गमों को साथ में लाए,ऐसी खुशी क्यों है।
राज़े हस्ती से दिल, क्यों ये दहल जाता है,
जो कली खिली भी नहीं,वह भी बिखरी क्यों है।
हमसफर का साथ अगर,साथ ये होता है,
सफर के हर गाम पर फिर,दरमियाँ दूरी क्यों है।
ख्वाहिशें ज़िन्दगी में, जहाँ दम तोड़ती हैं,
राह मंज़िल की वहीं, खत्म होती क्यों है।
वीरान हो गए कितने,घर एक बीमारी से,
ऐ मेरे मौला हमको, सज़ा ये मिली क्यों है।
अब तो मौतों पर भी, यहाँ ज़शन होते हैं,
शवों की भी स्वजनोंं के, ऐसी दुर्गति क्यों है।
"आमोद "चाँद तारे तो, सदियों से ऐसे ही हैं,
रोज़ रोज़ फिर दुनिया, ये बदलती क्यों है।
✍️आमोद कुमार अग्रवाल
सी -520, सरस्वती विहार
पीतमपुरा, दिल्ली -34
मोबाइल फोन नंबर 9868210248
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