रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की कुण्डलिया ----


पापा गुडिया आपको  , करे बहुत ही  याद ।

  जग सूना लगता मुझे , एक आपके  बाद।।

  एक आपके बाद,  हुई मैं आज अकेली ।

  उलझाती हैं रोज़, ज़िंदगी हुई पहेली।

  सबल वृक्ष की छाँव, गया कब उसको मापा ।

  वह मजबूती-साथ ,कहाँ से लाऊँ, पापा !!                                   

✍️ प्रीति चौधरी गजरौला,अमरोहा

                                       

मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी (जनपद सम्भल ) के साहित्यकार रमेश अधीर की रचना ---सिखलाते थे जीने का अंदाज हमारे बाबू जी ....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में नोएडा निवासी) साहित्यकार अटल मुरादाबादी की रचना ---पिता जो जन्म देता है ,विधाता ही कहाता है -------


 

मुरादाबाद मंडल के अफजलगढ़ (जनपद बिजनौर ) के साहित्यकार डॉ अशोक रस्तोगी की रचना ---


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना---– पिता वही कहलाता है

 


दुख सह कर भी बच्चों के हित 

खुशियां जो ले आता है ।

बाहर गुस्सा प्रेम हृदय का 

कभी नहीं दिखलाता है।

दिल का दर्द समा ले दिल में 

पिता वही कहलाता है।

लव पर सदा दुआएं जिसके

पिता वही कहलाता है।

 पिता वही कहलाता है

खुद खाये कुछ,या न खाए,

परिवार न भूखा रह जाये।

सब सोयें अमन चैन से पर,

रातों को नींद नहीं आये।

परिवार का पालन पोषण

 जिस के हिस्से आता है।

संतानो के लिए सदा

 दुनिया भर से लड़ जाता है।

दिल का दर्द समा ले दिल में 

पिता वही कहलाता है।

लव पर सदा दुआएं जिसके

पिता वही कहलाता है।

पिता वही कहलाता है।।

जीवन भर कमा कमा कर जो,

धन जोड़े जान खपा कर जो। 

तन काटे और मन को मारे,

बन  गये महल और चौबारे।

अपनी पूंजी पर भी जो

 हक कभी नहीं जतलाता है।

बच्चों के हित अक्सर घर में

 खलनायक बन जाता है।

दिल का दर्द समा ले दिल में 

पिता वही कहलाता है।।

लव पर सदा दुआएं जिसके

पिता वही कहलाता है।

पिता वही कहलाता है।।

तन पिंजर बल काफूर हुआ,

चलने से भी मजबूर  हुआ

बच्चे अब ध्यान नहीं रखते,

कुछ भी सम्मान नहीं रखते,

अपने सारे दुख जो अपने

 अंतर बीच छुपाता है।

अपने मन की व्यथा कथा 

ना दुनिया से कह पाता है।।

दिल का दर्द समा ले दिल में 

पिता वही कहलाता है।

पिता वही कहलाता है।

संकट की घड़ियों में भी 

दुख प्रकट नहीं कर पाता है

संतापों का सारा विष

चुपचाप स्वयं पी जाता है 

लब पर सदा दुआएं जिसके 

पिता वही कहलाता है 

पिता वही कहलाता है।।

✍️ अशोक विद्रोही ,प्रकाश नगर, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कुण्डलिया --पर्वत से दृढ़ तुम पिता


 सागर  से  गंभीर  तुम , नभ  जैसा  विस्तार 

पर्वत  से  दृढ़  तुम  पिता ,वंदन  है शत बार

वंदन   है   शत   बार ,  सदा  देते  ही  पाया 

घर को शुभ आकार ,मिली तुमसे ही काया

कहते  रवि कविराय ,स्वयं सिमटे गागर-से

चाह  रहे  संतान ,  बने  बढ़कर  सागर   से

 ✍️ रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर के मुक्तक और दोहे ....

 


मुक्तक 

खुद में सारे दर्द समेटे खड़े पिता।

घर की खातिर हर संकट से लड़े पिता।

और भला क्या मांगूँ तुमसे भगवन मैं,

दुनियां भर की दौलत से भी बड़े पिता।


अन्तर्मन पर जब-जब फैला तम का साया।

या कष्टों की आपाधापी ने भरमाया।

तब-तब बाबूजी के अनुभव की आभा ने,

जीवन पथ पर बढ़ते रहना सुगम बनाया।


दुनियां के हर सुख से बढ़कर, मुझको प्यारे तुम पापा।

मेरे असली चंदा-सूरज, और सितारे तुम पापा।

लिपट तिरंगे में लौटे हो,बहुत गर्व से कहता हूँ,

मिटे वतन पर सीना ताने, कभी न हारे तुम पापा।


दोहे

दोहे में ढल कर कहे, घर-भर का उल्लास। 

मम्मी है यदि कोकिला, तो पापा मधुमास।। 

चुपके-चुपके झेल कर, कष्टों के तूफ़ान। 

पापा हमको दे गये, मीठी सी मुस्कान।।

दिया हमें भगवान ने, यह सुन्दर उपहार।

जीवन के उत्थान को, पापा की फटकार।।

✍️  राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका मासूम की रचना -पिता अमृत की धारा है, ज़रा सा स्वाद खारा है पिता चोटी हिमालय की, ये चौखट है शिवालय की


 प्रथम अभिव्यक्ति जीवन की

पिता है शक्ति तन मन की,   

पिता है नींव की मिट्टी,

जो थामे घर को है रखती 


पिता ही द्वार पिता प्रहरी , 

सजग रहता है चौपहरी

पिता दीवारो दर है छत, 

ज़रा स्वभाव का है सख्त


पिता पालन है पोषण है, 

पिता से घर में भोजन है

पिता से घर में अनुशासन,

 डराता जिसका प्रशासन


पिता संसार बच्चों का,

 सुलभ आधार सपनों का

पिता पूजा की थाली है, 

पिता होली दिवाली है


पिता अमृत की  धारा है, 

ज़रा सा स्वाद  खारा है

पिता चोटी हिमालय की, 

ये चौखट है शिवालय की


हरी, ब्रह्मा या शिव होई,

पिता सम पूजनिय कोई

हुआ है न कभी होई, 

हुआ है न कोई होई                  


✍️  मोनिका "मासूम", मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना ---- मेरा आसमान पिता,मेरा अभिमान पिता जग वरदान पिता,संकटों को टालता


धूप सा कड़क बन,छाँव की सड़क बन

उर की धड़क बन,पिता हमें पालता।


डाँट फटकार कर,कभी पुचकार कर,

सब कुछ वार कर,वही तो  सँभालता।


जीवन आधार बन,प्रगति का द्वार बन,

ईश का दुलार बन,साँचे में है ढालता।


मेरा आसमान पिता,मेरा अभिमान पिता

जग वरदान पिता,संकटों को टालता।


✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की रचना ----कारज अपने सभी निभाते बनें नहीं अधिनायक पापा -

 


हर बेटी के नायक पापा

करते हैं सब लायक पापा

कारज अपने सभी निभाते

बनें नहीं अधिनायक पापा ।


जग में सबसे न्यारे होते

जनक सिया के प्यारे होते

अपनी राजकुमारी पर हैं

सारे सपने वारे पापा ।


वर्ष हजार जियें दुनिया में

यही कामना करूँ दुआ में

रोग शोक से रहें दूर वो 

महके उनकी महक हवा में ।

✍️ डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार मयंक शर्मा की ग़ज़ल --- जीवन संघर्षों को लेकर हम जब भी कमज़ोर पड़ें, ताक़त बनकर साथ हमारे रहते चारों ओर पिता


मां है नदिया की गहराई तो नदिया का छोर पिता,

कभी न रुकने वाले जैसे सागर का हैं शोर पिता।


सबके अपने-अपने मन हैं सबके अपने सपने हैं,

घर की हर ज़िम्मेदारी को रखते अपनी ओर पिता।


माँ के मुख की रौनक तन का हर आभूषण उनसे है,

ईंगुर, बिंदी, काजल वाली आंखों की हैं कोर पिता।


आँसू के इक क़तरे को भी आने का अधिकार न था

पर जब विदा हुई बहना तो बरसे थे घनघोर पिता।


अपनेपन की ख़ुशबू पाकर महक रही उस माला में,

रिश्तों को फूलों सा गूँथे रखने वाली डोर पिता।


ज़ख्म मिले जीवनपथ में जो ख़ुद में उनको दफ़्न किया,

मुश्किल से मुश्किल पल में भी नहीं दिखे कमज़ोर पिता।


संकट की काली अँधियारी छाया जब भी छा जाती,

एक नई स्वर्णिम आभा की लेकर आते भोर पिता।


जीवन संघर्षों को लेकर हम जब भी कमज़ोर पड़ें,

ताक़त बनकर साथ हमारे रहते चारों ओर पिता।

✍️मयंक शर्मा, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार दुष्यंत बाबा का गीत --उन्हीं पिता के हम गुण गाएं उनको हम सब शीश झुकाएं


जो देकर अपनी ऊर्जा करता नवग्रह का संचार।

उसी सूर्य सम तात है सन्तान के सकल संसार।।


पिता सूर्य  हैं, पिता  है  बरगद

गम में दुखी हैं खुशी में गदगद

बच्चों में मिल बच्चे बन  जाएं

हर दुख को खुद ही सह जाएं

उन्हीं  पिता  के हम  गुण गाएं

उनको हम  सब शीश  झुकाएं


पिता  हैं  पोषक, पिता सहारा

ये  संतति  के  हैं  सृजन  हारा

पूरे  कुल  का  जो भार उठाएं

कभी न इनके दिल को दुखाएं

उन्हीं  पिता  के  हम  गुण गाएं

उनको हम  सब शीश  झुकाएं


पिता  हैं  मेला,  पिता  है ठेला

पिता बिना लगे संसार अकेला

अपना  दुःख  न  कभी जताएं

जो बिना आंसुओं  के  रो पाएं

उन्हीं  पिता  के  हम  गुण गाएं

उनको हम  सब शीश  झुकाएं


पिता  क्रोध, पिता  पालनहारा

इनके  क्रोध  में  छिपा  सहारा

दुःख  में भी तो ये हंसते  जाएं

हम  रहस्य  को समझ न पाएं

उन्हीं  पिता  के हम  गुण गाएं

उनको हम  सब शीश  झुकाएं


पिता कठोर  हैं उतने ही मृदल

जो नित पिता का आशीष पाएं

वह कर्म  करें  न पाछे पछताएं

सारी  विपदा  से वह बच जाएं

उन्हीं  पिता  के  हम  गुण गाएं

उनको हम  सब शीश  झुकाएं


पिता सृष्टि संतान की पिता ही जन आधार।

पिता की छाया  मात्र  से  हो  जाता उद्धार!।।

✍️ दुष्यन्त बाबा, पुलिस लाइन, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी की कविता ----एक पिता ही जनाब


 बाज़ार से लाता है, 

 ख़रीद कर खुशियां।

 कमाकर लाता है 

 चंद ख्वाब,

 एक पिता ही जनाब।

चुन चुन कंटीले वन से

मधुर फ़ल।

जीवन के भीषण रण से,

स्वर्णिम कल,

छुपाकर लाता है,

चंद ख्वाब

एक पिता ही जनाब

 एक एक लम्हा संजोता है,

 तब कहीं जाकर,

 अपने आंगन में फसल

 खुशियों की बोता है।

 लहलहाते हैं

 तब कहीं जाकर,

 चंद ख्वाब,

 एक पिता ही जनाब।

 स्वेद से सिंचित कर,

 सुर्ख़ खूं से रंग भर,

 खूबसूरत गुलों को

 तब कहीं जाकर,

 महकाता, संजोता है

 चंद ख्वाब,

 एक पिता ही जनाब।

 ख़ुद बैठकर फर्श पर

 बैठाता है अर्श पर,

फलक तक ले जाता है

चंद ख्वाब

एक पिता ही जनाब।

✍️ रेखा रानी, विजयनगर गजरौला, जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ की रचना ----जीवन दायक जीवन का आधार पिता



जीवन दायक जीवन का आधार पिता 

बालक का तो है सारा संसार पिता

 धरती मां है नभ का है विस्तार पिता

 बालक गीली माटी हैं तो  कुम्हार पिता 

जिसके हाथों में मूर्त बन जाती है 

ऐसा अद्भुत शिल्पकार है यही पिता 

जीवन दायक जीवन का आधार पिता

 बालक का तो है सारा संसार पिता।

✍️आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में पुणे निवासी) मनीषा चड्डा की रचना --- पूरा जीवन भी कम है प्यार जताने के लिए ....



मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की रचना --भूखे पेट सोकर , हालातों से लड़कर ,जो हार न मानें, वो होता है पिता


धूप में झुलस कर , नंगे पाँव रहकर ।

भूखे पेट सोकर , हालातों से लड़कर ।

जो हार न मानें,  वो होता है पिता ।।


जीवन भर कमा कर , पैसो को बचाकर ।

हसरतो को मारकर , बच्चों की खुशी पर ।

जो पल में खर्च कर दे , वो होता है पिता ।।


आँसू को छुपा कर , नकली हसी दिखा कर ।

घर मे मौजूद रह कर , परिवार में सब कुछ सहकर ।

जो सब न्यौछावर कर दे , वो होता है पिता ।।


यदि किसी औलाद पर , पिता का साया नहीं ।

चाहे पा ले वो , दुनिया में सब कुछ ।

पर असलियत में , उसने कुछ पाया नहीं ।।

✍️ विवेक आहूजा, बिलारी , जिला मुरादाबाद 

@9410416986

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की रचना ---पिता जगत की धुरी हैं


 नीर पनघट सा नयन में,

छलके ना पर बून्द भी।

भावनाएं लाख मन में,

छिपी रहती हों सभी।

कुम्भकार ज्यूँ संभाले,

है पिता भी बस वही।।


हाथ भीतर प्रेम का हो

बाहर दृष्टि में क्रोधपुट।

हृदय में कोमल लहर हो

वाणी में हो कड़कपन।

पिता ही देते दिशा,

किधर जाए लड़कपन।


पिता ईश्वर का स्वरूप

पिता की उपमा नहीं।

पिता की हृदय व्यथा को,

कोई भी समझा नहीं।

पिता जगत की धुरी हैं।

पिता को करते नमन।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा,मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की रचना ----उँगली पकड़कर सिर्फ चलना ही नहीं सिखाया दे हथियार शिक्षा का मेरे विश्वास को बढ़ाया

 


तुमसा मुझे जहाँ में ........कोई नहीं दिखता 

हर ख्वाहिश कर दी पूरी कारवां नहीं रुकता !


करने को पूरे मेरे सपने तुम रात भर जगे 

हम सोये गहरी नींद में तुम सोचते रहे ।


उँगली पकड़कर सिर्फ चलना ही नहीं सिखाया 

दे हथियार शिक्षा का मेरे विश्वास को बढ़ाया ।


देख देख कर हमको हर पल तुम जिये 

करने को हमें काबिल क्या दर्द न सहे ।


बचपन का दुलार दे हमको शिक्षा का उपहार 

विवाह की सौगात और विदाई पर आंसूओं को पी गए ।


पूँछना हाल चालजैसेतुम्हारीआदतबनगयाहै 

आज हैं हम जो भी तुम्हारा कर्ज चढ़ गया है 




राशि सिंह, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 

मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर) की साहित्यकार चन्द्रकला भगीरथी की रचना ----


पिता से बढ़कर दुनिया में ना है कोई ओर

जुबां पर आज दिल की बात आ गई।


पिता ही घर परिवार चलाते

पिता सारी जिम्मेदारी निभाते

पिता ही है घर के सरदार

इनसे बढकर ना कोई ओर

जुबां पर आज दिल की बात आ गई।।


पिता एक वृक्ष की तरह है

जो मजबूती से टिके रहते

बिना स्वार्थ के सबका

पालन पोषण करतें

पिता ही है घर के आधार

इनसे बढकर न कोई ओर

जुबां पर आज दिल की बात आ गई।।


दुख सारे खुद वो सहते

खुशियां सबको देते रहते

पल भर में सबके जज्बात समझते

ऐसे हैं वो प्राणाधार

इनसे बढकर न कोई ओर

जुबां पर आज दिल की बात आ गई।।


पिता से बढ़कर दुनिया में है ना कोई ओर

जुबां पर आज दिल की बात आ गई।।


✍️ चन्द्रकला भागीरथी, धामपुर जिला बिजनौर

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शचीन्द्र भटनागर की रचना --आस्तिक पिता-


पिता सूर्य के लिए खुले ही

रखते थे वातायन


प्यार बांट कर

बांधा सबको

तब परिवार बनाया

किंतु कभी

श्री फल बनकर भी

था सदभाव सिखाया

उनकी सीख आज लगती है

हमको सिद्ध रसायन


उनके रहते

कभी किसी ने

भी अलगाव न जाना

एक भवन में

 सिमटा रहता

खुशियों भरा ख़ज़ाना

जीवन के वास्तविक यज्ञ का

था वह देवा्वाहन


सुबह 

साइकिल से जाना

फिर देर शाम घर आना

उन्हें न भाया

कभी बैठकर

ख़ाली समय गंवाना

कर्मयोग का करते रहते

पूरे दिन पारायण


कभी न

पूनो पर्व  नहाए

माला नहीं घुमाई

किंतु विकल हो गये

दुखी जब

कोई दिया दिखाई

यह कर्तव्य भाव था उनका

कथा यज्ञ रामायण

✍️  शचींद्र भटनागर

मुरादाबाद की साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ मीना नकवी की ग़ज़ल --ये मेरा लिखना،ये पढ़ना، ये आदतें सारी। नगर ये अब्बू के हैं बस्तियाँ है अब्बू की।।

 


मौहब्बतों से भरी दास्ताँ हैं अब्बू की।

 वो ख़ुद दरख़्त थे हम पत्तियाँ  है अब्बू की।।


हमारा दिल जो कुशादा है सब की चाहत में।

हमारे ज़़ेह्न मे अंगनाइयाँ  है अब्बू की।।


थकन को अपनी कहाँ वो बयान करते थे।

हमारी आँखों में परछाइयाँ है अब्बू की।।


गले से हम को लगाते थे नाज़ उठाते थे।

वो हम से कहते थे सब बेटियाँ है अब्बू की।।


ये मेरा लिखना،ये पढ़ना،  ये आदतें सारी।

नगर ये अब्बू के हैं बस्तियाँ  है अब्बू की।।


ख़ुलूस ,प्यार, लताफ़त मिली है विरसे में।

मिज़ाज में भी मेरे गर्मियाँ हैं अब्बू की।।


ये फ़िक्र-ए-फ़न ये तख़य्युल, ये शायरी 'मीना'।

कि मुझ में इल्म की सब वादियाँ है अब्बू की।।

  ✍️ डॉ.मीना नक़वी

मुरादाबाद की साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ मीना कौल की रचना ---पास रह गए बस केवल, सुन्दर और सुखद क्षण याद। इन शीतल यादोँ की छाँव में, विस्मृत हुई दुःख की बात



सो गया फिर लाल उसका,पूछते पूछते यह बात 

तात हमारे जीवन में, आएगा कब सुखद प्रभात।

कर गई व्यथित उसको ,पुत्र की यह विकल बात 

क्या जबाब दूँगा इसका,इसी सोच में गुजरी रात ।

खो गया अपने अतीत में, याद हुई हर बीती बात 

धन वैभव और खुशी में, रहते थे सब साथ साथ ।

पर वक्त ने करवट बदली, बदल गए सारे हालात

वैभव पूर्ण जीवन में उसके,किया दैव ने आघात ।

दीवारों का साथ छूट गया, अपने हुए सपनों की बात 

पास रह गए बस केवल, सुन्दर और सुखद क्षण याद। 

इन शीतल यादोँ की छाँव में, विस्मृत हुई दुःख की बात

नए हौसलों और संकल्पों से ,कट जाएगी पिछली  रात। 

जीवन चक्र चलता रहता, सुख दुःख समय की बात 

कभी खुशी की धूप खिली, कभी गमों की काली रात। 

दोनों सदा साथ नहीं रहते,हो जाते हैं कल की बात 

वही मनुष्य आगे बढ़ता, जो नहीं बँधता इनके साथ।

यही पुत्र को है समझाना, निश्चिय कर ली उसने बात 

दिन की पहली किरण खिली,गुजर गई संशय की रात।

  ✍️ स्मृतिशेष डॉ मीना कौल

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' द्वारा पिता-दिवस की पूर्व संध्या पर 19 जून 2021 को आयोजित ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी

 


मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर' की ओर से  पिता-दिवस की पूर्व संध्या पर 19 जून 2021 को एक ऑनलाइन काव्य-गोष्ठी का आयोजन गूगल मीट के माध्यम से किया गया। 

संस्था के सह संयोजक कवि राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत सरस्वती-वंदना से आरंभ हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता  करते हुए सुप्रसिद्ध  व्यंग्य कवि डॉ. मक्खन मुरादाबादी  ने अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार की - 

खेत जोत कर जब आते थे, थककर पिता हमारे। कहते! बैलों को लेजाकर पानी जरा दिखाना।

हरा मिलाकर न्यार डालना रातब खूब मिलाना।। बलिहारी थे उस जोड़ी पर हलधर पिता हमारे।।

मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. अजय अनुपम ने अपने भाव कुछ इस प्रकार प्रकट किये - 

हिमकिरीट-से हैं पिता, मां गंगा की धार। 

इनके पुण्य -प्रताप से, जग में बेड़ा पार। 

 विशिष्ट अतिथि के रुप में वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार थी - 

घर की बगिया का होता है, पिता मूल आधार। 

बच्चों के सपनों को बुनता, खुशियों का संसार। कर्तव्यों की गठरी थामें, जतन करे दिन रात,

 बरगद है वो हर आँगन का, लिए छाँव उपहार।।

  वरिष्ठ कवि श्रीकृष्ण शुक्ल की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी - 

पिता खामोश रहकर हर, घड़ी चिंता करे सबकी। पिता बनकर पिता का मोल अब अपनी समझ आया।। 

वरिष्ठ शायर ओंकार सिंह विवेक ने अपने शेरों से यह कहते हुए महफ़िल को लूटा -  

 मेरी सभी ख़ुशियों का हैं आधार पिता जी,

 और माँ के भी जीवन का हैं शृंगार पिता जी। हालाँकि ज़ियादा नहीं कुछ आय के साधन, 

 फिर भी चला  ही लेते हैं परिवार पिता जी। 

 सप्ताह में हैं सातों दिवस काम पे जाते, 

 जाने नहीं क्या होता है इतवार,पिताजी। 

कवयित्री  डॉ. अर्चना गुप्ता का कहना था - 

 मेरे अंदर जो बहती है उस नदिया की धार पिता। भूल नहीं सकती जीवन भर मेरा पहला प्यार पिता।उनके आदर्शों पर चलकर मेरा जीवन सुरभित है, बनी इमारत जो मैं ऊँची हैं उसके आधार पिता।।

नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कुछ इस प्रकार अभिव्यक्ति की - 

बहुत दूर हैं पिता किन्तु फिर भी हैं मन के पास। पथरीले पथ पर चलना मन्ज़िल को पा लेना,

 कैसे मुमकिन होता क़द को ऊँचाई देना।

 याद पिता की जगा रही है सपनों में विश्वास।। 

कार्यक्रम का संचालन  कर रहे राजीव प्रखर ने पिता की महिमा का बखान करते हुए कहा - 

दोहे में ढल कर कहे, घर-भर का उल्लास।

 मम्मी है यदि कोकिला, तो पापा मधुमास।। 

चुपके-चुपके झेल कर, कष्टों के तूफ़ान। 

 पापा हमको दे गये, मीठी सी मुस्कान।। 

 कवयित्री डॉ. रीता सिंह ने पिता की महिमा का वर्णन करते हुए कहा - 

हर बेटी के नायक पापा। 

करते हैं सब लायक पापा। 

कारज अपने सभी निभाते, 

बनें नहीं अधिनायक पापा। 

कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने पारिवारिक मूल्यों को कुछ इस प्रकार को उकेरा - 

"करता है रात दिन, वह सुपोषित मुझे, सूर्य सी ऊर्जा लिए।

 उगता है नित्य वह, और पार करता है, अग्नि पथ मेरे लिए।" 

कवि मनोज मनु के भावाभिव्यक्ति इस प्रकार रही -  सिर पर छाँव पिता की। 

कच्ची दीवारों पर छप्पर। 

आंधी बारिश खुद पर झेले,

 हवा थपेड़े रोके, जर्जर 

 तन भी ढाल बने,

  कितने मौके-बेमौके।।

कवि दुष्यंत बाबा ने अपनी अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार प्रस्तुत की - 

पिता  हैं  पोषक, पिता सहारा।

 ये  संतति  के  हैं  सृजन  हारा। 

 पूरे  कुल  का  जो भार उठाएं, 

 कभी न इनके दिल को दुखाएं।।

योगेन्द्र वर्मा व्योम द्वारा आभार-अभिव्यक्त किया गया । 

::::::: प्रस्तुति:::::::

 राजीव 'प्रखर'

सह संयोजक- हस्ताक्षर

मुरादाबाद

मोबाइल- 8941912642

मुरादाबाद की संस्था कार्तिकेय की ओर से 19 जून 2021 को गूगल मीट पर ऑनलाइन काव्य संध्या "पावस अभिनन्दन" का आयोजन

  मुरादाबाद की सामाजिक, साहित्यिक एवम सांस्कृतिक संस्था कार्तिकेय द्वारा वर्षा ऋतु के स्वागत में शनिवार 19 जून 2021 को गूगल मीट पर ऑनलाइन काव्य संध्या का  आयोजन किया गया । " पावस अभिनंदन " शीर्षक से आयोजित इस साहित्यिक संध्या का शुभारंभ   डॉ ममता सिंह द्वारा मां सरस्वती की वंदना से किया गया ।  

    संयोजिका डॉ रीता सिंह के संचालन में आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रसिद्ध कवयित्री  डॉ अर्चना गुप्ता ने माहिया गीत प्रस्तुत किया

ये हरियाला सावन 

बहुत सताता है .

कब आओगे साजन 

काले काले बादल 

ठंडी बौछारे 

भीगा भीगा आँचल 

ये मौसम मनभावन

 बहुत सताता है 

     वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने भावपूर्ण छंदमुक्त रचना का पाठ किया ----

      मंदिरों में हो रही है 

      पूजा अर्चना

      और

       गिरजाघरों में प्रार्थनाएं

       मस्जिदों में

       आसमान की ओर उठ रहे हैं

       सैकड़ों हाथ

       अल्लाह मेघ दे,पानी दे

   कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने दुर्मिल सवैया छंद में अपनी रचना का सस्वर पाठ किया ----

" घनश्याम घटा घनघोर घनी,घन झूम गयौ गरजे- बरसे।

चमकी ,चपला ,चित -चोर बनी  ,पपिहा चहके, मनवा तरसे... " 

लाल कुआं (उत्तराखंड) से उपस्थित सत्यपाल सिंह ' सजग ' ने कहा ----

" देखो-देखो सखी अरे! देखो सखी,

मेघ काले घिरे हैं गरजने लगे ।

देखते-देखते हाय यह क्या हुआ ,

 भीगी अंगिया निगोड़े बरसने लगे।।

मेरा धड़के जिया बिन तुम्हारे पिया,

नैन दोनों मिलन को तरसने लगे.।।

 सितारगंज ( उत्तराखंड )से पुष्पा जोशी प्राकाम्य ने मधुर गीत प्रस्तुत किया ----

" चंद्रमुखी चुनरी बिच चमकत।

कँगना खनकत,पायल छनकत।

पनघट के तट घन घन गरजत।

मन धड़कत,डरपाए रे!हाए रे!

बदराऽऽऽऽऽ, कारेऽऽऽऽऽ, कारेऽऽऽऽऽ, आए...."  चन्दौसी से वरिष्ठ कवयित्री डाॅ आशा विसारिया ने  कहा ----

" बदरी घुमड़ के आ गई पावस में देखिए ।

दिन में  अँधेरी छा गई  पावस  में  देखिए ।" 

गज़लकार शिव दत्त ' सन्दल ' ने  गजल प्रस्तुत की - 

" नये पौधो में जुम्बिश चाहता है, 

 ये सूखा खेत बारिश चाहता है " 

डॉ रीता सिंह ने कविता प्रस्तुत की----

' मेघों की है चढ़ी बरात,

चमकी चपला सारी रात ' 

 बरेली से राज बाला धैर्य ने गीत प्रस्तुत किया----

 " सावन की यह रिमझिम बारिश , 

 हरे-हरियाली के घेरे। 

 गाँव के पनघट ताल-तलैया,

 सब ही तुझको टेरें " 

डाॅ ममता सिंह ने खूबसूरत गजल प्रस्तुत की--- 

 " सनम कैसे छिपायें हम ये दिल की बात बारिश में हुए मुश्किल बहुत ही आज तो हालात बारिश में "  

  मुख्य अतिथि के रूप में  दीपक बाबू (सी ए) ने सभी साहित्यकारों की रचनाओं की मुक्त कंठ से प्रशंसा की व सभी को उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिये प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया । 

    संस्था  के सचिव डाॅ पंकज दर्पण  ने सभी साहित्यकारों , अतिथिगण व श्रोताओं के प्रति आभार व्यक्त किया । इस अवसर पर डॉ नीलू सिंह,  अमित गुप्ता,  वीरेन्द्र शर्मा, डाॅ टी एस पाल , क्षमा गोयल , डाॅ रेनू चौहान , गोपाल हरि आदि उपस्थित रहे ।








शनिवार, 19 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार कंचन खन्ना की कहानी ---निर्णय


"मम्मी, दादा और दादी दिखाई नहीं दे‌ रहे, क्या वे घर पर नहीं है?" हॉस्टल से‌ स्कूल की छुट्टियों में घर लौट कर आये अनुज ने माँ से पूछा। अनु अचानक पूछे गये प्रश्न पर सकपका सी गयी, उत्तर तलाश ही रही थी कि समीप बैठी उसकी सहेली ने अनुज को बताया कि उसके दादा - दादी छुट्टियाँ बिताने हिल- स्टेशन गये हैं। सुनकर अनुज उदास हो गया क्योंकि उसने तो सोच रखा था कि स्कूल की छुट्टियों में दादा - दादी के‌ साथ खूब गपशप करेगा। दादा जी के साथ शाम को सैर पर जाना, घर के बगीचे में पौधों की देखभाल करते हुए बहुत सी बातें करना व दादी द्वारा उसे‌ रात में कहानी सुनाना अनुज को बहुत पसंद था।

अनुज को घर आये काफी दिन बीत गये, उसकी छुट्टियां भी बीतती जा रही थीं। दादा - दादी ‌लौटकर नहीं आये थे। जब भी वह पूछता, उसे टाल दिया जाता। उसने फोन करना चाहा तो पता चला कि वे फोन लेकर नहीं गये। वह असमंजस में था कि उस रात अचानक नींद टूटने पर पानी पीने के लिए जाते हुए उसे मम्मी-डैडी के कमरे से बातचीत की आवाज सुनायी दी, वह कमरे के दरवाजे पर रुक कर सुनने लगा। डैडी मम्मी‌ से कह रहे थे कि इस तरह अनुज‌ से सच छुपाना उचित नहीं है। तुम्हारे दुर्व्यवहार के कारण माँ - पिताजी घर छोड़ कर चले गये। यह बात कब तक उसे नहीं बतायेंगे। 

सुनते ही अनुज के पाँव तले की जमीन मानो खिसक गयी। इतना बड़ा झूठ ! चुपचाप अपने कमरे में लौटकर वह देर रात तक सोचता रहा, फिर उसने मन ही मन निर्णय ले लिया। सुबह नाश्ते की टेबल उसने मम्मी से फिर दादा-दादी के विषय में पूछा और मम्मी ने जैसे ही उत्तर दोहराया, उसने वही प्रश्न डैडी के सम्मुख रखा। डैडी का उत्तर उसकी उम्मीद से एकदम अलग था। उनका कहना था कि वे दोनों अनुज की भांति घर छोड़ कर हाॅस्टल में रहने चले गये हैं क्योंकि घर में‌ उन्हें उनकी उम्र के साथी नहीं मिलते, इसलिये उन्होंने यह निर्णय अपनी इच्छा से लिया है। हमने उन्हें उनकी पसंद के‌ हाॅस्टल भेज दिया है। आठवी कक्षा का छात्र अनुज सुनते ही समझ गया और मुस्कुराते हुए बोला, " मम्मी-डैडी आपका निर्णय बिल्कुल ठीक है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिंदगी‌ अपनी इच्छानुसार बितानी चाहिए। मैं भी बड़ा होकर आपकी प्रत्येक इच्छा का सम्मान करूँगा। आपको भी आगे चलकर बुजुर्गों के हाॅस्टल की आवश्यकता हो सकती है। इसलिए मैं अभी से बुजुर्गों के अच्छे हाॅस्टल की लिस्ट बनाना शुरू कर दूँगा।" 

शांत भाव से दिये गये अनुज के उत्तर ने मम्मी-डैडी के मन में जो उथल- पुथल मचायी, उनके चेहरों पर स्पष्ट झलक रही थी।

✍️ कंचन खन्ना, कोठीवाल नगर, मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा --वचनौषधि

 


छोटे से अस्पताल के उस डाक्टर की कोई खास पहचान नहीं थी पर मरीजों के इलाज करने का उसका अनोखा अन्दाज मेरे दिल को छू गया ।ससुर की तबीयत जब काफी बिगड़ने लगी तो मैं अपने मोहल्ले के अस्पताल में दिखाने ले गई ।डर भी था कुछ पर जो भी जाँच की गई उसे डॉक्टर साहब ने सामान्य ही बताया ।ससुर जी को खाँसी थी ।मैं उन्हें खाँसने को मना कर रही थी तो डॉक्टर साहब ने मुझे रोका ।वे बोले घबराने की जरूरत नहीं आप सही जगह हैं ।ससुर जी को एक सप्ताह के लिये एडमिट कर लिया गया ।कम अनुभव और मन्द स्मित वाले उस डॉक्टर की सकारात्मक बातें और मशखरी ससुर जी को नवीन ऊर्जा से भर देती।दूसरे बड़े अस्पतालों में जो लाभ बीस दिन में न मिला उससे अधिक दो दिन में मिला ।प्रत्येक मरीज से यही कहते थे ,बहुत सुधार है अब बस कल तुम्हें घर भेज देंगें ।छठे दिन ससुर जी घर ले चलने की जिद करने लगे ।घर पर सब यही कहते थे कि बडे़ अस्पतालों ने मना कर दिया और दवाई लगी तो मोहल्ले के डॉक्टर की ।उधर ससुर जी अखबार में नजर गड़ाए बुदबुदा रहे थे ,....."अरे वचनौषधि लग गई ,दवाई किसने खाई " ।मैं मन ही मन उनका समर्थन कर रही थी ।  

✍️ डॉ प्रीति हुंकार ,मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ---बैड नम्बर 5


आई सी यू  में बैड नम्बर 5 पर लेटा वह एकटक बाहर  गेट की तरफ देखता रहता , जैसे कोई आने वाला हो । पता नहीं किसका इन्तज़ार था उसको। दूर से आते किसी शख्स को देखकर, उसकी आँखें कभी चमक जाती पर जैसे जैसे वो पास आता, उसका चेहरा फिर मुरझा जाता।

डॉक्टर ने जब आज उसे बताया कि कोविड रिपोर्ट नेगेटिव आई है , वह उस वक़्त भी गेट को  ही देखता रहा। थोडी देर बाद उसने करवट ली और  आँखें बन्द कर लेट गया। 

बाहर डॉक्टरों को कहते सुना कि बैड नम्बर 5 की हार्ट अटैक आने से मौत हो गयी ।                                        

 ✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला , अमरोहा

                                      

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी --वफादारी


अपने घर के दरवाज़े पर उस मरियल से कुत्ते को देखकर मीनू के शरीर में अजीब सी झुरझुरी हो गयी थी।किसी ने उस मासूम के पैरों पर साइकिल का पहिया उतार दिया था।पिछली दो टाँगे बिल्कुल टूट सी गयी थीं।वह किसी तरह घिसट घिसट कर अपने दिन पूरे कर रहा था।लोग उसे देखकर घृणापूर्वक अपना चेहरा घुमा लेते थे।शायद  इंसान की स्वार्थी फितरत के कारण उसे कई दिन से कुछ खाने को भी नहीं मिला था।

   एक पल को मीनू भी उसकी हालत देखकर सिहर गयी।पर शीघ्र ही स्वयं को संयत करते हुए अंदर गयी और ब्रैड के कुछ पीस दूध में भिगोकर उस कुत्ते के आगे डाल दिये।वह बहुत जल्दी जल्दी खाकर वहाँ से सरकता हुआ चला गया।अगले दिन मीनू ने अपने पति सुमित से कहकर उसके लिए कुछ ज़रूरी दवाइयाँ भी मँगवा ली थीं ।कालू भी अब रोज़ नियत समय पर आने लगा था ।काले रंग का होने के कारण मीनू ने उसे कालू  नाम दिया था ।मीनू  मास्क लगाकर,दस्ताने पहनकर रूई से उसके दवाई लगाती और दूध, ब्रैड  या रोटी खिलाती थी। रोज़ का यही क्रम बन चुका था। मीनू और कालू में माँ- बेटे का सा एक  अनकहा रिश्ता बन गया था।उस समय वह पाँच माह की गर्भवती थी।उसकी सेवा व स्नेह से कालू बहुत जल्द स्वस्थ होने लगा था।

उसकी सास व घर के अन्य सदस्य कालू के प्रति मीनू का यह लगाव देखकर नाक भौं सिकोड़ते थे।लेकिन मीनू बिना किसी की परवाह किये  चुपचाप कालू को खाना पानी देती रहती थी।

 धीरे- धीरे मीनू की डिलीवरी का समय नज़दीक आ गया था।डिलीवरी वाले दिन मीनू और उसके गर्भ के बच्चे की हालत नाज़ुक बताकर डाक्टर ने आपरेशन कर दिया। आपरेशन के बाद भी दोनो की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था।लगभग चौथे दिन से मीनू और उसका बच्चा अप्रत्याशित रूप से स्वस्थ होने  शुरू हो गये।जल्द ही अस्पताल से घर आकर मीनू को कालू की चिंता भी सताने लगी।पता नहीं उसे किसी ने उसके पीछे कुछ  खाने को दिया भी होगा कि नहीं।रात को मीनू ने सुमित  से कालू के बारे में पूछा तो सुमित  ने जो बताया उसे सुनकर मीनू की आँखों से आँसू बहने लगे।

सुमित ने कहा,"सात -आठ दिन पहले कालू शिवमंदिर की सीढियों पर मरा हुआ पाया गया था।उसके मृत शरीर को सफाईकर्मियों ने उठाकर नाले में फेंक दिया।"

मीनू फूटफूटकर रोते हुए बोली,"ऐसे कैसे मर गया कालू...!!.वो तो बिल्कुल ठीक हो गया था !!"सुमित बोला,"हाँ वो ठीक तो था...!लेकिन मंदिर के पुजारी जी बता रहे थे कि कालू आठ दस दिन से मंदिर के बाहर ही बैठा रहता था और किसी के कुछ देने पर  भी कुछ  खा पी नहीं रहा था।"

   "शायद उसने भगवान से अपनी  ज़िंदगी के बदले तुम्हारी ज़िंदगी माँग ली थी।"यह कहते हुए सुमित ने मीनू को अपने सीने से चिपटा लिया। सुमित  की आँखें भी नम हो चुकी थीं।

   मीनू सुबकते हुए बोली,"सही कहते हो सुमित...!!वो मेरा संकट अपने साथ ले गया...!मरते हुए भी  वफ़ादारी दिखा गया एक बेजुबान..!"

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----अनमोल बेटियां


........बड़ी मन्नतों के बाद जय को बेटे की उपलब्धि हुई थी....... घर में खुशियां ही खुशियां थीं....... उस दिन रजनी भी सुंदर सी फूली हुई गुलाबी फ्रॉक पहने  उछलती कूदती  फिर रही थी .....

"भैय्या आया भैय्या आया.....!'"

समय पर लगाकर उड़ गया..... बेटा बेटी दोनों ही डॉक्टर हो गए थे.....दोनों की शादी हो गयी थी........बेटी. हजार किलोमीटर दूर पति डॉ नवीन के संग सुख से रहने लगी थी...... बेटे की भी सरकारी नौकरी लग गई और पत्नी के साथ आनंद से रहने लगा......‌।

......... जय सेवानिवृत्त हो चुका था यद्यपि उसकी पेंशन नहीं थी फिर भी सारी जिम्मेदारियों से मुक्त होने के बाद के  पति पत्नी चैन से रह रहे थे...!

........... परंतु कहते हैं न खुशियों की उम्र लंबी नहीं होती.......बेटे का एक हादसे में निधन हो गया! इलाज में जय की सारी जमा पूंजी खर्च हो गई परंतु बेटे को न बचा सका....... राधा का बसा बसाया घर उजड़ गया जैसे कोई किसी चिड़िया का घोंसला नौच ले.......!...... घर तिनके तिनके होकर बिखर गया......!

........... राधा को मृतक आश्रित पर नौकरी भी नहीं मिली...... हार कर .3 माह का बच्चा लिये सास ससुर के पास आ गई....!

..........बेटे के जाने के बाद जय और पूनम बिल्कुल टूट चुके थे..........हर समय उदास रहने लगे थे एक तरह से देखा जाए तो...... डिप्रेशन में ही आ गए थे ।

....... कुछ तो अधिक उम्र की वजह कुछ बेटे के सदमे में रो-रो कर जय की दोनों आंखें खराब हो रही थी.....आंखों में  पूरी तरह मोतियाबिंद उतर आया था ....आंखों से अब कुछ भी ठीक से दिखाई नहीं देता था जब जब चश्मा  बनवाने जाता डॉक्टरऑपरेशन के लिए कहता ......"आंखों में बहुत काम्पलिकेशन आ चुका है" ..... "ज्यादा देर करोगे तो दोनोंआंखें ही खो बैठोगे"..... "इस समय भी कन्शेशन के बाद  अस्सी हजार का खर्च आयेगा .....!"

.........परन्तु  जय पर अब पोते और बहु की जिम्मेदारी भी आजाने के कारण हाथ  तंग चल रहा था....... जय मन मसोस कर रह जाता..!.... "आज बेटा होता तो सब संभाल लेता उसे कुछ भी परेशानी नहीं होती....."! जैसे तैसे उसने पैसों का इंतजाम किया।

         ............. बेटी बार बार कह रही थी आपरेशन मेरे आने पर ही करवाना । जैसे ही बेटी आयी। जय आपरेशन कराने के लिए तैयार हो गया सब लोग साथ में गए....... ऑपरेशन सफल हो गया ।

........ जय ने पेमेंट के लिए पैसे  दिए जो कि.... "सारा पेमेंट हो गया है" कह कर  डाक्टर ने वापस कर दिए । 

......सभी पेमेंट रजनी ने कर दिया था!........ 

     ..... जय उस पीढ़ी के लोगों में से था जो लोग लड़की के घर का पानी भी नहीं पीते इसलिए उसे यह बिल्कुल पसंद नहीं था..... . नवीन ने समझाया ....."पापा ये पैसे उसके अपने कमाए हुए हैं और वह आप पर ही खर्च करना चाहती हैं मना मत करो ....! वह हर समय आपकी चिंता में घुली जाती ..........है उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा....!"

        सच्चाई यह थी कि यह पेमेंट होने से जय को बेटी ने इस समय कर्जदार होने से बचा लिया था.....इस गहरी हमदर्दी अपनेपन ने जय की अन्तरात्मा को छू लिया। .......उसे लगा भगवान ने बेटा छीन लिया तो क्या हुआ बेटी तो है उस की आंखों से आंसू खुद वह खुद  बहे.जा रहे थे.............! वह सोच रहा था....

....."लोग व्यर्थ ही बेटों की चाह में ऐसी अनमोल बेटियों को गर्भ में ही.......!"

✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद  मोबाइल 8218825541  

    

     *

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ---लघुकथा


"कथानक बहुत पुराना है।अच्छे लेखक को नए विषयों पर लिखने का जोखिम उठाना चाहिए। "कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे,रवि प्रकाश जी ने, सूर्यकांत जी की लघुकथा पर अपने विचार व्यक्त किए।

    अन्य वरिष्ठ बुद्धिजीवियों ने भी लघुकथा की कमियों को, अपना पूरा किताबी ज्ञान दिखाते हुए, जोर शोर से उजागर किया। किसी ने कसावट की कमी बताई,तो किसी ने कालखंड दोष का हवाला दिया। किसी के हिसाब से कथा में,अनावश्यक लेखकीय प्रवेश था,किसी को वर्तनी की अशुद्धियां नजर आईं। मारक पंच का न होना तथा गलत शीर्षक भी चर्चा का विषय रहे।

     सूर्यकांत जी नवोदित लेकिन प्रतिभावान रचनाकार थे। मूलतः कविता लिखा करते थे।पिछले छह मास से ही लघुकथा लिखना शुरू किया था। प्रतिष्ठित लघुकथाकारों की लघुकथाएं पढ़कर, निरंतर अपने आप में सुधार कर रहे थे।

    आज अपनी लघुकथा पर हुई टिप्पणियों से उनका दिल टूट गया। वे भविष्य में,कोई लघुकथा, ना लिखने का निर्णय करने ही वाले थे, कि उनके कानों में,कार्यक्रम में बतौर श्रोता शामिल, कुछ महिलाओं की बातें सुनाई पड़ी।"इस कथा ने तो हमारी आंखे खोल दीं।आगे से हम,बेटा और बेटी में कोई भेद नहीं करेंगे।"

✍️ डॉ पुनीत कुमार, T 2/505 आकाश रेजीडेंसी, मुरादाबाद 244001,  M 9837189600

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा) की साहित्यकार रेखा रानी की लघुकथा ---कौन पात्र कौन अपात्र


"अरे बीबी जी!..... दरवज्जा खोलियो, विपदा की मारी हूं। वो भी गुजर गए और पीछे से पांच बच्चे छोड़ गए... अब कैसे गुजारा करूं इनका ऊपर से यो कोरोना न्यारा आ गया।" बोलती ही जा रही थी भिखारिन ..... तब तक दरवाजा खोला भी नहीं था।  दरवाज़ा खोल कर....  उसकी दीन हीन सी दशा देखकर दया और सहानुभूति भाव से स्नेहा बोली" खाना खाया या नहीं," ना बीबी जी ..... हम गरीबों को कहां खाना नसीब होवे है। चल मैं खिलाऊं..…. पूड़ी और कटहल की सब्जी बनाई है । "रैन दो बीबी जी,....  बस तम मझे  सो पांसो रपए देदो  जिसते मैं अपनी गुड्डी के हाथ पीले कर दूं। "  ...............बेचारी स्नेहा द्रवित हो उठी, फटाफट पूड़ी सब्जी और कपड़े  दो सौ इक्यावन रूपए लेकर आई और बोली ..."देखो ये रख लो.....

" लाओ बीबी जी तम्हारे बच्चे जीते रहवें,  कमाऊ बना रह।"

     "बीबी पैसे थोड़े से नहीं लगरे इस ते नाक का टोरा भी नहीं मिलै"।   हां.... यह तो है स्नेहा बोली "लो मेरी नाक का पुराना हो गया है ,इसे ही लेलो मैं दूसरा पहन लूंगी।"

     आशीर्वाद का स्वर और तेज हो उठा था, जाते -जाते..... दरवाजा बंद करके वापस लौट कर फ़िर किचिन की ओर बढ़ी ही थी ,.......….

तभी फिर दरवाज़ाखटखटाया  ....खोला तो देखा एक  बहुत ही बीमार सा भिखारी  ..... दरवाजा खोलते ही कहने लगा.... "बहुत ही बीमार हूं दवाई को पैसे नहीं हैं। घर में मां भी बीमार है उसकी किडनी फेल हो गई हैं। बहन जी..... मदद कर दो"  ......अब तो स्नेहा अंदर से बहुत ही परेशान हो गई ....*दुनिया में कितने लोग बेचारे बडी ही दयनीय स्थिति से गुजर रहे हैं*।

 अभी आई .....सोचने लगी.... शाम को मन्दिर भी तो जाती गरीबों को दान करने सो यहीं कर दूं।...... उसने पांच सौ रुपए  और थोड़ा खाना देते हुए कहा कि "भूख लगी है खाना भी खा लो।" नोट देखकर बोला," बहनजी इससे तो फीस भी नहीं भरी जाएगी ,उस डाक्टर की जो अम्मा का इलाज करेगा।"

  "   हां,... यह तो है लो पांच सौ और रख लो।".... स्नेहा बोली। दुआ देता हुआ भिखारी दूसरे घर की ओर बढ़ गया।

     स्नेहा बालकनी में खड़ी होकर  धुले कपड़े उतारने लगी अचानक से उसने देखा मोड़ पर ही भिखारिन और वही भिखारी अपना सामान एक जगह मिला रहे थे।

 अब तो स्नेहा को समझने में देर न लगी कि कैसे ....दोनों कोरोना और गरीबी का फायदा उठा रहे थे साथ ही,.... स्नेहा की दरिया दिली का भी।.....


     ....… अब तो स्नेहा  मन ही मन पात्र अपात्र का चयन करने में उलझी थी ।

रेखा रानी, विजयनगर गजरौला, जनपद अमरोहा

 उत्तर प्रदेश।

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी ---नैतिकता


मार्निग वाक पर निकले मौहल्ले के प्रौढ़ पार्क में बैठे आपस मे बातें कर रहे थे. क्रिकेट खेलकर थक चुका रोहित सुस्ताने के लिये वहीं बैठा उनकी बातें सुन रहा था शर्मा जी बोले - "क्या जमाना आ गया है नैतिकता नाम की चीज ही नही रही".खान साहब ने उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा -"बजा फ़रमाया अब जमाना बदल गया है " गुप्ता जी भी कहने लगे -"नई तांती में तो संस्कार नाम की चीज रही ही नही." " हाँ भाई ,पहले के लोगो मे बहुत ईमानदारी थी .अच्छा चलो, अब चलें." कहते हुए मिस्टर दास उठे तो सब उनके साथ उठकर अपने-अपने गंतव्यों की ओर चल दिये खान साहब सीधे मस्जिद पहुचे  उन्हें सूरज निकलने से पहले सुबह की नमाज अदा करनी थी मस्जिद के अंदर अंधेरा देखकर मुतवल्ली पर चिल्लाये अंधेरा क्यों है मुतवल्ली ने बताया कि बिल जमा न होने के कारण लाइन कट है खान साहब ने बांस का डंडा उठाया और कटिया बनाकर मस्जिद के पास से गुजर रही लाइन में डाल दिया फिर अंदर के दालान में जाकर अल्लाह हू अकबर कहते हुए सुबह की नमाज की नीयत बांध ली। शर्मा जी रास्ते मे पड़ने वाले बुक स्टाल पर रुके और  बुक स्टाल स्वामी से पूछे बिना अखबार उठाकर पढ़ने लगे बुक स्टाल मालिक मन ही मन कुढ़ता रहा पूरा अखबार पढ़कर बिना तह किये  वहीं अखबार रखकर शर्मा जी अपने घर की ओर चल दिये।गुप्ता जी घर से चाय नाश्ता कर  अपनी दुकान पहुँचे दुकान में बने छोटे से खूबसूरत मन्दिर के सामने हाथ जोड़कर श्रद्धा से सर झुकाया और दुकान के अंदर ही बने गोदाम में पहुचे और लहटे के तेल में चायना से आयातित पाम ऑयल का पीपा लौट दिया फिर निश्चिंत होकर थले पर आकर बैठ गये।मिस्टर दास घर पहुँचकर पत्नी से बोले - "अरे भई, जरा जल्दी नाश्ता लगा दो. मुझे जल्दी ऑफिस जाना है. दो दिन हो गये गये हुए. आफिस का बॉस हूं तो क्या, जाना तो है ही ।"  मिस्टर दास तैयार होकर अपने आफिस पहुच गये अभी तक कोई आफिस में नही आया था उन्होंने अलमारी खोलकर स्टाफ अटेंडेंस रजिस्टर निकाला और मुस्कराते हुए दो दिन से खाली पड़े कालम सहित आज के अपने कालम में  हस्ताक्षर करके रजिस्टर वापस अलमारी में रख दिया। दूसरे दिन सभी दोस्त फिर वहीं पार्क में इकट्ठे हुए और एक दूसरे को बीते कल की दिनचर्या सुनाते हुए अपनी सफलता पर ठहाके लगा रहे थे और यह सब सुनकर रोहित सोच रहा था दूसरों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले यह लोग सही है या आजकल के हम युवक जो गलती करने पर सॉरी बोल देते है।

✍️ कमाल ज़ैदी "वफ़ा", सिरसी (संभल) मोबाइल फोन नम्बर 9456031926

शुक्रवार, 18 जून 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ---पहला प्यार


फूलों से सजी सुहाग सेज पर वह सिकुड़ी और शरमाई सी बैठी थी ।बाहर जोर की हवाएं और बादलों में गरज हो रही थी कुल मिलाकर एक तरफ जहां हसीन थी यह रात वहीं कई रहस्य और वास्तविकता से परिचय कराने वाली थी  नवविवाहित जोड़े का ।

उसके मन में कई सवाल उमड़ घुमड़ रहे थे अपनी सहेलियों से उसने सुना था कि सुहाग सेज पर पति कई बार तुम्हारे अतीत के बारे में भी पूछते हैं कि कहीं तुम्हारा कोई किसी से चक्कर बक्कर तो नहीं था वगैरह वगैरह ।

तभी दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई वह सकपका गई क्योंकि कोई प्रेमविवाह तो था नहीं दोनो एक दूसरे से वाकिफ भी नहीं थे ।

तभी किसी ने उसके हाथों को जैसे ही स्पर्श किया उसका ह्रदय जोर से धड़कने लगा ।

अजीब सा कंपन उसके पूरे शरीर में दौड़ गया ।

"नीना जी ।"

"जी ।"

"हमारी शादी इतनी जल्दीबाजी में हुई थी कि हम दोनों को किसी से को समझने का मौका ही नहीं मिला ।"उसने धीरे से कहा ।

पति की बात सुनकर उसको थोड़ी सी राहत सी महसूस हुई थी ।

वह अब संयमित हो गई ।

"जी ।"

"मुझे इन बातों से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि तुमने किसी को प्यार किया या नहीं क्योंकि आज से हमारे जीवन की नई शुरुआत हुई है और मैं तुमको और तुम मुझको बस हम दोनों एक दूसरे को जानते हैं ।"

पति ने फिर से उसका विश्वास जीता ।

"जी ।"

"क्या जी जी किए जा रही हो तुम भी कुछ बोलो न !" उसने जोर का ठहाका लगाते हुए कहा इस बार नीना के मूंह में आया "जी " शब्द मूंह में ही रह गया वह सकपका गई ।

"एक बात पूंछ लूं !"पति की यह बात सुनकर नीना फिर से भयभीत हो गई ।

"जी पूछिए ।"

" जीवन में प्रेम कितनी बार हो सकता है ?"

"और यही अगर मैं तुमसे पूछूं तो ?"

"बड़ी चालाक हो तुम ..हम पर ही हमारा प्रश्न दे मारा ।"वह फिर से हंसा ।

"मेरे खयाल से तो कई बार हो सकता है ...लेकिन ...?"

"लेकिन क्या ...?"नीना ने फिर से पूछा ।

"पहले प्रेम जैसा विश्वास दोबारा नहीं होता किसी पर चाहे पहला प्रेम एक तरफा हो या फिर दो ।"

उसने नीना की आंखों के गहरे समुद्र में डूबते हुए कहा और नीना ने आंखे बंद कर समर्पण कर 

दिया ।

✍️ राशि सिंह, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 


मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ आर सी शुक्ल की कविता -----कीमत यश की





 




मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी----- जैसी करनी, वैसी भरनी !

 


उस व्यक्ति को सभी ने समझाया कि तुम अपनी प्रसन्नता के लिए किसी निरीह प्राणी को मत सताया करो।तुम कभी उनका घर तोड़ देते हो,कभी उनके द्वारा संचित धन को लूटकर अपने आप को महान समझकर फूले नहीं समाते।

      किसी के कठिन परिश्रम को धूल में मिलाना तुम्हारी आदत ही बन गई है।परंतु ईश्वर सब देख रहा है।उसकी लाठी में आवाज़ नहीं होती है,यह भी समझ लो।यह सुनकर वह व्यक्ति आग- बबूला हो गया।और बोला मैं जो चाहे करूं तुमसे मतलब,,तुम होते कौन हो मुझे सीख देने वाले।

      एक दिन वह बाग में घूम रहा था।अचानक उसकी नज़र दूर पेड़ पर लगे एक बड़े से मधु मक्खी के छत्ते पर पड़ी।मधु मक्खियां बड़ी तल्लीनता और कठिन परिश्रम से अपने छत्ते की देखभाल करने में व्यस्त थीं।असंख्य फूलों से एकत्र  शहद के चारों ओर घेरा डालकर उसकी रखवाली कर रहीं थीं।

     शरारती व्यक्ति ने आव देखा न ताव एक पत्थर उठाकर छत्ते पर दे मारा।फिर क्या था कुछ ही पलों में गुस्साई मधु मक्खियों ने उसे चारों ओर से घेर कर ज़हरीले डंक मार-मारकर घायल कर दिया। ढोल की तरह सूजा व्यक्ति  ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा और लोगों को इकट्ठा करके, भीषण पीड़ा से छुटकारा दिलाने तथा अपने प्राण बचाने की गुहार लगाने लगा।वह बार-बार यही रट लगाए जा रहा था कि अब मैं कभी किसी को नहीं सताउंगा।

        तब कुछ लोगों ने उसे उपचार कराने ले जाते हुए कहा,,,,,देखा हमने क्या कहा था। कि ईश्वर सब देख रहा है।वह करनी का फल देने में बिल्कुल भी देर नहीं लगाता।अर्थात--

     जैसी करनी,वैसी भरनी

✍️ वीरेन्द्र सिंह "ब्रजवासी",मुरादाबाद, मोबाइल 9719275453

                  

                  

                  

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मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर) की साहित्यकार चन्द्रकला भागीरथी की लघुकथा ----प्रतिकार

 


शीला डिग्री कालेज में पढ़ाती है। हिंदी दिवस आने वाला था। शीला से सीनियर रेणुका मैम थी। रेणुका मैम ने कहा, शीला तुम इस बार हिन्दी दिवस पर आयोजित होने वाले कार्यक्रम का संचालन करना, क्योंकि मेरी अभी कुछ दिन पहले ही आंखों का आप्रेशन हुआ है, तो मैं इस बार संचालन नहीं कर पाऊँगी। शीला ने कहा- ठीक है मैम। शीला तैयारियों में जुट गई। सारी छात्राओं को प्रोग्राम समझाया, किसी को कविताएं दी, किसी को दोहे, किसी को भाषण । कुछ को सरस्वती वंदना के लिए तैयार कर लिया और कार्यक्रम की लिस्ट बना ली। जब 14 सितम्बर का दिन आया तो उस दिन सब कांफ्रेंस रूम में एकत्र हो गये। रेणुका मैम बड़ी सज धज कर आयीं। आकर शीला से बोली- लाओ वो लिस्ट मुझे दे दो। शीला ने कहा ठीक है मैम, कांफ्रेंस रूम में प्राचार्या मैम और मैनेजर साहब और टीचर्स भी आ गए। कार्यक्रम शुरू हो गया और संचालन रेणुका मैम करने लगीं। शीला मन ही मन सोचने लगी कि मैने सारी तैयारी की, बच्चे तैयार किए और लिस्ट बनाई। और इन मैडम ने आकर संचालन शुरू कर दिया। मन तो करता है कि इन्हें कार्यक्रम के बाद खरी खोटी सुनाऊं पर नहीं, मैं उनके जैसी बन जाउंगी तो मुझमें और उनमें क्या अंतर रह जायेगा।

✍️ चन्द्रकला भागीरथी, धामपुर,  जिला बिजनौर

बुधवार, 16 जून 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी ----दोषी कौन


" हजूर मेरी यही विनती है कि आप आदेश पारित करके कॉलोनी के सारे मकानों को चौबीस घंटे के अंदर ढहा दें, ताकि कानून का उल्लंघन करने वालों को एक सख्त संदेश जाए और फिर भविष्य में कोई भी अनधिकृत कॉलोनी बनी हुई नजर न आए।"

              " नहीं हजूर !  यह बहुत बड़ा अन्याय होगा । हमारे मुवक्किलगण कॉलोनी में पंद्रह साल से रह रहे हैं । बाकायदा रजिस्ट्री करा कर इन्होंने जमीनें खरीदी हैं । मकान बनाए हैं । अपने गाढ़े पसीने की कमाई को अपने आवास के तौर पर सजाया है । अब इन्हें बेघर कर देना इनके साथ ज्यादती होगी ।"

        "मगर गलत काम की सजा तो मिलेगी ही ! हम इसे नजरअंदाज कैसे कर सकते हैं ? फिर तो हर आदमी अवैध कब्जा करेगा, निर्माण करेगा और बाद में हमारे पास आकर यही कहने लगेगा कि हजूर हमें बेघर मत कीजिए ? " - जज साहब ने मुकदमे को सुनते समय बीच में टिप्पणी की ।

              प्रतिवादी पक्ष के वकील ने अपना तर्क रखा - "हजूर गलती किसकी है ,इस पर भी तो जाना पड़ेगा ? जब मकानों की रजिस्ट्री की जा रही थी तब सरकार का रजिस्ट्री दफ्तर था । सरकार के अधिकारी थे। उन्होंने यह देखने की तकलीफ क्यों नहीं की कि इन जमीनों की रजिस्ट्री पर सरकार को कोई आपत्ति तो नहीं है ?"

            "क्या मतलब "-जज साहब चौंके। यह तर्क उनके लिए अप्रत्याशित था ।

        "हजूर ! मेरा कहना यह है कि जब रजिस्ट्री हो रही थी तब सरकार की तरफ से "नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट" संलग्न होना चाहिए था । यह तो कोई बात हुई नहीं कि पंद्रह साल पहले रजिस्ट्री हुई और पंद्रह साल के बाद अब सरकार खड़ी हुई है और कह रही है कि यह रजिस्ट्री गलत है । सरकारी जमीन हमारी है । मेरा कहना है कि आप रजिस्ट्री के समय कहां थे ? "

               "मगर हजूर मैं आपत्ति करता हूं । सरकार पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता।" वादी के वकील ने कहना शुरू ही किया था कि जज साहब ने टोक दिया। "आपको आपत्ति करने का अधिकार नहीं है। प्रतिवादी अपनी बात को कहना चालू रखें ।"

        प्रतिवादी ने कहा "हजूर ! गलती सरकार की है । उसने कानून बनाया लेकिन यह नहीं देखा कि उस कानून का पालन सही ढंग से हो रहा है अथवा नहीं हो रहा है ? गलती प्रशासन की है जिसने सरकार के द्वारा बनाए गए कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया ।"

        "तो सजा आप के अनुसार शासन और प्रशासन के लोगों को मिलनी चाहिए ? " जज साहब ने सवाल किया।

     "नहीं हजूर ! अगर गुस्ताखी माफ करें और जान की सलामती की गारंटी दें तो एक बात कहूं ?"

                जज साहब ने मुस्कुराते हुए कहा- " निर्भय होकर अपनी बात कहो "।

         वकील साहब उत्साहित होकर कहने लगे " हजूर ! असली दोष तो आप की अदालत का है ।"

     सुनकर जज साहब कुर्सी पर से उछल पड़े । कहने लगे "क्या मतलब ? "

       वकील साहब ने कहा " हजूर ! आप की अदालत में पंद्रह साल से केस चल रहा है। इस बीच कॉलोनी में न जाने कितने मकान बनते चले गए । लोग रहने लगे और रहते-रहते वह वहां के निवासी बन गये हैं।"

       " मगर मेरे पास तो यह केस मुश्किल से छह  महीने पहले आया है । पंद्रह साल की बात आप कैसे कर सकते हैं ? "-जज साहब ने प्रश्न किया ।

      "मैं आपकी पर्सनल बात नहीं कर रहा । मैं सिस्टम की बात कर रहा हूं । सिस्टम में यह मुकदमा पंद्रह साल से पड़ा हुआ है। तारीखों पर तारीखें पड़ती रहती हैं । कोई सुनवाई नहीं ! कोई फैसला नहीं ! आज आप फैसला सुना देंगे ! बुलडोजर मकानों पर चल जाएगा । चारों तरफ मलबे का ढेर लग जाएगा । बेशक पेड़ काटकर इस जमीन को सीमेंट के जंगल में बदला गया था । लेकिन क्या मकान गिरा देने से फिर से हरे-भरे पेड़ वापस आ जाएंगे ? जरा सोचिए सिवाय बर्बादी के और क्या मिलेगा ? एक बसी-बसाई कॉलोनी गुजर जाएगी । आप कानून की अक्षरशः व्याख्या करते रहेंगे । उसकी आत्मा को नहीं पढ़ पाएंगे । इन निवासियों की चीख-पुकार ,आंसू और बेघर होने की व्यथा पढ़ने की कोशिश कीजिए और असली दोषी की तलाश करिए ? "

        जज साहब सोच में डूब गए और कहने लगे "असली दोषी मैं आपको कल बताऊंगा।" इसके बाद अदालत अगले दिन तक के लिए स्थगित हो गई ।

         .अगले दिन फिर अदालत लगी । जज साहब बेहद शांत मुद्रा में थे । आते के साथ ही उन्होंने अपनी जेब से एक कागज निकाला और अपने असिस्टेंट को पढ़ने के लिए कहा । आदेश दिया "जोरदार आवाज में पढ़ना ,ताकि सब लोग सुन सकें।"

        असिस्टेंट ने पढ़ना शुरू किया-" मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि असली दोषी वह सारे लोग हैं जिन्होंने पंद्रह साल से मुकदमे की तारीख पर तारीख पड़ने में योगदान दिया है । उन सब की खोज की जाए और उनको दंडित किया जाए ।"


✍️  रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश), मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष पुष्पेंद्र वर्णवाल की लघु काव्य कृति ऋषि ---- यह कृति पुस्तिका के रूप में 45 साल पूर्व वर्ष 1976 में प्रकाशित हुई थी। इसे स्मृति शेष वीरेंद्र गुप्त ने अपने प्रकाशन मंदिर बाजार चौक से प्रकाशित किया था ।


 

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:::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822