"मम्मी, दादा और दादी दिखाई नहीं दे रहे, क्या वे घर पर नहीं है?" हॉस्टल से स्कूल की छुट्टियों में घर लौट कर आये अनुज ने माँ से पूछा। अनु अचानक पूछे गये प्रश्न पर सकपका सी गयी, उत्तर तलाश ही रही थी कि समीप बैठी उसकी सहेली ने अनुज को बताया कि उसके दादा - दादी छुट्टियाँ बिताने हिल- स्टेशन गये हैं। सुनकर अनुज उदास हो गया क्योंकि उसने तो सोच रखा था कि स्कूल की छुट्टियों में दादा - दादी के साथ खूब गपशप करेगा। दादा जी के साथ शाम को सैर पर जाना, घर के बगीचे में पौधों की देखभाल करते हुए बहुत सी बातें करना व दादी द्वारा उसे रात में कहानी सुनाना अनुज को बहुत पसंद था।
अनुज को घर आये काफी दिन बीत गये, उसकी छुट्टियां भी बीतती जा रही थीं। दादा - दादी लौटकर नहीं आये थे। जब भी वह पूछता, उसे टाल दिया जाता। उसने फोन करना चाहा तो पता चला कि वे फोन लेकर नहीं गये। वह असमंजस में था कि उस रात अचानक नींद टूटने पर पानी पीने के लिए जाते हुए उसे मम्मी-डैडी के कमरे से बातचीत की आवाज सुनायी दी, वह कमरे के दरवाजे पर रुक कर सुनने लगा। डैडी मम्मी से कह रहे थे कि इस तरह अनुज से सच छुपाना उचित नहीं है। तुम्हारे दुर्व्यवहार के कारण माँ - पिताजी घर छोड़ कर चले गये। यह बात कब तक उसे नहीं बतायेंगे।
सुनते ही अनुज के पाँव तले की जमीन मानो खिसक गयी। इतना बड़ा झूठ ! चुपचाप अपने कमरे में लौटकर वह देर रात तक सोचता रहा, फिर उसने मन ही मन निर्णय ले लिया। सुबह नाश्ते की टेबल उसने मम्मी से फिर दादा-दादी के विषय में पूछा और मम्मी ने जैसे ही उत्तर दोहराया, उसने वही प्रश्न डैडी के सम्मुख रखा। डैडी का उत्तर उसकी उम्मीद से एकदम अलग था। उनका कहना था कि वे दोनों अनुज की भांति घर छोड़ कर हाॅस्टल में रहने चले गये हैं क्योंकि घर में उन्हें उनकी उम्र के साथी नहीं मिलते, इसलिये उन्होंने यह निर्णय अपनी इच्छा से लिया है। हमने उन्हें उनकी पसंद के हाॅस्टल भेज दिया है। आठवी कक्षा का छात्र अनुज सुनते ही समझ गया और मुस्कुराते हुए बोला, " मम्मी-डैडी आपका निर्णय बिल्कुल ठीक है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जिंदगी अपनी इच्छानुसार बितानी चाहिए। मैं भी बड़ा होकर आपकी प्रत्येक इच्छा का सम्मान करूँगा। आपको भी आगे चलकर बुजुर्गों के हाॅस्टल की आवश्यकता हो सकती है। इसलिए मैं अभी से बुजुर्गों के अच्छे हाॅस्टल की लिस्ट बनाना शुरू कर दूँगा।"
शांत भाव से दिये गये अनुज के उत्तर ने मम्मी-डैडी के मन में जो उथल- पुथल मचायी, उनके चेहरों पर स्पष्ट झलक रही थी।
✍️ कंचन खन्ना, कोठीवाल नगर, मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)
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