सबके मन को भायी है।
ऋषियों, मुनियों की यह वाणी
देवनागरी कहलायी है।
वावन स्वर व्यंजन की माला,
देश काल की अनुपम शाला।
ज्ञान पुष्प की गंध छिपी है।
सबसे ही प्राचीन लिपि है।
नित ही अमृत बरसायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी,
देवनागरी कहलायी है।।
व्यवहारिक भी वैज्ञानिक भी,
स्वर संकेतों की पालक भी।
पग पग चलकर संवर्द्धन से,
अब मंजिल अपनी पायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी,
देवनागरी कहलायी है।।
ब्राह्मी से इसका उद्गम है।
सुगढ सौम्यता आकर्षण है।।
सजी मधुरतम स्वर लहरी से,
महिमा सबने ही गायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी,
देवनागरी कहलायी है।
सुरभित साहित्य, गणित, विज्ञान।
अनुपम, अद्भुत इसका विधान।।
लिखने में सहज सरल इतनी,
ध्वनि लहरों की अनुयायी है।
ऋषियों मुनियों की वाणी,
देवनागरी कहलायी है।
राष्ट्र धर्म का पाठ पढाती,
मन के भावों को दर्शाती।
ज्ञ से सबको ज्ञान सिखाती।
नित दिव्य ज्ञान बरसायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी
देवनागरी कहलायी है।
आओ सीखें और सिखाएं,
दुनिया को भी पाठ पढ़ाएं।
सकल विश्व में श्रेष्ठ लिपी है,
शंख नाद कर यह बतलाएं।।
नाना -नानी, काका -काकी,
सबने यह बात बतायी है।
ऋषियों मुनियों की यह वाणी
देवनागरी कहलायी है।
✍️अटल मुरादाबादी
बी -142 सेक्टर-52
नोएडा उ ०प्र०
मोबाइल 9650291108,
8368370723
Email: atalmoradabadi@gmail.com
& atalmbdi@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें