गुरुवार, 22 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा ---बेटी


"अरे बाबू जी !क्यों परेशान हो रहे हैं,आप? सारी जायदाद दो हिस्सों में बाँटकर आप दोनों बहनों को दे दो।मुझे कुछ नहीं चाहिए।आप साथ हैं तो सब कुछ है मेरे पास।"

"हम माँ बाप हैं बेटा।तेरे साथ अन्याय कैसे होने देंगे?"अम्मा बोली।

"चाहिए तो मुझे भी कुछ नहीं है, भाई।पर दुष्ट को सबक तो सिखाना ही होगा।हमारे पिता की हम तीन संतानें हैं,तो जायदाद का बँटवारा भी तीन हिस्सों में होगा।वैसे भी मुझे पता है अम्मा बाबू के इलाज में तूने अपनी सारी जमा पूँजी भी खर्च कर दी है।"बड़ी बहन समझाते हुए बोली

"हमें जीवन देने वाले माता-पिता के लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकता,दीदी।"

"काश !उस मॉडर्न बनी फिरती नासमझ ममता के दिमाग में भी कुछ बात आती तो माँ बाबू जी अपनी जमीन होते हुए भी आज इतने असहाय नहीं होते।जमीन को बेचकर ही सही अपने इलाज के लिए कम से कम कुछ रकम तो जुटा पाते।पर कहाँ....? यहाँ तो उसने बँटवारे को लेकर कोर्ट में मामला डाल दिया है।"दीदी ने दुखी स्वर में बोला।

"ममता से ऐसी उम्मीद तो कतई नहीं थी।आखिर बेटी है वह हमारी।हमने कभी बेटा,बेटी में फर्क नहीं किया।पर उसे हमेशा कम लगा और अब देखो सही कानून का गलत फायदा उठाकर वह अपने ही बीमार माँ बाप और उस भाई को कोर्ट कचहरी के चक्कर लगवा रही है जिसने उसकी खुशहाल गृहस्थी बसाने में कोई कसर न छोड़ी। भगवान ऐसी औलाद किसी को न दें।"अम्मा हताशा से बिफर पड़ी।

लेकिन बाबू जी चुपचाप सिर झुकाए जमीन की ओर देखते रहे।शायद उन्हें अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि उनकी सबसे लाडली छोटी बेटी ममता ने अपने वकील पति की सलाह से उन पर ही जमीन के बँटवारे का मुकदमा डाल दिया है।

✍️हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

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