शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नकवी की ग़ज़ल ----


रोक सकता था मुझे, उसने मगर ... जाने दिया

मुझे कोई मरना नहीं था, वह ... मर रहा था

शाम मेरे दिल से हो कर जा रही थी आफताब

उन्होंने इक नज़र और देख कर जाने को दिया

ज़िन्दगी को ख़र्च करके साँस जब रुकने लगी

क़फ़ला रुक दिया और रहबर जाने दिया

उसकी ज़िम्मेदारियों का यह क़दर एहसास था

हमने उस को लौटते हुए ख़ुद को अपने घर जाने दिया

घर बनाओ किस तरह "मीना" किसी बस्ती में हम

ज़ेह न के बंजारे ने दिल का नगर जाना दिया


✍️ डॉ मीना नकवी


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