दिखाई नहीं देती
सुनाई देती है
जब वह कर देता है
स्थानांतरण
छात्र छात्राओं के
कानों में
निर्विकार भाव से।
जब वे छात्र छात्राएँ
सफलताओं की
ऊँचाइयों पर
पहुंच जाते हैं
तब दिखाई देता है
उस पूंजी से
प्राप्त होने वाला
निस्वार्थ लाभ।
शिक्षक रहता है
वहीं पेड़ की जड़ -सा
और छात्र छात्राएं
फैलते जाते हैं
शाखाएं ,फूल,फल
और पुनः बीज बनकर
कहीं और उगने
सँवरने के लिए ।
किन्तु शाखाएं
फूल और फल
वही बढ़ते हैं
चढ़ते हैं जो
जुड़े रहते हैं
अपनी जड़ों से
और परिपक्वता
को प्राप्त कर
करते हैं पुनः
सृजन।
जी हाँ ! यही
सृजनात्मकता
ही तो वास्तव
में होती है उस
शिक्षक की
वास्तविक पूंजी।
✍️ ऋतुबाला रस्तोगी
प्रवक्ता हिन्दी
वैदिक कन्या इण्टर कालेज
चाँदपुर, बिजनौर, उ ०प्र०
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