पिता सूर्य के लिए खुले ही
रखते थे वातायन
प्यार बांट कर
बांधा सबको
तब परिवार बनाया
किंतु कभी
श्री फल बनकर भी
था सदभाव सिखाया
उनकी सीख आज लगती है
हमको सिद्ध रसायन
उनके रहते
कभी किसी ने
भी अलगाव न जाना
एक भवन में
सिमटा रहता
खुशियों भरा ख़ज़ाना
जीवन के वास्तविक यज्ञ का
था वह देवा्वाहन
सुबह
साइकिल से जाना
फिर देर शाम घर आना
उन्हें न भाया
कभी बैठकर
ख़ाली समय गंवाना
कर्मयोग का करते रहते
पूरे दिन पारायण
कभी न
पूनो पर्व नहाए
माला नहीं घुमाई
किंतु विकल हो गये
दुखी जब
कोई दिया दिखाई
यह कर्तव्य भाव था उनका
कथा यज्ञ रामायण
✍️ शचींद्र भटनागर
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