"अरे! देखो ये पिशाच लड़के को खा रहा है, उसका खून पी रहा है",
जमा होती भीड़ में से कोई चिल्लाया।
लड़के के जिस्म पर झुके उस आदमी ने झटके से अपना सर ऊपर उठाया,
उसके मुँह से खून टपक रहा था और उसके हाथों ने लड़के के पैर को पिंडली पर कसकर पकड़ा हुआ था। उसने इस जुटती हुई भीड़ को उपेक्षा से देखा और फिर अपना मुँह लड़के की पिण्डली से बहते खून पर लगा दिया।
"तेरी इतनी हिम्मत शैतान-नर पिशाच!! कि तू हमारे बेटे का खून पिये", कहकर ठाकुर साहब ने पिस्तौल निकाली और धाँय!! धाँय!!! दो फायर उस आदमी की खोपड़ी में झोंक दिए।
"अब आपका बेटा खतरे से बाहर है ठाकुर साहब, उसे बहुत जहरीले नाग ने डसा था लेकिन भला हो आपके उस शुभ चिंतक का जिसने अपने दाँतों से डंक वाले स्थान को काटकर उसका खून निकाल दिया जिसके साथ लगभग सारा जहर भी बाहर निकल गया। वर्ना हम आज आपके बेटे को नहीं बचा पाते।
वैसे वह शख्स किस हालत में है जिसने ये जोखिम उठाया? क्या वह आपका कोई खास परिचित है?", डॉक्टर साहब बोलते जा रहे थे और ठाकुर साहब का शरीर सुन्न होता जा रहा था।
अचानक ठाकुर साहब ने अपने सर पर हाथ रखा और जमीन पर बैठ गए। उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
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