कविंद्र जी बहुत खुश थे।कोराना काल में ईश्वर उन पर पूरी तरह से मेहरबान चल रहा था ।अलग अलग फेसबुक समूहों पर लगभग प्रतिदिन उनका लाइव काव्यपाठ आ रहा था ।हर जगह से सम्मान पत्र भी मिल रहे थे, जिनको बड़े सलीके से उन्होंने घर में सजा रखा था लेकिन व्यस्तता बढ़ जाने के कारण घर के काम प्रभावित हो रहे थे,जिसके चलते पत्नी का स्वभाव चिड़चिड़ा हो गया था।
आज सुबह जैसे ही उनके मोबाइल की घंटी बजी,पत्नी अंदर से चिल्लाई "सुनो जी अब किसी को काव्य पाठ के लिए हां मत कह देना।घर की सारी दीवारें भर चुकी हैं।अब जो भी सम्मान पत्र मिलेगा, टॉयलेट में ही लगाना पड़ेगा।वैसे भी क्या हो रहा है,सब आपस में ही एक दूसरे की सुनते रहते हो"
✍️डाॅ पुनीत कुमार
T -2/505,आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
आदरणीय, बहुत अच्छी समसामयिक रचना। सिर्फ प्रमाणपत्र के लिए लालायित साहित्यकारों पर करारा व्यंग्य। साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआपको लघुकथा अच्छी लगी इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।
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