प्रथम अभिव्यक्ति जीवन की
पिता है शक्ति तन मन की,
पिता है नींव की मिट्टी,
जो थामे घर को है रखती
पिता ही द्वार पिता प्रहरी ,
सजग रहता है चौपहरी
पिता दीवारो दर है छत,
ज़रा स्वभाव का है सख्त
पिता पालन है पोषण है,
पिता से घर में भोजन है
पिता से घर में अनुशासन,
डराता जिसका प्रशासन
पिता संसार बच्चों का,
सुलभ आधार सपनों का
पिता पूजा की थाली है,
पिता होली दिवाली है
पिता अमृत की धारा है,
ज़रा सा स्वाद खारा है
पिता चोटी हिमालय की,
ये चौखट है शिवालय की
हरी, ब्रह्मा या शिव होई,
पिता सम पूजनिय कोई
हुआ है न कभी होई,
हुआ है न कोई होई
✍️ मोनिका "मासूम", मुरादाबाद
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