बुधवार, 23 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा --- समय


    "" मारो ! इनको पता नहीं, कहाँ- कहाँ से से चले आते हैं परेशान करने----। मगर हजूर यह तो आप की प्रजा है रामू ने कहा।" 

        " वो क्या होती है रे-----?" 

   " हजूर वहीं जिसके बल पर आप राज कर रहे हैं---।" 

       एक कटु मुस्कान के साथ " हूँ ------राज  कर रहे हैं। सुनो रामू , हम राज इनके बल पर नहीं, चाटुकारिता के बल पर कर रहे हैं, समझे।" 

✍️ अशोक विश्नोई,  मुरादाबाद

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