सोमवार, 14 सितंबर 2020

मुरादाबाद लिटरेरी क्लब ने किया प्रख्यात साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर ऑन लाइन साहित्यिक परिचर्चा का आयोजन।


वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "विरासत जगमगाती है" शीर्षक के तहत 9 सितंबर 2020 को  साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र की जयंती पर ऑनलाइन साहित्यिक चर्चा की गई । सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व  एवं कृतित्व  पर विचार व्यक्त किये ।
चर्चा शुरू करते हुए वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि भारतेन्दु ने ऐसा प्रतिभा संपन्न लेखक मंडल तैयार किया जिसने सभी गद्य विधाओं में रचनाएं करके साहित्य को समृद्ध किया। भारतेन्दु ने भाषा के रूप को तो व्यवस्थित किया ही, साथ ही अपने प्रयासों से जनता में साहित्य के प्रति अभिरुचि भी जाग्रत की। भारतेन्दु मंडल के लेखकों में बालकृष्ण भट्ट,प्रताप नारायण मिश्र, ठाकुर जगमोहन सिंह, बालमुकुंद गुप्त, बद्रीनारायण चौधरी, अंबिका दत्त व्यास और लाला श्रीनिवास दास के नाम उल्लेखनीय हैं। हिन्दी गद्य के विकास का श्रेय भारतेन्दु और उनके साहित्यिक मंडल को ही जाता है। उनके इस लेखक मंडल ने अपने लेखन में रोचक तत्व को महत्व देकर उसे जन-जन का प्रिय बना देने का ऐतिहासिक कार्य किया। यूं तो भारतेन्दु हिन्दी नाटक परंपरा के मूल स्रोत होकर उसके प्रवर्तक रूप में सामने आए।उनका 'अंधेर नगरी ' नाटक अन्य नाटकों के साथ समाज में धूम मचाए रहा।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि विलक्षण प्रतिभा, अद्भुत कार्यक्षमता और अपार ज्ञान के भंडार,कुल पैंतीस वर्ष का जीवन मिला,उसी छोटे से काल खंड में भारत की दशा का आकलन किया, भविष्य के लिए दिशानिर्देश भी तत्कालीन शासन-व्यवस्था के अत्याचार के विरुद्ध लड़ने के लिये , भाषाई विकास को सही मार्ग पर लाने के लिए, समाज के समक्ष प्रस्तुत किये। आप सोच सकते हैं कि जो काम राजा राम मोहन राय ने किया था उसी को आगे बढ़ा कर उन्होंने राजनीतिक, सामाजिक एवं वैचारिक रूप से थके-हारे भारत को अपनी स्वतंत्रता पाने का बल प्रदान किया। वर्तमान समय के कथित बड़े लेखक उतना सोच भी नहीं सकते जितना विस्तृत और विविध लेखन परम सम्माननीय भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र कर गये।
वरिष्ठ कवि डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र हिंदी साहित्य के अद्वितीय निर्माता और प्रेरक व्यक्तित्व थे। उनके नाम पर ही उनके युग का साहित्यिक नामकरण हुआ। उन्होंने गद्य और पद्य दोनों क्षेत्रों में हिंदी भाषियों का नेतृत्व किया। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व का प्रतिबिंब उनके समकालीन अन्य लेखकों एवं कवियों की रचनाओं में स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। भारतेंदु युगीन मुरादाबाद के साहित्यकारों में लाला शालिग्राम वैश्य का नाम सर्वोपरि है । उनका जन्म भारतेंदु जी से काफी समय पहले सन 1831 ईसवीं में हो चुका था । उनकी मृत्यु भी भारतेंदु जी के बाद सन 1901 ईसवी में हुई । मुरादाबाद के पंडित झब्बीलाल मिश्र (1833-1860) ,पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र (1862- 1916), पंडित बलदेव प्रसाद मिश्र (1869-1904) भी भारतेंदु जी के समकालीन साहित्यकार थे । इसके अतिरिक्त कन्हैयालाल मिश्र, सुभद्रा देवी, रामदेवी, पंडित जुगल किशोर बुलबुल, पंडित श्याम सुंदर त्रिपाठी, रामस्वरूप शर्मा, स्वरूप चंद्र जैन, पंडित भवानी दत्त जोशी, पन्नालाल जैन बाकलीवाल, वैद्य शंकरलाल, तथा सूफी अंबा प्रसाद भी उल्लेखनीय साहित्यकार रहे।
प्रसिध्द समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि किसी साहित्यकार की मृत्यु के पश्चात उसके कार्यों और गुणों की चर्चा और उसकी महिमा का वर्णन करना एक आम बात है। लेकिन यदि उस साहित्यकार के जीवन काल में ही उसके कार्यों को सराहा जाने लगे और उसकी महिमा को स्वीकार कर लिया जाए तो उस साहित्यकार के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। यह सौभाग्य हरिश्चंद्र जी को प्राप्त हुआ। जिस समय शिवप्रसाद जी को ब्रिटिश गवर्नमेंट की तरफ से 'सितारा-ए-हिंद' की उपाधि प्रदान की गई तो उसी समय हरिश्चंद्र जी के प्रशंसकों ने उन्हें 'महताब-ए-हिंद' अर्थात भारतेंदु की उपाधि से सम्मानित किया। लोकप्रियता का इससे बड़ा कोई प्रमाण नहीं हो सकता। इस से यह भी सिद्ध होता है कि भारतेंदु जी जनमानस के हृदय में घर कर चुके थे। भारतेंदु जी भी जनमानस की भावनाओं का सम्मान करते हुए स्वयं को भारतेंदु कहलाना ज़्यादा पसंद करते थे। साथ ही साथ वह अपने मूल नाम हरिश्चंद्र पर भी गर्व करते थे और सत्यवादी हरिश्चंद्र का अनुसरण करने की हमेशा कोशिश करते थे।
कादम्बिनी वर्मा  ने कहा कि प्राचीन संस्कृतनिष्ठ और तत्कालीन नवीन अरबी फ़ारसी मिश्रित हिन्दवी के मध्य हिंदी खड़ी बोली गद्य सरीखा सुंदर सामंजस्य भारतेन्दु जी की कला का विशेष माधुर्य है। 15 वर्ष की अवस्था मे ही इनका साहित्य प्रेम जाग उठा और 18 वर्ष की अवस्था मे 'कविवचनसुधा" पत्रिका का सम्पादन किया जिसमें बड़े-बड़े विद्वानों की रचनाएं छपती थीं। कविवचन सुधा, हरिश्चंद्र मैग्ज़ीन, बालबोधिनी जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के सम्पादक रहे भारतेन्दु जी के द्वारा अंग्रेजी की शिक्षा के लिए राजा शिवप्रसाद सितारेहिंद जी की शरण लेना इनके सरल व्यक्तित्व का ही उदाहरण है। जो इन्हें इनके पिता से मिला।
युवा शायर फरहत अली ख़ान ने कहा कि जिस हिंदी को हम हिंदी जानते हैं, जिस ने हमें हमारे पसंदीदा लेखक दिए, ज़िन्दगी का हिस्सा बन चुकी रचनाएँ दीं। उस हिंदी से हमें वाक़िफ़ कराने वाले सब से पहले लोगों में से एक थे भारतेंदु। उन्होंने हिंदी को सींचा और साथ ही उसे कवि, निबंधकार और नाटककार के रूप में अपने साहित्य कर्म से एक दिशा भी दी, जिस से आगे चल कर न जाने कितनों की राह रौशन हुई। वो हिंदी गद्य में विषयों की विविधता लाए। एक साहित्यिक मैगज़ीन भी चलाई।
युवा कवि राजीव 'प्रखर' ने कहा कि 'भारतेन्दु' उपाधि से विभूषित श्री हरिश्चन्द्र हिंदी साहित्य की ऐसी विभूति हुए हैं जिन्होंने रीतिकालीन सामन्ती परम्परा का स्पष्ट विरोध करते हुए एक भिन्न विचारधारा का सूत्रपात किया। अगर यह कहा जाय कि हिंदी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारम्भ भारतेन्दु जी से ही हुआ तो गलत न होगा। उनके रचनाकर्म का अवलोकन करने पर यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि वह साहित्यकार होने के साथ-साथ एक युगदृष्टा भी थे। भविष्य में होने वाले सामाजिक परिवर्तनों को संभवतः उन्होंने अनुभव कर लिया था। यही कारण है कि आज भी उनकी रचनाएं प्रासंगिकता की कसौटी पर खरी उतरती प्रतीत होती हैं। 'अँधेर नगरी', 'भारत दुर्दशा', 'नील देवी', 'गीत गोविंदानंद', 'बंदर सभा', 'बकरी विलाप', 'भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?',।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी साहित्य का आधार स्तंभ माना जाता है। वह हिंदी नवयुग के निर्माणकर्ता थे। उन्होंने अपने अल्प जीवन काल के प्रत्येक क्षण को हिंदी के लिए जिया। हिंदी साहित्य को राज दरबारों से निकालकर जनसामान्य के सम्मुख लाने का श्रेय भारतेंदु जी को ही है। काशी के संपन्न वैश्य परिवार में जन्म लेने वाले भारतेंदु जी के माता पिता उनकी अल्पायु में ही स्वर्ग सिधार गए। इसी कारण भारतेंदु जी की शिक्षा व्यवस्थित नहीं हुई किंतु अपने स्वाध्याय से ही मात्र 18 वर्ष की आयु में इन्होंने हिंदी, उर्दू, मराठी, गुजराती, बंगला, अंग्रेजी और संस्कृत का अध्ययन कर लिया। जिस आयु में सामान्य व्यक्ति साहित्य क्षेत्र में आँख खोलता है उस आयु में भारतेंदु हरिश्चंद्र साहित्य का बड़ा खजाना छोड़कर इस दुनिया से प्रयाण कर गए। अट्ठारह सौ सत्तर से उन्नीस सौ तक का समय भारतेंदु युग माना गया है।
युवा कवयित्री हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि अल्पायु में ही विविध विधाओं में, विविध विषयों पर न केवल प्रचुरता से बल्कि प्रभावोत्पादक और गुणवत्तापूर्ण उनके द्वारा लिखा गया।भाषा,कला,साहित्य,समाज और देश को अपने छोटे से जीवन काल में जो सौगात वह दे गये हैं,उसका सही-सही मूल्यांकन करने में हमें कई जीवन लग जायेंगे।भारतेंदु हरिश्चंद्र जी और जिग़र मुरादाबादी जैसे व्यक्तित्व युगों में इस धरती पर अवतरित होते हैं।हम गौरवान्वित हैं,धन्य हैं कि हमने उस धरती पर जन्म लिया है जहाँ ऐसी विलक्षण सार्वभौमिक प्रतिष्ठा वाले पुरूषों ने जन्म लिया और हम उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित कर पा रहे हैं।
युवा कवि दुष्यंत कुमार ने कहा कि देश की गरीबी, पराधीनता तथा अंग्रेजी शासन अमानवीय चित्रण को अपने साहित्य का लक्ष्य बना कर प्रत्येक भारतीय की आत्मा को जगाने वाले भारतीय नवजागरण के अग्रदूत प्रसिद्ध लेखक, सम्पादक, रंगकर्मी, नाटककार, निबंधकार, कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह कहे जाते हैं। वे हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे।  भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का जन्म वाराणसी में हुआ था इनके पिता हिंदी के प्रथम नाटक 'नहुष' के रचियता गोपाल चंद्र थे। उनको काव्य-प्रतिभा अपने पिता से विरासत के रूप में मिली थी। उन्होंने पांच वर्ष की अवस्था में ही निम्नलिखित दोहा बनाकर अपने पिता को सुनाया और सुकवि होने का आशीर्वाद प्राप्त किया।
ग्रुप एडमिन और संचालक शायर ज़िया ज़मीर ने कहा कि हिंदी ज़बान का जो आज का रूप है। उसे ऐसा बनाने में जिन लोगों का योगदान है, यानी जो लोग हमारी हिंदी के यहां तक लगातार बहने का सबब हैं, उनमें भारतेंदु बाबू का नाम सबसे ज़्यादा एहम है। भारतेंदु बाबू अपने युग से आगे के साहित्यकार थे। अपने समय से आगे सोचने वाले भाषा प्रवर्तक थे। वह न केवल बड़े साहित्यकार और भाषाकार थे बल्कि उनका प्रभाव ऐसा था कि उन के प्रभाव के में आकर उस समय के कई साहित्यकारों ने हिंदी के नए और ज़्यादा खुले रूप को अपनाकर न सिर्फ़ साहित्य का सर्जन किया बल्कि हिंदी साहित्य में अपना अलग स्थान भी बनाया।  भारतेंदु बाबू का हम हिंदी से प्यार करने वालों और उर्दू से मुहब्बत करने वालों पर बड़ा एहसान है। उन्होंने हिंदी को आसान बनाया जिसके सबब उस आसान हिंदी को उर्दू ने अपनाया और उर्दू भी उसी असान हिंदी के सबब ज़्यादा हिंदुस्तानी ज़बान बन गई। क्योंकि भारतेंदु बाबू को उर्दू का भी बहुत अच्छा ज्ञान था और उर्दू में उन्होंने शायरी भी की तो यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारतेंदु बाबू उन बड़े नामों में से एक थे जिन्होंने हिंदी और उर्दू को क़रीब लाने में का बड़ा काम किया। भारतेंदु बाबू हम सभी का गौरव हैं।
      युवा लेखक अभिनव चौहान ने कहा कि भारतेंदु हरिश्चंद्र को महज़ 34 वर्ष का जीवन मिला। इतने कम जीवनकाल में उन्होंने हिंदी, उर्दू, थियेटर, पत्रकारिता हर क्षेत्र के लिए अपना कुछ न कुछ योगदान किया। इसलिए हिंदी में शुरू होने वाला नवजागरण काल भारतेंदु युग के नाम से जाना जाता है। पूर्व भारतेंदु काल और उत्तर भारतेंदु काल की अवधारणा भी अब नए अध्ययनों में मिलने लगी है। अपने से पूर्व और समकालीन हिंदी साहित्य में जिन दो भाषाई परंपराओं को भारतेंदु देख रहे थे, उसे पूरी तरह पलट कर रख दिया था इस व्यक्ति ने। यही वजह है कि हिंदी साहित्य की चर्चा करते ही पहला नाम किसी का आता है तो वो हैं भारतेंदु हरिश्चंद्र।

::::::  प्रस्तुति:::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन 'मुरादाबादी' को साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य संगम ने "हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान" से किया सम्मानित


 हिन्दी दिवस की पूर्वसंध्या  13 सितंबर 2020 को  साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम  की ओर से सुप्रसिद्ध व्यंग्यकवि डॉ.मक्खन मुरादाबादी को "हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान" से सम्मानित किया गया।‌
  कोरोना काल में सभी आवश्यक दिशा-निर्देशों का पूर्णतः पालन करते हुए नवीन नगर स्थित  डॉ मक्खन 'मुरादाबादी' जी के आवास पर आयोजित  'सम्मान-अर्पण' कार्यक्रम में उन्हें यह सम्मान अर्पित किया गया। संस्था द्वारा सम्मान स्वरूप उन्हें अंगवस्त्र, मानपत्र, श्रीफल एवं प्रतीक चिह्न अर्पित किए गए। कवि राजीव 'प्रखर' द्वारा प्रस्तुत  माँ शारदे की वंदना  से आरम्भ हुए कार्यक्रम में सुप्रसिद्ध नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने सम्मानित डॉ.मक्खन 'मुरादाबादी' जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उन्हें व्यंग्य विधा का एक सशक्त हस्ताक्षर बताया। कार्यक्रम का संचालन राजीव 'प्रखर' द्वारा किया गया।
कार्यक्रम में बतौर अतिथिगण  सुप्रसिद्ध शायर डॉ.कृष्ण कुमार 'नाज़' एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.मनोज रस्तोगी ने हिन्दी दिवस  पर अपने विचार व्यक्त किए।
सम्मान अर्पण कार्यक्रम के पश्चात् एक संक्षिप्त काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन हुआ । गोष्ठी में
राजीव 'प्रखर' ने दोहा प्रस्तुत करते हुए कहा -
मानो मुझको मिल गये, सारे तीरथ-धाम।
जब हिन्दी में लिख दिया, मैंने अपना नाम।।

जितेन्द्र 'जौली' का कहना था --
हिन्दी दिन-प्रतिदिन प्रगति कर रही है। वर्तमान में हिंदी सोशल मीडिया की भाषा बनती जा रही है।

 योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा ---
हिन्दी का यह दिवस तो, आता है हर वर्ष।
फिर भी हिन्दी कर रही, अपनों से संघर्ष।।

 डॉ मनोज रस्तोगी ने सुनाया --
उड़ रही रेत गंगा किनारे
महकी आकाश में चांदनी की गंध
अंधेरों की देहरी लांघ आये छंद
गंगा जल से छलके नेह के पिटारे।

डॉ कृष्ण कुमार 'नाज़' ने ताजा ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा ----
राख ने मेरी ही ढक रक्खा है मुझको आजकल
वरना तो ख़ुद में सुलगता एक अंगारा हूँ मैं।

सम्मानित साहित्यकार डॉ मक्खन 'मुरादाबादी' का कहना था ---
ऐसा चमत्कार दुनिया में हिन्दी का ही।
है सम्मान सुरक्षित जिसमें, बिन्दी का भी।।

कार्यक्रम में प्रत्यक्ष त्यागी, अक्षिमा त्यागी, मणिका त्यागी भी उपस्थित रहे। संस्था के महासचिव कवि जितेन्द्र 'जौली' द्वारा आभार अभिव्यक्त किया गया।










:::::प्रस्तुति :::::
जितेन्द्र कुमार जौली
महासचिव
हिन्दी साहित्य संगम मुरादाबाद
सम्पर्क सूत्र: 9358854322


शनिवार, 12 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार अग्रवाल की ग़ज़ल ----वीरान हो गए कितने,घर एक बीमारी से, ऐ मेरे मौला हमको, सज़ा ये मिली क्यों है


ज़िन्दगी बहती नदी है तो तिशनगी  क्यों  है,
गमों को साथ में लाए,ऐसी खुशी  क्यों  है।

राज़े हस्ती से दिल,   क्यों  ये दहल जाता है,
जो कली खिली भी नहीं,वह भी बिखरी  क्यों  है।

हमसफर का साथ अगर,साथ ये होता है,
सफर के हर गाम पर फिर,दरमियाँ दूरी  क्यों है।

ख्वाहिशें ज़िन्दगी में, जहाँ दम तोड़ती हैं,
राह मंज़िल की वहीं, खत्म होती क्यों  है।

वीरान हो गए कितने,घर एक बीमारी से,
ऐ मेरे मौला हमको, सज़ा ये मिली  क्यों  है।

अब तो मौतों पर भी, यहाँ ज़शन होते हैं,
शवों की भी स्वजनोंं के, ऐसी दुर्गति   क्यों  है।

"आमोद "चाँद तारे तो, सदियों से ऐसे ही हैं,
रोज़ रोज़ फिर दुनिया, ये बदलती क्यों है।
       
✍️आमोद कुमार अग्रवाल
सी -520, सरस्वती विहार
पीतमपुरा, दिल्ली -34
मोबाइल फोन नंबर  9868210248

मुरादाबाद मंडल के चांदपुर (जनपद बिजनौर ) निवासी साहित्यकार ऋतुबाला रस्तोगी की कविता ------शिक्षक की पूँजी


शिक्षक की  पूंजी
दिखाई नहीं देती
सुनाई देती है
जब वह कर देता है
स्थानांतरण
छात्र छात्राओं के
कानों में
निर्विकार भाव से।

जब वे छात्र  छात्राएँ
सफलताओं की
ऊँचाइयों पर
पहुंच जाते हैं
तब दिखाई देता है
उस पूंजी से
प्राप्त होने वाला
निस्वार्थ लाभ।

शिक्षक रहता है
वहीं पेड़ की जड़ -सा
और छात्र छात्राएं
फैलते जाते हैं
शाखाएं ,फूल,फल
और पुनः बीज बनकर
कहीं और उगने
सँवरने के लिए ।

किन्तु शाखाएं
फूल और फल
वही बढ़ते हैं
चढ़ते हैं जो
जुड़े रहते हैं
अपनी जड़ों से
और परिपक्वता
को प्राप्त कर
करते हैं पुनः
सृजन।

जी  हाँ ! यही
सृजनात्मकता
ही तो वास्तव
में होती है उस
शिक्षक की
 वास्तविक पूंजी।

✍️ ऋतुबाला रस्तोगी
प्रवक्ता हिन्दी
 वैदिक कन्या इण्टर कालेज
 चाँदपुर, बिजनौर, उ ०प्र०

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत --- तुम मेरे साथ चलो


तुम  मेरे साथ  चलो
दुनियां दिखलाता हूँ
जीवन का जीवन से
परिचय करवाता  हूँ!
तुम मेरे साथ,,,,,,,,,,,,

              मुश्किल से मिलता है
              कुछ  प्यार ज़माने  से
              सबकुछ  खोजाता  है
              इक  नज़र  चुराने   से
              मत खुदपर बोझ बनो
              तुमको   समझाता  हूँ!

चढ़ते  को  मत रोको
गिरते  को थामो  तुम
झूठी धन  दौलत  को
अपना मत मानो तुम
सच्चाई  जीवन   की
तुमको  बतलाता  हूँ!

 
              मानो  तो  देव  सभी
              वरना  सब  पत्थर है
              अभिमानी धरती पर
               काँटों का गठठर  है
               मैं  नर-नारायण  से
               तुमको मिलवाता हूँ!

मन  की गागरिया  में
जीभर के प्यार  भरो
कोयल सी  वाणी  से
सबका सत्कार  करो
अमृत  के  झरनो  में
तुमको  नहलाता  हूँ!

             दुनियां  क्या  करती  है?
             इस पर मत् जाओ  तुम
             अपनी मन  बगिया  का
              हर पुष्प खिलाओ  तुम
              खुशियों  की  माला  मैं
               तुमको   पहनाता   हूँ !

       
 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद 244001
 9719275453

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कविता --- कड़वी यादें

कुछ कड़वी यादें
कुछ कड़वी यादें
जो हिला देतीं हैं वर्तमान को
और भिगो देतीं हैं
आँखों के कोरों को
आंसुओं से बरसात की तरह
दिखाई देता है
फिर सब कुछ धुंधला सा
अंधेरे में भटकती
फिरती रूह तरसती हैं
एक किरण रोशनी के लिए
मग़र ए - दिल
न हो निराश यूं
जिसने बनाकर स्याही लिख दिए
पन्ने जिन्दगी के
कुछ खुशी की यादें
और बेइन्तहाँ पन्ने ग़मों के
उसने दी है शौगात एक और भी
अपने इरादे रूपी
'रबड़ 'से मिटाकर
उन दुख भरी कहानियों को
एक पन्ना फिर से
खुशियों और उमंग से भरा लिख
जो हो तेरे बिल्कुल तेरे मन का.


✍️राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की कविता ----मन की बात


भाइयों, बहनों, मित्रों
यहां "मन की बात "का तात्पर्य है
केवल स्वयं के मन की बात
क्या मतलब पड़ी है जनाब को
हम जनता के हैं क्या है हालात?
केवल बात बड़ी करने से
कोई कुशल न्यायाधीश नहीं होता
गीता का उपदेश देने से
कोई द्वारिकाधीश नहीं होता
काश ,कुछ वादे जमीनी स्तर के होते
चाहे , उनमें कुछ पूरे होते
कुछ अधूरे भी अंतस को छूते
पर मान गए जनाब
आप हर मुद्दे में हाथ लगाते हैं
फिर लुढ़कते पत्थर सा
खुद ही साबित हो जाते हैं
कुंभकरण की नींद नहीं सो रहे हैं हम
हम लोग बहुत जल्द मिलकर जागेंगे
फिर देखते हैं आप सब किधर भागेंगे
आप जिस थाली में खाते हैं
बंद करें उसमें छेद पे छेद करना
यह देश की  पावन मिट्टी है
 सबको अपने कर्मों को यही है भरना
अब थोड़ा हमारे मन की बात भी कर ले
कई कदम  आप आगे चल रहे हैं
थोड़ा  थम कर हमारे साथ भी चल ले

✍️ प्रवीण राही
मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता -----हिन्दी प्रचार


एक दिन
अंग्रेजी सभ्यता मेेें पले
हिंदुस्तानी मित्र ने हमको बताया
मेरे माइंड मेेें
एक धांसू आइडिया है आया
हम तुम मिलकर
इंडिया का उद्धार करेंगे
एक समिति बनायेंगे
और हिन्दी का प्रचार करेंगे

मित्र की बात सुन
हमको भारी हुआ अचंभा
हमें लगा
उनको किसी पागल कुत्ते ने काटा है
या फिर किसी हिन्दी के कवि ने
उनके दिमाग को चाटा है
हमने पूछा
तुम तो गाली भी अंग्रेजी में देते हो
ब्रेकफास्ट से लेकर डिनर तक
सब अंग्रेजी स्टाइल में लेते हो
तुम्हारा सब काम
अंग्रेजी में होता है
तुम्हारा कुत्ता तक
अंग्रेजी में रोता है
तुम अंग्रेजी को
अपनी प्रिय भाषा मानते हो
हिन्दी बहुत कम जानते हो
ऐसे माहौल मेेें
तुम हिन्दी का प्रचार
कैसे कर पाओगे
जिस भाषा का
तुमको ही पूरा ज्ञान नहीं है
उसे औरों को क्या सिखाओगे

मित्र बोले
मॉडर्न हिन्दी संस्थाओं
और उनके ऑर्गनाइजर्स को देख
यह बात सैंट पर्सेंट सही है
हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए
हिन्दी की नॉलेज जरूरी नहीं है

मैंने पूछा
तुम ऐसा क्यों करना चाहते हो,भाया
मित्र ने हँस कर समझाया
चमनलाल जी को जानते हो
दस साल पहले उनके पास
ना अपना मकान था,ना दुकान
टूटी हुई साइकिल पर
घूमा करते थे
आज उनके पास
शानदार कोठी है, कार है
और यह सब
हिन्दी प्रचार समिति का चमत्कार है
हमारी गवर्मेंट,हिन्दी के नाम पर
वाटर की तरह मनी बहा रही है
हिन्दी समितियों की संख्या
इंक्रीज हुए जा रही है
इसीलिए तुमसे कहता हूं
बहती गंगा में
हाथ धोने मेेें कोई बुराई नहीं है
हिन्दी जाए भाड़ में
तुम्हारे पास
कोई अच्छा मकान भी तो नहीं है

मैंने कहा
पता नहीं हिन्दी ने
तुम्हारा क्या बिगाड़ा है
तुमने उसको बना दिया
व्यापार का अखाड़ा है
स्वार्थ की मानसिकता से
बाहर निकाल कर देखो
हिन्दी वो भाषा है
जो पढ़ाती प्यार का पहाड़ा है
अगर तुम वास्तव मेेें चाहते हो
हिन्दी की प्रगति
करना छोड़ दो
हिन्दी की दुर्गति
कोई हिन्दी समिति मत बनाओ
ना चीखों,ना चिल्लाओ
हिन्दी को बस गले से लगाओ
मेरा दावा है
हिन्दी तुमको मानसिक रूप से
बहुत ऊंचा उठा देगी
तुम काले धन की नींव पर टिके
मकान की बात करते हो
येे तुम्हारे लिए
प्यार भरा घर बना देगी।

✍️डाॅ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में नोएडा) निवासी साहित्यकार अटल मुरादाबादी की रचना ---ऋषियों मुनियों की यह वाणी, देवनागरी कहलायी है


वर्ण-वर्ण इसका अद्भुत है
सबके मन को भायी है।
ऋषियों, मुनियों की यह वाणी
देवनागरी कहलायी है।

वावन स्वर व्यंजन की माला,
देश काल की अनुपम शाला।
ज्ञान पुष्प की गंध छिपी है।
सबसे ही प्राचीन लिपि है।
नित ही अमृत बरसायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी,
देवनागरी कहलायी है।।

व्यवहारिक भी वैज्ञानिक भी,
स्वर संकेतों की पालक भी।
पग पग चलकर संवर्द्धन से,
अब मंजिल अपनी पायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी,
देवनागरी कहलायी है।।

ब्राह्मी से इसका उद्गम है।
सुगढ सौम्यता आकर्षण है।।
सजी मधुरतम स्वर लहरी से,
महिमा सबने ही गायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी,
देवनागरी कहलायी है।

सुरभित साहित्य, गणित, विज्ञान।
अनुपम, अद्भुत इसका विधान।।
लिखने में सहज सरल इतनी,
ध्वनि लहरों की अनुयायी है।
ऋषियों मुनियों की वाणी,
देवनागरी कहलायी है।

राष्ट्र धर्म का पाठ  पढाती,
मन के भावों को दर्शाती।
ज्ञ से सबको ज्ञान सिखाती।
नित दिव्य ज्ञान बरसायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी
 देवनागरी कहलायी है।

आओ सीखें और सिखाएं,
दुनिया को भी पाठ पढ़ाएं।
सकल विश्व में श्रेष्ठ लिपी है,
शंख नाद कर यह बतलाएं।।
नाना -नानी, काका -काकी,
सबने  यह बात बतायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी
देवनागरी कहलायी है।

✍️अटल मुरादाबादी
बी -142 सेक्टर-52
नोएडा उ ०प्र०
मोबाइल 9650291108,
8368370723
Email: atalmoradabadi@gmail.com
& atalmbdi@gmail.com

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ ममता सिंह की ग़ज़ल ----फिर हक़ीमों की उसको ज़रूरत कहाँ , हाल जो पूछ लें आप बीमार से ।


जूझ जाएंगे हम आज संसार से ।
प्यार के बोल दो ,बोल दो प्यार से॥

ज़िन्दगी आपकी जान भी आपकी ,
माँग लें आप चाहे जो अधिकार से॥

फिर हक़ीमों की उसको ज़रूरत कहाँ ,
हाल जो पूछ लें आप बीमार से ॥

फिर हमारे लिए ये भँवर कुछ नहीं ,
एक आवाज दें आप उस पार  से ॥

साथ "ममता " तो कैसी खुशी और ग़म ,
फ़र्क पड़ता है क्या जीत औ हार से॥

✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ) निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की कविता ---पिता....क्या उत्तर दे


उत्तरदायित्व/ ज़िम्मेदारी
फ़र्ज़ और बोझ के बीच
एक इंसान रहता है...
उत्तर दे नहीं पाता..
जो जिम्मे है उसके,
उसे उतार नहीं सकता
फ़र्ज़ से डिगता नहीं...
बोझ समझता नहीं...
उसे ही भगवान, यानी
पिता कहते हैं...!!

पिता की सामर्थ्य
उसकी सम्पूर्णता
सूरज में नहीं है
चाँद में भी नहीं
सितारों में...नहीं
न धरती/ न आसमान
बस, सपनों का मचान।।

पुत्र को गगन पर देखना
पुत्री को दिल में रखना..
एक छत/एक रट/ रत
ज्यूँ उंगली में कोई नग।।

लड़ता है खुद से/ जग से
अपेक्षा/ उपेक्षा/ तिरस्कार
दुत्कार/ अपमान/ ग्रहों से
और हँसते हुये/ निगाहें नभ
से मिलाते / दम्भ से/ खम से
कहता है... मैं हूँ न अभी..!!

उसकी पूर्णता पूछते हो..
सोलह कलाओं से/ गर्वित
पूर्णिमा जब उसके आँगन
इठलाती/ झूमती उतरती
वह शशि मुख को नहीं...
अपनी बेटी को देखता है।
यही है पिता/
हाँ.. संपूर्णता ।।

तुम ही बताओ, कैसे
वह उत्तरदायित्व को
उत्तर दे दे.......?
जिम्मेदारियों का जिम्मा
दार से उतार दे...
फ़र्ज़ का कर्ज़ अदा कर दे
बोझ को अपने कंधों से
उल्कापिंड की मानिंद
हल्का कर दे...!!

बाप रे!!
यह शब्द ही उस पर गढ़ा है
हज़ार रहस्यों पर पिता बड़ा है।।

✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी
मेरठ

शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की रचना


अक्षर जिसके वैज्ञानिक हैं, शब्द उच्चारण भी शुद्ध ‌।
जो लिखते हैं,वही पढ़ें हैं; पढ़े़ं वही, लिखा जो शुद्ध ।।
ऐसी हिन्दी सबकी प्यारी, हर घर की  यह फुलवारी ‌।
सब जाने हैं; सब समझे हैं; इसीलिए सबसे न्यारी ।।
हिन्दी गीत सभी को भाते, पिक्चर-टी वी से नाते ।
मोबाइल या लैपटॉप हो, नैट तलक  हिन्दी पाते ।।
शब्दकोष है इतना विस्तृत, यहां सब शब्द मिल जाते ।
यांत्रिकी कानून कोई हो, हिन्दी में सब पढ़ पाते ।।
मुल्क दूसरों को भी देखो, निज भाषा  बढ़ते जाते ।
अपनी भाषा के प्रयोग से,समझ लेत अरु समझाते ।।
राज्य की भाषा बहु दिनों से, निज भाषा राष्ट्र बताते ।
इच्छाशक्ति की है जरूरत, हिन्दी ध्वज जग लहराते ।।

✍️ राम किशोर वर्मा
     रामपुर



मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कविता

दाग़दार चाँद जोर से हंँसा,
लुढ़कते ज़र्द सूरज पर।
"किया होगा रोशन,
तूने जिन्दगी को।
पाया क्या आखिर,
वही क्षितिज की कब्र।
देख मैं चमकता हूँ
स्याह रात में शहंशाह बन
कर लेता हूँ कैद पूरी दुनिया को
नींद के कारावास में।
मेरे साथ मेरी आरामगाह में,
झिंगुर गुनगुनाते हैं,
जुगनू जश्न मनाते हैं,
उल्लू के भी भाग खुल जाते हैं।
कभी अग्नि पथ पर चलना नहीं पड़ता
मुझे तेरी तरह जलना नहीं पड़ता।"
गोद में क्षितिज की,
समाधिस्थ सूरज मुस्कुराया।
जब पत्तों ने ये दोहराया।
जो असल है फिर जलवा दिखायेगा
सुबह होते ही ओ चांँद तू धुंधला जायेगा
भीख की चमक आखिर कब तक चलायेगा?

✍️हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नकवी की ग़ज़ल ----


रोक सकता था मुझे, उसने मगर ... जाने दिया

मुझे कोई मरना नहीं था, वह ... मर रहा था

शाम मेरे दिल से हो कर जा रही थी आफताब

उन्होंने इक नज़र और देख कर जाने को दिया

ज़िन्दगी को ख़र्च करके साँस जब रुकने लगी

क़फ़ला रुक दिया और रहबर जाने दिया

उसकी ज़िम्मेदारियों का यह क़दर एहसास था

हमने उस को लौटते हुए ख़ुद को अपने घर जाने दिया

घर बनाओ किस तरह "मीना" किसी बस्ती में हम

ज़ेह न के बंजारे ने दिल का नगर जाना दिया


✍️ डॉ मीना नकवी


गुरुवार, 10 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष जिगर मुरादाबादी की पुण्यतिथि पर मुरादाबाद लिटरेरी क्लब द्वारा उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर ऑन लाइन साहित्यिक परिचर्चा


      वाट्स एप पर संचालित साहित्यिक समूह 'मुरादाबाद लिटरेरी क्लब' द्वारा "विरासत जगमगाती है" शीर्षक के तहत 8 व 9 सितंबर 2020 को  मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार जिगर मुरादाबादी को उनकी बरसी पर याद किया गया। ग्रुप के सभी सदस्यों ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा की। उनकी बरसी 9 सितंबर को थी।
सबसे पहले ग्रुप एडमिन ज़िया ज़मीर ने उन के जीवन के बारे में विस्तार से जानकारी दी कि बीसवीं सदी के अज़ीम शायर जिगर मुरादाबादी का वास्तविक नाम अली सिकन्दर था। वो 1890 ई. में मुरादाबाद में पैदा हुए। जिगर को शायरी विरासत में मिली थी, उनके वालिद मौलवी अली नज़र शायर थे। जिगर की आरम्भिक शिक्षा घर पर और फिर मकतब में हुई। पहले वो अपने पिता से इस्लाह लेते थे। फिर “दाग” देहलवी, मुंशी अमीरुल्लाह “तस्लीम” और “रसा” रामपुरी को अपनी ग़ज़लें दिखाते रहे। जिगर को स्कूल के दिनों से ही शायरी का शौक़ पैदा हो गया था। जिगर आगरा की एक चश्मा बनानेवाली कंपनी के विक्रय एजेंट बन गए। इस काम में जिगर को जगह जगह घूम कर आर्डर लाने होते थे। शराब की लत वो विद्यार्थी जीवन ही में लगा चुके थे। उन दौरों में शायरी और शराब उनकी हमसफ़र रहती थी। जिगर बहुत हमदर्द इन्सान थे। किसी की तकलीफ़ उनसे नहीं देखी जाती थी, वो किसी से डरते भी नहीं थे। लखनऊ के वार फ़ंड के मुशायरे में, जिसकी सदारत एक अंग्रेज़ गवर्नर कर रहा था, उन्होंने अपनी नज़्म "क़हत-ए-बंगाल” पढ़ कर सनसनी मचा दी थी। कई रियासतों के प्रमुख उनको अपने दरबार से संबद्ध करना चाहते थे और उनकी शर्तों को मानने को तैयार थे लेकिन वो हमेशा इस तरह की पेशकश को टाल जाते थे। उनको पाकिस्तान की शहरीयत और ऐश-ओ-आराम की ज़िंदगी की ज़मानत दी गई तो साफ़ कह दिया जहां, पैदा हुआ हूँ वहीं मरूँगा। जिगर आख़िरी ज़माने में बहुत मज़हबी थे। उनके अत्यधिक प्रशंसित कविता संग्रह "आतिश-ए-गुल" के लिए उन्हें 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। जिगर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहास में केवल दूसरे कवि थे, जिन्हें  डी लिट की उपाधि से सम्मानित किया गया - इस सम्मान को प्राप्त करने वाले पहले शायर डॉ इक़बाल थे। उनका निधन गोंडा में 9 सितंबर 1960 में हुआ। जिगर मुरादाबादी का मज़ार, तोपखाना गोंडा में स्थित है।जिगर साहिब रिवायती शायरी के आख़िरी अज़ीम शायर हैं। जिगर साहिब उन चन्द अहद-साज़ शोअरा में शामिल हैं जिन्होंने बीसवीं सदी में ग़ज़ल के मेयार को गिरने नहीं दिया, बल्कि उसको ज़ुबानो-बयान के नये जहानों की सैर भी करायी, उसे नए लहजे और नए उसलूब से रूशनास भी कराया। जिगर साहब ने शायरी को इतना आसान करके दिखाया है और शेर कहने में ऐसा कमाल हासिल किया है कि उसे देख कर सिर्फ़ हैरत की जा सकती है। जिगर साहिब की लगभग हर ग़ज़ल में तीन-चार मतले मिलना आम बात है जबकि मतला कहना सबसे मुश्किल माना जाता है। यह शायरी बिला-शुबह अपने वक़्त की मुहब्बत की तारीख़ तो है ही मगर यह शायरी हर एहद के मुहब्बत करने वालों के दिलों में धड़कती है। हिज्र में तड़पती हुई रूहों को सहलाती है। हर एहद में मुहब्बत के लिए आमादा करती है।
प्रख्यात शायर और जिगर मुरादाबादी फाउंडेशन के अध्यक्ष मंसूर उस्मानी ने ख़िराजे-अक़ीदत पेश करते हुए कहा कि-
था जिसका इकतेदार ग़ज़ल के जहान पर,
उस जैसा बादशाह कहाँ अब नजर में है,
हालांकि उसको गुजरे जमाना हुआ मगर,
अब भी जिगर की टीस हमारे जिगर में है।
वरिष्ठ व्यंग्य कवि डॉ मक्खन मुरादाबादी ने कहा कि जिगर साहब बीसवीं सदी के एक ऐसे शायर होकर सामने आये,जो अदब की दुनिया और समाज द्वारा खूब सराहे गए और आज भी उनकी सराहना बुलंदियों पर है। हर समय में अदब और साहित्य को बहुत कुछ देने वाले बहुत से कलमकार होते हैं,पर समाज के सिर चढ़कर बोलने वाले कम ही होते हैं। वह भारत की मिट्टी की आत्मा के शायर थे।
वरिष्ठ कवि डॉ अजय अनुपम ने कहा कि जिगर मुरादाबादी को स्मरण करना मुरादाबाद के मस्ताना अंदाज को याद करना है।सादा मिजाज जिगर अपने घर को लगी आग में उम्र भर झुलसते रहे।  यहीं से शराब का दामन थाम लिया। शायरी में सूफियाना रंग मुरादाबाद की देन है। मुरादाबाद की कल्चर में जो हम आहंगी तबीयत का मिज़ाज है वही जिगर की शायरी में भौतिक और आध्यात्मिक स्वरूप में उभरा है।
मशहूर शायरा डॉ मीना नक़वी ने कहा कि -
शायर हैं, मुसाफ़िर हैं इसी राहगुज़र के
अशआर के पाँव में हैं छाले भी सफ़र के
ग़ज़लों में हमारे भी है कुछ रंगे- तगज़्ज़ुल
हे फ़ख़्र है  कि बाशिन्दा है हम शह् रे-जिगर  के
मशहूर शायर डॉ मुजाहिद फराज़ ने कहा कि मुरादाबाद की धरती अपने ऊपर जितना गर्व करे कम है कि उसे ग़ज़ल के बेताज बादशाह हज़रते जिगर मुरादाबादी की जन्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। यह जिगर मुरादाबादी ही हैं जिन्होंने मुरादाबाद का नाम अदब के हवाले से सारी दुनिया में रोशन किया है। साहित्य के मैदान में ऐसी शख़्सियात कम ही गुज़री हैं जिनकी रचनाओं और व्यक्तित्व में पूरी तरह समानता हो । जिगर साहब ऐसे ही गिने चुने शायरो में से एक हैं। जिगर ने अपनी शायरी के ज़रिए मोहब्बत का जो  पैग़ाम दिया है आज के माहौल में जब सियासत ने हर जगह नफ़रत के अलाव जला रखे हैं उनके पैगाम को आम करने की और भी अधिक ज़रूरत है।
प्रसिध्द नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने कहा कि अनेक शायर हुए हैं जिन्होंने अपनी शायरी से हिन्दुस्तान की रूह को तर किया है, जिगर मुरादाबादी भी ऐसे ही अहम शायरों में शुमार होते हैं। अपनी खूबसूरत शायरी के दम पर मुहब्बतों का शायर कहलाने वाले जिगर के शे’र आज भी लोगों के दिलो-दिमाग़ में बसते हैं जो उन्हें बड़ा और अहम शायर बनाते हैं। जिगर साहब का शे’र पढ़ने का अन्दाज़ बेहद जादूभरा था और तरन्नुम लाजबाव। जिगर साहब के शेर पढ़ने के ढंग से उस दौर के नौजवान शायर इतने ज़यादा प्रभावित थे कि उनके जैसे शेर कहने और उन्हीं के अंदाज़ में शे’र पढ़ने की कोशिश किया करते थे।
मशहूर समीक्षक डॉ मोहम्मद आसिफ हुसैन ने कहा कि बीसवीं शताब्दी में अली में सिकंदर जिगर मुरादाबादी ने अपनी ग़ज़लों की बुनियाद पर पूरी दुनिया में मुरादाबाद को साहित्यिक पहचान दिलवाई। जिगर ने अपना रंग-ओ-आहंग ख़ुद तय किया उन्होंने शायरी में किसी की पैरवी नहीं की। उन्होंने इश्क़ किया और सिर्फ इश्क़ किया। इश्क़ के रास्ते में जितने पड़ाव आये हर पड़ाव से उनकी शायरी का नया दौर शुरू हुआ। जिगर ने कभी बनावटी शायरी नहीं की बल्कि वह जिस दौर से गुजरे और जो उन्होंने महसूस किया उसे शेर की शक्ल में पेश कर दिया। जिगर की शायरी पर बहुत कुछ लिखा गया और बहुत कुछ लिखा जाता रहेगा।
युवा कवि राजीव प्रखर ने कहा कि कीर्तिशेष जिगर मुरादाबादी जी जैसे ऐतिहासिक शायर को पढ़ना, उनकी रचनाओं को  किसी न किसी माध्यम से सुनना अर्थात् शायरी के एक पूरे युग से जुड़ना, उससे  साक्षात्कार करना।
युवा शायर नूर उज़्ज़मां नूर ने कहा कि यह कहना ग़लत होगा कि जिगर सिर्फ़ इश्क़ो मस्ती के शायर है। बेशक़ जिगर शराब औ शबाब में डूबे हुए हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि वे अपने आसपास के माहोल से बे ख़बर हैं। वो कहते बंगाल जैसी नज़्म भी कहते हैं जिसमें उस वक़्त की अंग्रेज़ी सरकार को तंक़ीद का निशाना बनाते हैं। उन्होंने "गांधी जी की याद में" " ज़माने का आक़ा गुलामे ज़माना" "ग़ुज़र जा" "ऐलाने जम्हूरियत" जैसी नज़्में भी कही हैं। इन नज़्मों से हमें उनके सियासी शऊर का पता मिलता है। 60 साल गुज़र जाने के बाद भी अगर जिगर के शाइरी में आज भी नये पहलू तलाश किये जा रहे हैं तो ये उनके अज़ीम शाइर होने की ही निशानी है।
युवा कवि मयंक शर्मा ने कहा कि जिगर मुरादाबादी भी कई दूसरे बड़े शायरों की तरह ये भ्रम खड़ा करते हैं कि बेहतरीन शायरी का रास्ता शराबखाने से होकर गुज़रता है। जिगर साहब की शायरी को देखें तो उसमें अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं। जिगर आशिक़ मिज़ाज इंसान थे। उन्होंने मेहबूब को टूटकर चाहा। उनके नाम के आगे लिखा मुरादाबादी हमें ये गर्व कराता है कि जिगर साहब हमारे हैं और अपने कलामों से हमेशा हमारे भीतर ज़िन्दा रहेंगे।
युवा कवयित्री मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि जिगर साहब की परंपरागत शाइरी हुस्न,इश्क ,ग़म और सादगी में लिपटी  और आधुनिकता का टच लिये हुए है।उनकी रिवायती ग़ज़लों का बेपनाह हुस्न जब चाहने वालों के बीच आया तो दीवानों के मेले लगने लगे।जिगर साहब का मस्तमौला और बेपरवाह ज़िंदगी जीने का अंदाज़ उनकी कलम में भी दिखता है। जब जब दीवाने मुहब्बत करेंगे, तब तब जिगर साहब के शेर पढ़कर ही मुहब्बत के दरिया में  पहला गोता लगाकर ,अपनी मुहब्बत का आगाज़ करते हुए, मुकम्मल करने की कसमे खायेंगे। जिगर मुरादाबादी शाइरी के आसमान में  चमकते रहेंगे।
युवा कवि दुष्यंत कुमार ने कहा कि आली मोहतरम जिगर मुरादाबादी बीसवीं सदी के मुकम्मल गजल लिखने वाले शायर माने जाते हैं। साधारण शिक्षा के बावजूद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने उन्हें सम्मान स्वरूप डी-लिट की उपाधि से नवाजा। 'जिगर' जब शेर कहना शुरू करते तो लोगों पर जादू सा छा जाता। जिगर उन भाग्यशाली शायरों में से हैं जिनकी रचना उनके जीवनकाल में ही 'क्लासिक' माने जाने लगी।           
युवा और साहित्यिक पत्रकार अभिनव चौहान ने कहा कि जिगर मुरादाबादी शायरों को पेमेंट देने की हिमायत करने वाले पहले शायर थे। मुशायरों में उनसे पहले किसी ने यह मांग नहीं की थी। लेकिन उन्होंने अपने कलाम पेश करने की एवज़ में पेमेंट की परंपरा शुरू की। अतिश्योक्ति न होगी यह कहना कि इसी चलन के कारन सिनेमा में गीतकारों को पूरा सम्मान और बेहतर पारिश्रमिक दिया जाने लगा था। मोहब्बत और अना के शेरों में अक्सर उनका हवाला दिया जाता है।

:::::::::प्रस्तुति::::::::
ज़िया ज़मीर
ग्रुप एडमिन
मुरादाबाद लिटरेरी क्लब
मो०8755681225

बुधवार, 9 सितंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी ------- कलाकार का दर्द


      हरिराम जी उदास बैठे हुए थे ।आखिर क्यों न हों! भादो का महीना आ गया और क्वार में रामलीला शुरू होने वाली थी लेकिन कोरोना के चक्कर में सारे काम रुके पड़े हैं। कलाकारों के लिए तो साल में यही एक मौका आता है, जब उनकी कुछ आमदनी हो जाती है और रामलीला मंडली की कुछ आमदनी होती है तथा साल भर का गुजारा उससे चल जाता है । इसी उधेड़बुन में हरिराम जी अपने घर के आँगन में चारपाई पर चिंता की मुद्रा में बैठे हुए थे । यही सोच विचार चल रहा था कि पता नहीं यह साल कैसा बीते ? अगर पिछली जैसी बात होती, तब तो अब तक मंडली बुक हो गई होती और उनके पास भरपूर एडवांस भी आ गया होता । लेकिन इस बार तो छोटे-छोटे कार्यक्रमों के लिए भी कहीं से कोई बुलावा नहीं आ रहा है । मंडली में जितने कलाकार हैं, सभी लोग लगभग रोजाना ही मिलते हैं और पूछते हैं कि कहीं से कोई मंडली पक्की होने का समाचार मिला ? हरिराम जी सबको बता देते हैं कि भैया काम धंधा ठंडा पड़ा हुआ है । सबके चेहरे लटक जाते हैं ।
           इसी चिंतन में बैठे - बैठे सामने से तीन चार कलाकार आए और हरिराम जी के पास आकर बैठ गए।  एक कहने लगा "भाई साहब सारी दुर्गति हम कलाकारों की ही रह गई है वरना सड़क पर न कोई मास्क लगाता है , न सामाजिक दूरी का पालन करता है। सब कुछ बस हमारी मंडली अपनी कला का प्रदर्शन कर दे, इसी पर पाबंदियाँ रह गई हैं ?"
         हरिराम जी ने कहा "सरकार कुछ सोच समझकर ही कर रही होगी ?"
      "क्या खाक सोच समझकर कर रही है। हमारे बच्चे भूखों मर रहे हैं और कहीं कोई लीला होती हुई नजर नहीं आ रही है । "
                "यह तो बात सही है"- एक अन्य आगंतुक ने सहमति का स्वर मिलाते हुए कहा । "अगर रामलीला हो जाए तो हम दर्शकों को मास्क पहना देंगे और सामाजिक दूरी का पालन भी करवा देंगे। कुछ तो काम धंधा चले ! "
        हरिराम जी बोले " दशहरे का मेला भी लगवा दोगे। सोशल डिस्टेंसिंग उसमें भी करा देना।"
      एक कलाकार ने कहा "कमाल है हरी बाबू ! आप स्वयं कलाकार होते हुए भी चीज का मजाक बना रहे हैं ? "
       हरिराम जी ने गंभीरता से कहा "दुखी मैं भी कम नहीं हूँ। लेकिन मैं समझ रहा हूँ कि हम न तो लोगों को मास्क पहनना पाएँगे और न सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करा पाएँगे । कितने लोग मास्क पहनते हैं ? और जो पहनते हैं ,वह भी केवल नाम - मात्र के लिए चेहरे पर लटका लेते हैं । ऐसे क्या कोरोना से बच पाएँगे ? हम अपने आप को धोखा न दें। अपने कारोबार को शुरू करने के चक्कर में पूरे समाज में हम कोरोना फैला देंगे तो क्या हमारे भीतर का कलाकार हमें दोषी नहीं ठहराएगा ? अभी कल ही मेरी चचेरी बहन की मृत्यु हो गई थी । फोन आया था और भी दसियों लोगों की मृत्यु जान - पहचान में अथवा अनजाने लोगों की हो रही है । क्या धनी और क्या निर्धन ,सबको कोरोना खा रहा है। गंभीर बीमारी है । अगर फैल गई तो कौन बचेगा ? क्या हम अपने काम - धंधे के लिए पूरे समाज को परेशानी में डालना स्वीकार करेंगे ?"
      हरिराम जी ने इतना कहकर चुप्पी साध ली और फिर काफी देर तक कोई कुछ नहीं बोला । उसके बाद सब उठ कर अपने - अपने घर चले गए । हरिराम जी अकेले रह गए और उसके बाद फफक कर रोने लगे।

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
 रामपुर (उत्तर प्रदेश)
 मोबाइल 999761 5451

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------ बिन बुलाए मेहमान


     .... "कितनी देर से डोर बेल बज रही है देखते क्यों नहीं कौन आया है?"
     "अरे भटनागर साहब आइए" !
'"भाभी जी बिटिया की शादी है यह रहा कार्ड राही गेस्ट हाउस में आप सभी का बहुत-बहुत आशीर्वाद चाहिए कुछ भी हो जाय समय से आ जाना" !!
      " बिल्कुल भाई साहब बिटिया की शादी हो और हम ना पहुंचे ? भला हो सकता है यह?"
             
 "अंकल जी नमस्ते!,, खाना खाते हुए ही  विकल ने मुझे नमस्ते की ।
,,नमस्ते बेटा,,,! और कौन-कौन आया है? मैंने भी विकल की नमस्ते का जवाब देते हुए पूछा ।,, अंकल सभी आए हैं मम्मी पापा भैया !!
       ......और बताओ कैसे हो? आपस में बातें करते करते सब लोग खाना खाने लगे वैसे तो सभी जगह शादियों में खाना अच्छा ही होता है परंतु यहां और भी ज्यादा उच्च कोटि के व्यंजन दिखाई पड़ रहे थे सभी लोग रुचि अनुसार भोजन का रसास्वादन कर भोजन कर रहे थे ।
       अंत में आइसक्रीम पार्लर से आइसक्रीम ले खाने को संपूर्णता प्रदान कर सभी पड़ोसी लिफाफा देने के लिए भटनागर साहब को खोजने लगे परन्तु भटनागर साहब का कहीं पता नहीं था।अब महिलाएं श्रीमती भटनागर को ढूंढने लगी परन्तु वह  भी कहीं दिखाई नहीं पड़ीं ।
    ....जहां दोनों पक्ष मिलकर एक ही जगह  भोज का आयोजन करते हैं वहां अक्सर इस प्रकार की समस्या आती ही है ... सामने एक टेबल पर सभी के लिफाफे लिए जा रहे थे सभी लोगों ने अपने लिफाफे वहीं दे दिए  .... लिफाफे गिनने पर बैठा व्यक्ति एक दूसरे संभ्रांत व्यक्ति के कान में फुसफुसा रहा था कार्ड तो एक हजार ही बांटे थे अब तक ढाई हजार लिफाफे आ चुके हैं  सचमुच किसी ने सही कहा है शादियों में कन्याओं का भाग काम करता है ..... वरना भला ऐसा कहीं हुआ है की 1000 कार्ड बांटने पर ढाई हजार से ज्यादा लिफाफे आ जाएं ....तभी वहीं चीफ कैटर( जिसको कैटरिंग का ठेका दिया था) आया और उन्ही दोनों लोगों से धीरे धीरे परन्तु आक्रोश में कह रहा था "यह बात बहुत गलत है  ! साहब जी ! मुझे 12 सौ लोगों का भोजन प्रबंध करने के लिए कहा गया था आपके यहां ढाई हजार से ज्यादा लोग अब तक भोजन कर चुके हैं सारा खाना समाप्त हो गया है अब मेरे बस का प्रबंध करना नहीं है मैंने खुद खूब बढ़ाकर इंतजाम किया था परंतु इतना अंतर थोड़ी होता है 100 -50 आदमी बढ़ जाएं चलता है .... मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है अब..... आप स्वयं जानें...
....... रात्रि के 11:00 बज चुके थे घर भी जाना था सब ने अपनी अपनी गाड़ियां निकालीं और घर की ओर चलने लगे.......
.... जब बाहर निकल रहे थे तभी अचानक दूल्हे पर नजर पड़ी दूल्हा गोरा चिट्टा शानदार वेशभूषा में तलवार लगाएं घर वाले भी सभी राजसी पोशाकें पहने जम रहे थे जैसे किसी राजघराने की शादी हो.... सभी लोग आपस में बात करते हुए जा रहे थे "कुछ भी हो भटनागर साहब ने घराना  तो बहुत अच्छा ढूंढा."..... "हां भाई साहब बहुत शानदार शादी हो रही है"!!
   ..... निकलते निकलते मन हुआ द्वार पूजा तो देख लें परन्तु गाड़ियां धीरे धीरे बाहर निकल रहीं थीं..... चलते चलते उड़ती नज़र लड़की के पिता के स्थान पर मौजूद व्यक्ति पर पड़ी तो लगा वह भटनागर साहब नहीं थे.........फिर सोचा हमें कहीं धोखा लगा होगा....
...... परंतु राही होटल से निकलने के बाद कुछ आगे चलकर एक और होटल पड़ा उसका नाम भी राही ही लिखा  हुआ था...... यह देखकर माथा कुछ ठनका सोचते सोचते घर पहुंच गए सभी पड़ोसी लोग  आपस में बातें कर रहे थे कि भटनागर साहब क्यों नहीं मिले ?ऐसा कहीं होता है कि मेहमानों से मिलो ही नहीं ! यह बात किसी को भी अच्छी नहीं लग रही थी.....
........अगले दिन भटनागर साहब गुस्से में सबसे शिकायत कर रहे थे कि "आप लोगों में से कोई भी नहीं पहुंचा.!!!.... भला यह भी कोई बात हुई  सारा खाना बर्बाद हुआ..!!!.... सभी पड़ोसी लोग एक दूसरे का मुंह देख कर मामले को समझने का प्रयत्न कर रहे थे...... आखिर सब लोग किसकी  दावत में शामिल हो गए और व्यवहार के लिफाफे किनको।   थमा कर चले आये......
      ‌.... चौंकने का समय तो अब आया जब अखबार में पढ़ा "राही होटल में शादी में खाना कम पड़ जाने के कारण बरातियों ने हंगामा काटा !! प्लेटें फेंकी .....नाराज़ होकर दूल्हे सहित बरात बिना  शादी किए लौटी !!! ...सभी पड़ोसी स्तब्ध थे.......
                 
 ✍️  अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद
82 188 25 541

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ------ 'टूटते ख्वाब '


मीतु सिर पर रखे पल्लू को संभालती हुई रसोई में इधर से उधर जल्दी जल्दी चलते हुए खाना बनाती जा रही थी. शादी के बाद आज उसकी पहली रसोई थी उसे बहुत डर लग रहा था कि वह सही से खाना बना भी पाएगी या नहीं?
उसे याद है कि वह अपने मायके में खाना बनाने के उद्देश्य से बहुत ही कम गई थी बस मम्मी जब खाना बनाती थी तब उनको यह बना दो वो बना दो यही कहने जाती थी और मम्मी भी हँसते हुए अपनी गुड़िया के पसंद के पकवान बनाकर बहुत ही खुशी महसूस करती थीं.
"बहू जल्दी करो सब लोग आ चुके हैं खाने के लिये l"
सासू माँ ने कड़क आवाज मे कहा.
"जी मम्मी जी अभी बस थोड़ी देर मे तैयार करने वाली हूँ खाना l" उसने सहमते हुए कहा.
"हमारी बहु तो बहुत ही अच्छा खाना बनाती है.... उसने तो कुकिंग का कोर्स किया है न!" मिसेज गुप्ता ने खुश होते हुए कहा. सुनकर सभी मुस्कराने लगे.
मीतु ने टेबल पर खाना रख दिया और सभी चटकारे ले लेकर खाने लगे.
खाना लजीज बना हुआ था कोई कुछ नहीं बोला हाँ सासू माँ ने इतना जरूर कहा.
" खाना बनाना कोई बड़ी बात थोड़े ही नहीं है सभी बना लेते हैं l"
सुनकर सभी ने हाँ मे हां मिला दी और खाकर मीतु को गिफ्ट आदि देकर चली गईं.
मीतु को अच्छा लगा... खुशी महसूस हुई कि उसने सबके लिए अच्छा खाना बनाया.
वह जो भी अच्छा काम करती उसके लिए तो ससुराल मे कोई कुछ नहीं कहता उत्साहजनक शब्द सुनाने को उसके कान तरस गए थे और गलतियों को ऎसे उछाला जाता जैसे उसने पता नहीं कितना बड़ा अपराध कर दिया.
धीरे धीरे उसको भी सुनने की आदत सी हो गई किसी से कोई उम्मीद ही नहीं रही कि कोई उसके अच्छे काम के लिए दो उत्साहवर्धक शब्द भी बोलेगा.
धीरे  धीरे उसको लगने लगा कि कमी उसमें ही है वह डिप्रेशन में आ गई और कॉन्फिडेंस तो जैसे छूमंतर ही हो गया.
शादी से पहले वह कितनी खुश थी लगता था माँनो वह कहीं की महारानी बनने जा रही हैं सभी उसको प्यार करेंगे उसके अच्छे आचरण और व्यवहार के लिए मगर यहां तो सब कुछ उल्टा ही था.
ख्वाबों को टूटते हुए देखकर उसकी आँखें भर आतीं .
 ✍️ राशि सिंह
मुरादाबाद उत्तर प्रदेश

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की लघुकथा -------- फरमाबरदार बीवी


     कहना न मानने पर जमील मियां ने पहली बीवी को तलाक़ दे दिया था .अब वह चाहते थे कि उन्हें ऐसी बीवी मिले जो उनका हर हुक्म बजा लाये . जल्द ही उनकी यह ख्वाहिश पूरी हो गई उनकी रिश्ते की खाला नईमा ने अपने मौहल्ले की सीधी सादी लड़की रमशा से उनकी शादी करा दी.  रमशा जमील मियां का हर हुक्म बिना चूं चरा के बजा लाती थी . जमील मियां भी खुश थे कि उन्हें कितनी कहना मानने वाली बीवी मिली है. मौहल्ले में भी चर्चा थी कि जमील मियां की दूसरी बीवी बड़ी फरमाबरदार है. बुधवार को दफ्तर से घर आये जमील मियां कुछ झल्लाये हुए थे . उनके आने पर रोज़ाना की तरह शीशे के गिलास में पानी लेकर आई रमशा उनके पास आकर बोली -'लीजिये पानी ' 'रख दो ' झल्लाये जमील मियां ने जवाब दिया. 'कहाँ?'रमशा ने फिर सवाल दाग दिया. गुस्साए जमील मियां ने कहा -'मेरे सर पे दे मारो ' इतना सुनते ही फरमाबरदार  रमशा ने शीशे का गिलास जमील मियां के सर पर दे मारा।
 
✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
प्रधानाचार्य, अम्बेडकर हाई स्कूल बरखेड़ा
सिरसी (सम्भल)
9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----हार की खुशी


सुखवीर हॉकी का बेहतरीन खिलाड़ी था। आसपास के कई जिलों में उसकी टक्कर का कोई नहीं था। वो एक अच्छा कोच भी था। दूर दूर से युवा ,उसके पास हॉकी सीखने के लिए आते थे। वो सबको बड़ी लगन और मेहनत से सिखाता था।
  पिछले दिनों उसकी टीम का मैच पड़ोसी ज़िले की टीम के साथ हुआ। मैच में पूरे समय रोमांचक खेल चल रहा था।आखिरी क्षणों में विपक्षी टीम ने एकजुट होकर अपनी पूरी ताकत लगा दी और एक गोल ठोक कर जीत हासिल कर ली। पूरे स्टेडियम में सन्नाटा छा गया। लोग विश्वास नही कर पा रहे थे कि जिस टीम में सुखवीर जैसा खिलाड़ी हो,वो टीम हार गई है।उदासी और मायूसी से सब के चेहरे लटके हुऐ थे लेकिन सुखवीर को मन ही मन खुशी महसूस हो रही थी,क्योंकि जीतने वाली टीम के सभी खिलाड़ियों को उसने ही खेलना सिखाया था ।

✍️  डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M  - 9837189600

मंगलवार, 8 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की लघुकथा ------ कमीशन


  डॉक्टर साहब खाली टाइम में बैठे अपने दोनो कंपाउंडर से बात कर रहे थे ।डॉक्टर साहब का नया अस्पताल बन रहा था और वह कंपाउंडरो को समझा रहे थे कि किस प्रकार से व्यवस्था को संभालना है । डॉक्टर साहब ने अपने कंपाउंडर सुशील से कहा मैं तो दुखी हो गया हूं, इनमें मिस्त्रीयों से और लकड़ी के काम करने वालों से जहां देखो कमीशन का माहौल बना रखा है।  जो भी सामान खरीदने जाता हूं , इन लोगों का कमीशन वहां पर सेट होता है इस हिसाब से तो मुझे नए अस्पताल में बहुत पैसा खर्च करना पड़ेगा । अभी यह बात चल ही रही थी कि अचानक डॉक्टर साहब के पास एक जनाना मरीज आ गया । डॉक्टर साहब ने फौरन अपनी वाइफ को बुलाया और उन्हें मरीज को लेबर रूम में शिफ्ट कर दिया । डॉक्टर साहब की वाइफ जो कि एक महिला डाक्टर थी,   मरीज को देखने लगी, कुछ ही देर में डॉक्टर साहब के केबिन में एक बैग टांगे आशा वर्कर का प्रवेश हुआ आशा के आते ही डॉक्टर साहब ने कहा आओ शीला बैठो तुम्हारे मरीज को क्या परेशानी है  बताओ । आशा वर्कर ने कहा इसका डिलीवरी का टाइम है और मैं भाभी जी से इसका प्रसव कराने के लिए लाई हूं । कुछ देर पश्चात आशा वर्कर ने अपनी ड्यूटी का हवाला देते हुए डाक्टर  साहब से जाने की इजाजत मांगी और जाते-जाते डॉक्टर साहब से बोली डॉक्टर साहब मेरे कमीशन का ध्यान रखना अब तो मैं लगातार आपके पास केस लेकर आती हूं । कंपाउंडर सुशील के सामने इस तरह के शब्द सुनकर डॉक्टर साहब कुछ असहज से हुए । यह कह आशा वर्कर तो चली गई लेकिन कंपाउंडर सुशील डॉक्टर साहब को नजरें गड़ाए देख रहा था। डाक्टर साहब भी कंपाउंडर सुशील से नजर बचाते हुए अपने काम में व्यस्त हो गए ।


✍️ विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
Vivekahuja288@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा -----भुखमरी


"धप्प...." की आवाज़ के साथ उन्होंने भोजन से आधी भरी प्लेट डस्टबिन के हवाले की और 'देश में भुखमरी' विषय पर अपना आलेख पूरा करने में लग गए।

✍️राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल) के साहित्यकार धर्मेंद्र सिंह राजौरा की लघुकथा ----धूल


नन्ही जया अपने घर के आंगन में खेल रही थी तभी बाहर से आती एक मधुर ध्वनि  उसके कानों में पड़ी| ध्वनि सुनकर जया मचल उठी|   गली में फेरीवाला 'आइसक्रीम वाला' कहकर आइसक्रीम बेच रहा था | बरामदे में उसकी दादी पुराने कपड़े सिल रही थीं| जया उनके पास गई और बड़े आतुर भाव से उनके कान में कुछ कहा|
" अपने बाप से जा कर ले" दादी ने कहा था|
 जया  मायूस हो गई बच्ची को उदास देखकर दादी उठी और खुंटी पर टंगे  अपने पति के कुर्ते को ले आईं जो उन्हें  सिलना भी था ,अचानक दादी ने जया को पुकारा और 10 का नोट दे दिया जो उन्हें कुर्ते से मिला था | जया खुशी से कूदती घर से बाहर चली गई और आइसक्रीम ले आई एक अपने लिए और एक अपने भाई के लिए |
थोड़ी देर बाद जया के दादाजी घर आए उन्होंने सिला कुरता देखा लेकिन जेब खाली देखकर व्यग्र हो  उठे
" इसमें कुछ पैसे थे "उन्होंने अपनी पत्नी से पूछा
"10 का नोट निकला था उससे बच्चों ने आइसक्रीम ले ली " जया की दादी ने जवाब दिया
 "अब मैं बीड़ी किससे लाऊंगा मेरे पास एक पैसा भी नहीं  है|"
 " बच्चे जिद कर रहे थे मैंने पैसे दे दिए|"
"अच्छा किया ! मैं पूरे दिन खेतों में बैल की तरह कमाता हूं , एक दो बीड़ी पी लेता हूं तो क्या गुनाह  है? "
   "थूकते खांसते तो फिरते हो गली मोहल्ले में ,आज बच्चों ने कुछ खा लिया तो क्या गुनाह कर दिया ? बीड़ी पीने से क्या होता है ,कम से कम बच्चों ने कुछ  पेट में तो खाया|"
 बलधारी सिंह निरुत्तर थे और इससे पहले उन्होंने अपनी पत्नी को कभी इतना मुखर नहीं देखा वह  उदास होकर खटिया पर जा बैठे|
 पड़ोस के वकील चाचा उनके पास आए और उन्होंने दो बीड़ी  जलाकर एक बलधारी सिंह को दे दी |बलधारी जी ने एक दम लगाया लेकिन आज उन्हें बीड़ी का स्वाद कसैला लगा| उन्होंने  बीड़ी तोड़ कर फेंक दी , वकील चाचा आश्चर्य से देखते रह गए| बलधारी उठे और अपनी बैठक में चले गए | सामने की अलमारी में भगवान राम का चित्र लगा हुआ था और नीचे  मानस का गुटका रखा  था | बलधारी जी ने देखा गुटके पर धूल जमी हुई थी उन्होंने उस पवित्र पुस्तक को उठाया और अपने कुर्ते से साफ किया फिर उन्होंने गुटका यथा स्थान रख दिया और तस्वीर के सामने नतमस्तक हो गए| उनके अंतस से भी धूल हट चुकी थी गुटके की मानिन्द|
                   
 ✍️ धर्मेंद्र सिंह राजौरा
बहजोई

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----- गुलाबी साड़ी


गुलाबी साड़ी बहुत फबती थी माधुरी पर........जब भी वह गुलाबी साड़ी पहनती राजेश तो उन्हें ही देखते रहते।राजेश माधुरी के पति थे जो अब रिटायर हो चुके थे और पत्नी माधुरी के साथ शांताकुंज के निजनिवास में रहते थे।जिस दिन माधुरी गुलाबी साड़ी पहन लेती वह भूल जाते कि अब वह रिटायर हो चुके है ,उन्हें ऐसा लगता जैसे माधुरी नयी नवेली दुल्हन है और उन्हें वही दिन याद आ जाते जब वह माधुरी के साथ शहर में अकेले आए थे जबकि उनका बेटा अमन भी अब शिक्षा दीक्षा पूर्ण कर दिल्ली में उच्च कम्पनी में कार्यरत था और वही अपनी बीवी के साथ रहता था ।पर राजेश की दुनिया तो माधुरी में बसी थी ।कितनी सुंदर लगती हो तुम आज भी .......और गुलाबी साड़ी में तो तुम्हारा गोरा रंग ऐसे चमकता है जैसे गुलाब को दूध में भीगो दिया हो ।’इस उम्र में भी आप ......रहने दो ।पोते खिलाने की उम्र में ये बातें शोभा देती है क्या........’माधुरी पति राजेश को कहती रहती कि आपका ध्यान बस मुझपर ही रहता है।समय का लेकिन कुछ नही पता ........राजेश को दिल का दौरा पड़ा....माधुरी अकेली रह गयी ।बेटा अमन अपनी माँ को दिल्ली ले आया।अमन अपनी माँ का बहुत ध्यान रखता था ....समय गुज़रता गया ।’माँ आज शाम को मेरे दोस्त की बहन की शादी है ।सब चलेंगे आप तैयार हो जाना।’अमन कहते हुए ऑफ़िस चला गया ।’सब हो गये तैयार ,लुकिंग वेरी ब्यूटिफ़ुल डियर........’अमन ने अपनी पत्नी को देखते ही कहा।माँ ...चलो बैठो कार में ....
कार में बैठ माधुरी की आँखे भीग गयी ,वह चुपचाप अपनी हल्के रंग की गुलाबी साड़ी को देख रही थी जो
कुछ सुनने का इंतज़ार कर रही थी .........
गुलाबी साड़ी में तो तुम्हारा रंग................
पर यह कहने वाला तो बहुत दूर जा चुका था............
                                                               
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला ,अमरोहा

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा ---पश्चाताप


     जब मंच से स्वाति का नाम पुकारा गया तो पूरा  हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से भर गया। यह सब देख कर रश्मि की आँखों से आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे।.... आज उसके जीवन की तपस्या पूरी हुई । आज उसकी बेटी ने   उत्तर प्रदेश  हाईस्कूल बोर्ड  परीक्षा की मेरिट में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। जिसके कारण आज उसे जिलाधिकारी द्वारा सम्मानित किया जा रहा है।....उसने अपने विद्यालय के साथ- साथ अपने जिले का नाम भी रोशन किया है ।... जिलाधिकारी ने स्वाति  को गोल्ड मेडल पहनाया और शील्ड दी। जिसे देखते - देखते रश्मि अपने अतीत में खो गई।....... रश्मि अपने समय की प्रतिभाशाली छात्रा रही थी।.... वह हर कक्षा में प्रथम आती थी और उसे भी अनेकों बार गोल्ड मेडल और शील्ड प्राप्त हुई थी ।...परंतु अपनी एक गलती के कारण उसने अपना सभी मान- सम्मान खो दिया ।उसने एक  लड़के के साथ  प्रेम विवाह घर से भाग  कर किया था । .... जो कि उसके माता पिता को बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने उससे  संबंध तोड़ लिए थे।
 स्पीकर ने मंच से जब स्वाति की माँ का नाम पुकारा तो... अपना नाम सुनकर रश्मि की तंद्रा  भंग हुई वह मंच पर गई और मंच पर जाकर माइक से बोलते हुए कहा कि हमेशा अपने माता-पिता का कहना मानना चाहिए।.. क्योंकि माता- पिता ही आपको सही रास्ते पर चलना सिखाते हैं ।...और उनके बताए रास्ते पर चलने से ही जीवन की सभी खुशियाँ प्राप्त होती हैं।  यह कहकर फूट-फूट कर रोने लगी क्योंकि 25 साल से मन में दबा हुआ गुबार निकाला और पश्चाताप की आग जो कि उसके सीने में जल रही थी ,आज  शांत हुई । रश्मि के माता -पिता भी समारोह में शामिल थे  जब उन्होने  अपनी बेटी को इस तरह रोते बिलखते देखा तो उनका 25 साल पुराना गुस्सा भी उनके आंसुओं में बह गया और उन्होंने मंच पर आकर अपनी बेटी को गले लगा लिया ।

✍️  स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
 मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा ----- शहीद


"ये जवान जो बॉर्डर पर लड़ते हुए शहीद हुआ है, ये हमारे गाँव का गौरव है। हम इसके नाम पर गाँव के विकास के लिए योजनाएं लाएँगे।" एक नेता जी ने तिरंगे में लिपटे फौजी के शव की ओर इशारा करके कहा।
"ये  फौजी हमारी कौम का था, हमारी कौम का नाम रौशन किया है इसने। हम इसके नाम से बड़ा स्मारक बनवाएंगे।" तभी दूसरे नेताजी खड़े होकर बोले।
"अरे मंत्री जी आ गए...", तभी एक शोर उठा।
"ये जवान जो पड़ोसी मुल्क से की जा रही गोलाबारी का सामना बहादुरी से करते हुए शहीद हुआ है, ये हमारे क्षेत्र का है। जिसने हमारे क्षेत्र का मान बढ़ाया है। मैं सरकार में मन्त्री होने के नाते ये घोषणा करता हूँ इनके घर की तरफ आने वाली सड़क को चौड़ा करके मुख्य मार्ग से जोड़ा जाएगा और इस रोड का नाम इस शहीद के नाम पर होगा।
और जैसा कि हमारे साथी विपक्षी नेता जी ने अभी कहा था तो मैं इनके घर को स्मारक बनाने के लिए फंड दिलाने का आश्वासन देता हूँ।"
नेता जी की जय, मंत्रीजी जिंदाबाद के नारों के बीच बेटे के कफ़न-दफन का इंतज़ाम करता उसका बाप अब मन ही मन अपने रहने के इंतज़ार के बारे में भी सोच रहा था।

 ✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी ---- मां

   
राजू की पत्नी रमा चीख-चीख कर अम्मा-अम्मा की आवाज़ लगा रही थी और सोच रही थी कि बुढ़िया कहाँ मर गई।घर का सारा काम पड़ा है,बच्चे भी स्कूल से लौट रहे होंगे उनके लिए भी नाश्ता-पानी कुछ तैयार नहीं है।मैं भी अभी अभी स्कूल से लौटी हूँ।मैं क्या-क्या काम करूं।बर्तन माँजूं ,रसोई साफ करूं या इस कामचोर बुढ़िया को बैठकर कोसूं।
        आवाज़ सुनकर अम्मा जो तेज़ बुखार/सरदर्द के कारण पैरासिटामोल की गोली लेकर लेट गई थी उससे कुछ आराम मिला तो नींद आ गई हड़बड़ाकर उठी और डरते-डरते बहू के पास पहुंची और बोली बहू क्यों परेशान हो रही हो।मैं  जब कपड़े धोकर सुखाने डाल रही थी तभी अचानक तेज सरदर्द के कारण दवा लेकर लेट गई बुखार होने के कारण कुछ करने का मन नहीं हुआ।
       बहू इतना सुन आग बबूला होकर बोली बुढ़िया तू बहाने मत बना हल्का बुखार ही तो था,मर तो नहीं रही थी।सारे घर का काम कौन करेगा।मैं भी हारी-थकी आई हूँ। मेरी एक प्याली चाय और बच्चों के लिए शाम के नाश्ते की जरूरत तुझे दिखाई नहीं देती क्या,,
     अम्मा हिम्मत करके बोली बहू इसमें इतना नाराज़ होने की क्या जरूरत धीरे से भी तो कह सकती हो।चल-चल ज्यादा ज़ुबान मत लड़ा रसोई में जाकर चाय -नाश्ता बना।सब कुछ दस मिनट में हो जाना चाहिए।
        इतने में रमा का पति राजू भी ऑफिस से लौटआया। रमा की तरफ देखकर बोला डार्लिंग तुम्हारा मूड आज कुछ उखड़ा-उखड़ा लग रहा है क्या कोई बात हो गई।रमा ने राजू को अपनी ओर झुकते हुए देख आंखों में घड़ियाली आंसू भरकर अम्मा के बारे में न जाने कितनी झूठी बातों को भी सच का लबादा उढ़ाकर अपनी जान का दुश्मन तक कह डाला।
     राजू ने आव देखा न ताव लगा अम्मा पर बरसने।अम्मा को झूठी ,कामचोर,हरामखोर,निकम्मीऔर न जाने क्या-क्या कहते हुए उसपर चप्पल तान कर मारने को उतारू हो गया। अम्मा भी अपनी सफाई में कुछ कहना चाह रही थी मगर उसकी बात तो राजू के गुस्से   की आग में घी का काम कर रही थी।हारकर माँ चुप हो गई और आंखों में आंसू भर कर बेमन से काम में जुट गई।
      अब तो यह रवैया रोज़ का ही  अंग बनता जा रहा था।यहां तक कि बहू भी अम्मा पर हाथ छोड़ने में संकोच न करती।यह बात वहां के संभ्रांत नागरिकों को  अखरने लगी परंतु वे इसे उस परिवार का निजी मामला मानकर चुप रहते।
        परंतु जब उस असहाय अम्मा पर ज्यादतियों की रफ्तार इतनी बढ़ गई कि अम्मा की चीखों को घर के खिड़की,दरवाजे भी रोकने में नाकाम होने लगे तो किसी ने चुपके से सौ नंबर पुलिस को सूचित करके सारी व्यथा कथा से अवगत करा दिया।
    चंद मिनटों के पश्चात ही पुलिस  ने राजू के घर का दरवाजा खटखटाया और बाहर आने को कहा।तुरंत राजू ने पत्नी के साथ डरते-डरते दरवाजा खोला और बाहर आकर पुलिस वालों से आने का कारण पूछा तब पुलिस वालों ने उनसे थाने चलने को कहते हुए कहा हमारे पास आपके विरुद्ध माँ के साथ दुर्व्यवहार करने की शिकायत दर्ज है।आप लोग माँ के साथ मार पीट करते हैं तथा उनसे घर का सारा काम करने का दवाब बनाकर उनको शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं।
     राजू और उसकी पत्नी ने कुछ कहना चाहा तो पुलिस वालों ने कहा जो भी कहना है थाने चलकर कहें।इतना कहकर उन्हें गाड़ी में बैठाकर चलने को तैयार हो गए।
         गाड़ी स्टार्ट होती इससे पहले बूढ़ी अम्मा ने आकर पुलिस वालों से कहा कि मेरा बेटा और बहू बहुत अच्छे हैं।मेरे बड़ा खयाल रखते हैं।मुझे पलंग पर ही खाना देते है और मेरी दवा का भी पूरा-पूरा ध्यान रखते हैं।मैं तो इन्हीं की बदौलत ज़िंदा हूँ वरना मेरा और कौन है।मेरा बेटा तो हज़ारों में एक है।भगवान ऐसा बेटा सबको दे।तभी पोता बोला नहीं पुलिस अंकल मेरी दादी झूठ बोल रही है।दादी ने उसे भी डांटते हुए अंदर भेज दिया।
        पुलिस वालों को बूढ़ी अम्मा पर दया आ गई,उन्होंने राजुऔर उसकी पत्नी को खास हिदायत देते हुए छोड़ दिया। लेकिन राजू और उसकी पत्नी अपनी करनी पर अंदर ही अंदर बहुत लज्जित हो रहे थे।यहां तक कि अपनी मां से आँखें मिलाने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे थे।
      दोनों तुरंत माँ के चरणों में गिरकर बार-बार क्षमा याचना करने लगे और भविष्य में ऐसा न करने की कसमें खाने लगे।ऐसा घ्रणित विचार भी अपने मन में न लाने का प्रण करते हुए माँ की महिमा का गुणगान करते हुए सभी से कहने लगे कि,,
माँ तो साक्षात ईश्वर का स्वरूप होती है।माँ का दिल आईने की तरह साफ होता है।हमारी सारी भूलों को एक पल में क्षमा करके हमें सुपुत्र का दर्जा अगर कोई दे सकता है तो वह है हमारी माँ।
   हम भूल कर सकते हैं परंतु एक मां भूल से भी कभी ऐसी कोई भूल नही कर सकती।
      अर्थात मां तो साक्षात ईश्वर की प्रतिमूर्ति है।
     
               
✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
 मुरादाबाद/उ,प्र,
 मोबाइल-  9719275453
   
                          -----------

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ------ रोटियां


स्वाति विश्वविद्यालय मेंं समाजशास्त्र की प्रवक्ता थी।समाज मेंं होने वाले परिवर्तन पर उसके लेख पत्र पत्रिकाओं मेंं छपते थे।सभी उसके प्रशंसक थे।घर लौटकर कपडे़ बदल वह रसोई मेंं लग जाती।एक रोटी हल्की सी जल गयीं, तभी सास की आवाज सुनायी दी,"बडी़ बडी़ ड्रिग्रियों से रोटी गोल नहीं बनती बल्कि जल जाती है"।पति की जलती हुई आँखे देखकर स्वाति की आँख मे आँसू भर आये और वह कुछ न कह सकी।

 ✍️डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद