दाग़दार चाँद जोर से हंँसा,
लुढ़कते ज़र्द सूरज पर।
"किया होगा रोशन,
तूने जिन्दगी को।
पाया क्या आखिर,
वही क्षितिज की कब्र।
देख मैं चमकता हूँ
स्याह रात में शहंशाह बन
कर लेता हूँ कैद पूरी दुनिया को
नींद के कारावास में।
मेरे साथ मेरी आरामगाह में,
झिंगुर गुनगुनाते हैं,
जुगनू जश्न मनाते हैं,
उल्लू के भी भाग खुल जाते हैं।
कभी अग्नि पथ पर चलना नहीं पड़ता
मुझे तेरी तरह जलना नहीं पड़ता।"
गोद में क्षितिज की,
समाधिस्थ सूरज मुस्कुराया।
जब पत्तों ने ये दोहराया।
जो असल है फिर जलवा दिखायेगा
सुबह होते ही ओ चांँद तू धुंधला जायेगा
भीख की चमक आखिर कब तक चलायेगा?
✍️हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद
लुढ़कते ज़र्द सूरज पर।
"किया होगा रोशन,
तूने जिन्दगी को।
पाया क्या आखिर,
वही क्षितिज की कब्र।
देख मैं चमकता हूँ
स्याह रात में शहंशाह बन
कर लेता हूँ कैद पूरी दुनिया को
नींद के कारावास में।
मेरे साथ मेरी आरामगाह में,
झिंगुर गुनगुनाते हैं,
जुगनू जश्न मनाते हैं,
उल्लू के भी भाग खुल जाते हैं।
कभी अग्नि पथ पर चलना नहीं पड़ता
मुझे तेरी तरह जलना नहीं पड़ता।"
गोद में क्षितिज की,
समाधिस्थ सूरज मुस्कुराया।
जब पत्तों ने ये दोहराया।
जो असल है फिर जलवा दिखायेगा
सुबह होते ही ओ चांँद तू धुंधला जायेगा
भीख की चमक आखिर कब तक चलायेगा?
✍️हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें