मौहब्बतों से भरी दास्ताँ हैं अब्बू की।
वो ख़ुद दरख़्त थे हम पत्तियाँ है अब्बू की।।
हमारा दिल जो कुशादा है सब की चाहत में।
हमारे ज़़ेह्न मे अंगनाइयाँ है अब्बू की।।
थकन को अपनी कहाँ वो बयान करते थे।
हमारी आँखों में परछाइयाँ है अब्बू की।।
गले से हम को लगाते थे नाज़ उठाते थे।
वो हम से कहते थे सब बेटियाँ है अब्बू की।।
ये मेरा लिखना،ये पढ़ना، ये आदतें सारी।
नगर ये अब्बू के हैं बस्तियाँ है अब्बू की।।
ख़ुलूस ,प्यार, लताफ़त मिली है विरसे में।
मिज़ाज में भी मेरे गर्मियाँ हैं अब्बू की।।
ये फ़िक्र-ए-फ़न ये तख़य्युल, ये शायरी 'मीना'।
कि मुझ में इल्म की सब वादियाँ है अब्बू की।।
✍️ डॉ.मीना नक़वी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें