रविवार, 20 जून 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की रचना---– पिता वही कहलाता है

 


दुख सह कर भी बच्चों के हित 

खुशियां जो ले आता है ।

बाहर गुस्सा प्रेम हृदय का 

कभी नहीं दिखलाता है।

दिल का दर्द समा ले दिल में 

पिता वही कहलाता है।

लव पर सदा दुआएं जिसके

पिता वही कहलाता है।

 पिता वही कहलाता है

खुद खाये कुछ,या न खाए,

परिवार न भूखा रह जाये।

सब सोयें अमन चैन से पर,

रातों को नींद नहीं आये।

परिवार का पालन पोषण

 जिस के हिस्से आता है।

संतानो के लिए सदा

 दुनिया भर से लड़ जाता है।

दिल का दर्द समा ले दिल में 

पिता वही कहलाता है।

लव पर सदा दुआएं जिसके

पिता वही कहलाता है।

पिता वही कहलाता है।।

जीवन भर कमा कमा कर जो,

धन जोड़े जान खपा कर जो। 

तन काटे और मन को मारे,

बन  गये महल और चौबारे।

अपनी पूंजी पर भी जो

 हक कभी नहीं जतलाता है।

बच्चों के हित अक्सर घर में

 खलनायक बन जाता है।

दिल का दर्द समा ले दिल में 

पिता वही कहलाता है।।

लव पर सदा दुआएं जिसके

पिता वही कहलाता है।

पिता वही कहलाता है।।

तन पिंजर बल काफूर हुआ,

चलने से भी मजबूर  हुआ

बच्चे अब ध्यान नहीं रखते,

कुछ भी सम्मान नहीं रखते,

अपने सारे दुख जो अपने

 अंतर बीच छुपाता है।

अपने मन की व्यथा कथा 

ना दुनिया से कह पाता है।।

दिल का दर्द समा ले दिल में 

पिता वही कहलाता है।

पिता वही कहलाता है।

संकट की घड़ियों में भी 

दुख प्रकट नहीं कर पाता है

संतापों का सारा विष

चुपचाप स्वयं पी जाता है 

लब पर सदा दुआएं जिसके 

पिता वही कहलाता है 

पिता वही कहलाता है।।

✍️ अशोक विद्रोही ,प्रकाश नगर, मुरादाबाद

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