हिन्द महासागर के मध्य , एक तारा चमक रहा।
बहुमूल्य रत्न सिंधु का , प्रकाश पुंज सा दमक रहा l।
मकर अयनवृत रेखा पर , बसा मोरिशस एक टापू है l
लम्बाई जिसकी चालीस मील , और चौड़ाई तीस है ।।
सात सौ बीस वर्गमील में फैला , मोती के आकार का ।
अन्य द्वीप भी बसे चहुँ ओर , पर सितारा यह संसार का ।।
चारों ओर इस टापू के , हैं फैली गगनचुम्बी पर्वतमालाएं ।
शीश उठाये वे गर्व से , सौंदर्य में चार चांद लगायें।।
समुद्री लुटेरों ने आकर यहाँ, लूटा धन छुपाया था।
निर्जन घने वनों का भी , उन्होंने पूरा लाभ उठाया था।।
सन पंद्रह सौ सात में , आये थे यहाँ नाविक पुर्तगाली।
देखा जब पक्षी डोडो सबने , छाई थी मुख पर हरियाली।।
राजहंस फिर समझ उसे , वे राजहंसों के इस देश मे ।
पूरे पंद्रह वर्षों तक वे , बसे रहे यहाँ नाविक वेश में ।।
आगमन हुआ तब डचों का , सन पंद्रह सौ अठावन में।
तूफानों से बचते-बचते वे , आ पहुँचे थे इस आंगन में।।
मोरिस वान नासो नामक , राजकुमार के सम्मान में।
विख्यात मोरिशस भी हुआ , इस सारे जहांन में।।
फैला प्रकोप महामारी का जब , और नष्ट-भष्ट हुआ सब ।
हो निरुत्साहित उन्होंने , द्वीप से नाता तोड़ा
तब ।।
लाभ उठाया अवसर का , और फ्रेंचों ने इसको जा पकड़ा ।
सत्रह सौ पंद्रह ईसवीं में , अपनी ताकत से जा जकड़ा ।।
शासक बनकर द्वीप का , बदल डाली इसकी काया ।
इल दे फ्रांस नाम रखा , और फिर अपना राज्य बसाया ।।
विस्तार हुआ उस समय कृषि का , फ्रेंचों के शासन काल में।
फ्रेंच उपनिवेश के रूप मे , सम्पन्न हुआ हर हाल में।।
दासों के सहयोग से भी , तब पलटी काया देश की ।
राह नवीन उन्होंने जा खोजी , सेवा सबने विशेष की ।।
सोने पर सुहागा समझो, नया गवर्नर एक आया।
माहे दे लबुरदोने ने तब ,रहने योग्य द्वीप सजाया।
राजधानी पोर्ट लुईस को , उसने सुंदर और बनाया।
नवीन बंदरगाह ने तो , उसमे चार चाँद लगाया।।
यह काल लेकर आया , शकर का फिर उत्पादन ऐसा।
अन्य देशों में ढूँढे से भी , मिलता न इसके जैसा ।।
पाम्प्लेमूस उद्यान का, पीएट पोवर ने विस्तार किया ।
भाँति-भाँति के वृक्षों से , उसका फिर सिंगार किया ।।
व्यापारिक दृष्टि से भी , द्वीप यह जाना माना था।
नाविकों की खातिर तो , यह अनमोल खजाना था ।।
फ्रांसीसी जन क्रान्ति ने तब , खेला अनोखा खेल।
हलचल खूब मची यहां भी , कैदियों ने तोड़ी जेल।
आपस में लड़ने लगे तब , अंग्रेज़ी और फ्रेंच।
सोचा छोटी सी यह धरती , बने सामरिक मंच।।
लार्ड मिंटो था दूरदर्शी , कर दिया शुरू अभियान।
बुर्बो और रोड्रिग से , भागे फ्रेंच बचा कर जान ।।
पूरे सैन्य बल के साथ , बोल दिया गोरों ने हल्ला ।
मार्ग न सूझा फ्रेंचों को तो , जा थामा संधि का पल्ला ।।
असफल प्रयत्न सारे हुए , फिर भी कोशिशें की हज़ार ।
जान बचा कर इस द्वीप से , भागे वे अबकी बार ।।
देकर बूर्बो फ्रेंचों को , रोड्रिग गोरों ने हथियाया ।
मोरिशस पर कब्ज़ा कर , अपना उपनिवेश बनाया ।।
नामकरण फिर से किया , इस छोटे से द्वीप का ।
मोरिशस तब पड़ गया , फ्रेंचों के इलदे फ्रांस का ।।
भारतीय कलकत्ता से लाये , कलकतिया उनका नाम पड़ा ।
आज तलक जो न छूटा , ऐसा हृदयों में जा गड़ा ।।
सन अठारह सौ चौंतीस में , शर्तबंद की प्रथा चलाई।
अरकाटिये प्रलोभन देकर , करने लगे रोज़ कमाई ।।
भोले भाले और गरीब , असंख्य सपने लेकर आये ।
पथरीली सूखी भूमि ने , किस्मत उनकी फोड़ी हाय ।।
जैसे- तैसे राम-राम कर , इस धरती पर रखा पाँव।
ठोकर ही ठोकर मिली , औऱ मिले घाव पर घाव ।।
साहस तब भी न छोड़ा , और लिया धैर्य से काम।
अब कर्म उन्हें करना होगा , आगे भली करेंगे राम ।।
गीता औऱ रामायण वे , थे लाये अपने साथ ।
आगे सब बढ़ने लगे , थाम एक दूजे का हाथ ।।
अंग्रेज़ ज़मीनों के थे मालिक , मिल कारखाने सब उनका ।
कमाई उनके हाथ मे थी , सब पर चलता था बस उनका ।।
निर्दयी क्रूर गोरे सब मिलकर ,चालाकी से काम निकालें ।
रखा हमको शिक्षा से वंचित , अनपढ़ फिर कैसे होश संभाले ।।
परिश्रम होता था मजदूरों का , तिजीरियाँ मिल मालिक भरते ।
उनकी अंतिम सांस तक , गिरमिटियों के सौ आँसू बहते ।।
गोरों की ग।ली मिलती उनको , कोड़े खाते वे हर बात पर ।
भूखा पेट आंतें अकुलातीं, झिड़कियां खाते बेबात पर ।।
सन उन्नीस सौ एक मे , तब आये यहां महात्मा गांधी ।
प्रवासियों के हृदय में , अब एक नई आशा जागी ।।
स्वागत उनका तब किया , व्यथित भारतीय भाइयों ने ।
उचित शिक्षा बच्चों को दो , खोली आंखे सच्चाइयों ने ।।
मणिलाल डॉक्टर भी आये , मोरिशस की इस भूमि पर ।
समाज सेवा का व्रत लेकर , उतरे वे कर्म भूमि पर ।।
अंग्रेज़ी और हिंदी में , पत्र निकाला "हिन्दुस्तानी' ।
नये सिरे से फिर छेड़ी , आज़ादी की जंग पुरानी ।।
महाराज सिंह ने भी आकर , अलख जगाई देश मे ।
शर्तबंदी की प्रथा तब , करवाई बंद ऋशिवेश में ।।
आर्य समाजी जाग उठे , दयानंद की वाणी सुन ।
सम्मान नारियों को दिया , उठ माता कल्याणी सुन ।।
खेली स्वतंत्रता की होली , तोड़ी ज़ंज़ीर गुलामी की ।
अमन चैन से था सींचा , आवाज़ न आई गोली की ।।
बारह मार्च सन अड़सठ , दिन आखिर वह भी आया ।
आसमान पर पहली बार , अपना चौरंगा लहराया ।।
आओ सुनाऊँ मैं गाथा , फिर इस देश मे क्या हुआ ।
जागरण का बिगुल बजा , नवीन सूर्य उदय हुआ ।।
अंधकार का डूबा सूरज , नवप्रभात लेकर आया ।
हर्षोल्हास का वातावरण , आज है सर्वत्र छाया ।।
शिक्षा की कुंजी से तब , सारे ताले टूट चले ।
बाँध प्रेम की डोरी से , धरती अम्बर तक हिले ।।
बैठकायें उस समय की , थीं विद्या का अनमोल स्थान ।
सर- सर-सर संध्या काली , सामूहिक स्वर में गूंजे गान ।।
वेद उपनिषद रामायण , शिक्षा इनकी भी मिलती थी ।
भजन कीर्तन और प्रार्थनाएं , नित सांझ सवेरे होती थीं ।।
गुजर चुका था यह देश , अब हर पीड़ा हर त्रास से ।
हुआ उजाला घर घर मे , चमके चेहरे नई आस से ।।
मेहनत सबकी रंग लाई फिर , देश मे धीरे-धीरे ।
उन्नति के मार्ग पर अब , चल पड़े वे सांझ-सवेरे ।।
हिंदी साहित्य व संस्कृति , इस देश में फूली फली ।
सुर संगीत की लय पर तो , नवीन हिन्दू संतति पली ।।
जन कल्याण की दिशा में , अनुपम ऐसे कार्य हुए ।
शिक्षा स्वास्थ्य सेवाओं ने , लोगों को उपहार दिए ।।
शिक्षा रत्न अनमोल है , बच्चों को जो मिल गया ।
ज्ञान रूपी इस नैया से , मोरिशस मानो तर गया ।।
आज्ञानता एक दलदल है , जिसका कोई अंत नहीं ।
शिक्षा से ऊँचा जानो , उन्नति का कोई मंत्र नहीं ।।
संतानें और प्रगति करें , इस आशा के साथ -साथ ।
पाठशालाएं खुलने लगीं , बैठकाओं ने बांटा हाथ ।।
धार्मिक और सांस्कृतिक , शिक्षायें भी बंटने लगीं ।
पर्दे आंखों से जब हटे , अंधियारी तब छंटने लगी ।।
राम कृष्ण बुद्ध व ईसा , ये आशाओं के स्त्रोत्र थे ।
गांधी बाबा की ही सीख से , मानव ओत - प्रोत थे ।।
आर्य समाज ने भी फूंक दिया , शंख नाद चहुँ ओर ।
कारी अंधियारी के बाद उठी , मीठी- मीठी नव भोर ।।
हम हिन्दू न मुस्लिम हैं , माटी से अपना नाता ।
दीवार उठाना धर्म की , है कभी नहीं हमको भाता ।।
शिक्षा दीक्षा फली यहां , भाई चारे का हुआ विस्तार ।
कर्तव्यों का पालन हो , रामराज्य का है यह सार ।।
समुद्र तट इस देश के , सच जानो हैं बड़े रमणीक ।
विदेशी पर्यटक यूरोप के , करें क्रीड़ा होकर निर्भीक ।।
विशाल पक्षी था डोडो एक ऐसा , जैसा आज कहीं दिखता नहीं ।
क्षुधा तृप्ति के काम आया , बोला डच शिकारी हमसे यहीं ।।
पवित्र मीठे जल का ताल , गंगा तालाब है इसका नाम ।
शिव पूजा होती है इससे , काँवरथी जाते शिव के धाम ।।
जड़ें ज्यों वट वृक्ष की , स्वम् फैल जाती हैं चहुँ ओर ।
स्वतंत्रता की लालिमा भी , लाई मोरिशस में नव भोर ।।
आज कर रही है प्रगति , इंद्रधनुषों की यह धरती ।
अपने अनुपम सौंदर्य से , है जग को आकर्षित करती ।।
नई शताब्दी देखो है आई , लेकर कम्प्यूटर का नवजाल ।
बदल दिए जिसने आकर , जीवन के सारे सुर ताल ।।
आत्मविश्वास और सम्मान का , बीज उगा जन जन में ।
प्रेम और विश्वास भी , महक उठा अब तन- मन मे ।।
अपना राष्ट्र ध्वज हमें अब , प्राणों से भी है प्यारा ।
सम्मान होवे मातृभूमि का , है सबका एक ही नारा ।।
भूलेंगे न हम उनको , जिन्होंने हैं प्राण गँवाये ।
देश भक्तों की पंक्ति में , अपने- अपने नाम लिखाये ।।
नील गगन पर चमक रहा , हिन्द महासागर का तारा।
पूरब-पश्चिम और उत्तर दक्षिण , फैला रहा है उजियारा ।
✍️ कल्पना लाल, मोरिशस
बहुत बहुत सुंदर ।
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