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सोमवार, 26 अक्टूबर 2020
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना --"आई अश्वों पर सवार मैया ओढ़ चुनरी ...." प्रस्तुत करतीं लंदन गुरुकुल की छात्रा अविशा । यह रचना उन्होंने 26 अक्टूबर 2020 को डॉ सुरीति रघुनन्दन मॉरीशस और सुशील सरित आगरा द्वारा संचालित विश्व बंधुत्व सेतु के ऑनलाइन कार्यक्रम में प्रस्तुत की । इस कार्यक्रम में विभिन्न देशों के बच्चों ने भारत के साहित्यकारों की रचनाओं का पाठ किया ।
रविवार, 25 अक्टूबर 2020
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता के 18 दोहे
विजयादशमी का बड़ा, पावन है त्यौहार। रावण रूपी दम्भ का,करता है संहार।।1
बन्धु विभीषण ने किया, गूढ़ बात जब आम।
रावण का तब हो गया , पूरा काम तमाम।।2
नाभि में था भरा अमिय, मगर न आया काम ।
बुरे काम का फल बुरा, बात बड़ी ये आम।।3
सौतेली माँ केकयी, पुत्र मोह में चूर।
किया तभी श्री राम को, राजमहल से दूर ।।4
रावण ने जब भूल का, किया न पश्चाताप।
उसके कुल ने इसलिये, सहा बड़ा संताप।।5
राम भेष में आजकल , रावण की भरमार।
देखना में सज्जन लगें, अंदर कपटाचार।।6
पुतला रावण का जला, मगर हुआ बेकार
मन के रावण का अगर, किया नहीं उपचार ।।7
अच्छाई के मार्ग पर, चलना हुआ मुहाल।
चले बुराई नित नई , बदल बदल कर चाल ।।8
खड़ा राम के सामने ,हार गया लंकेश।
अच्छाई की जीत का,मिला हमें सन्देश ।।9
गले दशहरे पर मिले,दुश्मन हों या मीत।
नफरत यूँ दिल से मिटा, आगे बढ़ती प्रीत।।10
सोने की लंका जली, रावण था हैरान।
उसे हुआ हनुमान की, तब ताकत का ज्ञान ।।11
हुआ राम लंकेश में, बड़ा घोर संग्राम।
पर रावण की हार का,तो तय था परिणाम।।12
हार बुराई की हुई, अच्छाई की जीत।
रावण जलने की तभी,चली आ रही रीत।।13
सदा सत्य की हो विजय, और झूठ की हार।
पर्व दशहरा शुभ रहे, बढ़े आपसी प्यार ।।14
जीवन मे इक बार बस, बनकर देखो राम।
निंदा तो आसान है, मुश्किल करना काम ।।15
भवसागर गहरा बहुत, भँवर भरी हर धार।
राम नाम की नाव ही, तुझे करेगी पार।।16
सीताओं का अपहरण , गली गली में आज।
कलयुग में फिर हो गया, है असुरों का राज।।17
ज्ञान समर्पण साधना, सब रावण के पास
बस इक अवगुण ने किया, उसका सत्यानाश।।18
✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना -----करने दुष्टों का सर्वनाश, हे राम पुनः अवतार धरो...
श्रीराम धरा पर आकर तुम,फिर से सृष्टि संचार करो,
करने दुष्टों का सर्वनाश, हे राम पुनः अवतार धरो।।
संकट में आयी मानवता,चहुँ ओर अँधेरा छाया है,
बोझिल धरती का अँधकार ,हरने प्रभु फिर उपकार करो
सारंग धनुष की टंकारें,गूँजे फिर दशो दिशाओं में,
भयमुक्त करो मेरे भारत को,वीरो में तेज संचार करो।
हे मर्यादाओं के द्योतक! हे पुरुषोत्तम, हे अविनाशी,
नारी में लज्जा और नर में मर्यादा का विस्तार करो।।
श्रीराम दया के सागर हो,हे !करुणामय करुणा कर दो,
अब आर्यवर्त की धरती से बस दुष्टों का संहार करो।
लहराये तिरंगा अजर अमर ,भारत का मस्तक उठा रहे,
भाई भाई में प्रेम रहे ,ये विनती मेरी स्वीकार करो ।
हे शिव पिनाक भंजनहारी,हे कौशलनंदन,अखिलेश्वर
कलिकाल कलुष हर के रघुवर ,अविलम्ब धरा का भार हरो।।
✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद 244001 उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता --अपने अपने रावण-
सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया
इस बार दशहरा
अलग ढंग से मनाया जायेगा
रावण का पुतला
बाहर से नहीं मंगाया जायेगा
सब अपने अंदर झांकेंगे
छिपे हुए रावण को तलाशेंगे
फिर उसका पुतला बनायेंगे
और अपनी बस्ती के
किसी बड़े मैदान में
उसे लेकर आयेंगे
दशहरा के दिन
सब अपना हुनर दिखा रहे थे
सबके हाथों में
रावण नजर आ रहे थे
झूठ को सच बनाने वाले वकील
भ्रष्टाचार की कार में सवार अधिकारी
मरीजों का खून चूसने वाले डॉक्टर
मिलावट करने वाले व्यापारी
सत्ता के तलुए चाटने वाले पत्रकार
विसंगतियों के प्रति उदासीन साहित्यकार
छात्रों को ट्यूशन के लिए
मजबूर करते शिक्षक
अश्लीलता और फूहड़पन
परोसते फिल्मकार
एक दूसरे को
छोटा दिखाने पर अड़े थे
काम क्रोध ,लोभ मोह
झूठ बेईमानी छलकपट जैसी
बुराइयों के रावण को
अपने हाथ में लिए खडे़ थे
लेकिन नेताओं की बस्ती में
अजीब सा सन्नाटा छाया था
कोई भी अपने रावण को
खुद नहीं खोज पाया था
चमचे मिलकर
नेताओं को खंगाल रहे थे
हर बार एक नया रावण
निकाल रहे थे
ये काम अनवरत चल रहा था
नेताओं को बहुत खल रहा था
अचानक नेता जी चिल्लाए
हमारे अंदर
जो भी रावण मौजूद हैं
उन सबकी वजह से ही
हमारे अपने वजूद हैं
अब कोई भी
रावण नहीं निकालना है
जो निकल गए हैं
उनको फिर से अंदर डालना है
हम कोई भी
जोखिम नहीं उठाएंगे
दशहरा
पुराने तरीके से ही मनायेंगे
नेताजी के गर्जन से
चमचों का उत्साह फुलस्टॉप हो गया
अन्य बस्तियों में भी
कुछ अलग करने का
आइडिया फ्लॉप हो गया
कहीं से भी
किसी रावण के
मरने का समाचार नहीं आया
क्योंकि कोई भी
अपने अंदर के
राम को नहीं जगा पाया
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505,आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता ---देशद्रोही नेता
एक देशद्रोही नेता को
जिंदा शेर के सामने डालने
की सज़ा सुनाई गई
नेता जी घबरा गए,
उन्हें चक्कर आ गए।
जोर जोर से चिल्लाए
बोले
माई बाप मुझे क्षमा करें
अब कोई गलत काम नहीं करूंगा,
जैसा आप चाहेंगे
वैसा ही काम करूंगा।
देश के प्रति बफादार रहूंगा।
परन्तु
उसकी एक न सुनी गई
नेता जी को शेर के पिंजरे
में डाल दिया गया,
शेर दहाड़ा,
नेता जी के पास दौड़ा।
उसी क्षण वापस लौट गया,
एक ओर बैठ गया।
नेता जी की जान में जान आई,
बोले
मुझे क्यों नहीं खाया भाई।
शेर बोला,
तेरे खून से मिलावटों ,
घोटालों तथा मासूमों की
हत्याओं की बू आ रही है।
तुझको
खाने में मुझे शर्म आ रही है।
अरे,
तेरे शरीर को तो गिद्ध भी
नहीं खायेंगे।
खायेंगे तो खुद ही मर जायेंगे।
मैं तो, फिर भी जंगल
का बादशाह हूँ,
तू ,न बादशाह है न वज़ीर
बस धरती पर बोझ है
अरे,
धिक्कार है तेरे जीवन को
तूने देश को खा लिया
मैं,
तुझे क्या खाऊंगा ।
और यदि खा भी लिया तो
कैसे पचा पाऊंगा ।।
✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद
मुरादाबाद शैली की रामलीला पर पत्रकार निमित जायसवाल का सारगर्भित आलेख
विभिन्न शैलियों में श्री रामलीला का मंचन पूरे भारतवर्ष में होता है लेकिन मुरादाबाद शैली की रामलीला का अपना एक विशिष्ट स्थान है। इस शैली के मंचन को 54 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं।
मुरादाबाद शैली की रामलीला में मंच के सामने नीचे बैठकर रामलीला के प्रत्येक संवाद की एंकरिंग होती है और मंच पर कलाकार उस एकरिंग के अनुसार संवाद का मंचन करते है।आदर्श कला संगम के निर्देशक और केजीके इंटर कालेज के सेवानिवृत्त शिक्षक वरिष्ठ रंगकर्मी डा. प्रदीप शर्मा के अनुसार मुरादाबाद शैली की रामलीला के जनक स्व. रामसिंह चित्रकार, स्व. डा. ज्ञानप्रकाश सोती और स्व. बलवीर पाठक के निर्देशन में वर्ष 1964 में मुरादाबाद के कलाकारों ने रामलीला मंचन की प्रैक्टिस प्रारंभ की थी। मुरादाबाद के कलाकारों को वर्ष 1965 में दिल्ली के परेड ग्राउंड पर मुरादाबाद शैली की रामलीला प्रस्तुत करने का अवसर मिला था लेकिन 1965 में पाकिस्तान द्वारा भारतीय सीमा पर आक्रमण कर देने के कारण मंचन का कार्यक्रम रद्द हो गया था। इसके बाद अगले वर्ष 1966 में परेड ग्राउंड पर मुरादाबाद शैली की रामलीला का प्रथम सफल मंचन हुआ । इसके बाद प्रत्येक वर्ष महानगर की विभिन्न संस्थाएं स्थानीय मंचों के अलावा दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, महाराष्ट्र के विभिन्न शहरों में मुरादाबाद शैली में श्री रामलीला का सफल मंचन कर रहे हैं।
संगीत मदन मोहन का और गीत संदेश भारती के
आदर्श कला संगम के निर्देशक डा. प्रदीप शर्मा ने बताया कि मुरादाबाद शैली की रामलीला के शुरुआती दौर से लंबे समय तक रामलीला के मंचन में संगीत मदनमोहन व्यास का और गीत संदेश भारती के होते थे। गानों की ट्यून्स स्व. पंडित मदनमोहन गोस्वामी की हुआ करती थी। स्व. भारतीजी के गीत और स्व. पंडित मदनमोहन गोस्वामी की ट्यूंस आज भी रामलीला के मंचों पर प्रयोग होती है।
रस्तोगी धर्मशाला और शिव सुंदरी स्कूल में होता था पूर्वाभ्यास
आदर्श कला संगम के निर्देशक डा. प्रदीप शर्मा ने बताया कि मुरादाबाद शैली के कलाकार वर्ष 1964-1965 में रामलीला मंचन का पूर्वाभ्यास अमरोहा गेट स्थित रस्तोगी धर्मशाला और गुलजारीमल धर्मशाला रोड स्थित शिव सुंदरी मांटेसरी स्कूल (वर्तमान में साहू रमेश कुमार कन्या इंटर कालेज) में हुआ करता था। उन्होंने बताया कि उस दौर में मंचन के लिए प्रैक्टिस कई माह पूर्व शुरू हो जाती थी लेकिन वर्तमान में कलाकारों के पास समय का अभाव होता है इसलिए मंचन हेतु रिहर्सल मंचन से 20-22 दिन पहले ही शुरू हो पाती है। जब रामलीला का मंचन शुरू हो जाता है तो रात्रि में जो संवाद या प्रसंग होने होते है उसकी प्रैक्टिस उसी दिन दोपहर में होती है।
मुरादाबाद की 24 संस्थाएं देशभर के प्रमुख शहरों में करती हैं मंचन
श्रीरामलीला महासंघ के महामंत्री और आकृति कला केंद्र निर्देशक प्रमोद रस्तोगी के अनुसार मुरादाबाद की 24 संस्थाएं दिल्ली के अलावा अनेक राज्यों के प्रमुख शहरों में मंचन करती है। कुछ संस्थाओं का मंचन लम्बे समय से एक ही स्थान पर हो रहा है। दिल्ली रामलीला मैदान और परेड ग्राउंड पर रामलीला मंचन के दौरान देश के प्रधानमंत्री बतौर मुख्य अतिथि पहंुचकर राम और लक्ष्मण का अभिनय कर रहे कलाकारों का तिलक करते है। प्रधानमंत्री के हाथों तिलक कराने का सौभाग्य कई बार स्थानीय कलाकारों को मिला है।
मुरादाबाद महानगर में पांच स्थानों पर रामलीला का मंचन होता है। मुरादाबाद में रामलीला मैदान लाइनपार, रामलीला मैदान लाजपत नगर, रामलीला मैदान दसवां घाट बंगला गांव, कांशीराम नगर रामलीला का मंचन होता हैं।
रामलीला मंचन करने वाली मुरादाबाद की संस्थाएं व उनके निर्देशक
आदर्श कला संगम - डा. प्रदीप शर्मा व राजदीप शर्मा
श्री राम मानस मंच - राजेश रस्तोगी
शिव कला लोककल्याण समिति - नरेंद्र कुमार व आलोक राठौर
कार्तिकेय - डा. पंकज दर्पण
शिव शक्ति कला मंच - संतोष बडोला
सुरभि कला मंच - संजय सोनी एडवोकेट
श्रीराम सिंह कला मंच - योगेंद्र सिंह राजू
नूतन कला संगम - प्रदीप शंकर शर्मा व पंकज सोती
शिव कला सांस्कृतिक समिति - सतीश जोजेफ
साकेत कला मंच - श्याम मेहरा
श्रीराम युवा कला मंच - ओम प्रकाश ओम
मंगलम कला मंच - विनोद कुमार
रघुवंश सांस्कृतिक संस्था - पंडित अमितोष शर्मा
कीर्ति कला मंच - राजेंद्र गोस्वामी
श्री हरी रंग कला मंच - सुमित चैहान
अंकुर कला दर्श - राजेश सक्सेना
श्री हरि कला मंच - पंडित विकलेश शर्मा
श्री साईं कला केंद्र- पुनीत कुमार
सिया राम कला मंच- प्रदीप वर्मा
मर्यादा कला मंच - कृष्ण गोपाल यादव
रघुवंश सांस्कृतिक परिवार-नरेश सक्सेना
सूर्यवंश कला मंच-रमेश कनोजिया
शिवा अंशू कला मंच- संजय बंटी
निमित जायसवाल
रामंगगा विहार प्रथम, ईडब्ल्यूएस, मुरादाबाद, उ.प्र.।
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2020
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का संस्मरणात्मक आलेख ----" सात्विक विचारों की खुशबू बिखेरते थे रामपुर के प्रखर चिंतक प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल"
वर्ष 1986 में प्रकाशित मेरी पुस्तक "रामपुर के रत्न" में जिन 14 महापुरुषों का जीवन चरित्र लिखा गया था ,उसमें एक नाम प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल जी (जन्म 16 सितंबर 1917 - मृत्यु 29 मार्च 2014) का भी था । साहित्यकारों में आप शीर्ष पर विराजमान थे तथा एक बौद्धिक व्यक्तित्व के रूप में आपकी प्रतिष्ठा थी। आपके विचारपूर्ण लेख ,कहानियाँ और कभी - कभी व्यंग्य ,हिंदी साप्ताहिक सहकारी युग में प्रकाशित होते रहते थे । इनके विशेषांकों का एक आकर्षण आपकी लेखन सामग्री भी रहता था । सहकारी युग के संपादक श्री महेंद्र प्रसाद गुप्त जी की प्रेस में आपका प्रायः उठना- बैठना रहता था तथा महेंद्र जी आपका उल्लेख बहुत आदर के साथ करते थे । मेरा घर तथा प्रोफेसर साहब का घर पास - पास था अर्थात ज्यादा दूर नहीं था। जब से मैंने होश संभाला प्रोफेसर साहब की साधुता का जिक्र अपने पिताजी श्री राम प्रकाश सर्राफ से सुनता रहता था। फिर धीरे-धीरे एक लेखक के रूप में मेरा परिचय प्रोफेसर साहब को तथा प्रोफ़ेसर साहब का परिचय मुझे गहराई से मिलने लगा।
इसी बीच मुझे आपने श्री सतीश जमाली द्वारा प्रकाशित एक कहानी संग्रह "26 नए कहानीकार" जो कि ममता प्रकाशन , इलाहाबाद द्वारा अक्टूबर 1976 में प्रकाशित हुआ था ,भेंट किया ,जिसमें भारत के प्रसिद्ध कहानीकारों के साथ-साथ आपकी कहानी "अधूरा" पृष्ठ 108 से पृष्ठ 119 तक अंकित थी, भी प्रकाशित थी । कहानी क्या थी, भावनाओं का मानों झरना ही बह उठा हो । न केवल विविध गतिविधियों तथा एक-एक घटनाक्रम का विस्तार से वर्णन करना आप की कहानी -कला की विशेषता थी ,अपितु मनोवैज्ञानिक रूप से पात्रों का अंतर्मन कहानी में खोल कर रख देना इसका हुनर भी आपको आता था । इसलिए पात्र कहीं दूर के नहीं जान पड़ते थे । उनसे पाठक की आत्मीयता स्थापित हो जाती थी । आप की कहानी पढ़कर मुझे हमेशा यही लगा कि यह पात्र तो सचमुच हमारे आस-पास ही बिखरे हुए हैं। बस हम उनके हृदय की भावनाओं के ज्वार को पकड़ नहीं पाते हैं ।
प्रोफेसर साहब ने उन्हीं दिनों अपना पहला उपन्यास (1976 में प्रकाशित )"जीवन के मोड़" भी मुझे भेंट किया था तथा यह भी एक प्रकार से उनके स्वयं के जीवन का पूर्वार्ध ही था । जिस तपस्वी भाव से उन्होंने जीवन जिया ,वैसा ही शांत और अनासक्त लेखन उनके साहित्य में प्रकट हो रहा था । वह मनुष्य को उदार और उच्च भाव भूमि पर स्थापित करने वाला साहित्य था । प्रेम की परिभाषा उन्होंने स्वयं ही शायद कहीं वर्णित की है कि प्रेम बलिदान चाहता है और प्रेम में कोई लेन-देन नहीं रहता ।
एक और उपन्यास उनके जीवन के उत्तरार्ध में प्रकाशित हुआ । इसका नाम "राहें टटोलते पाँव" था, जो 1998 में प्रकाशित हुआ ।
फिर 2006 में उनका कहानी संग्रह "एहसास के दायरे" प्रकाशित हुआ और इस प्रकार उनकी बिखरी हुई कहानियों को एक जिल्द में पढ़ने का अवसर मिला ।
उनकी लेखन क्षमताओं की निरंतरता का पता इस बात से हमें चलता है कि उन्होंने अपने जीवन के आखिरी दशक में अपनी आत्मकथा इस प्रकार से लिखी कि वह एक कहानी भी कही जा सकती है ,एक उपन्यास भी कहा जा सकता है तथा अपनी पोती के प्रति उनके वात्सल्य भाव का उपहार भी उसे हम कह सकते हैं । प्रोफेसर साहब ने इस लेखन को ''एक पारिवारिक कथा" का नाम दिया । "अनुभूतियाँ" नामक यह पुस्तक प्रोफेसर साहब ने मुझे 15 - 7 - 2009 को सस्नेह भेंट की थी । जब यह पुस्तक प्रकाशित हुई तब उन्होंने कहा कि मेरा पोता भी कह रहा है कि तुमने पोती के बारे में तो लिख दिया ,लेकिन पोते के बारे में नहीं लिखा । तब मैंने उससे कहा कि मैं तुम्हारे बारे में भी एक किताब लिखूँगा। बात आई - गई हो गई थी लेकिन प्रोफेसर साहब ने सचमुच कुछ ही समय बाद अपनी "आत्मकथा" _अर्थात_ "एक पारिवारिक कथा" को विस्तार दिया और पोते को रचना के केंद्र में रखकर एक पुस्तक लिख डाली । यह उनकी लिखने की निरंतरता का प्रमाण था।
प्रोफेसर साहब खुले विचारों वाले व्यक्ति थे। रूढ़िवादिता से मुक्त थे । आपके जीवन में किसी भी प्रकार की कट्टरता अथवा विचारों की संकीर्णता का लेश - मात्र भी अंश नहीं था। आप मनुष्यता के उपासक थे । सर्वधर्म समभाव आपकी जीवनशैली थी । वसुधैव कुटुंबकम् आपका आदर्श था। भारतीय संस्कृति में जो ऊँचे दर्जे की चरित्र तथा नैतिकता की बातें कही गई हैं , वह सब आपने अपने जीवन में इस प्रकार से आत्मसात कर ली थीं कि वह आपके व्यवहार में ऐसी घुलमिल गई थी कि कभी भी अलग नहीं हो सकीं। आप भारत और भारतीयता के सच्चे प्रतिनिधि तथा प्रतीक कहे जा सकते हैं ।
रामपुर के सार्वजनिक जीवन में सात्विक विचारों की खुशबू बिखेरने वाले आप एक महापुरुष थे। प्रोफेसर साहब न केवल एक अच्छे लेखक थे बल्कि एक अच्छे वक्ता भी थे । आप चिंतनशील व्यक्तित्व होने के कारण जो भाषण देते थे ,उसमें वैचारिकता का पुट प्रभावशाली रूप से उपस्थित रहता था । इसलिए जो लोग विचारों को सुनने के लिए श्रोता- समूह में उपस्थित होते थे ,उन्हें न केवल आनंद आता था बल्कि वह लाभान्वित भी होते थे । यद्यपि कुछ लोग जो केवल मनोरंजन की दृष्टि से ही कार्यक्रमों में उपस्थित होते थे, उन्हें जरूर कुछ शुष्कता महसूस होती रही होगी। मेरा यह सौभाग्य रहा कि मुझे अनेक बार प्रोफेसर साहब को अपने कार्यक्रमों में मंच पर आसीन करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ तथा उनकी अध्यक्षता में जो कार्यक्रम हुए ,वह एक शानदार और यादगार कार्यक्रम के रूप में जाने जाएँगे ।
अक्टूबर 2008 में प्रोफेसर साहब का नाम हमने "रामप्रकाश सर्राफ लोक शिक्षा पुरस्कार" के लिए चुना और उनको पुरस्कृत किया । प्रोफेसर साहब ने कृपा करके वह पुरस्कार ग्रहण किया और हमें और भी आभारी बना दिया ।इच्छा तो यह थी कि सौ वर्ष तक हम प्रोफेसर साहब को समारोहों की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित करते रहे और वह आते रहें तथा हम सब उनके कृपा- प्रसाद से लाभान्वित होते रहें। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। कुछ वर्ष पूर्व ही आकस्मिक रूप से वह इस संसार से सदा के लिए चले गए ।
प्रोफेसर साहब के निवास पर अनौपचारिक रूप से विचार गोष्ठियाँ चलती रहती थीं। इनमें डॉ ऋषि कुमार चतुर्वेदी जी , श्री महेश राही जी तथा श्री भोलानाथ गुप्त जी का नाम विशेष रूप से लिया जा सकता है । एक बार प्रोफ़ेसर साहब ने मुझसे भी कहा था कि मैं आ जाया करूँ। यद्यपि मेरा जाना कभी नहीं हुआ । प्रोफेसर साहब नहीं रहे लेकिन उनकी मधुर स्मृतियाँ तथा प्रेरणाएँ सदैव जीवित रहेंगी। प्रोफेसर ईश्वर शरण सिंहल जी की पावन स्मृति को शत-शत नमन ।
अंत में प्रोफेसर साहब के पत्र - साहित्य में से एक पत्र उद्धृत करना अनुचित न होगा । यह 9 अक्टूबर 1997 को प्रोफ़ेसर साहब का लिखित पत्र है जो उन्होंने मेरे प्रकाशित उपन्यास "जीवन यात्रा" के संबंध में मुझे प्रोत्साहित करने के लिए लिखा था । पत्र इस प्रकार है :-
*दिनांक 9 - 10 - 97*
प्रिय रवि प्रकाश जी
नमस्कार। आपका उपन्यास जीवन यात्रा पढ़ा। काफी बँधा रहा । वैसे मध्य में अधिक रोचक है । समाज तो महज एक अवधारणा है अर्थात "ओन्ली ए कंसेप्ट"। वास्तव में यह व्यक्ति हैं जो सामाजिक जीवन का रिश्तों से ताना-बाना बुनते हैं । यदि व्यक्ति बुरे हैं तो समाज अच्छा हो ही नहीं सकता । किंतु व्यक्ति असंख्य हैं जो बिखरे पड़े हैं । फिर परेशानी यह है कि जिस विशाल जनसमूह से समाज बनता है उसमें अधिकांश वे हैं जिन्हें हम दैनिक बोलचाल में "आम आदमी" कहते हैं अर्थात जिनमें बुद्धि साधारण और अंधानुकरण अधिक है । जो चल पड़ा वह चल पड़ा । फिर इस पुरुष प्रधान समाज में धर्म भी पक्षपात पूर्ण रहा है । संकीर्ण चिंतन और राग - द्वेष विवेक को इतना अपंग कर देते हैं कि इंसान जिस डाल पर बैठा है उसी को काटने लगता है । इस उपन्यास का राहुल ऐसे ही समाज से टक्कर लेने में जुट जाता है किंतु हर जगह असफलता मिलती है । *एक चना भाड़ को नहीं फोड़ सकता । तो सुधार के लिए जन - आंदोलन का रूप देना होता है ।* यही महापुरुषों ने किया है । यही महात्मा गांधी ने भी किया था।
मैं चाहता हूँ आपका यह उपन्यास जन-जन के हाथों में पहुँचे और वे इस को पढ़ें । यह भी एक प्रकार का जन - आंदोलन ही होगा । मैं जानता हूँ अधिकांश साहित्य विशेष रूप से कहानी और उपन्यास विधाएं मनोरंजन का माध्यम अधिक मानी जाती रही हैं किंतु प्रस्तुत उपन्यास में कहीं व्यक्त आपके इस मत से सहमत हूँ कि कुछ न कुछ विचार - तरंगे अवचेतन में जाकर जरूर बैठती हैं जो व्यक्ति को जाने-अनजाने प्रभावित करती रहती हैं ।
साहित्य का एक महत्वपूर्ण पक्ष शिल्प भी है । कथ्य तो एक संवेदनशील मन में अपने आप रूप ले लेता है किंतु शिल्प श्रम - साध्य है । सतत अभ्यास और साहित्यिक शिल्पियों की उच्च कृतियों के अध्ययन - मनन से इसमें निखार आ सकता है। इस उपन्यास के लिए बधाई।
ईश्वर शरण सिंहल
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर
(उत्तर प्रदेश)
_मोबाइल 99976 15451_
मुरादाबाद के दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय व मैथोडिस्ट कन्या इंटर कॉलेज की पूर्व छात्रा मॉरीशस की साहित्यकार कल्पना लाल जी का खण्डकाव्य ----इंद्रधनुषों का देश मोरिशस
हिन्द महासागर के मध्य , एक तारा चमक रहा।
बहुमूल्य रत्न सिंधु का , प्रकाश पुंज सा दमक रहा l।
मकर अयनवृत रेखा पर , बसा मोरिशस एक टापू है l
लम्बाई जिसकी चालीस मील , और चौड़ाई तीस है ।।
सात सौ बीस वर्गमील में फैला , मोती के आकार का ।
अन्य द्वीप भी बसे चहुँ ओर , पर सितारा यह संसार का ।।
चारों ओर इस टापू के , हैं फैली गगनचुम्बी पर्वतमालाएं ।
शीश उठाये वे गर्व से , सौंदर्य में चार चांद लगायें।।
समुद्री लुटेरों ने आकर यहाँ, लूटा धन छुपाया था।
निर्जन घने वनों का भी , उन्होंने पूरा लाभ उठाया था।।
सन पंद्रह सौ सात में , आये थे यहाँ नाविक पुर्तगाली।
देखा जब पक्षी डोडो सबने , छाई थी मुख पर हरियाली।।
राजहंस फिर समझ उसे , वे राजहंसों के इस देश मे ।
पूरे पंद्रह वर्षों तक वे , बसे रहे यहाँ नाविक वेश में ।।
आगमन हुआ तब डचों का , सन पंद्रह सौ अठावन में।
तूफानों से बचते-बचते वे , आ पहुँचे थे इस आंगन में।।
मोरिस वान नासो नामक , राजकुमार के सम्मान में।
विख्यात मोरिशस भी हुआ , इस सारे जहांन में।।
फैला प्रकोप महामारी का जब , और नष्ट-भष्ट हुआ सब ।
हो निरुत्साहित उन्होंने , द्वीप से नाता तोड़ा
तब ।।
लाभ उठाया अवसर का , और फ्रेंचों ने इसको जा पकड़ा ।
सत्रह सौ पंद्रह ईसवीं में , अपनी ताकत से जा जकड़ा ।।
शासक बनकर द्वीप का , बदल डाली इसकी काया ।
इल दे फ्रांस नाम रखा , और फिर अपना राज्य बसाया ।।
विस्तार हुआ उस समय कृषि का , फ्रेंचों के शासन काल में।
फ्रेंच उपनिवेश के रूप मे , सम्पन्न हुआ हर हाल में।।
दासों के सहयोग से भी , तब पलटी काया देश की ।
राह नवीन उन्होंने जा खोजी , सेवा सबने विशेष की ।।
सोने पर सुहागा समझो, नया गवर्नर एक आया।
माहे दे लबुरदोने ने तब ,रहने योग्य द्वीप सजाया।
राजधानी पोर्ट लुईस को , उसने सुंदर और बनाया।
नवीन बंदरगाह ने तो , उसमे चार चाँद लगाया।।
यह काल लेकर आया , शकर का फिर उत्पादन ऐसा।
अन्य देशों में ढूँढे से भी , मिलता न इसके जैसा ।।
पाम्प्लेमूस उद्यान का, पीएट पोवर ने विस्तार किया ।
भाँति-भाँति के वृक्षों से , उसका फिर सिंगार किया ।।
व्यापारिक दृष्टि से भी , द्वीप यह जाना माना था।
नाविकों की खातिर तो , यह अनमोल खजाना था ।।
फ्रांसीसी जन क्रान्ति ने तब , खेला अनोखा खेल।
हलचल खूब मची यहां भी , कैदियों ने तोड़ी जेल।
आपस में लड़ने लगे तब , अंग्रेज़ी और फ्रेंच।
सोचा छोटी सी यह धरती , बने सामरिक मंच।।
लार्ड मिंटो था दूरदर्शी , कर दिया शुरू अभियान।
बुर्बो और रोड्रिग से , भागे फ्रेंच बचा कर जान ।।
पूरे सैन्य बल के साथ , बोल दिया गोरों ने हल्ला ।
मार्ग न सूझा फ्रेंचों को तो , जा थामा संधि का पल्ला ।।
असफल प्रयत्न सारे हुए , फिर भी कोशिशें की हज़ार ।
जान बचा कर इस द्वीप से , भागे वे अबकी बार ।।
देकर बूर्बो फ्रेंचों को , रोड्रिग गोरों ने हथियाया ।
मोरिशस पर कब्ज़ा कर , अपना उपनिवेश बनाया ।।
नामकरण फिर से किया , इस छोटे से द्वीप का ।
मोरिशस तब पड़ गया , फ्रेंचों के इलदे फ्रांस का ।।
भारतीय कलकत्ता से लाये , कलकतिया उनका नाम पड़ा ।
आज तलक जो न छूटा , ऐसा हृदयों में जा गड़ा ।।
सन अठारह सौ चौंतीस में , शर्तबंद की प्रथा चलाई।
अरकाटिये प्रलोभन देकर , करने लगे रोज़ कमाई ।।
भोले भाले और गरीब , असंख्य सपने लेकर आये ।
पथरीली सूखी भूमि ने , किस्मत उनकी फोड़ी हाय ।।
जैसे- तैसे राम-राम कर , इस धरती पर रखा पाँव।
ठोकर ही ठोकर मिली , औऱ मिले घाव पर घाव ।।
साहस तब भी न छोड़ा , और लिया धैर्य से काम।
अब कर्म उन्हें करना होगा , आगे भली करेंगे राम ।।
गीता औऱ रामायण वे , थे लाये अपने साथ ।
आगे सब बढ़ने लगे , थाम एक दूजे का हाथ ।।
अंग्रेज़ ज़मीनों के थे मालिक , मिल कारखाने सब उनका ।
कमाई उनके हाथ मे थी , सब पर चलता था बस उनका ।।
निर्दयी क्रूर गोरे सब मिलकर ,चालाकी से काम निकालें ।
रखा हमको शिक्षा से वंचित , अनपढ़ फिर कैसे होश संभाले ।।
परिश्रम होता था मजदूरों का , तिजीरियाँ मिल मालिक भरते ।
उनकी अंतिम सांस तक , गिरमिटियों के सौ आँसू बहते ।।
गोरों की ग।ली मिलती उनको , कोड़े खाते वे हर बात पर ।
भूखा पेट आंतें अकुलातीं, झिड़कियां खाते बेबात पर ।।
सन उन्नीस सौ एक मे , तब आये यहां महात्मा गांधी ।
प्रवासियों के हृदय में , अब एक नई आशा जागी ।।
स्वागत उनका तब किया , व्यथित भारतीय भाइयों ने ।
उचित शिक्षा बच्चों को दो , खोली आंखे सच्चाइयों ने ।।
मणिलाल डॉक्टर भी आये , मोरिशस की इस भूमि पर ।
समाज सेवा का व्रत लेकर , उतरे वे कर्म भूमि पर ।।
अंग्रेज़ी और हिंदी में , पत्र निकाला "हिन्दुस्तानी' ।
नये सिरे से फिर छेड़ी , आज़ादी की जंग पुरानी ।।
महाराज सिंह ने भी आकर , अलख जगाई देश मे ।
शर्तबंदी की प्रथा तब , करवाई बंद ऋशिवेश में ।।
आर्य समाजी जाग उठे , दयानंद की वाणी सुन ।
सम्मान नारियों को दिया , उठ माता कल्याणी सुन ।।
खेली स्वतंत्रता की होली , तोड़ी ज़ंज़ीर गुलामी की ।
अमन चैन से था सींचा , आवाज़ न आई गोली की ।।
बारह मार्च सन अड़सठ , दिन आखिर वह भी आया ।
आसमान पर पहली बार , अपना चौरंगा लहराया ।।
आओ सुनाऊँ मैं गाथा , फिर इस देश मे क्या हुआ ।
जागरण का बिगुल बजा , नवीन सूर्य उदय हुआ ।।
अंधकार का डूबा सूरज , नवप्रभात लेकर आया ।
हर्षोल्हास का वातावरण , आज है सर्वत्र छाया ।।
शिक्षा की कुंजी से तब , सारे ताले टूट चले ।
बाँध प्रेम की डोरी से , धरती अम्बर तक हिले ।।
बैठकायें उस समय की , थीं विद्या का अनमोल स्थान ।
सर- सर-सर संध्या काली , सामूहिक स्वर में गूंजे गान ।।
वेद उपनिषद रामायण , शिक्षा इनकी भी मिलती थी ।
भजन कीर्तन और प्रार्थनाएं , नित सांझ सवेरे होती थीं ।।
गुजर चुका था यह देश , अब हर पीड़ा हर त्रास से ।
हुआ उजाला घर घर मे , चमके चेहरे नई आस से ।।
मेहनत सबकी रंग लाई फिर , देश मे धीरे-धीरे ।
उन्नति के मार्ग पर अब , चल पड़े वे सांझ-सवेरे ।।
हिंदी साहित्य व संस्कृति , इस देश में फूली फली ।
सुर संगीत की लय पर तो , नवीन हिन्दू संतति पली ।।
जन कल्याण की दिशा में , अनुपम ऐसे कार्य हुए ।
शिक्षा स्वास्थ्य सेवाओं ने , लोगों को उपहार दिए ।।
शिक्षा रत्न अनमोल है , बच्चों को जो मिल गया ।
ज्ञान रूपी इस नैया से , मोरिशस मानो तर गया ।।
आज्ञानता एक दलदल है , जिसका कोई अंत नहीं ।
शिक्षा से ऊँचा जानो , उन्नति का कोई मंत्र नहीं ।।
संतानें और प्रगति करें , इस आशा के साथ -साथ ।
पाठशालाएं खुलने लगीं , बैठकाओं ने बांटा हाथ ।।
धार्मिक और सांस्कृतिक , शिक्षायें भी बंटने लगीं ।
पर्दे आंखों से जब हटे , अंधियारी तब छंटने लगी ।।
राम कृष्ण बुद्ध व ईसा , ये आशाओं के स्त्रोत्र थे ।
गांधी बाबा की ही सीख से , मानव ओत - प्रोत थे ।।
आर्य समाज ने भी फूंक दिया , शंख नाद चहुँ ओर ।
कारी अंधियारी के बाद उठी , मीठी- मीठी नव भोर ।।
हम हिन्दू न मुस्लिम हैं , माटी से अपना नाता ।
दीवार उठाना धर्म की , है कभी नहीं हमको भाता ।।
शिक्षा दीक्षा फली यहां , भाई चारे का हुआ विस्तार ।
कर्तव्यों का पालन हो , रामराज्य का है यह सार ।।
समुद्र तट इस देश के , सच जानो हैं बड़े रमणीक ।
विदेशी पर्यटक यूरोप के , करें क्रीड़ा होकर निर्भीक ।।
विशाल पक्षी था डोडो एक ऐसा , जैसा आज कहीं दिखता नहीं ।
क्षुधा तृप्ति के काम आया , बोला डच शिकारी हमसे यहीं ।।
पवित्र मीठे जल का ताल , गंगा तालाब है इसका नाम ।
शिव पूजा होती है इससे , काँवरथी जाते शिव के धाम ।।
जड़ें ज्यों वट वृक्ष की , स्वम् फैल जाती हैं चहुँ ओर ।
स्वतंत्रता की लालिमा भी , लाई मोरिशस में नव भोर ।।
आज कर रही है प्रगति , इंद्रधनुषों की यह धरती ।
अपने अनुपम सौंदर्य से , है जग को आकर्षित करती ।।
नई शताब्दी देखो है आई , लेकर कम्प्यूटर का नवजाल ।
बदल दिए जिसने आकर , जीवन के सारे सुर ताल ।।
आत्मविश्वास और सम्मान का , बीज उगा जन जन में ।
प्रेम और विश्वास भी , महक उठा अब तन- मन मे ।।
अपना राष्ट्र ध्वज हमें अब , प्राणों से भी है प्यारा ।
सम्मान होवे मातृभूमि का , है सबका एक ही नारा ।।
भूलेंगे न हम उनको , जिन्होंने हैं प्राण गँवाये ।
देश भक्तों की पंक्ति में , अपने- अपने नाम लिखाये ।।
नील गगन पर चमक रहा , हिन्द महासागर का तारा।
पूरब-पश्चिम और उत्तर दक्षिण , फैला रहा है उजियारा ।
✍️ कल्पना लाल, मोरिशस
गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----लाइव काव्य पाठ
कविंद्र जी बहुत खुश थे।कोराना काल में ईश्वर उन पर पूरी तरह से मेहरबान चल रहा था ।अलग अलग फेसबुक समूहों पर लगभग प्रतिदिन उनका लाइव काव्यपाठ आ रहा था ।हर जगह से सम्मान पत्र भी मिल रहे थे, जिनको बड़े सलीके से उन्होंने घर में सजा रखा था लेकिन व्यस्तता बढ़ जाने के कारण घर के काम प्रभावित हो रहे थे,जिसके चलते पत्नी का स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था।
आज सुबह जैसे ही उनके मोबाइल की घंटी बजी,पत्नी अंदर से चिल्लाई "सुनो जी अब किसी को काव्य पाठ के लिए हां मत कह देना।घर की सारी दीवारें भर चुकी हैं।अब जो भी सम्मान पत्र मिलेगा, टॉयलेट में ही लगाना पड़ेगा।वैसे भी क्या हो रहा है,सब आपस में ही एक दूसरे की सुनते रहते हो"
✍️डाॅ पुनीत कुमार
T -2/505,आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ------स्वतंत्रता
सड़क के दोनों ओर खड़े गरीब लोगों के ठेलों को लठिया मार -मार कर हटाया जा रहा था,तो किसी को बंद किया जा रहा था , किसी का चालान काटा जा रहा था।कारण ज्ञात हुआ तो पता चला कि अगले दिन 15 अगस्त अर्थात स्वतंत्रता दिवस है और मंत्री विजयानन्द जी स्वतन्त्रता दिवस के शुभ अवसर पर जनता को सम्बोधित करने हेतु इस रास्ते से होकर गुजरेंगे ।
✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद, मो० 9411809222
मुरादाबाद कर साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ---जूता चोर
......... अपेक्स से कई फोन काल्स आ चुकीं थीं "भाईसाहब आप कहीं जूते बदल कर तो नहीं पहन गये ? यहां पर एक डाक्टर के जूतों की जगह दूसरे किसी के जूते रखें हैं,,।
राहुल ने अपने जूतों को एक बार फिर गौर से देखा जूते बदले बदले से लगे वह अपने मित्र अश्रि्वनी को देखने अस्पताल गया था । एक घरेलू झगड़े में उसको गोली लगी थी । पुलिस केस होने के कारण उन्हें मिलने नहीं दिया जा रहा था हालत बहुत गंभीर थी ।
अश्विनी जी राहुल के प्रिय मित्रों में से एक हैं
पिछले दिनों उनके भाई की भी सौतेले भाइयों ने इसी प्रकार हत्या कर दी थी..... इसी से राहुल को उनसे मिलने की बहुत बेचैनी हो रही थी.... अचानक पुनः फोन आने से राहुल की तंद्रा भंग हुई......
दिमाग में एक आइडिया आया कि वह डॉक्टर जिसके जूते हैं शायद अश्रि्वनी से मिलने में मदद कर सके ।.....
परन्तु ये क्या डाक्टर ने तो जूते बदले जाने पर अस्पताल में हंगामा ही काट दिया ..... जूते बदले जाने को तो वह चोरी करना ही समझ बैठा और उसी धुन में लगा सुनाने उल्टी-सीधी अश्वनी के जितने तिमारदार थे उनसे भी उसने दुर्व्यवहार किया कहा जूतों के पैसे आपके बिल से काट लिये जायेंगे पुलिस में रिपोर्ट करूंगा अलग से.........वरना जिसने जूते बदले हैं जूते दिलवाओ .... प्रवीण ओझा जी बार बार कॉल करके भी असली बात संकोच के कारण बता नहीं पा रहे थे खैर......... राहुल शाम को गया और जूते बदलकर अपने जूते पहन आया....दर असल एक जैसे जूते होने के कारण और दुखद घटना के चलते हड़बड़ी में यह घटना अनायास ही घट गयी थी..... डॉक्टर ने फोन पर राहुल को भी बहुत लताड़ लगाई .... राहुल हतप्रभ सा अवाक सोच ही नहीं पाया कि ऐसा कैसे कर गया ...... अश्वनी से मिलना तो दूर डॉक्टर से पीछा छुड़ाना ही भारी हो गया परंतु राहुल के साथ वाले वरिष्ठ प्रभावशाली अधिकारियों ने इस बात को बड़ी गंभीरता से लिया और अस्पताल के स्वामी को ही आड़े हाथों ले लिया अस्पताल का स्वामी एक योग्य व्यक्ति था वह धन से ही धनी नहीं था दिल से भी धनी था उसने डॉक्टर के व्यवहार के लिए माफी मांगी डॉक्टर को सबक सिखाने की बात भी की जब डाक्टर पर मालिक की लताड़ पड़ी तब डॉक्टर की समझ में आ गया ...उसे अहसास हो गया की उसने छोटी सी बात को व्यर्थ में ही इतना तूल दे दिया है .......
.......अचानक तभी डॉ अरुण का पैर फिसला और वह सीढ़ियों से गिर गया गंभीर चोट आई हड्डी टूटने के कारण बहुत सारा ब्लड बह गया अनायास ही स्थिति गंभीर हो गई डॉक्टर को B+ ब्लड की जरूरत पड़ी ...... माइक पर आवाज गूंजने लगी किसी सज्जन का ब्लड बी पॉजिटिव है तो कृपया वह इमरजेंसी वार्ड में तुरंत पहुंचें..........
.... ऑपरेशन हुआ डॉ अरुण को ब्लड भी चढ़ाया गया जब डॉक्टर अरुण को होश आया तो उसने तुरंत जानना चाहा कि उसे ब्लड किसने दिया ........ अगले कुछ क्षणों में वह पश्चाताप में डूब गया उसकी आंखों में आंसू थे......... जानकर की इमरजेंसी में उसे ब्लड किसी और ने नहीं बल्कि राहुल ने दिया था .... डॉक्टर अरुण ने रात को ही फोन किया परंतु फोन नहीं उठा...... सुबह बार-बार फोन करने पर राहुल ने फोन उठाया...
फोन पर डॉक्टर अरुण था जो राहुल से बार-बार अपने दुर्व्यवहार के लिए माफी मांग रहा था ........
................ हमें अपने जीवन में सकारात्मक सोच रखनी चाहिए परिस्थितियां कितनी भी गंभीर हों धैर्य नहीं खोना चाहिए .....!!
अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद 244001, मोबाइल फोन नम्बर 82 188 51 541
मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी -----दुश्वारियां
दीप्ति ने उदास मन से खाना बनाया आलोक और सास ससुर क़ो खाना लगा दिया .....ईशा अपने कमरे में पढ़ रही थी इस बार हाई स्कूल है उसका , कई बार खाने क़ो बुलाने के बाद भी वह खाने के लिए नीचे नहीं आई .दीप्ती की बात तो न मानने की जैसे उसने कसम ही खा ली है .सुनती ही नही बड़ी चिढ्चिढी सी हो गई है .
"ईशा खाना खा लो ....l"इस बार आलोक ने आवाज दी मगर कोई उत्तर नहीं आया .
"तू क्यों चिल्ला रहा है ....आ जाएगी ?"ईशा के दादा जी ने धीरे से कहा और खुद ही ऊपर बुलाने चले गए .
थोड़ी देर बाढ़ ईशा नीचे आई और बिना अपने मम्मी पापा से बोले खाना खाने बैठ गई l
"रायता लोगी बेटा ?"दीप्ती ने प्यार से पूछा .
"मैं जो खाऊंगी ले लुंगी ....आप तो रहने ही दीजिए l"ईशा ने रूखेपन से कहा तो दीप्ति सहम गई , आलोक सब देख रहे थे .
"ईशा यह कौन सा तरीका है मम्मी से बात करने का ?"सुनकर ईशा आलोक की तरफ भी घूरने लगी यह देखकर दादी बोलीं ...."हाँ हाँ जो खाना होगा खा लेगी तुम दोनों क्यों परेशान हो रहे हो ?"
"लेकिन मम्मी ....l"
"जाओ तुम आराम करो l"दादू ने आलोक की बात क़ो बीच में ही काटते हुए कहा .
दीप्ति की आँखों से नींद कोसों दूर थी , अभी पिछले साल तक जो बेटी उसके बिना पलक तक नहीं झपकाती थी अब बात बात पर काटने क़ो दौड़ती है .
"क्या हुआ ?"आलोक ने उसके पास बैठते हुए कहा .
"कुछ नहीं ....मुझे लगता है हम लोगों ने ठीक नहीं किया शादी करके l"दीप्ति ने बेचैनी से कहा .
"देखो दीप्ति हमने किन हालातों में शादी की है यह तुम भी अच्छी तरह से जानती हो ....ईशा के अच्छे भविष्य और उसकी सुरक्षा के लिए न ....तुम चिंता मत करो धीरे धीरे वह सब समझ जाएगी ....मुझ पर विश्वास रखो l"सुनकर दीप्ति की आँखें भर आई .
अचानक दरवाजा खटखटाने पर जब दीप्ति ने खोला तो सामने ईशा खड़ी थी ....देखकर दीप्ति उससे लिपट गई .
"मुझे आपके पास सोना है l"उसने मासूमियत से कहा सुनकर आलोक क़ो हँसी आ गई और दीप्ति भी मुस्करा दी .
"हाँ बेटा क्यों नहीं ....तुम जहाँ सोना चाहो सो सकती हो ...मुझ पर और इन पर पूरा हक है तुम्हारा l"दीप्ति ने प्यार से ईशा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा .
"हाँ ....और तुम जैसे कहोगी वैसे ही होगा
प्रॉमिस l"आलोक ने भी प्यार से कहा .
"सच ...?"
"हाँ l"
"मुझे डर लगता है कहीं आप भी मुझसे दूर न हो जाओ जैसे भगवान ने पापा क़ो मुझसे दूर कर दिया l"ईशा ने सुबकते हुए कहा .
"नहीं बेटा .....हमारी और इस घर की तुम दुनियाँ हो ...सच्ची l"आलोक ने फिर प्यार से कहा .
ईशा क़ो कमरे में अंदर करके आलोक जाने लगे तो ईशा ने उनका हाथ पकड़कर रोक लिया .
"आप मेरी मम्मी क़ो कभी परेशान तो नहीं करोगे ?"
"ईशा ......यह क्या ?"
"बोलने दो इसको ....l"आलोक ने दीप्ति की बात क़ो बीच में ही काटते हुए कहा .
ईशा बहुत देर तक बात करती रही और जब वह संतुष्ट हो गई तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई .
"अब खुश ?"
"जी l"
"चलो जाओ सो जाओ दोनों माँ बेटी ....मुझे सुबह जाना भी है ....तैयारी कर लूँ l"आलोक ने मुस्कराते हुए कहा .
"हम तीनों करते हैं न आपकी तैयारी l"ईशा ने खुशी से कहा और तीनों जोर से हँस पड़े .
दरसल आलोक ईशा के चाचु थे जोकि उसके पापा से कई वर्ष छोटे भी थे और आर्मी में कर्नल थे .ईशा के पापा का देहांत तीन साल पहले एक कार एक्सीडेंट में हो गया था .पोती और बहु की सुरक्षा के लिए उसके दादी दादू ने ही एक साल पहले दोनों क़ो बड़ी मुश्किल से विवाह के लिए राजी किया था ....दोनों का बेहद सादे समारोह में विवाह कर दिया गया जिससे मासूम ईशा के मन क़ो बड़ा धक्का लगा उसको लगा कि उसकी माँ भी उससे दूर हो जाएगी .
"आज बहुत दिनों बाद घर में यह तीनों हँसे है l"दादी ने आँसू पौंछते हुए कहा .
"चिंता न करो दया सब ठीक हो जाएगा l"दादू ने आराम की गहरी साँस लेते हुए कहा .
✍️राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा ---बेटी
"अरे बाबू जी !क्यों परेशान हो रहे हैं,आप? सारी जायदाद दो हिस्सों में बाँटकर आप दोनों बहनों को दे दो।मुझे कुछ नहीं चाहिए।आप साथ हैं तो सब कुछ है मेरे पास।"
"हम माँ बाप हैं बेटा।तेरे साथ अन्याय कैसे होने देंगे?"अम्मा बोली।
"चाहिए तो मुझे भी कुछ नहीं है, भाई।पर दुष्ट को सबक तो सिखाना ही होगा।हमारे पिता की हम तीन संतानें हैं,तो जायदाद का बँटवारा भी तीन हिस्सों में होगा।वैसे भी मुझे पता है अम्मा बाबू के इलाज में तूने अपनी सारी जमा पूँजी भी खर्च कर दी है।"बड़ी बहन समझाते हुए बोली
"हमें जीवन देने वाले माता-पिता के लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकता,दीदी।"
"काश !उस मॉडर्न बनी फिरती नासमझ ममता के दिमाग में भी कुछ बात आती तो माँ बाबू जी अपनी जमीन होते हुए भी आज इतने असहाय नहीं होते।जमीन को बेचकर ही सही अपने इलाज के लिए कम से कम कुछ रकम तो जुटा पाते।पर कहाँ....? यहाँ तो उसने बँटवारे को लेकर कोर्ट में मामला डाल दिया है।"दीदी ने दुखी स्वर में बोला।
"ममता से ऐसी उम्मीद तो कतई नहीं थी।आखिर बेटी है वह हमारी।हमने कभी बेटा,बेटी में फर्क नहीं किया।पर उसे हमेशा कम लगा और अब देखो सही कानून का गलत फायदा उठाकर वह अपने ही बीमार माँ बाप और उस भाई को कोर्ट कचहरी के चक्कर लगवा रही है जिसने उसकी खुशहाल गृहस्थी बसाने में कोई कसर न छोड़ी। भगवान ऐसी औलाद किसी को न दें।"अम्मा हताशा से बिफर पड़ी।
लेकिन बाबू जी चुपचाप सिर झुकाए जमीन की ओर देखते रहे।शायद उन्हें अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि उनकी सबसे लाडली छोटी बेटी ममता ने अपने वकील पति की सलाह से उन पर ही जमीन के बँटवारे का मुकदमा डाल दिया है।
✍️हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद
बुधवार, 21 अक्टूबर 2020
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा --------गहरे निशान
" माँ, मैं ठीक हूँ, सब बहुत प्यार करते हैं मुझे।आप चिंता न करें----- ।" रागिनी ने यह कहकर फोन रख दिया।परन्तु माँ को कुछ ठीक नहीं लग रहा था।माँ जो ठहरी ------रागिनी की आवाज में छिपे दर्द को भांप लिया था ।
आज रागिनी शादी के बाद से पहली बार भाई दूज पर मायके आई। अचानक माँ की नज़र रागिनी के बाजू पर पड़े गहरे नीले निशान पर गई जिसे रागिनी छिपाने की कोशिश कर रही थी---। यह क्या हुआ -- -माँ ने घबराकर पूछा ? " कुछ नहीं माँ बस बैड से गिर गई थी "। "ऐसे कैसे गिर गई-------माँ ने फिर पूछा "।जैसे वर्षों से तुम गिरती रहीं हो माँ बस वैसे ही-------मैं भी --------।।
✍️प्रीति चौधरी, अमरोहा
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ---बदलता रिश्ता
नन्दिता ने अपनी दोनों बेटियों का पालन पोषण अच्छी तरह किया।अनेक बार पति की डाँट खाकर भी उनकी इच्छाओं को पूरा किया।बडी बेटी दीपशिखा को इंजीनियरिंग की पढाई पूरी करवायी हर बात मे उसका मान रखा।छोटी बेटी विदिशा पढाई मे औसत थी मगर फिर भी बी एड कर एक स्थानीय स्कूल मे शिक्षिका का कार्य करने लगी।मगर दोनो के वेतन मे बहुत अतंर था। दीपशिखा का विवाह हुआ।सब बहुत खुश थे।मगर ये खुशियाँ ज्यादा देर न रही।शादी की पहली वर्षगांठ के कुछ दिनों बाद गर्भवती दीपशिखा को उसका पति मायके छोड गया।बच्ची एक वर्ष की होगयी।मगर वह न लौटा आया तो तलाक का नोटिस।नन्दिताका रो रो कर बुरा हाल हो गया और उसके पति को हार्टअटैक आ गया।
जैसे तैसे मुकदमा निपटा।
आज कोरोना की मंदी के कारण जब घर मे आमदनी का जरिया न रह तो नन्दिता ने भारी मन से कहा ,"आजतक हमने कुछ नहीं कहा।मगर अब तुम्हारे पापा की तबीयत भी खराब हैऔर आमदनी बंद है।अब तुम दोनों कुछ सहयोग करो"।विदिशा ने कहा,"ठीक है मां आप जैसा कहे।"मगर दीपशिखा बोली,"मां मै कैसे करूँ, मुझे तो अपनी बेटी केलिए भी सोचना है।उसका कल मुझे ही संवारना है।" अपनी बेटी के मुँह से ऐसे शब्द सुनकर नन्दिता स्तब्ध रह गयी।
✍️डा.श्वेता पूठिया, मुरादाबाद
मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघुकथा ----बच्चे में है भगवान
मैं बड़ी दुविधा में था कि अपने घर के सामने वाले पार्क में इस नन्हे फलदार वृक्ष के नाज़ुक पौधे को किसके कर कमलों से लगवाया जाए। कभी मन मेंआता
चलो शहर के जिलाधिकारी से लगवाया जाए अगले ही क्षण मन में आता कि वह तो महारिश्वत खोर है।रिश्वत के आगे तो सही ग़लत का भी ध्यान नहीं रखता अपने पद की ऐंठ में ही रहता है।
फिर सोचा कि किसे बड़े नेता को बुला कर उससे यह कार्य कराया जाए।परंतु वह तो डी,एम, महोदय से भी दो हाथ आगे है।अपनी स्वार्थ सिद्धि के आगे वह तो बड़े से बड़े कांड कराने से भी पीछे नहीं हटता।उसकी बला से कोई मरे या जिए।
तभीअनायास ही दिमाग में आया कि एक जटाधारी एवं त्रिपुंड धारी सिद्ध पीठ के महा मंडलेश्वर के पावन हाथों से वृक्षारोपण उचित रहेगा।लेकिन,,मन नहीं माना उसने सोचा कि यह तो भगवान के घर में बैठकर ही मानव को मानव से अलग समझता है।कोई अछूत यदि धोखे से भी मंदिर का द्वार छू भर दे तो उसको नाना प्रकार का दंड देकर उस ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति को भी अपमानित करने से नहीं चूकता।नही--नहीं,,,,
चलो एक शिक्षक से ही इस पौधे का रोपण करा देता हूँ ।परंतु यह भी नीच जाति के बच्चों को शिक्षा देने में अपनी तौहीन समझ कर उसपर यह उपकार नहीं करता।केवल उन्हीं क्षात्रों को अच्छी तरह पढ़ाता है जो इससे ट्यूशन पढ़ते हैं।यह भी नहीं चलेगा,,,
इस प्रकार माता,पिता,दादा,दादी के अतिरिक्त बहुत से करीबी रिश्तेदारों पर भी विचार किया परंतु वे सब भी अपनी अपनी चहेती संतानों में बंटे हुए दिखाई दिए।
अंततः मेरी शंका के समाधान की सुई एक नन्हे से बालक पर जाकर रुकी और मैंने सोचा इससे बढ़िया तो कोई हो ही नहीं सकता क्यों कि बच्चा अंतर्मन से शुद्ध और निर्विकार साक्षात ईश्वर का स्वरूप होता है।उसके मन में ऊंच-नींच,छोटा-बड़ा,अपने -पराए का घ्रणित भाव नहीं रहता।उसका जीवन तो केवल प्यार का भूखा होता है।
अतः एक छूटे बच्चे के कर कमलों से उस वृक्ष को उचित स्थान पर लगवाया गया। तभी तो सभी यही कहते हैं कि,,,,,,,
बच्चे में है भगवान
बच्चे ने है रहमान
गीता उसमें
बाइबल उसमें
उसमें है कुरान
जग में बच्चा है
महान।
✍️ वीरेंद्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0- 9719275453
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की लघुकथा ------ वेदना से रंजना
श्रीमती कुंती ने अपनी सहेली श्रीमती वंदना से मोबाइल पर पूंँछा - "मुझे आज एक कहानी दिये गये शीर्षक "वेदना से रंजना" पर लिखनी है। कुछ बता न !"
श्रीमती वंदना ने कहा -- "नारी का जीवन ही 'वेदना से रंजना' है। लड़की का विवाह के समय मां-बाप से बिछुड़ना 'वेदना' है पर ससुराल का पाना 'रंजना' है । हर स्त्री को बच्चे की चाहत 'रंजना' है और उसे जन्म देना 'वेदना' । खेल और अभिनय में स्वयं को स्थापित करने हेतु अनेक 'वेदनाओं' से गुजरना पड़ता है पर उसके बाद वही 'वेदनायें' 'रंजना' में बदल जाती हैं। बस! ऐसे ही बहुत से विषय हैं स्त्रियों के । उनपर कलम चला।"
"नहीं-नहीं" --श्रीमती कुंती ने कहा -- "कुछ अलग सा नया विषय दें। यह सब पुराने हो गये।"
श्रीमती वंदना बोली --"कोरोना पर लिख न ! कोरोना ने जहां जीना दूभर कर दिया है वहीं जीने के लिए पर्यावरण व जल -वायु शुद्ध कर दिया है । पृथ्वी का कंपन कम हो गया है। भौतिकवाद से हटकर आदमी अध्यात्म की ओर लौटा है । बाजारवाद से हटकर घर-घर महिलाओं ने नये-नये व्यंजन बनाना सीख लिया है। जिंदगी की भाग-दौड़ में अब लोगों को परिवार के साथ रहने का अवसर मिला है। कुछ समय के लिए जीवन में शकून लौटा है । चोरी-डकैती बंद हो गयी हैं ।लोगों की बीमारी जैसे गायब हो गई है।"
श्रीमती कुंती ने बीच में ही कहा --"बस वंदना ! कोरोना का विषय ही सही है । मैं इसी पर लिखती हूं।"
"थैंक्स ए लॉट" -- कहकर श्रीमती कुंती ने मोबाइल कट कर दिया ।
✍️राम किशोर वर्मा, रामपुर
मुरादाबाद के साहित्यकार धर्मेंद्र सिंह राजौरा की लघुकथा ----दारोगा
देश दुनिया भयंकर महामारी की त्रासदी से जूझ रहे थे ।गाँव नगर में तालाबंदी थी और संक्रामक रोग था कि कम होने का नाम नहीं ले रहा था। शहर की तीन बड़ी परचून दुकानें जो मुख्य बाजार में सड़क के एक ही ओर स्थित थी, भी यदा कदा चोरी छिपे खुलतीं। दुकानों के सम्मुख नमक की बोरियां पड़ी थी जिनपर एक विक्षिप्त युवक एक डंडा लेकर बैठा रहता। कहते हैं करीब दस ग्यारह वर्ष पूर्व एक पुलिस भर्ती घोटाले के चलते नियुक्त सिपाही जिनका प्रशिक्षण भी पूर्ण हो चुका था, की नौकरी चली गई थी, जिनमें से वो भी एक था।
नौकरी छूटने के सदमे से वो पागल हो गया था।अब उसने उन नमक की बोरियों की देखभाल का नया रोजगार तलाश लिया था, वो भी अवैतनिक। ये बात दीगर है कि बोरियां कल भी सुरक्षित थी और आज भी, क्योंकि हमारे समाज में नमक की चोरी वर्जित है।
हर आते जाते लोगों को वह पास बुला कर कहता इस में नमक है, दीवाना जो ठहरा जो उसे नहीं जानते थे वो मुस्कुरा कर चले जाते । पास के एक अध्यापक महोदय,जिनकी साहित्य में विशेष रुचि थी, ने उसे नमक का दारोगा की उपाधि से नवाजा तभी से सभी उसे दारोगा कहकर पुकारते/उस विक्षिप्त अवस्था में वो अपने को प्रोन्नत होकर दारोगा समझता था । उस संबोधन से वो अति प्रसन्न रहता।
जब कोई नमक के पास आने की कोशिश करता तो वो ड़डा लेकर पीछे पड़ जाता। समय का खेला देखिए कि जहाँ अब तक आसमान से एक भी बूंद न फूटी थी, जबकि बारिश का मौसम बीतने में कोई कसर न थी , कई दिनों तक लगातार पानी गिरा। पास में बहने वाले नालों के तटबंध दरक गए ।शहर में बाढ़ जैसे हालात हो गये । पानी घरों को दाखिल चुका था और लोगों ने घरों की छत पर पनाह ले रखी थी।
एक तो पहले से प्रकृति का प्रकोप कम न था, ऊपर से ये आफत और आन पड़ी। बारह तेरह दिन बाद जब पानी का प्रवाह कम कम हुआ तो पता कि नमक की बोरियां बहती जलराशि की भेंट चढ़ चुकीं थीं। प्रकृति ने दरोगा का रोजगार छीन लिया था।आज वो फिर से बेरोजगार हो चुका था।पहली बार सरकारों की सियासत ने उसे बेरोजगार किया इस बार प्रकृति ने।
✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा
मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी -----रैगिंग
आज विनय का मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में पहला दिन था । विनय बहुत खुश था और हो भी क्यों ना उसकी वर्षों की मेहनत रंग लाई थी , कठिन परिश्रम के पश्चात मेडिकल कॉलेज में वह सरकारी सीट लेने में सफल रहा था । हॉस्टल में प्रवेश संबंधी सारी प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात विनय को रूम नंबर 10 अलॉट हुआ , इस रूम में दो लोगों के रहने की व्यवस्था थी । उसके अतिरिक्त सुनील नाम का छात्र भी उसी कमरे में उसके साथ रह रहा था । सुनील का भी एमबीबीएस प्रथम वर्ष में प्रवेश हुआ था ।कुछ ही देर में सुनील व विनय आपस में काफी घुल मिल गए ,अब उन्हें 5 वर्षों तक एक साथ रहना था , इसलिए दोनों एक दूसरे के बारे में अधिक से अधिक जानने की कोशिश कर रहे थे । अभी उनकी बात चल ही रही थी कि कुछ सीनियर छात्र उनके कमरे में आ धमके और उनसे शाम को कॉमन रूम में आने के लिए कह गए व बता गए कि आज एमबीबीएस फर्स्ट ईयर के छात्रों का परिचय होगा । सुनील और विनय चुप रहे उन्हें अच्छी तरह से पता था के एमबीबीएस फर्स्ट ईयर के छात्रों के साथ परिचय के नाम पर खूब रैगिंग होती है । सीनियर छात्रों के जाने के पश्चात विनय ने सुनील से कहा "शाम को हम कहीं नहीं जाएंगे ,हम यहां पढ़ने आए हैं , रैगिंग करवाने के लिए नहीं" सुनील ने विनय को बहुत समझाने की कोशिश की पर वह नहीं माना । इस प्रकार शाम को वह कॉमन रूम नहीं गये , अगले दिन कॉलेज में उनका पहला दिन था विनय व सुनील बहुत रोमांचित थे , क्योंकि पढ़ाई में वे दोनों ही होशियार थे लिहाजा वह जल्दी से जल्दी एमबीबीएस की क्लास में जाना चाहते थे और जानना चाहते थे की एमबीबीएस फर्स्ट ईयर में कौन-कौन से सब्जेक्ट पढ़ाये जाएंगे । कक्षा में प्रवेश के पश्चात एक प्रोफेसर ने कक्षा में प्रवेश किया सभी बच्चों को एमबीबीएस में एडमिशन की बधाई दी और आगे भी सख्त मेहनत करने को कहा । प्रोफेसर साहब ने कुछ सवाल छात्रों से पूछे तो विनय ने फटाफट सभी सवालों का जवाब दे दिया । उसके जवाब सुन प्रोफेसर साहब बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने विनय से कहा इसी प्रकार पढ़ाई में अपनी लय को बनाए रखना ।
दो पीरीयडो के बाद ब्रेक में छात्र कैंटीन में एकत्र हुए विनय और सुनील भी कैंटीन पहुंच गए, वहां उनकी मुलाकात सीनियर छात्र रवि से हो गई रवि ने वहां उनसे रात को कॉमन रूम में नहीं आने पर उनकी बहुत डांट लगाई और उनसे कहा अगर एमबीबीएस करना है तो सीनियर्स की बात माननी ही होगी । विनय और सुनील चुपचाप रहे रवि के जाने के पश्चात सुनील ने विनय से कहा मैंने तुम्हें कल भी कहा था , इन से पंगा लेना ठीक नहीं आज चुपचाप कॉमन रूम चलेंगे । लेकिन विनय अपनी बात पर अड़ा रहा वह परिचय के लिए सीनियर्स के पास जाने को तैयार नहीं था , मजबूरी वश सुनील को विनय का साथ देना पड़ा । शाम हो गई थी , सुनील ने एक बार फिर विनय को समझाया हमें 5 वर्ष यही रहना है और इन्हीं लोगों के बीच में रहना है । मगर विनय ने साफ कह दिया "अगर तुम्हें जाना है तो तुम जा सकते हो ,मैं बिल्कुल भी नहीं जाऊंगा" अभी उनके बीच बहस हो ही रही थी कि अचानक जोर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई बाहर सीनियर एकञ थे और शोर मचा रहे थे "सालों आज देखते हैं , तुम्हें कौन बचाता है" दरवाजा खटखटाने की आवाज सुन सुनील और विनय दोनों बहुत घबरा गए उन्होंने दरवाजे के आगे चारपाई लगा दी और दरवाजे को कस के बंद कर लिया लेकिन सीनियर छात्र तो आज जैसे तय कर कर ही आए थे ।
धड़ाम की आवाज के साथ दरवाजा टूट गया व करीब 10/12 सीनियर छात्र धडधडाते हुए कमरे में घुस गए , 3/4 रैपट विनय और 3/4 रैपट सुनील के जड़ दिए और बोले "सालो तुम्हें सीनियर्स की इज्जत करनी नहीं आती , आज तुम्हें सब सिखा देंगे" यह कहते हुए , वह कॉलर पकड़ कर सुनील और विनय को कॉमन रूम ले आये, इतनी बेइज्जती से सुनील और विनय दोनों रूआंसू हो गए सुनील ने रोते हुए कहा "मैंने विनय को बहुत समझाया था पर वह नहीं माना , इसमें मेरी क्या गलती है" यह सुन सीनियर ने 2रैपट विनय को और जोड़ दिए और बोले "साले हीरो बनता है ,आज तेरी हीरोगिरी निकाल कर रहेगे"
विनय ने रोते हुए कहा "आप लोग हमारे साथ ऐसा नहीं कर सकते यह गैरकानूनी है , सरकार भी इसकी इजाजत नहीं देती"
विनय की मुहजोरी देख सीनियर्स और बिगड़ गए । सुनील से तो थोड़ी बहुत औपचारिक परिचय कर उन्होंने विनय को सबक सिखाने का मन बना लिया , उन्होंने जबरदस्ती विनय के सारे कपड़े उतरवा दिए और पूरे हॉस्टल में घुमाया विनय अपनी इतनी बेइज्जती से बिल्कुल टूट गया और सीनियर से माफी मांगने लगा तब मुश्किल से सीनियरो ने उसे छोड़ा । अगले दिन फिर आने को कहा , विनय की इतनी बेइज्जती हुई थी कि हॉस्टल में छात्र उसका मजाक उड़ाने लगे, इन सब बातों को का विनय के मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा ।
रात को इतनी तगड़ी रैगिंग के पश्चात सुनील और विनय बहुत परेशान हो गए , विनय ने सोचा इतनी मुश्किल से यहां पर एडमिशन हुआ है अगर मैं अपने मां बाप को यह सब बातें बताऊंगा तो वह परेशान हो जाएंगे यह सोच वह चुप रहा और मन ही मन घुटता रहा । भारी मन के साथ विनय कॉलेज कक्षा में पहुंचा तो छात्रों ने उसका खूब मजाक उड़ाया , पूरी कक्षा में उसकी रात वाली रैगिंग की बात फैल चुकी थी और वह हंसी का पात्र बन चुका था । वह जहां भी जाता छात्र उसका मजाक उड़ाते हैं इसी बीच सुनील ने भी उससे किनारा कर लिया , उसने सोचा अगर वह विनय के साथ अधिक घूमेगा तो सीनियर उसकी भी रैगिंग करेंगे । विनय बिल्कुल अकेला पड़ चुका था और पढ़ाई भी नहीं कर पा रहा था धीरे धीरे उसका यह हाल हो गया कि प्रोफेसर जब उससे कुछ पूछते तो वह किसी भी सवाल का उत्तर नहीं दे पाता था ।
सीनियर्स रोज रोज उसके कमरे में आते और विनय को कॉमन रूम ले जाते हैं और विनय की खूब रैगिंग करते कभी उसे नग्न कर कभी लड़कियों के कपड़े पहना हॉस्टल में घूमाते थे । विनय को मानसिक रूप से तोड़ा जा रहा था और वह मानसिक रूप से पूरी तरह टूट गया । इसका परिणाम यह हुआ कि वह पढ़ाई में पिछडता चला गया टर्म के पेपरों में वह दो सब्जेक्ट में फेल हो गया और एक सब्जेक्ट में बहुत ही कम नंबरों के साथ पास हो पाया । उसके इस परिणाम की किसी को उम्मीद ना थी सुनील ने उसे बहुत समझाया कॉलेज में यह सब चलता है तुम पढ़ाई पर ध्यान दो पर पर विनय को अपनी बेइज्जती का मानसिक रूप से बहुत आघात लगा था । उसका पढ़ाई में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था , मानसिक परेशानी के चलते हैं उसने सिगरेट और शराब का सेवन भी शुरू कर दिया , पढ़ाई में लगातार पिछड़ने की वजह से और भी ज्यादा परेशान रहने लगा । यह देख सुनील ने उसे साइको ट्रीटमेंट की सलाह दी और एक दिन शहर के सबसे मशहूर साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर मित्रा के पास ले गया ।।
वहां पहुंचकर सुनील ने डॉक्टर मित्रा को शुरू से लेकर अब तक की सारी बात बताई । डॉक्टर मित्रा ने विनय को कहा "यह मानसिक स्वास्थ संबंधी समस्या है तुम जल्दी ही ठीक हो जाओगे" एक दिन विनय जब शाम को विनय डॉक्टर मित्रा के पास इलाज के लिए जा रहा था तो सीनियर छात्र रवि ने उसे देख लिया । डॉक्टर मित्रा के अस्पताल जाकर रवि ने विनय से संबंधित सारी जानकारी ली , तो उसे पता चला कि वह मानसिक स्वास्थ संबंधी समस्या के इलाज हेतु आता है । यह सुन रवि को बहुत आत्मग्लानि हुई कि उसे अपना इलाज कराना पड़ रहा है । रवि ने सारी बात सीनियर विंग में जाकर बता दी कि उनकी वजह से विनय की कितनी बुरी हालत हो गई है । विनय के बारे में सुन सभी सीनियर छात्रों ने फैसला किया की विनय की हालत के हम लोग सब जिम्मेवार हैं , इसलिए विनय को ठीक करने के लिए हम हर संभव मदद करेंगे ।
विनय के पढ़ाई में लगातार पिछड़ने की वजह से कालेज वाले उसे एमबीबीएस फर्स्ट ईयर की प्राफ एग्जाम में बैठने की इजाजत नहीं दे रहे थे । उन्होंने विनय के घर एक पत्र भेज दिया कि इस वर्ष विनय एमबीबीएस फर्स्ट ईयर के एग्जाम में नहीं बैठ पाएगा । पत्र को पढ़कर घर में कोहराम मच गया रामलाल और इमरती को अपने सपनों का संसार बिखरता नजर आने लगा और उन्होंने तुरंत विनय के पास मेडिकल कॉलेज जाने का फैसला किया ।
रामलाल और इमरती पहली बार अपने गांव से बाहर निकले थे। शहर की चकाचौंध से वह वाकिफ नहीं थे , जब विनय के मेडिकल कॉलेज से होते हुए वह हॉस्टल पहुंचे ,सबसे पहले वह प्रिंसिपल साहब से मिलने गए तो प्रिंसिपल साहब ने रामलाल से कहा "आप कितनी मेहनत करते हैं जो आपने विनय को यहां तक पहुंचाया लेकिन आपका बेटा यहां पर सिगरेट और शराब पी रहा है ,हॉस्टल में नग्न होकर घूमता है , सारा दिन हॉस्पिटल में पड़ा रहता है , इसके अलावा वह टर्म के 2 एग्जाम में फेल भी हो गया है , हमें अपना रिजल्ट खराब नहीं करना"
प्रिंसिपल साहब की बात सुन रामलाल और इमरती को बहुत गुस्सा आया और वह सीधे विनय के कमरे में पहुंच गए । विनय रोज की तरह बेसुध पड़ा था । रामलाल ने विनय को बहुत डांटा और कहा "उसकी वजह से प्रिंसिपल साहब ने हमें कितना सुनाया है" विनय को कुछ कहते नहीं बन रहा था कि अपने घर वालों को बताए भी तो क्या बताएं ,रामलाल और इमरती तो यही समझ रहे थे , शहर से इतने बड़े कॉलेज में एडमिशन से उनके लल्ला का दिमाग खराब हो गया है । सुनील ने विनय के माता-पिता को समझाने की बहुत कोशिश की यह कोई पागलपन नहीं बल्कि एक मानसिक स्वास्थ संबंधी समस्या है और हम इसका इलाज करा रहे हैं , जल्दी ही विनय ठीक हो जाएगा ।
इलाज की बात सुन विनय के माता-पिता सुनील पर विफर गए के "अब पागलों के डॉक्टर से इलाज भी हो रहा है और हमें पता तक नहीं" बहुत देर समझाने के पश्चात विनय के माता-पिता शांत हुए और बोले हम भी डॉक्टर के पास जाएंगे । शाम को सुनील , रामलाल , इमरती और विनय डॉक्टर के पास गए वहां उनकी मुलाकात सीनियर छात्र रवि से हुई जिसकी वजह से विनय की हालत हुई थी , रामलाल ने रवि को बहुत डांटा और कहा "हमारा लल्ला पूरी तहसील का सबसे होनहार छात्र था , तुमने उसका क्या हाल कर दिया है"
रवि ने विनय के माता-पिता से हाथ जोड़कर माफी मांगी और उनसे वादा किया कि विनय की हालत का जिम्मेदार मैं हूं और मैं ही इसे ठीक करने में रात दिन एक कर दूंगा आप निश्चिंत होकर घर जाये । विनय के माता-पिता को रवि की बातों पर यकीन हो गया और वह घर चले गए । रवि विनय को साइको डिपार्टमेंट के एच ओ डी के पास ले गया और विस्तार से उन्हें सारी बात बताई एचओडी ने जल्द ही विनय के ठीक होने का आश्वासन दिया , करीब एक माह के इलाज के पश्चात विनय के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होने लगा उसका पढ़ाई में भी मन लगने लगा बुरी आदतों का सेवन भी उसने काफी कम कर दिया , धीरे-धीरे विनय अब बिल्कुल ठीक हो गया था ।
आज विनय के ठीक होने के पश्चात कक्षा में काफी अच्छा माहौल था सभी छात्रों ने मिलकर प्रिंसिपल से विनय को परीक्षा में बैठने की सिफारिश की जिसे प्रिंसिपल ने तुरंत मान लिया और एमबीबीएस फर्स्ट ईयर में विनय अच्छे नंबरों से पास हो गया । विनय एमबीबीएस सेकंड ईयर में आ गया था विनय अपनी कक्षा का हेड हो चुका था आज जूनियर विंग का प्रतिनिधित्व कर रहा था और सीनियर विंग का प्रतिनिधि रवि था । रवि और विनय दोनों ने मिलकर मानसिक स्वास्थ संबंधी एक कैंप का आयोजन मेडिकल कॉलेज में किया था जिसमें मानसिक स्वास्थ संबंधी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही थी सभी छात्र
उन्हे बडे़ ध्यान से सुन रहे थे क्योंकि वह जानते थे इनसे बेहतर इस विषय में कोई नहीं बता सकता ।
✍️ विवेक आहूजा
बिलारी ,जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com
मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी वर्मा की लघुकथा ----- राशन
"नीतू, यह बासन मांझ के रख दे और जल्दी से आटा मल कर चार रोटी सेक दे। तेरे बापू खेत पे को जाएंगे खाना खाकर।
अंदर नीतू अपना बैग लगा रही थी। उसे स्कूल जाना था। वह गांव के ही एक प्राइमरी विद्यालय में कक्षा 5 में पढ़ती थी। आवाज सुनते ही उसने उदास होते हुए अपना बैग एक तरफ उठाकर रख दिया और मां से बोली "मां, आज टीचर जी नया पाठ पढ़ाएंगी, अगर मैं स्कूल नहीं जाऊंगी तो मुझे कुछ भी समझ में ना आएगा। उसकी बात बीच में काटते हुए उसकी मां बोली हां तू पढ़कर कोई कलेक्टर ना बन जाएगी बर्तन निपटा जल्दी से। नीतू जल्दी से बासन मांजने लगी सारा काम करते हुए 10:00 बज चुका था। बैग लेकर स्कूल जाने लगी बोली "मां मैं स्कूल जा रही हूं।" मां बोली "स्कूल में कौन सा पढ़ाई होत है जो कपड़े पड़े हैं वह धो ले। मैं भैंस को चारा डाल दूं। नीतू स्कूल नहीं जा पाई घर के कामों में ही लगी रही।
अगले दिन सुबह जल्दी तैयार होकर स्कूल जाने लगी अम्मा ने उसे प्रतिदिन की तरह फिर से घर के कामों में लगा दिया। वह पढ़ना चाहती थी लेकिन मां बापू के काम ही खत्म नहीं होते थे। नीतू कभी घर के काम को देखती थी। कभी अपनी किताबों को देखती थी और कभी अपने सपनों को मन ही मन निहारती थी ।
विद्यालय में बच्चों के नामांकन को देखकर सभी शिक्षिकाएं एवं प्रधानाचार्य भी चिंतित थे। ग्रामवासी पढ़ाई से ज्यादा अपने घरेलू कार्यों को महत्व देते थे। नीतू ने एक दिन मां से कहा "मां, विद्यालय जाने पर ही राशन मिलेगा और हमारी टीचर कह रही थी कि अगर तुम प्रतिदिन विद्यालय विद्यालय नहीं आओगी सरकार की तरफ से मिलने वाला राशन कम हो जाएगा अब हमारी उपस्थिति जाया करेगी राशन कार्ड के साथ साथ। हमें हमारी उपस्थिति भी दिखानी पड़ेगी तभी जाकर हमें पूरा राशन मिलेगा।" नीतू की मां घबरा गई। भागी भागी प्रधानाचार्य के पास गई और बोली मास्टरजी कौन से नियम कानून पढ़ा रहे हैं आप, राशन नहीं मिलेगा यह कौन सी बात हुई? प्रधानाचार्य जी बोले महोदया सरकार ने नया नियम पारित किया है कि बच्चे की उपस्थिति के अनुसार ही राशन ग्राम वासियों को बांटा जाएगा। यदि आपका बच्चा आता है तो आपको पूरा राशन मिलेगा अन्यथा नहीं और नीतू मन ही मन खुश होने लगी क्योंकि अब स्कूल प्रतिदिन जाने को मिलेगा। अगली सुबह नीतू अपना बैग लगा रही थी। तभी मॉं की आवाज आई। अरे, "नीतू जल्दी जा स्कूल कहीं तेरी छुट्टी ना लग जाए।"
✍️ मीनाक्षी वर्मा, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की कहानी ------ और वह मर गयी
नदी किनारे गांव के एक छोर पर एक छोटे से घर में रहती थी गांव की बूढी दादी माँ। घर क्या था ,उसे बस एक झोंपडी कहना ही उचित होगा। गांव की दादी माँ, जी हां पूरा गांव ही यही संबोधन देता था उन्हें। नाम तो शायद ही किसी को याद हो।
70/75 बरस की नितान्त अकेली अपनी ही धुन में मगन। कहते हैं पूरा परिवार था उनका नाती पोते वाली थीं वो। लेकिन एक काल कलुषित वर्षा की अशुभ!! रात की नदी की बाढ़ ,,, उनका सब समां ले गई अपने उफान में ।
उसदिन सौभाग्य कहो या दुर्भाग्य कि, वो अपने किसी रिश्तेदार के यहाँ बच्चा होने की खुशियां मनाने गई हुई थीं। कौन जानता था कि वह मनहूस रात उनके ही नाती बेटों को उनसे दूर कर, उन्हें ही जीवन भर के गहन दुःख देने को आएगी।
उसी दिन से सारे गांव को ही उन्होंने अपना नातेदार बना लिया, और गांव वाले भी उनका परिवार बन कर खुश थे।किसी के घर का छोटे से छोटा उत्सव भी उनके बिना न शुरू होता न ख़तम। गांव की औरतें भी बड़े आदर से पूछती," अम्मा "ये कैसे करें वो कैसे होता है और अम्मा बड़े मनुहार से कहती इतनी बड़ी हो गई इत्ती सी बात न सीख पाई अभी तक । सब खुश थे सबके काम आसान थे । किसी के यहां शादी विवाह में तो अम्मा 4 दिन पहले से ही बुला ली जाती थीं।हम बच्चे रोज शाम जबतक अम्मा से दो चार कहानियां न सुन ले न तो खाना हज़म होता और न नींद ही आती। अम्मा रोज नई नई कहानियां सुनाती राजा -रानी, परी -राक्षस, चोर -डाकू ऐंसे न जाने कितने पात्र रोज अम्मा की कहानियों में जीवंत होते और मारते थे।
समय यूँही गुजर रहा था और अम्मा की उम्र भी। आजकल अम्मा बीमार आसक्त हैं उनको दमा और लकवा एक साथ आ गया। चलने फिरने में असमर्थ , ठीक से आवाज भी नहीं लगा पाती । कुछ दिन तो गांव वाले अम्मा को देखने आते रहे, रोटी पानी दवा अदि पहुंचते रहे। लेकिन धीरे धीरे लोग उनसे कटने लगे बच्चे भी अब उधर नहीं आते कि, कहीं अम्मा कुछ काम न बतादे।
वो अम्मा जिसका पूरा गांव परिवार था अब बच्चों तक को देखने को तरसती रहती।
वही लोग जिनका अम्मा के बिना कुछ काम नहीं होता था , अब उन्हें भूलने लगे।
औरते अब बच्चो को उधर मत जाना नहीं तो बीमारी लग जाएगी की शिक्षा देने लगी।
अम्मा बेचारी अकेली उदास गुनगुना रही है-
सुख में सब साथी दुःख में न कोई।
अब तो कोई उधर से गुजरता भी नहीं । अम्मा आवाज लगा रही है अरे कोई रोटी देदो। थोड़ा पानी ही पिला दो।।।।!!
नदी किनारे रहकर भी अम्मा पानी के घूँट को तरसती उस रात मर गई।
सुबह किसी ने देखा और गांव में खबर फैली कि बुढ़िया जो नदी किनारे रहती थी आज मर गई।
लोग आये दो चार बूँद आंसू गिराये औरतों में चर्चा थी बेचारी सब के कितना काम आती थी,और आज मर गई।
कुछ देर में बुढ़िया का शरीर आग के घेरे में पड़ा था। लोग अपने घर लौट रहे थे और अब कहीं चर्चा नहीं थी कि वह मर गई।
यही दुनिया है यही इसकी रीत है। जीवित हैं तो सबके हैं । मर गए तो भूत हैं। और कोई याद तक नहीं करता कि वह मर गई।
,✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----अनुचित निर्णय
"तुम्हारा कहा माना ।सबने मनाई।मैंने नहीं माना ।मन के एक कोने में तुम्हारा चित्र आज भी साफ सुथरा सुशोभित है । तुम कहते थे कि अधिकारी बनकर सब ठीक हो जाएगा ।मैं इन्तज़ार में क्या से क्या हो गई ।उम्र पक गई पर तुम नहीं लौटे।पाँच बहनों ने अपने घर बसा लिए ।माँ बाबू जी चल बसे।
आज भी बाबला मन तुमको पूजता है जबकि उसे पता है कि तुम अपनी दुनिया में मुझे बहुत पीछे छोड़ चुके हो ।काश कि तुम ........। "सिसकियों के साथ अवनि ने अपने द्वारा लिए गये निर्णय की भर्त्सना की ।बीस साल पूर्व लिए गये उसके अनुचित निर्णय ने उसको जीवन के पथ पर बिल्कुल अकेला कर दिया ।काश कि समय रहते वो भी .......।
✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद
मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य ---उनका सठियाना
उनका सठियाना इस तरह एक समारोह के रूप में मनाया गया कि सर्वप्रथम तो उन्हें यह आत्मबोध हुआ कि वह मात्र 60 वर्ष के नहीं हो रहे हैं अपितु सठिया रहे हैं अर्थात यह एक दिव्य अनुभव है । ऐसा ही जैसे कोई आत्मसाक्षात्कार हो रहा हो अथवा ईश्वर के दर्शन साक्षात होने जा रहे हों।
घर पर पत्नी से उन्होंने कहा प्रिय ! अब हम कुछ ही दिनों में सठिआने वाले हैं। सोचते हैं कि एक भव्य समारोह का आयोजन कर दिया जाए । पत्नी ने झुँझला कर कहा "तुम तो शादी के समय से ही सठिआए हुए थे ।बस मैं ही थी ,जो तुम्हें अब तक झेल रही हूँ। तुम्हारा जो मन आए करो मुझसे मत पूछो ।"
घरवाली के व्यंग्य वाण से आहत होकर उन्होंने अपनी ससुराल में फोन किया तथा साले से कहा "अब हम सठिया रहे हैं । कुछ समारोह का आयोजन होना चाहिए।"
वह बोला "जीजा जी ! अब शादी के इतने साल के बाद आप डिमांड करना बंद कर दीजिए अन्यथा मुझे जीजी से आपकी शिकायत करनी पड़ेगी । मैं आपकी कोई भी माँग पूरी नहीं करूँगा ।"
ससुराल से भी जब वह.निराश हो गए तब उन्होंने अपने कुछ मित्रों को इकट्ठा किया । उन्हें चाय पर बुलाया तथा अपनी सठिआने की योजना सामने रखी । यह भी कहा कि वह खर्चा - पानी के लिए तैयार हैं। बस सठिआने का एक अच्छा सा कार्यक्रम हो जाना चाहिए । मित्रों को हँसी- ठिठोली सूझी। आपस में विचार किया ,कानाफूसी हुई और कहने लगे कि चलो !अच्छा हास्य कार्यक्रम हो जाएगा। इनका सठिआना भी एक समारोह के रूप में मना लिया जाएगा। सब ने कहा "हाँ भाई साहब ! सठियाना एक अद्भुत क्षण होता है ,जो जीवन में केवल एक बार ही आता है । हम इस अवसर पर आपका पूरी तरह से विधि - विधान से सठिआना- उत्सव आयोजित करेंगे। बस यह बताइए कि इसमें करना क्या होगा ?"
भाई साहब सोच में पड़ गए । उन्हें यह नहीं मालूम था कि सठियाना किस प्रकार से समारोह पूर्वक मनाया जाता है। लेकिन फिर भी सब लोगों ने जब यह देखा कि भाई साहब खर्च करने के लिए तैयार हैं तब उन्होंने एक होटल में कार्यक्रम रख लिया। बड़ा सा केक काटा । रात्रिभोज का प्रबंध था । भाई साहब को एक फूलों की माला पहना दी । सिर पर मुकुट रख दिया और तालियाँ बजाकर कहने लगे "आपको सठिआना मुबारक !"
भाई साहब खुश हो गए । जब कार्यक्रम समाप्त हुआ तो भाई साहब सठिआई हुई मुद्रा में थे । होटल से बाहर आए तो कहने लगे " अब हमारी जेब में कुछ भी पैसे नहीं बचे । जितने बैंक में जमा करके रखे थे, सब सठियाना - समारोह में खर्च हो गए ।"
सोचने लगे कि यह सब कैसे हो गया ? और फिर इसी निष्कर्ष पर पहुँचे कि "क्या बताएँ ,अब हम सठिया गए हैं।"
✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 22 सितंबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों वीरेंद्र सिंह बृजवासी, डॉ प्रीति हुंकार, विवेक आहूजा, डॉ पुनीत कुमार, प्रीति चौधरी, अशोक विद्रोही, दीपक गोस्वामी चिराग, नजीब जहां, सीमा रानी, मरगूब अमरोही, हेमा तिवारी भट्ट, मीनाक्षी ठाकुर, डॉ रीता सिंह, कमाल जैदी वफ़ा, राशि सिंह, रामकिशोर वर्मा, श्री कृष्ण शुक्ला और मीनाक्षी वर्मा की बाल रचनाएं------
हम तालाब किनारे
मगरमच्छ की बात सुनेंगे
बन करके मछुआरे।
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कहा मित्र ने बड़ा क्रूर है
मगरमच्छ अभिमानी
उसके पास पहुंचने की मत
करना तुम नादानी
क्यों संकट में डाल रहे हो
असमय प्राण हमारे।
आओ मित्र---------------
इसके जबड़ोंकी ताकत का
तुमको पता नहीं है
एक बार जो मुंह में आया
फिर वह बचा नहीं है
मछुआरों की चाल समझते
मगरमच्छ भी सारे।
आओ मित्र----------------
तुमको जाना है तो जाओ
मुझे माफ़ कर देना
मगरमच्छ की बातों से भी
नहीं मुझे कुछ लेना
फिरकहता हूँ वापस लौटो
करो नहीं ज़िद प्यारे।
आओ मित्र---------------
कान लगाकर सुननी चाहीं
मगरमच्छ की बातें
लेकिन मगरमच्छ बैठे थे
स्वयं लगाकर घातें
जकड़ा आकरके जबड़े में
बिछड़े मित्र बेचारे।
आओ मित्र---------------
सही बात जो नहीं मानते
वह मूरख कहलाते
खतरनाक राहोंको चुनकर
जीवन व्यर्थ गंवाते
सच्ची बातें सुनने वाले
होते सबसे न्यारे।
आओ मित्र---------------
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0- 9719275453
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बच्चों मैं अखबार निराला
खट्टी मीठी खबरों वाला
सुबह सुबह मैं दौड़ा आता
सब दुनिया की सैर कराता
पङा हुआ मै दरवाजे पर
खोलो अपने घर का ताला
बच्चों मैं................
सारे जग की खबर सुनाता
बच्चों का भी दिल बहलाता
यों तो मैं हूँ श्वेत वर्ण का
खबरों से हो जाता काला
बच्चों मैं................
✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद
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ओ मेरी लाडली , घर के बाहर तुम जाना नहीं ,
बाहर गर जाओ ,तो लेकर कुछ खाना नहीं ।
बड़ी हो गई हो तुम , ज्यादा पड़ेगा तुम्हें समझाना नहीं , वक्त है खराब ,भलाई का जमाना नहीं ।
अच्छे से समझ लो तुम ,गर तुमने मेरा कहा माना नहीं ,
जमाने का क्या भरोसा, बाद में पछताना नहीं ।।
✍️विवेक आहूजा, बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com
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मैं हूं फूल
नीले अम्बर के नीचे
खुली जमीं पर रहता हूं
जाड़ा गर्मी और वर्षा
सबको हंसकर सहता हूं
उफ नहीं करता,बन कर
रहता हूं अनुकूल
कोई नहीं है चिन्ता मुझको
मैं मुस्काता रहता हूं
संकट मेेें भी हंसना सीखो
ये समझाता रहता हूं
फर्क नहीं पड़ता है मुझको
कितने भी हो शूल
अपनी खुशबू से सारी
बगिया को महकाता हूं
बच्चे बूढ़े और जवान
सबका मन हर्षाता हूं
देवों के चरणों मेेें चढ़
सब कुछ जाता भूल
✍️डाॅ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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सुन तकिए
माँ वाली लोरी सुना
मुझे सहला
रात भर हैं
बदली करवटें
नींद को बुला
नींद वही जो
माँ के आँचल में थी
लेकर तू आ
बहुत दिन
हुए देखे सपने
परी से मिला
थक गयी हूँ
दे प्यार की थपकी
अब तो सुला
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
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आओ सब को बचपन की
एक सच्ची कथा सुनाता हूं !
बीत गया कब का सब कुछ
पर भूल नहीं मैं पाता हूं!!
घुमा रहा था मैं कुत्ते को
सुबह सबेरे जब चल कर;
टूट पड़ा तब ,मोती, कुत्ता
भौंक भौंक उसके ऊपर ।
द्वंद छिड़ा दोनों कुत्तों में
उनमें जम कर युद्ध चला;
हाथ छिले जंजीर से मेरे
मेरा कुछ भी बश न चला ।
पूंछ दबा कर आखिर मोती,
भौं भौं करना भूल गया,
अपने 'पीलू' ने रण जीता
और गर्व से फूल गया ।।
घायल मोती नीचे झुक कर
अपमानित हो भाग छुटा,
मेरा ,पीलू ,हांफ हांफ कर
भौं भौं करने में था जुटा ।।
फिर एक दिन मोती से मेरा
पड़ा अकेले में पाला,
झपटा मुझ पर क्रोधित हो
कंधे का मांस उड़ा डाला।
खूं से लथपथ घर पहुंचा
तो मूक जानवर भांप गया,
जोर लगा जंजीर तोड़ कर
पागल पीलू भाग गया ।
चीर फाड़ डाला मोती को
बेबस किया शिकार गया,
पीलू की स्वामीभक्ति में
मोती स्वर्ग सिधार गया ।।
वफादार होते हैं कितने
कुत्ते सब बतलाते हैं,
मैं पीलू को याद करूं,
मेरे नैना भर आते हैं !!
यादें ये बचपन की हैं पर
तब न था मुझे इतना ज्ञान
कंधे से गहराअंकित है
अब भी दिल में बना निशान!!
✍️अशोक विद्रोही
82 188 25 541
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
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चाऊं बिल्ली, म्याऊं बिल्ली ।
दोनों बिल्ली बड़ी चिबिल्ली ।
नटखट, दोनों खास सहेली।
मिलकर दोनों एक पहेली ।
बीच रास्ते रोटी पाई।
दोनों में हो गई लड़ाई।
मेरी रोटी-मेरी रोटी ।
भिड़ गयीं दोनों बिल्ली मोटी।
फिर आया वह कालू बंदर ।
वानर था वह मस्त-कलंदर ।
बंद करो तुम बहिन लड़ाई ।
देखो अब मेरी चतुराई।
एक तराजू लेकर आए।
रोटी के दो भाग कराए।
दोनों पलड़े आधी रोटी।
पर उसकी नीयत थी उसकी खोटी।
जो पलड़ा भी दिख गया भारी।
उसकी रोटी मुंह में मारी।
बांयी खायी, दांयी खायी।
फिर से बांयी, फिर से दांयी।
दोनों देख रही बर्बादी।
होती जा रही, रोटी आधी।
चाऊं ने म्यांऊ को देखा,
म्याऊं ने चाऊं को देखा।
दोनों में कुछ हुआ इशारा ।
झगड़ा मिट गया पल में सारा।
रुको-रुको ओ! कालू भाई।
बन गए भाई आज कसाई।
बंद करो ये अपना लफड़ा।
खत्म हो गया है यह झगड़ा।
छीने फिर रोटी के टुकड़े।
खिल गये उन दोनो के मुखड़े।
मिलीं गले,फिर बंद लड़ाई।
मिल कर वो रोटी फिर खाई।
✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णाकुंज
बहजोई(सम्भल) 244410 उ. प्र.
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com
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मेरी गुड़िया प्यारी है
इसकी बातें न्यारी हैं
न होऊं मैं जबभी पास
रूठे सदा दुलारी है
मेरी गुड़िया कैसे माने
ये बस मेरा दिल ही जाने
चॉकलेट और खेल खिलौने
से न प्यारी गुड़िया माने
पड़े मनाना काम छोड़कर
इसके पीछे दौड़ दौड़ कर
वरना पड़ जाती है ये तो
खाटिया पर चादरें ओढ़ कर
इसे मनाना बहुत जरूरी
गुड़िया बिन जिंदगी अधूरी
✍️नजीब जहां
प्रेम वंडरलैंड, मुरादाबाद
9837508724
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काले -काले बदरा आये,
उमड़ -घुमड जल भर लाये |
झम -झम झम बूँदें गिरती ,
वसुधा का अन्तस्थल भरती |
चहुँ दिशि फैली हरियाली,
फूल पत्तियाँ हुई निराली |
शीतल -शीतल बहे बयार,
गूँजे जैसे राग मल्हार |
दादुर माेर पपीहा बाेले,
अन्तर्मन में रस सा घाेलें |
आह! वर्षा रानी आयी है,
संग ढेराें खुशियां लायी है |
✍🏻 सीमा रानी
पुष्कर नगर अमराेहा
7536800712
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ये दूध है होता संपूर्ण आहार।
रहती इस में ताक़त भर मार।।
ज़रूर पियो दिन में एक बार।
कहते आ रहे सब बुज़ुर्ग वार।।
करते बच्चे पीने से जो इंकार।
हड्डी रह जाती उन की बेकार।।
बच्चों का कैसा ये अब संसार।
फास्ट फूड से करते सब प्यार।।
रोज़ बढ़ रहा इसका व्यापार।
बच्चों को है ये करता बिमार।।
समझ लो इन पंक्ति का सार।
बन जाओ तुम अब होशियार।।
✍️-मरग़ूब अमरोही
दानिशमन्दान, अमरोहा मोबाइल-9412587622
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बिल्ली मौसी,बिल्ली मौसी
मेरे घर तुम आ जाना।
धमा चौकड़ी करते चूहे,
उनको सबक सिखा जाना।
कपड़े,खाना,कॉपी,पुस्तक
इन दुष्टों के साये हैं।
रहे नहीं साबुत कहीं कुछ ,
सब पर दाँत चलाये हैं।
चूहेदानी रखी हुई है,
शैतानी पर जारी है।
कुतर गये हैं टाई मेरी,
अब जूतों की बारी है।
प्यारी मौसी अच्छी मौसी
अब जल्दी से आओ तुम।
पिद्दी चूहे शेर हो रहे,
इनको हद में लाओ तुम।
✍️हेमा तिवारी भट्ट,मुरादाबाद
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एक दो तीन चार
कोरोना की होगी हार
पाँच छह सात आठ
करो भीड़ का बायकॉट ।
नौ दस हमसे बोलें
हाथों को साबुन से धो लें।
ग्यारह बारह करें पुकार
स्वच्छ रखो अपना घर -बार।
तेरह चौदह का ये कहना
बस अपने घर पर ही रहना
पंद्रह सोलह कहते हमसे
नहीं निकलना अपने घर से।
सतरह और अठारह कहते
मास्क लगाकर रोग से बचते।
उन्नीस और बीस की बारी
देश बचाना ज़िम्मेदारी ।।
✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद
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गोरे - गोरे बादल आये
पानी रत्ती भर न लाये
सजा रहे बस नील गगन को
तेज धूप में मन न भाये ।
गोरे - गोरे.....
दौड़ रहे हैं नभ अँगना ये
लुका छिपि है खेल सुहाये
धवल - धवल से लगते सुंदर
पर साथ उमस के हैं धाये ।
गोरे - गोरे....
स्वांग भरते अनगिन दिनभर
बाल मनों को खूब लुभाये
कभी पहाड़ कभी नदिया बन
पल पल कितने रूप बनाये ।
गोरे - गोरे .....
✍️डॉ. रीता सिंह
मुरादाबाद
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हम बच्चे मन के सच्चे है,
इसीलिये तो अच्छे है।। रखते नहीं हैं मन मे बैर,
नही समझते किसी को गैर। खेलें मिलकर सारे खेल,
आपस में रखतें है मेल।
जाति -पांति का भेद न माने,
सबको अपने जैसा जाने।
अच्छी अच्छी बातें सीखें,
तभी तो सबसे सुंदर दीखे।
✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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चलो फिर बचपन याद करते हैं
मुस्कराकर फिर से वहां चलते हैं
जुगनुओं को बंद कर हथेली में
उजाला करना
तितलियों के पीछे दौड़कर
बहुत दूर जाना
चलो लौटकर फिर वहीं चलते हैं
चलो बचपन.......................
वो बेफिक्री से रहना खाना और
जमीन पर सो जाना
उठकर आँख मलते हुए फिर
खेलने जाना
चलो लौटकर वहीं चलते हैं
चलो बचपन......................
वो दादी नानी के मूँह सुनी राजा रानी
शेखचिल्ली की कहानी
वो दादा जी का हाथ पकड़कर करना
खूब मनमानी
चलो लौटकर वहीं चलते हैं
चलो बचपन.................................
चलो फिर बचपन याद करते हैं.
✍️राशि सिंह
वेवग्रीन कॉलोनी, मुरादाबाद
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चारों ओर पहाड़ी दिखती, नदिया कल-कल बहती जाय ।
खेतों झूम रही हरियाली, पवन रही कैसे मचलाय ?
धरती पर तोपें दिखती हैं, आसमान में जैट दिखाय ।
युद्धपोत सागर में दौड़ें, मोटर में सेना चढ़ आय ।।
दृश्य अजीब लगे यह मुझको, कौन रहा है जो उकसाय ।
आंँक रहा जो कमतर हमको, लगता उसको मौत बुलाय ।।
अपन देश की जनता देखो, उसके हित की सोचो जाय ।
विश्व को शांतिमय रहने दो, अहंकार से मत इतराय ।।
भारत देश का बाल-बूढ़ा, दुश्मन से महिला भिड़ जाय ।
भारत मां है हमको प्यारी, सब कुछ इस पर बलि-बलि जाय ।।
✍️राम किशोर वर्मा
रामपुर
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कितना भोला है बचपन।
चले जिधर ले जाए मन।
रूठ गए फिर मान गए,
बच्चों का अद्भुत जीवन।
छल फरेब ये ना जानें।
सबको ही अपना मानें।
जिसने हँसकर बात करी,
उसको ही दे बैठे मन।
जात धर्म की सोच नहीं।
छुआछूत का भेद नहीं।
साथ खेलते खाते हैं,
इनसे सीखो अपनापन।
बैर न इनमें आ जाए।
मन में जहर न घुल जाए।
इनको ऐसे ढालो तुम,
बना रहे ये अपनापन।
✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69,
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद।
मोबाइल नंबर 9456641400
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