादल छा गया।
आयी दायी फिर ये बोली,
मेरे बस की यह बात नहीं।
हकीम बड़े ही भली करें,
उससे कम की औकात नहीं।
आनन फानन में दुखिया को,
शहर ले जाया जाता है।
माँ तो बची है किसी तरह,
मृत शिशु बताया जाता है।
बेटे के अभिलाषी मन में,
वज्रपात सहज हो जाता है,
स्वप्न महल उम्मीदों का
देखो ढह कर गिर जाता है।
पर कुछ तो है छिपा हुआ,
उस अनदेखे आगत में।
आँखें माँ की हँसती हैं,
जाने किसके स्वागत में।
धीरे-धीरे रे समय
पथ अनजाने पर बढ़ आया।
कोठी आलीशान वहीं,
पर छाया है दुख का साया।
पर छाया है दुख का साया

*दृश्य-दो*

(वही सुसज्जित कमरा,पर सुविधा के कुछ संसाधनों का बदलाव देखकर प्रतीत होता है कि समय का एक लम्बा अंतराल बीत चुका है।पलंग पर एक वृद्ध असहाय सा लेटा है।एक औरत तीमारदारी में लगी है।)

वृद्ध----पानी, थोड़ा पानी पिलाना कमला।
(महिला तुरन्त जग से पानी उड़ेल कर गिलास में डालती है और वृद्ध को सहारा देकर पानी पिलाती है। वृद्ध महिला की ओर देखता है और उसकी आंखों से आंसू छलकने लगते हैं।)मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ कमला। मुझे माफ़ कर दो।

महिला----अरेरेरे ऐसा मत कहिए।आप मेरे पति हैं, मैं आपकी अर्द्धांगिनी हूँ।आप ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिसके लिए आप माफी माँगे।

वृद्ध----नहीं कमला,आज मुझे कह लेने दो। तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है।माँ ने तुम्हें कितना दुख दिया पर उनके अन्तिम समय में उनकी तकलीफों में तुम्हीं उनका सबसे बड़ा सहारा बनी। मैं बेटा होकर भी कुछ न कर सका।और तुमने बेटी होकर भी अपने घर के साथ साथ अपने माँ बाप की जिम्मेदारी भी अच्छे से संभाली। मैं पागल था जो अपनी ओछी सोच के कारण बेटा बेटा रटता रहा,एक बेटा पाने के लिए मैंने तीन-तीन बेगुनाह औरतों की जिन्दगी दांव पर लगा दी।आठ अजन्मी बच्चियों के कत्ल का गुनाह है मुझ पर।और मेरा दण्ड कि मैं  आज निसंतान हूँ,असहाय हूँ, मृत्यु शय्या पर हूँ और कोई मुझे पिता कहने वाला नहीं।(जोर जोर से रोने लगता है, महिला आंसू पोछती है।वह स्वयं भी भावुक हो गयी है।)

महिला-(ढांढस बँधाते हुए)मत रोइये, हिम्मत रखिए। पश्चाताप के इन आंसुओं के साथ आपकी सारी गलतियाँ बह गयी हैं।
और आज मैं आपको बताना चाहती हूँ कि आप निसंतान नहीं है और न ही आप अब असहाय और गम्भीर बीमार हैं।

वृद्ध---(चौंककर आशा भरी निगाहों से महिला की ओर देखता है।)क्या कह रही हो कमला?सच बताओ क्या बात है?पहेलियां मत बुझाओ।

महिला-जी,सच ये है कि डाक्टर रीना जो आपका इलाज कर रही है,वह आपकी ही बेटी है।

वृद्ध-(हर्ष मिश्रित विस्मय से महिला को देखता हुआ)सच कमला!डाक्टर रीना मेरी बेटी हैं।
महिला-बिल्कुल सच। अम्मा जी और आप की सोच के डर से मैंने बेटी को पैदा होते ही अपनी खास सहेली के हाथ सौंप दिया था। मैं आप लोगों से छुपाकर उसकी परवरिश का खर्च भेजती थी और मायके जाने पर उससे मिल भी आती थी।

वृद्ध----आह! कितना अभागा पिता हूँ मैं ,जो अपनी संतान का पालन पोषण भी न कर सका। आज मुझे अपनी सोच पर शर्म आती है।लानत है मुझ पर (सर झुका लेता है। महिला उसे सांत्वना देते हुए गले लगा लेती है तभी एक सुंदर युवती डाक्टर का कोट पहने कमरे में प्रवेश करती है।)

डाक्टर युवती----और चौधरी जी कैसी तबियत है आपकी अब?

वृद्ध-(बड़े ममत्व से उसकी ओर देखता है उसकी आंखों से अश्रु धारा बह निकलती है।वह बाँह फैला देता है और करुण भाव से पुकारने लगता है।) डाक्टर बेटा!
(युवती आश्चर्य मिश्रित नजरों से माँ की ओर देखती है।)

महिला-–--जा बेटा!अपने पिता से मिल ले।आज सही समय आ गया था तो मैंने आज तेरे पिता को सब सच सच बता दिया।

युवती----(भावुक होकर वृद्ध के चरण स्पर्श करती है) पिताजी

वृद्ध----न बेटी! मैं इस लायक नहीं हूँ।तू मुझे माफ़ कर दे बेटी।(रोने लगता है)

युवती ----न,पिताजी न।अब सब ठीक हो गया है।आपकी गलती नहीं थी। आपका अज्ञान था जिसके कारण गलतियां हुई और पढ़ी लिखी माँ की समझदारी कि सब ठीक हो गया।

वृद्ध ---हाँ, बेटी तू सही कहती है।तू बिल्कुल सही कहती है। (दर्शकों की ओर मुखातिब होकर) मैं चौधरी लाखन सिंह आज सब लोगों को हाथ जोड़कर कहता हूँ कि आप सब भी अंधविश्वास से बाहर निकलो । बेटी हो या बेटा दोनों को खूब पढ़ाओ। बेटी बचेगी तभी तो बहू मिलेगी।इस संसार में बेटी बेटा दोनों का महत्व है। इसलिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।

सूत्रधार-
हाँ,भाईयों और बहनों !
तो सुना आपने।
क्या कह दिया है
लड़की के बाप ने।
(संगीत बजने लगता है और सभी एक स्वर में गाने लगते हैं)
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
धरती पे ही जन्नत ले के आओ।
बेटी पढ़ेगी बेटी बचेगी
खुशहाली घर घर में आके रहेगी।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
बेटा हो बेटी एक बराबर
बेटी से नफ़रत पाप सरासर।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
जन्मेगी न जो बेटी अहो हो
कैसे बढ़ेगा वंश कहो तो
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
बेटी या बेटा दोनों पढ़ाओ
अपने देश को आगे ले जाओ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
इति
पर्दा गिरता है।

✍हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001

गुरुवार, 24 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी -----पत्थर की औरत


"अरे मारो इसे... कुलटा है यह... डायन है.... सबको बर्बाद कर देगी l" एक महिला जिसके वस्त्र फटे हुए थे बाल खुले हुए उस पर पत्थर बरसाती भीड़ चिल्ला रही थी.

वह पीड़ा से तड़पती अपनी जान की दुहाई मांग रही थी मगर लोगों पर तो जैसे खून सवार था.

उस महिला ने एक अपराध जो कर लिया था किसी का हाथ थामने का.

"इस उम्र में विवाह रचाएगी यह... गाँव की दूसरी महिलाओं पर कितना बुरा असर पड़ेगा l" एक व्यक्ति ने दाँत पीसते हुए कहा यह व्यक्ति वही था जिसकी आँखों मे वासना की चिंगारी को भड़कते हुए न जाने कितनी बार उसने पढ़ा था जो रात के अंधेरे में मूँह छिपाकर उसके बजूद को तहस नहस करना चाहता था मगर ऎसे लोगों को दिखावा करना ढोंग करना कितने अच्छे से आता है यह आज पहली बार देखा था उसने.

भीड़ में उसे कोई भी अपना दिखाई नहीं दे रहा था अपने क्या वो सब इंसान ही कहाँ थे सभी इंसान की खाल    में छिपे भेड़िये थे जो उसके जिस्म को नोचकर खाना चाहते थे.

वह पीड़ा से पड़ी कराह रही थी और ऎसा लग रहा था कि शायद यह उसकी पीड़ा का अंत हो.

अब से पंद्रह साल पहले वह विवाह होकर इस गांव में आई थी. पति के पास कुछ बीघे जमीन थी विवाह के तीन साल गुजरने पर भी उसके बच्चा नहीं हुआ जिसका दोष भी उसी के माथे मढ़ दिया गया था कि वह बांझ है, लेकिन चूंकि उसकी जुवान तो थी नहीं वह तो पत्थर का बुत थी शायद जिसके ना भावना थीं दुनियां की नजर में और न ही इच्छाएं कैसे कहती चिल्लाकर की उसका पति नपुंसक है यह स्त्री धर्म के खिलाफ जो था.

खैर कई साल गुजर गए और उस पर तानों की बौछार भी अब उसको सबकी आदत पड़ चुकी थी क्योंकि पत्थर कुछ बोलते नहीं.

और तीन साल पहले ही पति जो कि दमा का मरीज था, चल बसा उसके जाने से मुसीबत और बढ़ गईं अब उसको नया नाम पति को खाने वाली डायन जो मिल गया था पति था उसके साथ मारपीट करता मनमानी करता मगर था तो वह उसका मरद इसलिए कोई उसकी तरफ देखता नहीं था परंतु जबसे वह गुजरा वही लोग जिनकी रिश्ते की चाची भाभी बहुत थी वह उसी को गिद्ध की नजर से देखने लगे भूखे भेड़िये से उसकी आबरू को लूटने को आमादा.

तभी कहते हैं न अहिल्या को छूकर राम जी ने उसे नारी में परिवर्तित कर दिया ऎसा ही गाँव के दीना ने भी उसका हाथ दिन के उजाले में जाकर मांगा और जिन्दगी भर साथ देने का वायदा भी किया अब उसकी भी भावना हिलोरें लेने लगी थी शायद वर्षों से दबी दबाई भावनाएं ज्वार भाटे सी तरंगें भरने लगीं थीं.

और दीना की समझदारी और उसके सुरक्षा के वचन ने औरत को जिंदा करने में महत्तवपूर्ण भूमिका निभाई मगर यह क्या यह बात इन नर पिशाचों को पसंद नहीं आई और पहले दीना को 'बुरा आदमी ' कहकर पीट पीटकर मार डाला और उसे डायन घोषित कर मारने पर आमादा हो गए.

एक स्त्री ने उनके पौरुष जो कि गंदगी से ओत प्रोत था को जो नकारा था.

वह फिर से गहरी नींद में सोकर पत्थर की जो बन गई थी.

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----- भीख


रविन्द्र नाथ जी अपनी लड़की की शादी की बात करने के लिए सुरेन्द्र जी की दुकान पर पहुंचे।सुरेन्द्र जी किसी ग्राहक के साथ व्यस्त थे।तभी वहां एक दीन हीन सा दिखने वाला एक हट्टा कट्टा नौजवान आया औरगिड़गिड़ाने लगा "कल से भूखा हूं, कुछ पैसे दे दो।" 

रविन्द्र जी को उस पर दया आ गई, और उन्होंने उसको पचास रुपए दे दिए।उसके जाने के बाद सुरेन्द्र जी ने रविन्द्र जी से कहा "आपने ये अच्छा नहीं किया।आप जैसे लोगों की वजह से ही इनकी मांगने की हिम्मत बढ़ती है। जब तक हम इनका बॉयकॉट नहीं करेंगे,भीख मांगने की प्रथा खत्म नही होगी। खैर,छोड़िए इन बातो को, अब कुछ काम की बात कर ली जाए।लड़की हमें पसंद है, हमें कुछ चाहिए भी नहीं,वैसे आप समाज में अपनी नाक रखने के लिए गाड़ी तो देंगे ही, हम बस इतना चाहते है कि आप कम से कम इनोवा जैसी गाड़ी दें।"

रवीन्द्र जी ने स्वीकृति मेेें सिर हिलाया और बोले "आप ठीक कहते हैं।भीख मांगने की आदत आसानी से नहीं जाती।" 

फिर क्या था,सुरेन्द्र जी का मुंह देखने लायक था।

✍️डॉ पुनीत कुमार

T - 2/505, आकाश रेजिडेंसी, मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद - 244001

M - 9837189600

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ------ निःशब्द अहसास


चाँद निकल आया...............

आसपास से आवाज़ आ रही थी,सब   विवाहित जोड़े पूजा करने अपनी अपनी छत पर थे।रागिनी अब भी एकटक चाँद को देख रही थी ।पहला करवाचौथ .........

शादी के जोड़े में वह दुल्हन की तरह सजी हुई राज का इंतज़ार कर रही थी ।हाथों में मेहंदी ,आँखो में काजल ,माथे की बिंदिया ,चूड़ियों की खनखन उसके मन को गुदगुदा रही थी ।आज उसने तैयार होने में कोई कसर नही छोड़ी .......

चाँद की रोशनी में रागिनी चाँद जैसी  ही लग रही थी...बहुत ख़ूबसूरत.......

चाँद को देखते हुए उसके लबों पर मुस्कराहट और आँखो में हया तैर रही थी .....

कार के हॉर्न की आवाज़ सुनते ही वह झट से नीचे आयी।राज फ़ाइल हाथ में लिए तेज़ी से कमरे की तरफ़ चले गये ।’बहुत भूख लगी है रागिनी ,खाना लगा दो ....

आज मीटिंग देर तक चली।’राज हाथ धोते धोते बता रहा था।’खाना तैयार है ,आज करवाचौथ है ,पहले चाँद को जल दे आते हैं ।’रागिनी जल्दी से लोटा लेकर छत की ओर चल दी ।

आउच...........रागिनी चिल्लायी ......

उसके पैर से ख़ून निकल रहा था .....

‘देखकर नही चल सकती तुम ।लगता है कुछ बहुत गहरा  चुभ गया है ।’राज रागिनी के पैर को देख रहा था।

‘सचमुच कुछ बहुत गहरा ही चुभा है ।’रागिनी ने मन में सोचा।

उसकी आँखो का काजल फैलता जा रहा था।

 ✍️प्रीति चौधरी

  गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल )निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा ----आईना


बार बार आईने में अपना सुंदर मुखड़ा देखकर अभिमान से फूली न समाने वाली शालिनी सड़क दुर्घटना में घायल हो गई उसके मुख पर काफी चोटे आयीं  अब वह आईने के सामने जाने से डरती है।

✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'

प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा (मुरादाबाद)

सिरसी  (सम्भल)

9456031926

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में नोएडा )निवासी साहित्यकार अटल मुरादाबादी की लघुकथा ----मेहनत



नितिन और नीरज दो जुड़वां भाई थे।नीरज बहुत ही कुशाग्र बुद्धि का था जबकि नितिन पढ़ने में उससे उन्नीस था। लेकिन सामान्य शब्दों में कहें तो वह भी पढ़ने में ठीक ही था। कुशाग्र बुद्धि का होने के कारण नीरज को अपने ऊपर जरुरत से अधिक विश्वास था। इसलिए वह खूब मौज-मस्ती करता रहता था और अधिकतर समय खेलने में गुजार देता था जबकि नितिन अपना अधिक समय पढ़ने में लगाता था। लेकिन कक्षा आठ तक नीरज हमेशा अधिक अंक लाकर उससे बाजी मार लेता था। नितिन ने  कभी हिम्मत नहीं हारी और संकल्प के साथ मेहनत से लगातार पढता रहा।इस तरह दोनों ने नौंवी की परीक्षा उत्तीर्ण कर दसवीं में, एहल्कान पब्लिक स्कूल दिल्ली में प्रवेश ले लिया। दोनों अपनी अपनी पढ़ाई,पूर्व की तरह ही करते रहे।एक दिन आया सुबह-सुबह दसवीं का परीक्षा फल घोषित किया जाना था। नितिन सुबह से ही परीक्षा फल का इंतजार कर रहा था और नीरज पार्क में खेलने चला गया।लगभग दस बजे परीक्षा फल घोषित हुआ। नितिन दौड़ कर नीरज को बुलाने गया।नीरज ने अपने पुराने अंदाज में कहा- "क्यों अफरा-तफरी कर रहा है,तेरे अंक तो मेरे से कम ही होंगे"। लेकिन घर आकर जब देखा तो नितिन अधिक अंक लाकर बाजी मार चुका था।

उसके मुंह से अनायास निकला "ओह"

✍️ अटल मुरादाबादी

९६५०२९११०८

बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---- एक सच


मानसी एक प्राइवेट विद्यालय मे शिक्षिका है।वेतन भी ठीक है।पूरा परिवार पढालिखा है।पति भी सरकारी इंजीनियर है।मगर आज मानसी को समझने वाला कोई नहीं।थककर उसने नारी शक्ति केन्द्र को फोनकर मिलने का समय लिया।अध्यक्षा महोदया बोली,"अपनी समस्या बताओ"?मानसी बोली,"मै मां बनने वाली हूँ।मेरी एक बेटी है ।उसके बाद दो बार मेरा मातृत्व छीना जा चुका है।पुत्र की चाह मे मेरे अंश का कत्ल किया जा चुका है।बहुत सी महिला डा. आज भी इस कार्य मे संलग्न है।पर इसबार मै नहीं चाहती कि मेरा मातृत्व मुझ से छीना जाये।अभी वह भ्रूण मात्र है फिर भी मै उससे बहुत प्यार करती हूँ।मन ही मन उसे लोरियाँ सुनाती हूँ।,काजल का टीका लगाती हूँ, मै उसके कोमल स्पर्श कोमहसूस करती हूँ।मैउसे खोना नहीं चाहती।"

अध्यक्षा महोदया बोली,"परिवार से बात की?पति को समझाया?"

मानसी बोली,"जी सब करके थक चुकी हूँ।विरोध पर तलाक देने की धमकी देते है।विधवा मां के अतिरिक्त कोई नहीं है।अब इस उम्र मे इस दुख से वो टूट जायेगी।मेरा भी वेतन इतना नहीं कि सबका काम अच्छे से चल जायेगा।इसीलिए कुछ ऐसा करिए कि परिवार भी बचा रहे और बच्चा भी"।

अध्यक्षा की चुप्पी उसे परेशान कर रही थी।यह सोचकर वह परेशान थी कि पढे लिखे लोगो की सोच ऐसी है तो अनपढों को क्या समझाये मगर फिर  बोली,"डाक्टर के यहाँ कब जाना है"?मुझे फोन कर देना मै वहां मिलूगी।"

मानसी के चेहरे पर मुस्कान खिल गयी।

✍️डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी----पासा

   एक दिन रमेश के पास उसके बड़े भाई अजय का फोन आया,  हालचाल जानने के पश्चात अजय ने रमेश से कहा "तुम तो गांव में रहते हो वहां पढ़ाई के लिए कोई अच्छा स्कूल भी नहीं है , लिहाजा अपनी बेटी रमा को मेरे पास पढ़ने के लिए भेज दो , मेरी भी कोई बेटी नहीं है मुझे भी बेटी का सुख मिल जाएगा" यह सुन रमेश अति प्रसन्न हुआ कि उसके बड़े भाई उसका कितना ख्याल रखते हैं । घर में पत्नी से मंत्रणा कर रमेश ने अपने बेटे विनय  के साथ रमा को अजय के घर छोड़ने के लिए भेज दिया , घर पहुंचते ही ताई जी ने विनय से पूछा कैसे आना हुआ सब खैरियत तो है । यह सुन विनय को बड़ा  अचरज हुआ कि अजय ताऊ जी ने घर पर कुछ नहीं बताया था । लेकिन फिर भी विनय ने ताई जी से कहा मैं रमा को आपके घर छोड़ने के लिए आया हूं ,ताकि यह शहर में पढ़ाई कर सकें । ताई जी विनय की बात सुन , चुप हो गई । चाय पानी के पश्चात ताई जी विनय से बोली चलो थोड़ा सैर कर आते  हैं सेहत के लिए अच्छी होती है । विनय ने हामी भर दी और उनके साथ सैर करने  चला गया । रास्ते में ताई जी ने विनय से कहा तुम्हारे ताऊजी की तुम्हारे पापा से क्या बात हुई मुझे नहीं पता , रमा यहां पर रहे मुझे इस पर कोई एतराज नहीं है , मगर मैं तो बस इतना कहना चाहती हूं कि लड़की जात है अगर कोई ऊंच-नीच हो गई तो मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं होगी । ताई जी अपना "पासा" फेंक चुकी थी, विनय भी काफी समझदार था वह उनका मतलब अच्छे से समझ गया था । वह चुप रहा और घर आकर रमा से बोला चलो वापस घर चलते हैं ,  इस वर्ष स्कूलों में सभी सीटें फुल हो गई हैं अगले वर्ष एडमिशन की पुनः कोशिश करेंगे ।

✍️विवेक आहूजा 

बिलारी 

जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा --- भिन्नता


"बाबूजी हाथ छोड़िए और अंदर जाइए l" विजय ने बुरा सा मूँह बनाते हुए कहा और अपनी चमचमाती गाड़ी की तरफ मुड़ गया l

उधर बाबूजी खड़े खड़े अपनी अंगुलियों को देख रहे थे.

"जिन अंगुलियों को पकड़कर बेटे को चलना सिखाया, वही हाथ पकड़कर आज उनको वह वृद्ध आश्रम में छोड़ आया l

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा ---बेटा या बाप-


अरे तुम सुनते ही नहीं हो, अपनी चलाये जा रहे हो, जैसा मैंने बताया वैसा करो, रामबाबू क्रोध में अपने जवान पुत्र पर चिल्लाये। 

ठीक है, अगर कुछ गड़बड़ हुई तो मुझसे मत कहिएगा, बड़बड़ाता पैर पटकता हुआ उनका पुत्र चला गया।

आप को लल्ला से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए,  अब वह बच्चा नहीं है बल्कि बच्चों वाला है, पानी का गिलास देते हुए  उनकी पत्नी ने उन्हें समझाया ।

अरे तुम कैसी बात करती हो, कितना ही बड़ा हो जाये, मेरा तो बेटा ही रहेगा बाप थोड़े ही हो जायेगा, रामबाबू बोले।

तभी भीतर से बाबूजी की आवाज आई: अरे बेटा मेरा च्यवनप्राश खत्म हो गया है, लल्ला से कहकर मँगवा देना।

लो अब इनकी सुनो, अरे, पहले से क्यों नहीं बताया, अब वह चला गया तो कह रहे हो। अब दो तीन दिन ऐसे ही काम चलाओ। रामबाबू चिल्लाये ।और बाबूजी चुपचाप उनकी ओर देखते रह गये।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल

MMIG - 69,

रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।

मोबाइल 9456641400

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघुकथा -----माफ करना भैया

         


तांगा एक आलीशान कोठी के सामने आकर रुक गया।सवारी उतरी और बैग लेकर कोठी के अंदर जाने लगी तभी तांगे वाले ने टोकते हुए कहा भाई साहब मेरे पैसे तो देते जाइये।सवारी ने दो हज़ार का नोट दिखाते हुए कहा भाई छुट्टे नहीं हैं, थोड़ा ठहरो अंदर से लाकर देता हूँ।सवारी बैग लेकर अंदर चली गई।

       तांगे वाले को खड़े-खड़े दस मिनट हो गए परंतु भाई साहब नहीं लौटे।शायद किसी काम में लग गए होंगे थोड़ी देर और देख लेता हूँ।आधा घंटा बीतने पर तांगे वाले ने घंटी का बटन दबाया और कुछ क्षण इंतज़ार किया।तभी दरवाज़ा खुला और वही सज्जन बाहर निकले ।तांगे वाले को देखकर अवाक रह गए और बोले  भाई मुझे माफ़ करना मैं अंदर जाकर कुछ काम में लग गया मुझे यह ध्यान ही नहीं रह कि तुम्हारे पैसे भी देने हैं।

     तुमने इतना इंतज़ार ही क्यों किया पहले ही घंटी बजा दी होती।जल्दी से तांगे वाले को पैसे देकर पुनः क्षमा मांगते हुए बोले भाई इसे दिल पर मत लेना।

         तांगे वाले ने भी सहजता पूर्वक कहा कोई बात नहीं भाई साहब ऐसा हो जाता है।आप बहुत अच्छे हैं सर,,,,कहते हुए 

तांगा लेकर चला गया।

        


                वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

                  मुरादाबाद/उ,प्र,

                  9719275453

       दिनांक- 02/09/2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा ----तेरी भी चुप मेरी भी चुप

 

देर से आई मेहरी को देखते ही सीमा विफर पड़ी 

 "रानी आज कहाँ मर गयी थी?और यह तेरे चोट कैसे लगी हैं?"

 "बीबीजी मैं  फिसल गयी तो चोट लगी हैंl" रानी ने बर्तनों को धोते हुए कहा. 

"यह तो पीटने के निशान है किसने मारा तुझे?"

सीमा उसके चेहरे पर नजरें जमाते हुए बोली 

रानी फफक-फफक कर रो पडी़ और रोते हुए बोली, "बीबीजी मेरे मर्द ने शराब पीकर मारा।"

 "तलाक काहे नहीं  दे देती ऐसे नामर्द को जो औरत पे हाथ उठाता है?" सीमा गुस्से में बोली. 

बीबी जी के चेहरे पर उँगलियों। की छाप देख रानी ने भरे गले से कहा, "बीबी जी शायद आप भी आज  फिसल गईं थीं "

 रानी से इतना सुनते ही सीमा आँख में  आँसू भर लाई रानी को गले लगा कर बोली,"हम औरतें  घर की लाज हैं रनिया"।


रागिनी गर्ग, रामपुर, यूपी

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा --- समय


    "" मारो ! इनको पता नहीं, कहाँ- कहाँ से से चले आते हैं परेशान करने----। मगर हजूर यह तो आप की प्रजा है रामू ने कहा।" 

        " वो क्या होती है रे-----?" 

   " हजूर वहीं जिसके बल पर आप राज कर रहे हैं---।" 

       एक कटु मुस्कान के साथ " हूँ ------राज  कर रहे हैं। सुनो रामू , हम राज इनके बल पर नहीं, चाटुकारिता के बल पर कर रहे हैं, समझे।" 

✍️ अशोक विश्नोई,  मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा ---- गहरी नींद

"सटाकsssss ........." की आवाज़ के साथ उस रईसजादे की ठोकर से, फुटपाथ पर गहरी नींद में डूबा पड़ा मल्लू सकपका कर उठ गया।

"फिर किसी ससुरे ने सोते से उठा दिया,  कम से कम मुझे भरपेट खाने तो देता ..........",  गहरी नींद से उठ बैठा मल्लू बड़बड़ाये जा रहा था।

-✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद

मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा -- रामराज

..........कल इंटरव्यू है अस्पताल में 25 वैकेंसी  हैं।

 " कैसी तैयारी कर रखी है ?"प्रमोद जी ने पूछा

"तैयारी तो खूब अच्छी की है..... परंतु...!"मनीष के स्वर में लाचारी और झिझक थी ।

"परंतु क्या ?"

"पैसा चल रहा है !" और वह भी 5 लाख से ज्यादा !

"फिर"??

"मंत्री जी से सिफारिश लगवाई है.....

 बहुत सुना था अब रामराज है".... "शाम को फोन पर बताएंगे ....क्या हो सकता है? "मनीष ने पूरी व्यथा कथा कह डाली....!

       ..... शाम को मंत्री जी से फोन पर बात हुई उन्होंने कहा "मुबारक हो काम हो जाएगा.... बड़ी मुश्किल से तैयार हुए  हैं...इंटरव्यू वाले 10 मांग रहे थे तुम्हारी मेरिट अच्छी है इसलिए मैंने साफ कह दिया 8 से ज्यादा नहीं मिलेंगे !.... अब मिठाई की तैयारी करो ....! तुम्हारी नौकरी पक्की ...!!"

      मनीष के तो होश ही उड़ गए । दुनिया घूमती हुई नजर आने लगी  !  फिर सोचने लगा आखिर किस्मत भी तो कोई चीज है !

.......... इंटरव्यू बहुत शानदार रहा..... परंतु मनीष की हालत आठ लाख जुटाने की नहीं थी..... सेठ धनराज के लड़के मनोज ने भी इंटरव्यू दिया था.. परंतु वह इंटरव्यू फेस नहीं कर पाया..!. मेरिट में भी वह सबसे नीचे था...........

     ..... मंत्री जी का फोन आया मनीष की हिम्मत नहीं हुई  ...... बात करने की....... !!

....मंत्री जी से अच्छा तो ठेकेदार संजय था जिसने 5 की डिमांड की थी....!

       .....ये क्या ?.... परिणाम आ चुका था.. मनोज घूम घूम कर मिठाई बांट रहा था.......और......मनीष बार-बार अखबार पलट कर देख रहा था उसका कहीं नाम नहीं था..........!!

                 

,✍️अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर,  मुरादाबाद

82 18825 541

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा ----- नर पिशाच


 "अरे! देखो ये पिशाच लड़के को खा रहा है, उसका खून पी रहा है",

जमा होती भीड़ में से कोई चिल्लाया।

लड़के के जिस्म पर झुके उस आदमी ने झटके से अपना सर ऊपर उठाया,

उसके मुँह से खून टपक रहा था और उसके हाथों ने लड़के के पैर को पिंडली पर कसकर पकड़ा हुआ था। उसने इस जुटती हुई भीड़ को उपेक्षा से देखा और फिर अपना मुँह लड़के की पिण्डली से बहते खून पर लगा दिया।

"तेरी इतनी हिम्मत शैतान-नर पिशाच!! कि तू हमारे बेटे का खून पिये", कहकर ठाकुर साहब ने पिस्तौल निकाली और धाँय!! धाँय!!! दो फायर उस आदमी की खोपड़ी में झोंक दिए।

"अब आपका बेटा खतरे से बाहर है ठाकुर साहब, उसे बहुत जहरीले नाग ने डसा था लेकिन भला हो आपके उस शुभ चिंतक का जिसने अपने दाँतों से डंक वाले स्थान को काटकर उसका खून निकाल दिया जिसके साथ लगभग सारा जहर भी बाहर निकल गया। वर्ना हम आज आपके बेटे को नहीं बचा पाते।

वैसे वह शख्स किस हालत में है जिसने ये जोखिम उठाया? क्या वह आपका कोई खास परिचित है?", डॉक्टर साहब बोलते जा रहे थे और ठाकुर साहब का शरीर सुन्न होता जा रहा था।

अचानक ठाकुर साहब ने अपने सर पर हाथ रखा और जमीन पर बैठ गए। उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा ----- वास्तविक सोच

  मेरे बेटे रोहन ने एक स्वनिर्मित चित्र मेरे सामने लाकर रख दिया ...। इस चित्र में उसने अपनी मां को आठ हाथों के साथ दिखाया है ... पहले हाथ में किताब, दूसरे हाथ में बर्तन, तीसरे हाथ में छोटे बच्चे (शायद रोहन खुद को दिखाना चाहते हो), चौथे हाथ में छोटी बहन, पांच हाथ में। पापा, छठे हाथ में घर, सातवें हाथ में कार्यालय, और आठवें हाथ में घड़ी ... उसे देखकर ही सुबह का वाकया मेरी आँखों के सम्मुख छा गया। 

जब बेटे रोहन ने आज दुर्गा नवमी पर पूजा के दौरान मां दुर्गा की प्रतिमा को देखकर मुझसे पूछा "पापा हम सभी के दो- दो हाथ, पर माता दुर्गा के आठ हाथ, ये तो झूठ है ... ऐसा नहीं हो सकता है ना!" पापा "। मैं उसकी बात सुनकर स्तब्ध रह गया था और बोला कि ... 

"बेटा तुम देखो, मां दुर्गा ने अपने सभी हाथों में अलग-अलग चीजें धारण कर रखी हैं। इन सभी चीजों में, मां दुर्गा पार्वती हैं"। 

"क्या हुआ पापा?" बेटे ने आवाज दी तो मेरी तन्द्रा भंग हुई मैंने उसे गले से लगा लिया और पत्नी की ओर प्रेम से देखकर मुस्करा भर दिया।

✍️ प्रवीण राही, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ---- बधाई


        "बधाई हो गर्ग साहब ! अब तो लॉकडाउन समाप्त होने की दिशा में है। होटल में समारोह करने की अनुमति भी मिलने वाली है । हमारा बिज़नेस फिर से शुरू हो जाएगा । "
          "सही कहा आपने गोयल साहब ! कई महीने से काम - धंधा बंद था । कोई शादी -ब्याह- बरात होटल में नहीं हुई ।खर्चे ज्यों के त्यों मगर आमदनी जीरो । भगवान ने सुन ली । अब समारोह होंगे और खुशियाँ वापस लौट आएँगी ।"
          " तो फिर खुशी में एक धन्यवाद - पत्र अखबार में प्रकाशित कर दिया जाए ? क्या राय है आपकी ?"
        "जरूर -जरूर ! क्यों नहीं गोयल साहब ?  इतना बड़ा अवसर हम लोगों को मिला है । जनता तक संदेश तो जाना ही चाहिए । "
       "ठीक है । मैं इंतजाम कर देता हूँ।"- कहकर गोयल साहब जाने लगे , मगर जाते-जाते फिर पलटे और मुस्कुरा कर पूछा " गर्ग साहब ! अब तो आप अपने पोते की बर्थडे धूमधाम से होटल में मना सकेंगे ?" -सुनकर गर्ग साहब डर से काँपने लगे । बोले - "कैसी बातें कर रहे हो ? लॉकडाउन रहे या न रहे, लेकिन बीमारी तो अपनी जगह ज्यों की  त्यों है , बल्कि बढ़ रही है । यह समय क्या समारोह करने का है ? 
        इतना सुनकर गोयल साहब रहस्यमय ढंग से मुस्कुराए और बिना कुछ कहे चले गए ।

✍️ रवि प्रकाश 
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451_

मंगलवार, 22 सितंबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 25 अगस्त 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ अनिल शर्मा अनिल, अशोक विद्रोही, रवि प्रकाश, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, सीमा रानी, श्री कृष्ण शुक्ल , राजीव प्रखर,राम किशोर वर्मा , डॉ पुनीत कुमार, डॉ प्रीति हुंकार ,मनोरमा शर्मा, नृपेन्द्र शर्मा सागर, डॉ श्वेता पूठिया और दीपक गोस्वामी चिराग की बाल कविताएं -------

क्यों घर रोका?

इतने दिन हो गए मम्मी जी
कोरोना के नाम पर।
घर में बंद हुए हम बच्चे
जाएं बड़े सब काम पर‌।।
कब स्कूल खुलेंगे अपने,
कब जाएंगे हम बाहर?
घर के भीतर रहते रहते

अब बोरिंग लगता है घर।
वहीं गेम सब,वहीं किताबें
वहीं रुटीन, वहीं खाना।
सच कहते हैं मम्मी जी हम
अब चाहते बाहर जाना।।
सिर में दर्द,जलन आंखों में
आनलाइन पढ़ते पढ़ते।
कुछ समझे,सब समझ न पाए
नया नहीं कुछ भी गढ़ते।
बस एक बात बता दो मम्मी,
बच्चों को क्यों घर रोका?
कोरोना का डर है सच में,
या इसमें कोई धोखा।
बेटा! सही कह रहे हो तुम,
सचमुच हो जाते हो बोर।
लेकिन इतनी बात समझ लो,
कोरोना का चल रहा दौर।।
बंद सभी स्कूल और कालेज,
रहो सुरक्षित अपने घर।
इसमें कोई नहीं है धोखा,
बस कोरोना का ही डर।
जितनी कर सकते आराम से
बस उतनी ही पढ़ाई करो।
ठीक ठाक सब हो जाएगा
बेटा बिल्कुल नहीं डरो।
पापाजी की ड्यूटी जारी,
इसलिए करते रोज सफर।
जनता की स्वास्थ्य सेवा में
लगे हुए सभी डॉक्टर।
बेटा,विषम परिस्थितियां हैं,
करना होगा समझौता।
वक्त बदल जाएगा यह भी,
सदा एक सा न होता।

✍️डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर,उत्तर प्रदेश
--------------------------------------


बच्चों तुम चलते चलो, ले आशा के दीप।
ले जायेंगे लक्ष्य के, तुमको यही समीप।।

साहस रख बढ़ते चलो, अन्धेरे को चीर।
पथ अपना है ढूँढता, जैसे नदिया-नीर।।

साया तम का है घना, मेरे चारों ओर।
कोई ऐसी राह हो, दिखा सके जो भोर।

मेरे मन ले चल मुझे, अब उस पथ की ओर।‌
चल कर जिस पर पा सकूँ, मैं मंज़िल का छोर।।

उड़ तू नभ की ओर अब , अपना ढूँढ जहान
मिल जाएगा  लक्ष्य भी , भरकर नयी उड़ान
                    
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
---------------------------------


नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
           छुट्टी में जब हम हैं जाते
           नाना नानी खुश हो जाते
           अपनी बहुत प्रतीक्षा करते
           दोनों प्यार बहुत हैं करते
           मैं नानी की राजदुलारी
          और भैया है राज दुलारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
           नानी के घर दो गैया हैं
           एक बहना और एक भैया है
           मामा रोज जलेबी लाते
           सब मिल दही जलेबी खाते
           उधम मचाते कभी झगड़ते
           खाते कसम ना आएं दोबारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
           नहर किनारे बसा गांव है
           शुद्ध हवा और धूप छांव है
           नाना संग खेत पर जाते
           नलकूप के पानी में नहाते
           फिर बागिया से अमियां लाते
          अजब खेत और ग़ज़ब नज़ारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा नाना
         पर इस बार नहीं जा पाए
         कोरोना ने होश उड़ाए
         बहुत भयंकर बीमारी है
         घोषित हुई महामारी है
         अखिल विश्व इससे है हारा
          पूछो मत कितनों को मारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
        अबकी अरमां मिल गए माटी
        सारी छुट्टी घर में काटी
        कोरोना से सब हैं बेदम
        केवल घर में कैद हुए हम
        ऊब गये हैं पढ़ते पढ़ते
        होते बोर रहे दिन सारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
       मिलने से मजबूर हो गए
       नाना-नानी दूर हो गए
       हे प्रभु अब तो दया दिखाओ
       कोरोना को मार भगाओ
       दुखी हो रहे नाना नानी
       निशदिन रस्ता तकें हमारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
  
अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
82 188 25 541
-----------------------------------


कोरोना  से   फायदा ,सुन  लो   मेरे   यार
हम बच्चों को मिल गया ,मोबाइल उपहार
मोबाइल   उपहार ,ऑनलाइन   अब पढ़ते
पढ़कर  ढेर  सवाल ,रोज  उत्तर  हम गढ़ते
कहते रवि कविराय ,मजा यह हमें न खोना
अच्छा तिरछा - लाभ ,दिया  तुमने  कोरोना

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
----------------------------------- 



सड़  जाएंगे  दांत   तुम्हारे
ज्यादा   मीठा  मत  खाना
दर्द   करेगा,  मुँह   सूजेगा
बहुत     पड़ेगा   पछताना।

नींद  नहीं  आएगी  तुमको
मुश्किल   होगा   सो  पाना
टॉफी,चॉकलेट का तुम पर
यही      लगेगा     जुर्माना।

जब भी मीठा दूध पियो तो
दाँत  साफ   करके   आना
कोई फिर कुछ दे खाने को
लेकिन कुछ भी मत खाना।

बच्चो कुछ पाने की खातिर
कुछ  तो  पड़ता   है  खोना
पिज्जा, बर्गर, टॉफी सबसे
कहना  पड़ता  है, अब  ना।

अच्छे बच्चे  सभी बड़ों  का
सदा     मानते   हैं    कहना
तभी  हमेशा   सुंदर  दिखते
लगते  घर  भर  का  गहना।

टीना,  टीनू,   तरु,   हिमानी
पंकज  असमी  और   मोना  
मोती   जैसे  दांतों  के   संग
तुम   खुलकर  के  मुस्काना।

वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0---   9719275453
------------------------------------


प्यारे बच्चाें ये सुंदर जीवन,
निराश कभी नही हाेना है |
कभी खुशी मिले यहाँ पर,
तो दुख भी हँसकर सहना है |

सुबह नरम व दाेपहर गरम ,
कभी रात चाँदनी हाेती है |
जी भर खाना मौज मनाना,
प्यारा ऐसा बचपन हाेता है |

कभी उछलना कभी कूदना,
सबकाे जी भर मस्ती देता है |
प्यार -दुलार सबकाे भरपूर ,
क्याें लौटकर फिर नही आता है?

✍🏻सीमा रानी
अमराेहा
-------------------------------------


बंद घरों में पड़े बीतती अपनी सुबहो शाम।
मोबाइल में ही हो जाते अब तो सारे काम।।
खेल कूद पर भी पाबंदी कैसे दिन बेकार ।
अब तो मुश्किल लगता है ये हर पल का आराम ।

याद बहुत आता है वो टीचर का हमें डपटना।
उत्तर याद नहीं आये तो मुँह में थूक गटकना।।
इंटरवल में सबका मिलकर हल्ला गुल्ला करना।
एक दूजे के लंच बॉक्स से खाना साझा करना।

जी करता है कोरोना जी जल्दी से मिट जायें।
हम पहले की भाँति रोज विद्यालय में जा पायें।
और शाम को रोज पार्क में जाकर खेलें कूदें।
वीक एंड पर पापा के संग पुनः घूमने जायें।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG-69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ।
मोबाइल  9456641400
------------------------------------


देखो हम बच्चों की प्यारी,
नानी ज़िन्दाबाद।

राजा-रज़िया-बिन्दर-असलम,
सारे उनको प्यारे।
सबको हँसकर बड़े प्रेम से,
आकर रोज सँवारे।
करती रहती सबके सुख की,
भगवन से फ़रियाद।
देखो हम बच्चों की प्यारी,
नानी ज़िन्दाबाद।

प्रात: उठकर सबसे पहले,
आकर हमें जगाती।
पास बिठाकर फिट रहने के,
नुस्खे खूब बताती।
हम पौधे हैं पाते उनसे,
ममता रूपी खाद।
देखो हम बच्चों की प्यारी,
नानी ज़िन्दाबाद।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
----------------------------------


इतना नीर कहांँ से आता
बादल कैसे जल बरसाता?
ग्रीष्म के ही बाद क्यों आता?
आता है; क्यों झड़ी लगाता ?

नदी-नालियां भर जाते हैं
सड़कों पर जल ही पाते हैं ।
शहरों का तो हाल बुरा है
बीच नदी ज्यों तना खड़ा है ।।

अति वर्षा जब हो जाती है
नदी-बांँध भी उफनाती है ।
बहता है जब इनका पानी
याद दिला देता है नानी ।।

खेत-गांँव सब पानी-पानी
पशु-पक्षी करते हैरानी !
जान-माल पर भी बनती है
वर्षा इतनी क्यों पड़ती है ।।

टी वी वाले बाढ़ दिखाते
दृश्य देखकर मन घबराते ।
घर-पहाड़ पानी में ढ़हते
दिल पर पत्थर रख सब सहते ।।

इतनी वर्षा मत बरसाओ
इन्द्रदेव अब दया दिखाओ ।
मात -भूमि कुछ जल को पी लें
जीव-जंतु तब सुखमय जी लें ।।

✍️राम किशोर वर्मा
रामपुर
----------------------------------------


मम्मी मम्मी,प्यारी मम्मी
क्या दोगी मुझको उपहार

जन्मदिन आता है मेरा
पूरे एक साल के बाद
लेकिन तुमको ना जाने क्यों
कभी नहीं रहता है याद
बहुत हो गया, अब तो छोड़ो
अपना क्लबों का संसार

नहीं चाहिए नौकर आया
नहीं चाहिए कोर्इ खिलौना
नहीं चाहिए चॉकलेट भी
और ना ये मखमली बिछौना
ममता की गोदी मिल जाए
मिल जाए थोड़ा सा प्यार

✍️ डॉ पुनीत कुमार
T - 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600
------------------------------------


मिठ्ठू तोता पिंजड़े में भी ,
सबका जी  बहलाता है ।
सुबह आम की गुठली भाय,
शाम को काजू खाता है ।
घर में जब मेहमान पधारें ,
यह कहता है राम राम ।
बिन पूंछे ही सबसे कहता ,
मिठ्ठू मेरा प्यारा नाम ।
जब कोई पकवान बने तो ,
माँग माँग के खाता है।
मिठ्ठू****
मिठ्ठू और पटे की बोली,
लगती उसके मुख से प्यारी ।
लाल चोंच और हरे पंख से ,
उसकी सूरत सबसे न्यारी ।
बच्चों की जब डांट पड़े तो ,
उनकी नकल बनाता है ।
मिठ्ठू******

✍️डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
-----------------------------------


बारिश ,बादल ,मस्त पवन सब
मन मर्जी के मालिक हैं
मैं ही बस खिड़की से झांकू
सूना मन घर सूना है ।

पीटर के घर एक बहन है
सुन्दर गुड़िया ,जादू सी
बहुत चार्मिंग मुझको लगती
वो क्यूट डाॅल बार्बी सी ।

रोली चावल माथे टीका
बांधे राखी मेरे भी
मैं सारी चाकलेट दे दूँ
गोलू मोलू हाथी भी ।

चहक चहक कर चिड़िया है खुश
ये डाॅगी मस्ताना भी
मैं ही बस इकलौता बालक
घर में बंद खिलौना सा ।

दादा-दादी नाना -नानी
सबको ढूंढू भोला सा
मन कहता है मेरा भी हाँ
सबके बीच रहूं मैं अब।

मम्मी अपने ऑफिस जातीं
फिर डैडी जी भी जाते
मैं ही बस रह जाता घर में
और काका जी सो जाते ।

तड़ -तड़ करके बारिश होती
काले बादल घिर आते
ठंडी -मस्त हवा भी चलती
पर मुझको तनिक न भाते ।

✍️मनोरमा शर्मा
अमरोहा
------------------------------



रोज सुबह तुम जल्दी जागो।
तितली के पीछे मत भागो।
साफ सफाई का हो ध्यान।
मल-मल नित्य करो स्नान।।

प्रभु के चरणों में सिर नवाओ।
हँसते-हँसते पढ़ने जाओ।
पढ़ लिख कर तुम बनो महान।
ऊँची रखना देश की शान।।

आपस के सब द्वेष भुलाकर।
चलना सबको साथ मिलाकर।
बढ़े पिता माता का मान।
मिले तुम्हे अच्छी पहचान।।

कभी किसी को नहीं सताना।
सच्ची सदा ही बात बताना।
लेकिन ना करना अभिमान।
सबका करना तुम सम्मान।।

मानवता के हित के काम।
इनमें मत करना विश्राम।
सदा बढ़ाना अपना ज्ञान।
इसको निज कर्तव्य मान।।

✍️नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
9045548008
----------------------------------


छोटी सी चिडिय़ा फुदक फुदक कर उडना चाहती है.
पिंजरे में न बान्धो मुझको यह कहती जाती है।
मुझको उडना है दूर दूर तक
क्षितिज तक जाना है जरूर
मेरी स्वत्रंता है अमूल्य
मेरा है न कोई मूल्य।

✍️श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
------------------------------------


बच्चो! राष्ट्रीय-फल मैं आम।
मुझको खाते मिट्ठू राम।
वैसे मेरा नाम है *आम*।
बहुत खास हूँ ,न बस आम।

खट्टा-मीठा रस है मुझमें।
सौ से ज्यादा मेरी किस्में।
दशहेरी,चौसा और लंगड़ा।
खाता जो करता है भंगड़ा।

मुझको काली-कोयल खाती।
खाकर मीठा गाना गाती।
सब फल का मैं ही हूँ राजा।
रस मेरा है ताजा-ताजा।
देखो! मुख में आया पानी।
खाओगे होगी हैरानी।

,✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णा कुंज
बहजोई (सम्भल) पिन-244410
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com