शनिवार, 12 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता -----हिन्दी प्रचार


एक दिन
अंग्रेजी सभ्यता मेेें पले
हिंदुस्तानी मित्र ने हमको बताया
मेरे माइंड मेेें
एक धांसू आइडिया है आया
हम तुम मिलकर
इंडिया का उद्धार करेंगे
एक समिति बनायेंगे
और हिन्दी का प्रचार करेंगे

मित्र की बात सुन
हमको भारी हुआ अचंभा
हमें लगा
उनको किसी पागल कुत्ते ने काटा है
या फिर किसी हिन्दी के कवि ने
उनके दिमाग को चाटा है
हमने पूछा
तुम तो गाली भी अंग्रेजी में देते हो
ब्रेकफास्ट से लेकर डिनर तक
सब अंग्रेजी स्टाइल में लेते हो
तुम्हारा सब काम
अंग्रेजी में होता है
तुम्हारा कुत्ता तक
अंग्रेजी में रोता है
तुम अंग्रेजी को
अपनी प्रिय भाषा मानते हो
हिन्दी बहुत कम जानते हो
ऐसे माहौल मेेें
तुम हिन्दी का प्रचार
कैसे कर पाओगे
जिस भाषा का
तुमको ही पूरा ज्ञान नहीं है
उसे औरों को क्या सिखाओगे

मित्र बोले
मॉडर्न हिन्दी संस्थाओं
और उनके ऑर्गनाइजर्स को देख
यह बात सैंट पर्सेंट सही है
हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिए
हिन्दी की नॉलेज जरूरी नहीं है

मैंने पूछा
तुम ऐसा क्यों करना चाहते हो,भाया
मित्र ने हँस कर समझाया
चमनलाल जी को जानते हो
दस साल पहले उनके पास
ना अपना मकान था,ना दुकान
टूटी हुई साइकिल पर
घूमा करते थे
आज उनके पास
शानदार कोठी है, कार है
और यह सब
हिन्दी प्रचार समिति का चमत्कार है
हमारी गवर्मेंट,हिन्दी के नाम पर
वाटर की तरह मनी बहा रही है
हिन्दी समितियों की संख्या
इंक्रीज हुए जा रही है
इसीलिए तुमसे कहता हूं
बहती गंगा में
हाथ धोने मेेें कोई बुराई नहीं है
हिन्दी जाए भाड़ में
तुम्हारे पास
कोई अच्छा मकान भी तो नहीं है

मैंने कहा
पता नहीं हिन्दी ने
तुम्हारा क्या बिगाड़ा है
तुमने उसको बना दिया
व्यापार का अखाड़ा है
स्वार्थ की मानसिकता से
बाहर निकाल कर देखो
हिन्दी वो भाषा है
जो पढ़ाती प्यार का पहाड़ा है
अगर तुम वास्तव मेेें चाहते हो
हिन्दी की प्रगति
करना छोड़ दो
हिन्दी की दुर्गति
कोई हिन्दी समिति मत बनाओ
ना चीखों,ना चिल्लाओ
हिन्दी को बस गले से लगाओ
मेरा दावा है
हिन्दी तुमको मानसिक रूप से
बहुत ऊंचा उठा देगी
तुम काले धन की नींव पर टिके
मकान की बात करते हो
येे तुम्हारे लिए
प्यार भरा घर बना देगी।

✍️डाॅ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600

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