श्रीमती कुंती ने अपनी सहेली श्रीमती वंदना से मोबाइल पर पूंँछा - "मुझे आज एक कहानी दिये गये शीर्षक "वेदना से रंजना" पर लिखनी है। कुछ बता न !"
श्रीमती वंदना ने कहा -- "नारी का जीवन ही 'वेदना से रंजना' है। लड़की का विवाह के समय मां-बाप से बिछुड़ना 'वेदना' है पर ससुराल का पाना 'रंजना' है । हर स्त्री को बच्चे की चाहत 'रंजना' है और उसे जन्म देना 'वेदना' । खेल और अभिनय में स्वयं को स्थापित करने हेतु अनेक 'वेदनाओं' से गुजरना पड़ता है पर उसके बाद वही 'वेदनायें' 'रंजना' में बदल जाती हैं। बस! ऐसे ही बहुत से विषय हैं स्त्रियों के । उनपर कलम चला।"
"नहीं-नहीं" --श्रीमती कुंती ने कहा -- "कुछ अलग सा नया विषय दें। यह सब पुराने हो गये।"
श्रीमती वंदना बोली --"कोरोना पर लिख न ! कोरोना ने जहां जीना दूभर कर दिया है वहीं जीने के लिए पर्यावरण व जल -वायु शुद्ध कर दिया है । पृथ्वी का कंपन कम हो गया है। भौतिकवाद से हटकर आदमी अध्यात्म की ओर लौटा है । बाजारवाद से हटकर घर-घर महिलाओं ने नये-नये व्यंजन बनाना सीख लिया है। जिंदगी की भाग-दौड़ में अब लोगों को परिवार के साथ रहने का अवसर मिला है। कुछ समय के लिए जीवन में शकून लौटा है । चोरी-डकैती बंद हो गयी हैं ।लोगों की बीमारी जैसे गायब हो गई है।"
श्रीमती कुंती ने बीच में ही कहा --"बस वंदना ! कोरोना का विषय ही सही है । मैं इसी पर लिखती हूं।"
"थैंक्स ए लॉट" -- कहकर श्रीमती कुंती ने मोबाइल कट कर दिया ।
✍️राम किशोर वर्मा, रामपुर
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