शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद के दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय व मैथोडिस्ट कन्या इंटर कॉलेज की पूर्व छात्रा मॉरीशस की साहित्यकार कल्पना लाल जी का खण्डकाव्य ----इंद्रधनुषों का देश मोरिशस


हिन्द महासागर के मध्य  , एक तारा चमक रहा। 

बहुमूल्य रत्न सिंधु का , प्रकाश पुंज सा दमक रहा l।

मकर अयनवृत रेखा पर , बसा मोरिशस एक टापू है l

लम्बाई जिसकी चालीस मील , और चौड़ाई तीस है ।।

सात सौ बीस वर्गमील में फैला , मोती के आकार का ।

अन्य द्वीप भी बसे चहुँ ओर , पर सितारा यह संसार का ।।

चारों ओर इस टापू के , हैं फैली गगनचुम्बी पर्वतमालाएं ।

शीश उठाये वे गर्व से , सौंदर्य में चार चांद लगायें।।

समुद्री लुटेरों ने आकर यहाँ, लूटा धन छुपाया था।

निर्जन घने वनों का भी , उन्होंने पूरा लाभ उठाया था।।

सन पंद्रह सौ सात में , आये थे यहाँ नाविक पुर्तगाली।

देखा जब पक्षी डोडो सबने , छाई थी मुख पर हरियाली।।

राजहंस फिर समझ उसे , वे राजहंसों के इस देश मे ।

पूरे पंद्रह वर्षों तक वे  , बसे रहे यहाँ नाविक वेश में ।।

आगमन हुआ तब डचों का , सन पंद्रह सौ अठावन में।

तूफानों से बचते-बचते वे , आ पहुँचे थे इस आंगन में।।

मोरिस वान नासो नामक , राजकुमार के सम्मान में।

विख्यात मोरिशस भी हुआ , इस सारे जहांन में।।

फैला प्रकोप महामारी का जब , और  नष्ट-भष्ट हुआ सब ।

हो निरुत्साहित उन्होंने , द्वीप से नाता तोड़ा

 तब ।।

लाभ उठाया अवसर का , और  फ्रेंचों ने इसको जा पकड़ा ।

सत्रह सौ पंद्रह ईसवीं में , अपनी ताकत से जा जकड़ा ।।

शासक बनकर द्वीप का  , बदल डाली इसकी काया ।

इल दे फ्रांस नाम रखा , और फिर अपना राज्य बसाया ।।

विस्तार हुआ उस समय कृषि का  , फ्रेंचों के शासन काल में।

फ्रेंच उपनिवेश के रूप मे , सम्पन्न हुआ हर हाल में।।

दासों के सहयोग से भी  , तब पलटी काया देश की ।

राह नवीन उन्होंने जा खोजी , सेवा सबने विशेष की ।।

सोने पर सुहागा समझो, नया गवर्नर एक आया।

माहे दे लबुरदोने ने तब ,रहने योग्य द्वीप सजाया।

राजधानी पोर्ट लुईस को , उसने सुंदर और बनाया।

नवीन बंदरगाह ने तो , उसमे चार चाँद लगाया।।

यह काल लेकर आया , शकर का फिर उत्पादन ऐसा। 

अन्य देशों में ढूँढे से भी , मिलता न इसके जैसा ।।

पाम्प्लेमूस उद्यान का, पीएट पोवर ने विस्तार किया ।

भाँति-भाँति के वृक्षों से , उसका फिर सिंगार किया ।।

व्यापारिक दृष्टि से भी , द्वीप यह जाना माना था।

नाविकों की खातिर तो , यह अनमोल खजाना था ।।

फ्रांसीसी जन क्रान्ति ने तब , खेला अनोखा खेल।

हलचल खूब  मची यहां भी , कैदियों ने तोड़ी जेल।

आपस में लड़ने लगे तब  , अंग्रेज़ी और फ्रेंच।

सोचा छोटी सी यह धरती , बने सामरिक मंच।।

लार्ड मिंटो था दूरदर्शी , कर दिया शुरू अभियान।

बुर्बो और रोड्रिग से , भागे फ्रेंच बचा कर जान ।।

पूरे सैन्य बल के साथ , बोल दिया गोरों ने हल्ला ।

मार्ग न सूझा फ्रेंचों को तो , जा थामा संधि का पल्ला ।।

असफल प्रयत्न सारे हुए , फिर भी कोशिशें की हज़ार ।

जान बचा कर इस द्वीप से , भागे वे अबकी बार ।।

देकर बूर्बो फ्रेंचों को , रोड्रिग गोरों ने हथियाया ।

मोरिशस पर कब्ज़ा कर , अपना उपनिवेश बनाया ।।

नामकरण फिर से किया , इस छोटे से द्वीप का ।

मोरिशस तब पड़ गया , फ्रेंचों के इलदे फ्रांस का ।।

भारतीय कलकत्ता से लाये , कलकतिया उनका नाम पड़ा ।

आज तलक जो न छूटा , ऐसा हृदयों में जा गड़ा ।।

सन अठारह सौ चौंतीस में , शर्तबंद की प्रथा चलाई।

अरकाटिये प्रलोभन देकर , करने लगे रोज़ कमाई ।।

भोले भाले और गरीब , असंख्य सपने लेकर आये ।

पथरीली सूखी भूमि ने , किस्मत उनकी फोड़ी हाय ।।

जैसे- तैसे राम-राम कर , इस धरती पर रखा पाँव।

ठोकर ही ठोकर मिली , औऱ मिले घाव पर घाव ।।

साहस तब भी न छोड़ा , और लिया धैर्य से काम।

अब कर्म उन्हें करना होगा , आगे भली करेंगे राम ।।

गीता औऱ रामायण वे , थे लाये अपने साथ ।

आगे सब बढ़ने लगे , थाम एक दूजे का हाथ ।।

अंग्रेज़ ज़मीनों के थे मालिक , मिल कारखाने सब उनका  ।

कमाई उनके हाथ मे थी , सब पर चलता था बस उनका ।।

निर्दयी क्रूर गोरे सब मिलकर  ,चालाकी से काम निकालें ।

रखा हमको शिक्षा से वंचित , अनपढ़ फिर कैसे होश संभाले ।।

परिश्रम होता था मजदूरों का , तिजीरियाँ मिल मालिक भरते ।

उनकी  अंतिम सांस तक , गिरमिटियों  के सौ आँसू बहते ।।

 गोरों की ग।ली मिलती उनको  , कोड़े खाते वे हर बात पर ।

 भूखा पेट आंतें अकुलातीं, झिड़कियां खाते बेबात पर ।।          

 सन उन्नीस सौ एक मे  , तब आये यहां महात्मा गांधी  ।

 प्रवासियों के हृदय में , अब एक नई आशा जागी ।।

स्वागत उनका तब किया , व्यथित भारतीय भाइयों ने ।

 उचित शिक्षा बच्चों को दो , खोली आंखे सच्चाइयों ने ।।

मणिलाल डॉक्टर भी आये , मोरिशस की इस भूमि पर ।

 समाज सेवा का व्रत लेकर , उतरे वे कर्म भूमि पर ।।

अंग्रेज़ी और हिंदी में , पत्र निकाला "हिन्दुस्तानी' ।

नये सिरे से फिर छेड़ी  , आज़ादी की जंग पुरानी ।।

महाराज सिंह ने भी आकर , अलख जगाई देश मे ।

शर्तबंदी की प्रथा तब , करवाई बंद ऋशिवेश में ।।

आर्य समाजी जाग उठे , दयानंद की वाणी सुन ।

सम्मान नारियों को दिया , उठ माता कल्याणी सुन ।।

 खेली स्वतंत्रता की होली , तोड़ी ज़ंज़ीर गुलामी की ।

 अमन चैन से था सींचा , आवाज़ न आई गोली की ।।


बारह मार्च सन अड़सठ , दिन आखिर वह भी आया ।

आसमान पर पहली बार , अपना चौरंगा लहराया ।।

 आओ सुनाऊँ मैं गाथा , फिर इस देश मे क्या हुआ ।

जागरण का बिगुल बजा , नवीन सूर्य उदय हुआ  ।।


अंधकार का डूबा सूरज , नवप्रभात लेकर आया ।

हर्षोल्हास का वातावरण , आज है सर्वत्र छाया  ।।

 शिक्षा की कुंजी से तब , सारे ताले टूट चले  ।

 बाँध प्रेम की डोरी से , धरती अम्बर तक हिले  ।।

बैठकायें उस समय की , थीं विद्या का अनमोल स्थान ।

 सर- सर-सर संध्या  काली , सामूहिक स्वर में गूंजे गान ।।

 वेद उपनिषद रामायण , शिक्षा इनकी भी मिलती थी  ।

भजन कीर्तन और प्रार्थनाएं , नित सांझ सवेरे होती थीं ।।


गुजर चुका था यह देश , अब हर पीड़ा हर त्रास से  ।

 हुआ उजाला घर घर मे , चमके चेहरे नई आस से ।।

 मेहनत सबकी रंग लाई फिर ,  देश मे धीरे-धीरे  ।

उन्नति के मार्ग पर अब , चल पड़े वे सांझ-सवेरे ।।

हिंदी साहित्य व संस्कृति , इस देश में फूली फली ।

सुर संगीत की लय पर तो , नवीन हिन्दू संतति पली ।।

 जन कल्याण की दिशा में , अनुपम ऐसे कार्य हुए ।

शिक्षा स्वास्थ्य सेवाओं ने , लोगों को उपहार दिए ।।

शिक्षा रत्न अनमोल है , बच्चों को जो मिल गया ।

 ज्ञान रूपी इस नैया से , मोरिशस मानो तर गया ।।

 आज्ञानता एक दलदल है , जिसका कोई अंत नहीं ।

 शिक्षा से ऊँचा जानो , उन्नति का कोई मंत्र नहीं  ।।

संतानें और प्रगति करें , इस आशा के साथ -साथ ।

पाठशालाएं खुलने लगीं , बैठकाओं ने बांटा हाथ ।।

धार्मिक और सांस्कृतिक , शिक्षायें भी बंटने लगीं  ।

पर्दे आंखों से जब हटे , अंधियारी तब छंटने लगी ।।


 राम कृष्ण बुद्ध व ईसा , ये आशाओं के स्त्रोत्र थे ।

 गांधी बाबा की ही सीख से , मानव ओत -  प्रोत थे ।।

 आर्य समाज ने भी फूंक दिया , शंख नाद चहुँ ओर  ।

कारी अंधियारी के बाद उठी , मीठी- मीठी नव भोर ।।

हम हिन्दू न मुस्लिम हैं , माटी से अपना नाता ।

दीवार उठाना धर्म की  , है कभी नहीं हमको भाता ।।

शिक्षा दीक्षा फली यहां , भाई चारे का हुआ विस्तार ।

 कर्तव्यों का पालन हो , रामराज्य का है यह सार   ।।


समुद्र तट इस देश के , सच जानो हैं बड़े रमणीक  ।

विदेशी पर्यटक यूरोप के , करें क्रीड़ा होकर निर्भीक ।।

 विशाल पक्षी था डोडो एक ऐसा  , जैसा आज कहीं  दिखता नहीं ।

क्षुधा तृप्ति के काम आया , बोला डच शिकारी हमसे  यहीं ।।


पवित्र मीठे जल का ताल , गंगा तालाब है इसका नाम ।

 शिव पूजा होती है इससे , काँवरथी जाते शिव के  धाम ।।

जड़ें ज्यों वट वृक्ष की , स्वम्  फैल जाती हैं चहुँ ओर  ।

स्वतंत्रता की  लालिमा भी , लाई मोरिशस में नव भोर  ।।


आज कर रही है प्रगति , इंद्रधनुषों की यह धरती  ।

अपने अनुपम सौंदर्य से , है जग को आकर्षित करती ।।

नई शताब्दी देखो है आई , लेकर कम्प्यूटर का नवजाल  ।

बदल दिए जिसने आकर , जीवन के सारे सुर ताल ।।


आत्मविश्वास और सम्मान का , बीज उगा जन जन में ।

प्रेम और विश्वास भी , महक उठा अब तन- मन मे  ।।

अपना राष्ट्र ध्वज हमें अब  , प्राणों से भी है प्यारा  ।

सम्मान होवे मातृभूमि का  , है सबका एक ही नारा  ।।


भूलेंगे न हम उनको , जिन्होंने हैं  प्राण गँवाये । 



देश भक्तों की पंक्ति में , अपने- अपने नाम लिखाये  ।।

नील गगन पर चमक रहा , हिन्द महासागर का तारा।

पूरब-पश्चिम और उत्तर दक्षिण , फैला रहा है उजियारा ।

 ✍️ कल्पना लाल, मोरिशस

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