बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार सीमा रानी की लघुकथा ----दोस्ती

        बडा नाज था मनु काे अपनी व स्नेहा की दोस्ती पर | स्नेहा भी मनु की सबसे हितैषी व सच्ची सहेली हाेने का दम्भ भरती थी क्याेंकि वह बहुत मीठा बाेलती थी और देखने में व्यवहार भी सौम्य था | कोई भी व्यक्ति उससे बात कर उसका कायल हो जाता था |स्नेहा लिखती भी अच्छा थी एवं अपना काम दूसराें से कैसे निकाला जाता है यह तो कोई उससे सीखे........... |

          जब भी स्नेहा काे कोई पुरस्कार मिलता तो मनु फूली नहींं समाती, बढ -चढ कर सबसे पहले मुबारकबाद देती और साेशल साइट पर भी खूब प्रचार प्रसार करती |

         मनु भी पढनें में बहुत अच्छी थी |इस बार उसने अपनी   कक्षा टॉप की ताे प्रधानाचार्य जी ने उसे पुरस्कृत किया |सभी मित्रों व सहपाठियाें ने उसे बधाई दी पर मनु की आँखें तो कुछ और खाेज रही थी......... वह रह रह कर सभागार के गेट की तरफ टकटकी लगाकर देख रही थी पर स्नेहा का कहीं कोई पता नही था............... |


✍🏻सीमा रानी , पुष्कर नगर , अमराेहा 

  मोबाइल फोन नम्बर 7536800712

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर की साहित्यकार रचना शास्त्री की कहानी ----जीवन नैया


"ये नदी कितनी गहरी होगी"नाव में बैठी प्रियतमा ने प्रियतम से पूछा।

"तुम्हारे हृदय से अधिक गहरी नहीं"प्रियतम ने उत्तर दिया। 

प्रियतमा हॅस पड़ी,उस शान्त रात्रि में प्रियतम ने भी उसका साथ दिया दोनों के हॅसी के स्वर मिलकर एक हो गये थे।

हॅसते हॅसते नाव पार जा लगी प्रियतम ने नाव की पतवार सॅभाल कर एक ओर रख दी हाथ पकड़कर प्रियतमा को उतारा 

"कल फिर आओगी" प्रियतम ने पूछा 

"हाँ आऊंगी, नहीं आयी तो खो नहीं जाऊँगी"कहीं दूर क्षितिज की अनन्त गहराईयो मे देखती हुई प्रियतमा ने कहा और चली गई।प्रियतम देखता रहा उसे जाते हुए और फिर वह भी लौट गया पुनः शाम की प्रतीक्षा में 

यही क्रम चलता रहा प्रियतमा आती प्रियतम के संग नौका विहार करती और सवेरा होते ही दोनों लौट जाते अपने अपने मार्ग पर ।

'संध्या का समय था प्रियतम नौका लेकर तैयार खड़ा था विहार के लिए कि प्रियतमा आती दिखाई दी,उसका मन प्रसन्नता से भर गया।

'आओ चले' पास आने पर उसने प्रियतमा से पूछा।

'हाँ चलो' प्रियतमा ने कहा, मुझे जीवन की उस अनन्त यात्रा पर ले चलो जहाँ से मैं फिर लौट न सकूँ। 

"प्रियतम क्या तुम मुझे वहाँ ले चलोगे" प्रियतमा ने उसके कान के पास मुँह लाकर धीरे से पूछा।

"मेरी जीवन-यात्रा तुम्हारे संग पूर्ण हो यह मैं भी चाहता हूँ पर तुम एक ब्राह्मण -कुमारी हो और मैं साधारण माँझी, हमारा संग समाज को कभी स्वीकार्य नहीं होगा"प्रियतम ने निगाहें झुकाकर उत्तर दिया।

प्रियतमा ने उसका हाथ पकड़ लिया नदी की शान्त धारा मे पड़ते तारों की छाया शत-शत दीपो के समान झिलमिला उठी चाँद भी लहरों के साथ खेलने लगा,नाव धीरे-धीरे बीच में पहुँच गयी।

   "प्रियतम आओ जीवन-यात्रा पूर्ण करें"कहते हुए प्रियतमा ने प्रियतम का हाथ पकड़कर नदी में छलाँग लगा प्रियतम कुछ समझ न पाया और दोनों नदी की अनन्त गहराईयो मे विलीन हो गये और उनकी जीवन-नौका आज भी इस समाज रूपी नदी में बहती जा रही है अनन्त की ओर  हौले -हौले -हौले -हौले।

✍️रचना शास्त्री 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----प्रेम की भेंट


अवनि ने सखियों के मुँह सुना था कि विवाह की पहली रात पति प्रेम की भेंट पत्नी को देता है ।नई दुल्हन अवनि अपने सपनों के राजकुमार अपने पति की उस भेंट के सपने गढ़ रही थी कि पति ने कमरे में प्रवेश किया। "सुना था कि तुम शादी नहीं करना चाहती थी । " जहाँ नौकरी करती है वहीं किसी से चक्कर है का?"अमन ने अपनी नव विवाहिता को घूरते हुए कहा, 

यही तो वह भेंट थी जिसकी आकांक्षा में उसने अपने सारे सम्बन्धी पराये कर दिये ।अपनी आंखों निकले खारे जल मुख से पी लिया और मुख से जिन शब्दों को बाहर आना था वे पुनः पानी से गटक लिए ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 15 सितंबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ ममता सिंह , राजीव प्रखर, वीरेंद्र सिंह बृजवासी,डॉ रीता सिंह, राशि सिंह, मनोरमा शर्मा, धर्मेंद्र सिंह राजौरा, प्रीति चौधरी और शिव अवतार रस्तोगी सरस की रचनाएं.....

सूट बूट में बंदर मामा, 

फूले नहीं समाते हैं। 

देख देख कर शीशा फिर वह, 

खुद से ही शर्माते हैं।। 

काला चश्मा रखे नाक पर, 

देखो जी इतराते हैं। 

समझ रहे खुद को तो हीरो, 

खों-खों कर के गाते हैं।

सेण्ट लगाकर खुशबू वाला, 

रोज घूमने जाते हैं। 

बंदरिया की ओर निहारे

मन ही मन मुस्काते हैं।।


फिट रहने वाले ही उनको, 

बच्चों मेरे भाते हैं। 

इसीलिए तो बंदर मामा, 

केला चना चबाते हैं।। 


✍️डाॅ ममता सिंह 

मुरादाबाद

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नन्हीं निटिया करके मेकअप,

बन बैठी है नानी जैसी।


आँखों पर रख मोटा चश्मा,

चली सभी पर रौब जमाने।

और खिलौना-चक्की लेकर,

बैठी-बैठी लगी घुमाने।

बीत गये युग की प्यारी सी,

देखो एक कहानी जैसी।

नन्हीं निटिया करके मेकअप,

बन बैठी है नानी जैसी।


दादी-दादा चाचा-चाची,

सबको अपने पास बिठाती।

अपनी तुतलाती बोली में,

उनको अक्षर-ज्ञान कराती।

उसकी यह छोटी सी कक्षा,

दुनिया एक सुहानी जैसी।

नन्हीं निटिया करके मेकअप,

बन बैठी है नानी जैसी।


✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद

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 जंगल के  राजा को आया

इतना      तेज       बुखार

आंखें लाल  नाक से पानी

छीकें        हुईं       हज़ार

दौड़े - दौड़े   गए  जानवर

औषधिपति     के     द्वार

हाल बताकर कहा  देखने

चलिए      लेकर      कार।


नाम शेर का सुना हाथ  से

छुटे       सब       औज़ार

चेहरा देख सभी ने उनको

समझाया      सौ      बार

बच   जाएंगे   तो  दे  देंगे

दौलत      तुम्हें     अपार

चलिए श्रीमन  देर होरही

पिछड़    रहा     उपचार।


मास्क लगा,पहने दस्ताने

होकर     कार       सवार

डरते-डरते  पहुंचे   भैया

राजा        के      दरबार

पास  बैठके राजा जीका

नापा      तुरत     बुखार

बोले  सुई  लगानी  होगी

इनको    अबकी     बार।


सांस फूलते देख शेर की

करने      लगे      विचार

यह तो कोरोना है इसकी

दवा       नहीं       तैयार

ज़ोर ज़ोरसे  लगे चीखने

भागो      भागो      यार 

जान बचानी है तो रहना

घरके     अंदर       यार।

  

✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

  मुरादाबाद/उ,प्र

मो0-   9719275453

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अ से अनार आ से आम , 

आओ सीखें अच्छे काम ।


इ इमली ई से ईख , 

माँगो कभी न बच्चों भीख ।


उ उल्लू ऊ से ऊन , 

कितना सुंदर  देहरादून ।


ऋ से ऋषि बडे तपस्वी , 

देखो वे हैं बड़े मनस्वी ।


ए से एड़ी ऐ से ऐनक , 

मेले में है कितनी रौनक ।


ओ से ओम औ से औजार , 

आओ सीखें अक्षर चार ।


अं से अंगूर अः खाली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली । 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


क से कमल ख से खत , 

किसी को गाली देना मत ।


ग से गमला घ से घर , 

अपना काम आप ही कर ।


ड़ खाली ड़ खाली , 

झूल पड़ी है डाली डाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


च से चम्मच छ से छतरी , 

लोहे की होती रेल पटरी ।


ज से जग झ से झरना ,

दुख देश के सदा हैं हरना ।


ञ खाली ञ खाली , 

गुड़िया ने पहनी सुंदर बाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


ट से टमाटर ठ से ठेला , 

सुंदर होती प्रातः बेला ।


ड से डलिया ढ से ढक्कन , 

दही बिलोकर निकले मक्खन ।


ण खाली ण खाली , J

रखो न गंदी कोई नाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकप ताली  ।


त से तकली थ से थपकी , 

मिट्टी से बनती है मटकी ।


द से दूध ध से धूप , 

राजा को कहते हैं भूप ।


न से नल न से नाली , 

गोल हमारी खाने की थाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


प से पतंग फ से फल , 

बड़ा पवित्र है गंगाजल ।


ब से बाघ भ से भालू , 

मोटा करता सबको आलू ।


म से मछली म से मोर , 

चलो सड़क पर बाँयी ओर ।


य से यज्ञ र से रस्सी ,

पियो लूओं में ठंडी लस्सी ।


ल से लड्डू व से वन , 

स्वच्छ रखो सब तन और मन ।


श से शेर ष से षट्कोण , 

अंको का मिलना होता जोड़ ।


स से सड़क ह से हल , 

अच्छा खाना देता बल ।


क्ष से क्षमा त्र से त्रिशूल , 

कड़वी बातें देती शूल ।


ज्ञ से ज्ञान देता ज्ञानी ,

हमें देश की शान बढ़ानी ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली ,

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


✍️डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद

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हमें गेजैटस नहीं पैरेंट्स चाहिए

मम्मी पापा का प्यार चाहिए. 


हमें ट्रिप नहीं न टॉयज चाहिए 

माँ के हाथ का खाना चाहिए. 


हमें कार नहीं न थिएटर चाहिए 

पापा मम्मी का साथ चाहिए. 


हमें वीकेंड पर रेस्टोरेंट नहीं 

हर शाम साथ साथ चाहिए. 


हमें कार्टून न डिस्कवरी चाहिए 

अपना बचपन बस बचपन चाहिए. 


✍️राशि सिंह,मुरादाबाद

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दूध मलाई भर भर खावें 

मेरी ताई धूम मचावें

आलू मटर रसे की सब्जी

आलू परांठे मन से खावें 


मीठी मीठी खीर बनी हो 

पिस्ता किशमिश खूब पड़ी हो 

दो दो दोने खाकर भी मन 

डोंगे में जा टूट पड़ा हो ।


डायविटीज कहाँ से आई 

उफ ये नई मुसीबत लाई 

बैठी ताई मन ललचायें 

मेरी तो आँखें भर आईं 


मन तुम उदास न करना ताई 

जीवन ने यही रीत बनाई 

कुछ खोता कुछ मिलता भाई

किस्मत से क्यों करें लड़ाई ।।


✍️मनोरमा शर्मा 

अमरोहा 

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कितना भोला है बचपन

ना राग द्वेष ना कोई जलन

क्या धर्म जाति क्या छुआछूत

कोमल हृदय कोमल मन


चंचलता उत्साह उमंग

घर से निकले साथी संग

धमाचौकड़ी करते रहते

खेल कूद कटता हर क्षण


बचपन सबको रहता याद

याद आये जाने के बाद

 जीवन का यह काल अनोखा

बचपन जीवन का दरपन


✍️धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई

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खोयेंगे रास्ते

न मिलेंगे आसानी से

गिरोगे भी ,थकोगे भी

आलोचना सहोगे भी

आँसुओं के समंदर भी बहेंगे

जब अपनो के दरवाज़े बंद रहेंगे

बस वही से दिखेगी तुम्हें

दूर से आती एक लौ 

जो रास्ते पर तुम्हारे पड़ेगी

एक आस जो तुम्हें फिर से खड़ा करेगी

थका होगा तन

 पर मन को निर्मल करेगी

चोट तेरे दिल पर लगी

खुद मरहम का काम करेंगी

अरे रास्ता तो ख़ुद ब ख़ुद दिखेगा

जब मंज़िल की उसपर रोशनी होगी

तू बस उस रोशनी को देखना

और क़दम अपने मत रोकना

हालात चाहे हो कुछ भी 

बस  भरोसा ख़ुद पर रखना

दोस्त मेरे फिर देखना

कैसे राहें खुलेंगी

हर गुत्थी पल में सुलझेगी

हैरत होगी ख़ुद देख तुझे

जब ये तेरी क़िस्मत चमकेगी

और दिन वो  भी दूर न होगा जब

सूरज की रोशनी भी  तेरी मुट्ठी में होगी।

                       

✍️प्रीति चौधरी, अमरोहा

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सोमवार, 12 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की ग़ज़ल ----


 #साहित्यिक_ मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता -----खास लोगों की दावत


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की ग़ज़ल ---


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की रचना -----बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी का गीत ---- मां बेटी का रिश्ता


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकारओंकार सिंह विवेककी रचना --- सफर आसान होता है अगर मां साथ होती है....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की कविता ----दीपक की लौ


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत --आओ आज हम सभी शहीदों को नमन करें .....


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ ) निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की रचनाएँ


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की ग़ज़ल ---बेचारी बेकार न समझो, बिटिया को लाचार न समझो


 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की रचना ----राम के हाथों पुतले निपट जाएंगे


 

रविवार, 11 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की कविता ----मौन


 

मुरादाबाद की साहित्यकार इंदु रानी की रचना


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश जी की रचना ---- हे प्रभु सब हों सुखी ,बीमारियों से दूर हों ....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी का अभिनव गीत -----जीना - मरना राम हवाले अस्पताल में जाकर । पहाड़ सरीखे भुगतानों की सभी ख़ुराकें खाकर ।। जिनमें सांसे अटकी हैं,उन परचों के पास चलें ।


मिले न कल तो घर पर शायद

परसों के पास चलें ।

दिन जिनमें फुलवारी थे , उन

बरसों के पास चलें ।।


बिगड़ू मौसम घात लगाए

उपचार , स्वयं रोगी ।

मिलीभगत में सभी व्यस्त हैं

जोग-साधना , जोगी ।।

हार , समय भी तोड़ गया दम

नरसों के पास चलें ।


जीना - मरना राम हवाले

अस्पताल में जाकर ।

पहाड़ सरीखे भुगतानों की

सभी ख़ुराकें खाकर ।।

जिनमें सांसे अटकी हैं,उन

परचों के पास चलें ।


भगवान धरा के सब,जैसे

खाली पड़े समुन्दर ।

नदियों से अब पेट न भरते

इनके , सुनो पयोधर ।।

छींटें मारें इनके मुंह पर

गरजों के पास चलें ।

✍️ डॉ मक्खन मुरादाबादी

मुरादाबाद 244001

मुरादाबाद के साहित्यकार अरविंद शर्मा आनन्द की गजल ----मोड़ पर थी जो उजड़ी हुई झोपड़ी। उसपे ठंडी हवा ने भी ढाया कहर।।

 

कुछ दिये टिमटिमाते रहे रातभर।

जुगनुओं की तरह से वो आए नज़र।।


रौशनी खो गयी है सियह रात में।

और वीरान है हर नगर, हर डगर।।


मोड़ पर थी जो उजड़ी हुई झोपड़ी।

उसपे ठंडी हवा ने भी ढाया कहर।।


चांदनी भी हुई अब बड़ी बेवफ़ा।

चाँद निकला मगर वो न आयी नज़र।।


जो मुहाफ़िज़ रहे हर क़दम पर मिरे।

मैं हूँ मुश्किल में और वो हैं सब बेख़बर।।


कुछ दिनों को ज़रा क्या मैं ग़ुम सा रहा।

लोग समझे कि 'आनंद' है बेख़बर।।


✍️अरविंद शर्मा "आनंद"

मुरादाबाद, उ०प्र०

 मोबाइल फोन नम्बर- 8218136908

शनिवार, 10 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार दीपक गोस्वामी चिराग का गीत -----इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा


मान या मत मान बंदे,सार यह तू पाएगा।

इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा।


यह तेरा, वह मेरा जग में, कैसी मिथ्या माया है?,

सबसे कर तू प्रीत जगत में, कोई नहीं पराया है।

जेब क़फ़न में कहाँ है होती, कोन तुझे समझाएगा?,

इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा.....


लोभ,मोह जिनके हित करता, करम का फल नहीं बाँटेंगे

चित्रगुप्त जब पोथी खोले,अलग राह ही छाँटेंगे।

जो है बोया वही कटेगा, और न कुछ भी पाएगा,

इस धरा का, इस धरा पर,सब धरा रह जाएगा.......

आज जवानी कल है बुढ़ापा, अंतकाल निश्चित आए।

तुझको जाना है हरि-द्वारे, प्राणी तू क्यों बिसराए।

मरा-मरा ही रट ले बंदे,राम-राम हो जाएगा।

✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'

शिव बाबा सदन, कृष्णा कुंज बहजोई (सम्भल) 244410 उ. प्र.

चलभाष-9548812618

ईमेल -deepakchirag.goswami@gmail.com

प्रकाशित कृति - भाव पंछी (काव्य संग्रह)  प्रकाशन  वर्ष  -   2017

बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----स्वच्छता अभियान


मंत्री जी स्वच्छता अभियान सप्ताह का शुभारम्भ करके लौट रहे थे।अचानक उनको कुछ याद आया, ड्राइवर से बोले "गाड़ी बड़े बाजार की ओर से निकालना।थोड़ी देर बिल्लू उस्ताद से मिलते हुए चलेंगे।" उनके पास बैठे सुरेश जी चौक पड़ेे --"बिल्लू उस्ताद .... अरे आपको मालूम नहीं वो तो बहुत गन्दा आदमी है।हत्या के आरोप में 10 साल जेल में काट कर आया है।अब भी उस पर बलात्कार और अपहरण के केस चल रहे है।"

         "सब मालूम है।लेकिन तुम शायद ये भूल रहे हो कि बहुत जल्दी चुनाव होने वाले है।" मंत्री जी ने हंसते हुए कहा और स्वच्छता अभियान को सफल बनाने की रण नीति पर सुरेश जी से चर्चा करने लगे।

✍️डाॅ पुनीत कुमार

T -2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुवनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600



मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी --क़ाबिल


 "अरेsssss..सँभलकर चलिए?"मैने अपनी स्कूटी को ब्रेक लगाकर चिल्लाते हुए बुर्कानशीं उस  महिला से कहा जो यकायक मेरी स्कूटी से टकराते हुए बची,उसके हाथ में कुछ किताबें थीं जो बचने की कोशिश में बाज़ार की  सड़क पर बिखर सी गयी थीं।मैं स्कूटी एक ओर खड़ी करके जब तक उसके पास पहुँची,तब तक वो अपनी किताबें सड़क पर से उठा चुकी थी और  अपने चेहरे से नकाब हटाते हुए करते हुए  मुझे गौर से देखने लगी ,तो खुशी से  मेरे हलक से  हल्की सी चीख निकल गयी। 

"रुख़साना!!!!!  ....तुम रुख़साना हो न..!रुखसाना खान??पहचाना मुझे?मैं हूँ मीनल...!मीनल सिंह...!!तुम्हारी क्लासमेट!!"

"अरे !!मीनल ........!! तुझे कैसे भूल सकती हूँ ।या अल्लाह..!! क्या खूब मिलाया है !!रुख़साना खुशी से चहकते हुए बोली.,"और बता यहाँ मुरादाबाद में कैसे?

"यहीं शादी हुई है मेरी....चल....! घर चल....।"

"नहीं मीनल ...आज घर नहीं।फिर कभी।यहाँ कुछ काम है आज।

"क्या काम है...???अच्छा चल...!!

 एक काम करते हैं वहाँ  रेस्टोरेंट में आराम से बैठकर काफी पियेंगे और बाते करेंगे।"मैने रुख़साना का हाथ पकड़ते हुए कहा तो वह भी हँसते हुए एक हाथ में किताबें थामे मेरे साथ रेस्टोरेंट की ओर चल दी।

   रेस्टोरेंट में एक कोने की सीट पर बैठकर मैनै वेटर को सैंडविच और काफी का आर्डर दिया। इस बीच मैने उसे अपने और अपने परिवार की पूरी  जानकारी दे डाली।

"मैं बहुत खुश हूँ यार...तू इतने दिन बाद मिली।कहाँ खो गयी थी? तेरा फोन नं. भी खो गया था ,तेरे घर बिजनौर भी गयीं थी,पर वहाँ ताला लगा हुआ था।अंकल आंटी कहाँ है अब...?तेरे पति क्या करते हैं....?बच्चे कौन सी क्लास में आ गये.?मेरे एक साथ  इतने सारे सवालों के उत्तर में रुख़साना के होठो पर हल्की फीकी मुस्कान तैर गयी।

 मैने गौर से देखा तो उसका खूबसूरत चेहरा अभी भी उतना ही खूबसूरत दिखता था, जितना पंद्रह बरस  पहले दिखता था,बस उसका फ़ूल सा नाज़ुक चेहरा वक़्त के हिसाब से थोड़ा सा सख़्त हो गया था,उम्र के हल्के फुल्के निशान भी दिखने लगे थे,जो लाज़िमी थे।

मेरे सवाल सुनकर उसकी बड़ी बड़ी आँखें नम हो गयीं ।मैने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए धीरे से पूछा, 

"क्या हुआ...रुख़साना...??"

मेरी हमदर्दी भरे स्पर्श से उसकी बड़ी बड़ी आँखों से आँसूओं का सैलाब  बह निकला। इस बीच वेटर अजीब नज़रों  से हमें घूरता हुआ टेबल पर काफी व सैंडविच रखकर जा चुका था।मैने  बड़ी मुश्किल से उसे सँभाला।पाँच मिनट बाद संयत होकर उसने धीरे धीरे बोलना शुरु किया,

"तुझे तो पता ही है मीनल,मेरे अम्मी अब्बू हमेशा से चाहते थे कि मैं ऊँचे दर्जे की तालीम हासिल करूँ।  अपने पूरे खानदान में सबसे ज़्यादा  क़ाबिल बन जाऊँ।पी एच डी के दौरान ही हमारी बिरादरी के तमाम अच्छे घरानों से रिश्ते आने लगे थे,मगर कोई भी लड़का अब्बू को  मेरे जितना का़ब़िल न लगा....।.जो मेरे बराबर पढ़े लिखे थे ,वे शक्लो सूरत से अच्छे न थे,जो अच्छे थे उनका कोई खा़स रुतबा न था।सबमें कुछ न कुछ कमी थी।

"फिर.....?".मैने धीरे से काफी सिप करते हुए पूछा

फिर क्या मीनल....! अच्छे लड़के के इंतज़ार में धीरे धीरे शादी की उम्र बीत चली... और....और ...फिर तलाकशुदा,दोहेजे.. और मुझसे दस पंद्रह साल बड़े लड़कों के  रिश्ते आने लगे जो मुझे मंज़ूर न थे...।इस बीच बरेली विश्वविद्यालय में ही मेरा अपाइंटमेंट प्रोफेसर पद के लिये हो गया था और......।"

"और क्या....?"वह उदास होकर बोली

"अब्बू अम्मी मेरी शादी की ख़्वाहिश को दिल में ही  लिये इस दुनिया से रुख़सत हो गये।"

"मतलब... !तूने अब तक शादी नहीं की...?.मीनल ने हैरत से पूछा।

"नहीं...।" रुख़साना धीरे से बोली

"और अनवर मियां..? मैने सुना है वो भी किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उनका क्या हुआ..?.तेरे ही मौहल्ले में  रहते थे न!!वो तो तुझे बहुत चाहते थे।तूने  अपने घर नहीं बताया कभी.!!"मैने  बात आगे बढ़ाते हुए कहा।

"बताया था....बहुत मिन्नतें भी की थीं अब्बू की..मगर वो जीते जी गैर बिरादरी में शादी करने को राज़ी न थे..।अनवर मियां ने तमाम पैगाम भेजे,मगर कुछ साल मेरे इतंज़ार के बाद उन्होंने किसी और से शादी कर ली...।"

"ओहहहहह.....!!!!"मैने एक लंबी साँस भरी।

कुछ देर हम दोनो के बीच ख़ामोशी रही।

रुख़साना को जाने की जल्दी थी।मैने टेबल पर बिल जमा कर दिया और धीरे से पूछा,"क्या काम है यहाँ?बताया नहीं तुमने..!!"

"अरे मीनल...!मैं बताना ही भूल गयी इसी महीने की बीस तारीख़ को मेरे एक उपन्यास का विमोचन होने जा रहा है,यहीं मुरादाबाद में...।इसी सिलसिले में यहाँ आना हुआ है।तुझे भी ज़रूर आना है।"वह थोड़ा खुश होकर बोली।

"अरे वाहहहहह!!तू लिखने भी लगी..।

ज़रूर आऊँगी..।क्या नाम है तेरे उपन्यास का? "

यह सुनते ही उसकी बड़ी बड़ी काली आँखों में इस बार पहले से ज़्यादा दर्द उभर आया था।वह बस हौले से बुदबुदायी,

"का़बिल...."

और फीकी मुस्कान बिखेरती हुई , तेजी से रेस्टोरेंट से बाहर निकल गयी।

✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद 


मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की कहानी -----आत्मविश्वास


दिशा अपनी माँ सुधा को घर का काम करते देखती,सब की छोटी छोटी ज़रूरतों का ध्यान रखना ,इसी में उसकी माँ का पूरा दिन निकल जाता।’’माँ आप शादी से पहले के अपने रूटीन के बारे में बताओ, आप क्या क्या करती थी।’’दिशा ने अपनी माँ से उत्सुकता से पूछा।सुधा ने बताना शुरू किया ‘’मैं घर के बच्चों में सबसे छोटी ,सबकी लाड़ली थी।ग़लत बात तो मुझे बर्दाश्त ही नही थी ।कई बार तो कालेज में मैंने लड़कियों पर फबतियाँ कसने वाले लड़कों की धुनाई भी करी।मेरे व्यक्तित्व को दबंग बनाने में तुम्हारे नाना जी का बहुत बड़ा हाथ था ।वह हमेशा कहते थे कि लड़कियों को सब काम आना चाहिए ,घर में जब नयी साइकिल आयी तो सबसे पहले मुझे ही  चढ़ा दिया उसपर ,बोले चला ............मैंने ख़ूब मना किया कि मुझसे नही चलेगी पर कहने लगे कि ऐसा कोई काम नही जिसे मेरी बहादुर बेटी न कर सकें।कुछ ही दिनो में मैं बहुत अच्छी साइकिल चलाना सीख गयी।फिर तो तेरी नानी घर का सारा सामान मुझसे ही मंगवाती।बिटटो ये ला दे ,वो ला दे ।पूरा दिन मैं साइकिल पर सवार रहती।’’दिशा और  सुधा दोनो बातों में खो गये।दिशा को जब उसके पापा ने कई आवाज़ लगायी तब वो भागी भागी बाहर गयी।’’जी पापा ‘’दिशा ने हाँफते हुए कहा।’आ देख मैं तेरे लिए क्या लाया हूँ’कमल बेटी को घर से बाहर ले आया ।’अरे पापा ,नयी ....स्कूटी...माँ आओ देखो पापा मेरे लिए क्या लाए है।’’दिशा ने सुधा को आवाज़ लगायी।स्कूटी को देखते ही सुधा की आँखे चमक गयी क्योंकि जब वो पड़ोस की रुचि को स्कूटी से सारे काम करते देखती तो उसका भी  मन करता ।छोटे छोटे काम के लिए उसे कमल को कहना  जो पड़ता था।’!चलों ये आपने अच्छा किया ,मैं भी सीख लूँगी।’’सुधा ने उत्तेजित होकर कमल से कहा।’’ये दिशा के लिए है ,अब उसे ट्यूशन जाने के लिए ज़रूरत पड़ेगी।तुम घर का काम ही सही से कर लो वही बहुत है,तुमसे  स्कूटी नही चलेगी ।कही गिर गिरा गयी,हड्डी टूट गयी तो बस ...........तुम्हारे बस का नही है इसे चलाना।सुबह से कुछ नही खाया है ,तुम जल्दी खाना लगाओ।’’कमल ने आलोचनात्मक मुस्कराहट के साथ ये बात कही।सुधा चुपचाप अन्दर खाने की तैयारी में जुट गयी ।’’माँ एक बार मैं सीख लूँ फिर आप को सीखा दूँगी स्कूटी’’ दिशा ने धीरे से कहा।’’नही बेटा तेरे पापा सही कहते है मुझसे नही चलेगी  स्कूटी,कही चोट लग गयी तो बस,तू पापा को ये खाना देकर आ।’’सुधा के कहें इन शब्दों से दिशा सोच में पड़ गयी कि शादी से पहले और अब के माँ के व्यक्तित्व में हुए इस बदलाव का ज़िम्मेदार कौन है ?पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन करते करते उसकी माँ स्वयं को भूल चुकी थी ।अब दिशा अपनी माँ को पहले की ही तरह आत्मविश्वास से भरी हुई बनाने का प्रण ले  चुकी थी।

 ✍️प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी-जॉम्बीज

   


मिश्रा जी ने आज छुट्टी ली हुई थी।उन्हें अपनी बहन के यहाँ सपरिवार सत्यनारायण कथा के लिए जाना था।शाम को इकलौते भान्जे की बर्थडे पार्टी थी,छुट्टी लिए बगैर चलता नहीं।वैसे भी ससुराल पक्ष की रिश्तेदारी अकेले निभाना मिश्राइन को पसंद नहीं था। क्योंकि कुछ उन्नीस बीस हो तो कम से कम ठीकरा मिश्रा जी के सिर पर फोड़ा जा सकता था।

      खैर छुट्टी थी तो इत्मीनान से सुबह की चाय बना कर,अपनी चाय और अखबार लेकर मिश्रा जी बालकनी में कुर्सी डाल कर बैठ गये। छुट्टी वाले दिन चाय बनाने की ड्यूटी अघोषित रूप से मिश्रा जी की होती थी,मिश्राइन उस दिन आराम से उठती थी और बनी हुई चाय का आनंद उठाती थी।वरना बाकि दिन तो बच्चों और पतिदेव का ब्रेकफास्ट, लंचबॉक्स आदि की भगदड़ में चाय या तो गरमागरम जल्दी जल्दी सुड़कनी पड़ती या ठण्डी होने पर पानी की तरह गले में उड़ेलनी पड़ती।

      मिश्रा जी ने चाय की चुस्की ली और अखबार उठाया। फिर ध्यान आया चश्मा तो टी वी वाले कमरे में ही रह गया है।उन्होंने बेटे रोहित को कमरे से चश्मा लाने के लिए आवाज दी।आज बच्चे की भी छुट्टी करा दी गयी थी और छुट्टी वाले दिन रोहित अन्य दिनों की अपेक्षा जल्दी उठ जाता था। शायद सब बच्चे ऐसे ही होते हैं।

      रोहित ने पापा का चश्मा देते हुए पूछा,"पापा मैं टीवी देख लूँ थोड़ी देर" मिश्रा जी ने यह कहते हुए हामी भरी कि टी वी का स्वर धीमा रखे ताकि मम्मी की नींद न खराब हो।पापा का यह कोमल रूप देखकर रोहित ने मुस्करा कर उनका गाल चूम लिया और थैंक्स पापा कहकर कमरे में चला गया। मिश्रा जी भी मुस्कुरा उठे,सुकून भरे भाव से उन्होंने चाय की अगली चुस्की ली और चश्मा पहनकर सामने अखबार खोल लिया।

      पहले ही पृष्ठ पर नक्सली और आतंकवादी हमलों की हेडलाइंस थीं।मिश्रा जी आज अच्छे मूड में थे,सो मन को उद्वेलित करने वाली खबरों को ज्यादा तवज्जो नहीं देना चाहते थे। उन्होंने पन्ना पलटा, "ऑनलाइन नशीले इंजेक्शन बेचने वाले गैंग का पर्दाफाश"

             मिश्रा जी ने पृष्ठ पर नीचे की ओर नजर दौड़ाई ,"पाँच साल की बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म" उसके पास ही चिपकी थी हेडिंग,"160रू.के लिए टेलर की हत्या" अगला पेज दिखा रहा था, "वृद्धा के साथ दुष्कर्म की कोशिश","डॉक्टर की लापरवाही से हुई नवजात की मौत","बेटों ने पिता को पीट पीटकर मार डाला" मिश्रा जी ने परेशान होकर फिर पृष्ठ पलटा "भ्रष्टाचार के कारण सरकारी योजनाएँ पात्रों तक नहीं पहुँचती", "बालिका गृह में सेक्स रैकेट संचालित","बेटी को जिंदा दफन किया माँ बाप ने" आदि आदि।हर पृष्ठ ऐसी ही नकारात्मक खबरों से भरा पड़ा था या फिर आज मिश्रा जी की आंँखों को केवल ये ही हेडलाइंस दिखाई पड़ रही थीं। 

       मिश्रा जी ने चश्मा सिर पर चढ़ाया और कप में बचे चाय के आखिरी घूँट को पिया।अब तक उन्हें बेचैनी सी होने लगी थी।वह आंँख मूंदकर कुर्सी पर पीछे की ओर सिर टिकाकर सोचने लगे।

         उन्हें याद आया,कल के अखबार में भी तो ऐसी ही खबरें थीं और कल के ही क्यों,कभी भी किसी भी अखबार में ऐसी खबरें ही तो बहुतायत में होती हैं। मिश्रा जी के दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी।उन्होंने दिमाग फेसबुक और वाट्स एप जैसे सोशल मीडिया की ओर दौड़ाया और पाया कि अखबार छोड़ो, फेसबुक ,वाट्स एप या न्यूज चैनल्स सब में ज्यादातर गिरती मानवता की खबरें ही तो देखने को मिलती हैं।पर अपनी व्यस्तता के बीच हम कब रुक कर विचारते हैं, तभी यह सब आम हो गया है और अब हमें उद्वेलित भी नहीं करता।पर आज मिश्रा जी फुर्सत के इन पलों में भी असहज हो गये थे।वह घबराकर बालकनी में टहलने लगे।

      तभी उन्हें बालकनी में सामने वाले पड़ोसी का बेटा नजर आया।वे उसे ध्यान से देखने लगे तो उन्हें वह व्याभिचारी नजर आने लगा जो कभी भी उनकी बेटी या पत्नी को अपनी हवस का शिकार बना सकता था।हो सकता है वह उनकी अम्मा को भी न छोड़े। मिश्रा जी पसीना-पसीना हो गये।अब वे आँखें मूँद कर फिर से कुर्सी पर बैठ गए।कल ऑफिस में बैंक लोन लेने आये बुजुर्ग का चेहरा उनकी आँखों के सामने आ गया,जिससे उन्होंने कमीशन लिया था,जिसमें मैनेजर की हिस्सेदारी भी थी।उन्हें दिखा कि वह बुजुर्ग रास्ते में मिलने वाले हर दफ्तर में हर कर्मचारी को पैसे बाँटते जा रहे हैं और जितना भी वह राह में आगे बढ़ते ऐसा लगता जैसे उनकी साँस रुक रही है और आखिर में वह निढाल होकर गिर गये हैं।मिश्रा जी घबरा कर उन्हें पकड़ना चाहते हैं,पर वह बुजुर्ग निष्प्राण हो गये हैं। घबराकर मिश्रा जी की आँख खुल जाती हैं और वह गमछे से अपना पसीना पोछते हैं।वह कुर्सी सरकाकर अन्दर कमरे की ओर देखने लगते हैं।उन्हें दिखता है कि उनका बेटा बड़ा हो गया है और उसे नौकरी नहीं मिली है।वह मृतक आश्रित कोटे की नौकरी पाने के लिए अपने पिता की ओर छुरा लेकर बढ़ रहा है।वह बेतहाशा चिल्लाना चाहते हैं,"मुझे मत मारो बेटा! मैं तुम्हारा पापा हूँ।" पर उनका गला सूख गया है और वह कुछ नहीं बोल पा रहे हैं।

      "पापा!पापा! क्या हुआ....?आप मुझे ऐसे क्यों देख रहे हैं?" 

          मिश्रा जी होश में आये और सँभलते हुए बोले,"कुछ नहीं बेटा....कुछ नहीं.....।" रोहित ने बोलना जारी रखा,"पापा,मैं अभी टीवी में एक सीरियल देख रहा था जिसमें जॉम्बीज थे।पता है पापा, जॉम्बीज इंसानों जैसे ही दिखते हैं पर उनमें संवेदनाएँ या भावनाएँ नहीं होती तभी तो वे अपने जैसै इंसानों को ही खा जाते हैं।जॉम्बीज क्या सच में होते हैं,पापा?" मिश्रा जी के मुँह से बेतहासा निकल पड़ा,"हाँ, हाँ,होते हैं,शायद....."

✍️हेमा तिवारी भट्ट, खुशहालपुर, मुरादाबाद (उ.प्र.)

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की दो लघुकथाएं ---"दा रियल हीरो" व "मानसिकता"



(1) लघुकथा ---- 'दा रियल हीरो  '

"अजी सुनती  हो ...यह देखो डाक  बाबू संदेशा  लाये  हैं l " ग्राम  प्रधान  मोरसिंह  ने अपनी धर्मपत्नी  विमला  देवी को हाथ में लगे लिफ़ाफ़े  को दिखाकर  मूढे पर बैठते हुए कहा l 

"अजी अब पढ़कर तो सुनाओ  l " विमला देवी ने   मट्ठे की मटकिया  को हिलाकर  उसमें आई नैनी  को पौरुओं  से निकालकर कूंढ़ी  में रखते हुए कहा l 

"अरे...यह का ...हमारे गाँव को राष्ट्रपति  सम्मान के लिए चुना  गया है l " प्रधान जी ने खुशी से उछलते हुए कहा l आठवीं   कक्षा   तक पढ़े   मोरसिंह को लिखने पढ़ने का बहुत ही शौक है l 

"अच्छा...हे भगवान  यह तो हम सबके लिए बहुत खुशी की बात है l " विमला देवी  ने एक लोटा  ताजी   मट्ठा   प्रधानजी  को थमाते   हुए कहा l 

"हाँ...बहुतई खुशी की बात है ...आज उनकी तपस्या  सफल  हो गयी l "

"किसकी  ?"

"जिन्हौने गाँव को इस काविल   बनाया l "

"किसने   ?"

"लखना  और हरिया  ....असली हकदार  वही हैं ...सवेरे  ही आकर पूरे गाँव की सफाई करते हैं ...औरगाँव वाले भी सहयोग   करते हैं l मोरसिंह ने मूंछों को ताव देते हुए 

कहा l 

"हाँ  यह तो ठीक है ..मगर ..l "

"मगर क्या ?"

"ज्यादा प्रसंशा करने से  बौरा जाएंगे बे ..l "

"अरी विमला ...प्रसंशा से बौराते  नहीं ,वरन यह तो मार्गदर्शक  का काम करती है ....देखना हम उन दोनों को भी ले जाएंगे राष्ट्रपति भवन  l " मोरसिंह की आँखों में प्रेम और अपनेपन  की चमक थी l विमला देवी का गला भी रूंध  गया l 

"हाँ जी ठीक कहते हो ,सभी हकदार हैं इसके क्योंकि "अकेला  चना भाड़  नहीं झौंक  सकता ।"

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(2) लघुकथा ----'मानसिकता '

पूरे चार साल बाद वह अपने भाई और चचेरे भाई के साथ गई थी मेला. मेले में सर्कस लगा हुआ था जिसे वह बड़े चाव से देखती थी . तीनों सीढ़ियानुमा बल्लियों पर बैठे सर्कस का आनंद ले रहे थे. कभी भालू के कारनामे तो कभी बंदर के कभी शेर की दहाड़ तो कभी गैंडे का प्रदर्शन. वह बहुत रोमांचित हो रही थी और खुशी से चिल्ला रही थी.जोकर का हजामत वाला दृश्य तो हंसा कर पेट दर्द कर गया. 

"इसकी देखो कितना हंस रही है?" चचेरे भाई ने मूँह बनाते हुए कहा. 

"हाँ... पागल है पहले जैसी ही. दिमाग वही बचपन वाला है वैसे इंजीनियरिंग कर रही है l" भाई ने भी हँसते हुए कहा. 

"अरे अब आई देख न!" चचेरा भाई चिल्लाया. "छोरियां " 

दोनों के चेहरे पर धूर्त मुस्कान आ गई. 

वह लड़कियां छोटे छोटे कपड़े पहनकर रस्सी पर करतब दिखा रहीं थीं कभी छल्ले को अपनी कमर में डालकर घुमा रहीं थीं. 

पेट क्या नहीं कराता? 

"मजा नहीं आया.... सारी उम्रदार हैं?" चचेरे भाई ने मूँह बनाते हुए कहा. 

उसकी हँसी काफूर हो चुकी थी. 

सिर शर्म से झुक गयाऔर वह अपने कपड़े संभालने लगी जैसे उसे निर्वस्त्र कर दिया हो. 

✍️राशि सिंह, मुरादाबाद 244001


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा ----अंधविश्वास


प्रिया ने जैसे ही गिन्नी को छुआ परेशान  हो गयी ,वो गिन्नी को उठाकर  अपनी सास के पास ले जाकर बोली:- "माँ जी  गिन्नी को तेज बुखार के साथ -साथ पूरे शरीर पर लाल -लाल दाने निकले हैं। आप इसका ध्यान  रखिए मैं डाॅक्टर को बुलाती हूँ।"  

प्रिया की सास बोली:- "बहुरिया  पगलाये  गयी हो का ?गिन्नी कू माता निकली है, जामें डा. का करेगो?   जल को  लोटा भर के गिनिया के सिरहाने रखो,  आँगन से नीम तोड़ के लाओ बुहारा करो,, माता के नाम को जाप करो ,दो-तीन दिन  में  गिन्नी बिल्कुल सही है जायेगी।

परररररर माँजी .....

""पर वर कुछ न जो मैं कह रही हूँ वही सुन !डा. कू दिखावे से माता गुस्सा है के बच्ची कू अपने संगे ले जायेगी।""

प्रिया बिना मन के सास का बताया काम करती रही , 

दो दिन  बीत गये पर गिन्नी की हालत में कोई  सुधार नहीं  हुआ उलटे परिस्थिति बिगड़ती चली जा रही थी। रविन्द्र टूर से वापस घर आया गिन्नी की हालत देखकर उसने माँ की एक न सुनी और डा. को फोन कर दिया पर वही हुआ जिसका प्रिया और रविन्द्र  को डर था, 

डॉक्टर ने कहा:- "समय पर  इलाज न मिलने की वजह से गिन्नी कभी न जगने वाली गहरी नींद में  सो चुकी है।"

उधर दादी रोते हुए बड़बडा़ये जा रही थी,"हाय मेरी पोती! मना करी डाँक्टर कू मत बुलाओ पर काऊ ने मेरी एक न सुनी, मैया गुस्सा है गयी, बच्ची कू संग लिवा ले गई।।"

✍️रागिनी गर्ग ,रामपुर (यूपी)

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ---- चयन

 


 तीन लोगों का पुरस्कार के लिए चयन हुआ था ।एक का नाम खेलावन था। चयन समिति में उसके सगे चाचा बैठे थे। सभी रिश्तेदारों और खानदान-वालों का पूरा जोर था कि खिलावन ही पुरस्कृत होना चाहिए। खिलावन ने भी साफ साफ कह दिया था -"चाचा ! आज तुम चयन समिति में हो ,उसके बाद भी अगर मेरा पुरस्कार कटा तो समझ लो हमारी तुम्हारी रिश्तेदारी खत्म !"

              तो खिलावन को तो इस कारण से पुरस्कार मिला । दुखीराम को पुरस्कार मिलने का मुख्य कारण यह है कि वह 3 -  4 साल से चयन समिति के सदस्यों की चमचागिरी करता रहा । चयन समितियाँ बदलती थीं, नए लोग आते थे , दुखीराम निरंतर परिणाम की चिंता किए बिना उन सब की सेवा में लगा रहता था । आखिर एक दिन सेवा के बदले मेवा मिली और चयन समिति के सदस्यों ने यह महसूस किया कि संसार में चयन का आधार समिति के सदस्यों की सेवा ही होना चाहिए । इसलिए दुखीराम का पुरस्कार पक्का हो गया।

               तीसरा सदस्य जुगाड़ूराम था। उसने न जान - पहचान निकाली , न चमचागिरी की । सीधे दलाल को पकड़ा, रुपए दिए और काम करा लिया । 

     अब यह चयन समिति के सदस्यों का काम रह गया कि वह इस बात की रिपोर्ट तैयार करें कि उन्होंने तीन व्यक्तियों का चयन किस आधार पर किया है ? 

 ✍️रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)

 मोबाइल 9997615451_

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की कहानी --


रेलवे लाइन के किनारे अचानक भीड़ जुटी देखकर मन में उठीं अनेकानेक शंकाओं को दूर करने भाई दीनदयाल जी तेज कदमों से वहाँ पहुँचे और भीड़ को चीरते हुए जो दृश्य उन्होंने देखा तो हैरान रह गए।

        उन्होंने देखा एक लड़का जिसकी उम्र लगभग 18 या 20 वर्ष की रही होगी का बायाँ हाथ कोहनी के ऊपर से कटकर अलग हो चुका है।खून है जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा।बच्चा कभी अपनी आंखों को खोलता और तुरन्त ही बेसुध होकर लेट जाता।खून ज्यादा बह जाने के कारण उसका रंग भी पीला पड़ रहा था।

       उन्होंने सोचा कि ऐसे तमाशबीन होकर तो कुछ काम नहीं चल सकता।कुछ तो करना ही होगा,नहीं तो इसकी सांसें भी इसका साथ कब तक दे पाएंगी।

       भाई दीनदयाल जी ने आव देखा न ताव कुछ लोगों की मदद से उसे अपनी गाड़ी तक लाकर बहुत आराम से गाड़ी में पीछे की सीट पर लिटाया और स्वयं गाड़ी चलाते हुए शहर के सर्वमान्य अस्पताल में लाकर दिखाया।उन्होंने डॉक्टरों से कहा कि आप इस बच्चे पर तरस खाएं और इसकी यथा संभव शल्य चिकित्सा करके इसे बचाने की कृपा करें।

     डॉक्टरों ने देखा और बड़ी गंभीर मुद्रा में कहा कि इसका तो ईश्वर ही मालिक है।खून अधिक बह चुका है। शल्य क्रिया भी बहुत जटिल और खर्चीली होगी।

लगभ ढाई तीन लाख अनुमानित खर्चा कौन देगा।इसके अतिरिक्त दवाओं का खर्चा रहा अलग।

         भाई दीनदयाल जी ने सोचा कि हमने सारी उम्र पैसा ही कमाया है तथा उसे अनावश्यक रूप से उड़ाया भी है।अगर इस बच्चे की जान बचाने में कुछ धन खर्च हो भी जाएगा तो निश्चित ही पुण्य कार्य होगा।इसके साथ ही साथ हमारी गलतियों की माफी का सुलभ साधन भी बनेगा।

      उन्होंने डॉक्टरों की हर शर्त को मानते हुए आने वाले पूरे खर्च  की तरफ से आश्वस्त करते हुए इलाज को ही प्राथमिकता  देने पर ज़ोर दिया।

       आनन -फानन में बच्चे को भर्ती कर उसके आवश्यक परीक्षण पूरे करके शल्य क्रिया हेतु ओ,टी(ऑपरेशन थिएटर)में ले गए।करीब बाईस(22) घंटों तक निरंतर चली चिकित्सा के बाद डॉक्टरों ने उसे गहन चिकित्सा कक्ष में बहत्तर(72)घंटों के ऑब्जर्वेशन में रखकर उसपर पूरा ध्यान केंद्रित करते हुए मानवता का परिचय दिया।सभी चिकित्सक एवं सहायक स्टाफ उसके होश में आने की प्रतीक्षा करते हुए खाना -पीना तक भूल गए और अपनी योग्यता की कठिन परीक्षा का परिणाम जा

नने की उत्सुकता को नहीं रोक पाए।

        अचानक बच्चे के कराहने की आवाज़ डॉक्टरों के कानों में पड़ी तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। कुछ समय के इलाज के बाद एक दिन बच्चे ने  जुड़े हुए हाथ की उंगली को बहुत ही हल्के से हिलाकर शल्य क्रिया की तमाम आशंकाओं के निर्मूल होने का संकेत दिया।अब सभी चिकित्सक बच्चे के जीवन और उसके हाथ की सुरक्षा पर  पूरा भरोसा कर चुके थे।

      उन्होंने यह खबर भाई दीन दयाल जी को सुनाते हुए उनकी सभ्यता एवं इंसानियत को धन्यवाद देते हुए उनके चरण स्पर्श किए और कहा कि अब हम केवल द्ववाओं का खर्चा ही लेंगे।अपनी मेहनत,रूम का चार्ज तथा खान पान का कोई चार्ज नहीं लेंगे।           

✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र

9719275453

         

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ----ममता का अहसास


माँ अपनी गोद में नवजात शिशु को लिटाकर, उसे आँचल में छुपाकर स्तन पान कराते हुए अत्यंत आनंदित हो रही थीं कि तभी अपने आगंन में खूँटे से बँधी गाय पर उसकी नज़र गयी जो दूध देते हुए चुपचाप खड़ी अपने बछड़े को देख रही थी और बछड़ा दूध पीने के लिए उसके पास आने का भरसक प्रयास कर रहा था।वह उठी और उसने बछड़े की रस्सी खोल दी..........
                                            
✍️प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा



मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा----स्वार्थ की हद

 


एक दिन पहले ही ननकू ने बहू को आवाज लगा कर कहा " अरी बहू, लो!यह जेवरों का डिब्बा अपने पास रख लो, मेरा क्या है? जब तक दीपक में तेल है तभी तक जल रहा हूँ। आज उजाला है, पता नहीं कब अंधेरा हो जाये।जीवन का क्या भरोसा।" 

    सुबह- सुबह ससुर ने बहू को आवाज दी," बहू!अरी बहू, दस बज गए हैं, और चाय अभी तक नहीं बनी।क्या बात है? "

     लेकिन बहू बिना कुछ कहे तीन-चार चक्कर ससुर के सामने से लगाकर चली गईं।उत्तर कुछ नहीं दिया।वृद्ध ससुर ने एक लम्बी सांस ली----उसे समझते देर नहीं लगी।उसने दीवार को ओर देखा जहाँ घड़ी टिक-टिक करती आगे बढ़ रही थी।

 ✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा ... नन्हा मुखिया

 


.... छोटी रेखा कब से टकटकी लगाए सड़क पर देख रही थी ।... आज भैया को पगार मिलने वाली थी 3 दिन से घर में चूल्हा नहीं जला... मां छुटकू के साथ बुखार में तप रही थी ... टिंकू भी बार-बार भूख से रोए जा रहा था ।.... सड़क दुर्घटना में गोपाल की मौत हो गई थी तब से नन्हे ही जो कि 8 साल का था  घर का  मुखिया था .....आज उसे पगार मिलने वाली थी... और घर जाने की छुट्टी भी । घर में पैसे आते ही महीने भर का राशन आ जाता था ।

         सहसा सेठ दीनदयाल की फैक्ट्री का बड़ा सा दरवाजा जैसे ही खुला 7 से 11 साल तक के बच्चों की टोली शोर करती हुई बाहर निकली... कहना नहीं होगा सभी बंधुआ बाल मजदूर थे ! जो पगार मिलने व महीने बाद घर जाने की खुशी में पंछियों की तरह चह चहाते हुए अपने अपने घरों के लिए उस क़ैद खाने से बाहर निकले थे........ परंतु यह क्या अचानक पुलिस अफसरों के साथ बलराज प्रधान आगे बढ़ा और सभी बच्चों को पुलिस ने गिरफ्त में ले लिया..

         "मैंने बहुत बार समझाया सेठ दीनदयाल को बाल मज़दूरीअब अपराध है परन्तु उसकी समझ में कब आता है अब भुगतो !" बलराज प्रधान ने अपनी जीत पर खुश होते हुए गर्व से कहा !

     ..... सेठ जी तो मोटी रकम देकर जेल जाने से बच गये ...परन्तु....

      .......गोपाल के घर आज भी चूल्हा नहीं जला !!

उधर बच्चों से छीने गए रुपए प्रधान और पुलिस ने आपस में बांट लिये ......

       ..... अचानक झोपड़ी से रेखा और दो छोटे बच्चों की चीखें हवा में गूंजने लगी मां दुधमुंहे बच्चे को सूखी छाती से लगाये ही सिधार गयी थी !

      ..... प्रधान की बैठक में शराब के दौर अब भी जारी थे.......!!

अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर ,मुरादाबाद।   मोबाइल फोन नम्बर  82 188 25 541

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा -- माला


"मेरी प्यारी, सुंदर सी माला....", कृष्णा, मरियम, जुम्मन और हरमीत द्वारा इकट्ठे किए गये मनकों से सुंदर सी माला बनाती हुई बूढ़ी ननिया प्रसन्नता से बुदबुदाई।

✍️ राजीव 'प्रखर',  मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की लघुकथा---- लापरवाही

 


"कितने गड्ढे हो गए हैं सड़क में, सरकार भी ना जाने किस गम्भीर हादसे के इंतज़ार में आँखे मूँदे बैठी रहती है", सड़क के छोटे से गड्ढे से एक बड़ा पत्थर उखाड़ कर जैक के नीचे लगाकर, पंक्चर हुए टायर को घूरते हुए अब्दुल बड़बड़ाया और जैक का लीवर हिलाने लगा।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर", ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघुकथा -प्रभारी


"सर जी देखिए।अखबार में कल की प्रतियोगिता की खबर निकली है।"

"अच्छा....जरा दिखाना तो अखबार।मैं तो पूरे महीने इस प्रतियोगिता की प्रक्रिया में अध्यापकों और बच्चों के साथ इतना व्यस्त रहा कि परिणाम आने के बाद अखबार में विज्ञप्ति देने का ध्यान ही नहीं रहा।खैर हमारी और बच्चों की मेहनत रंग लाई और परिणाम में हमारे जिले के बच्चे विजेता रहे।जरूर कोर्डिनेटर सर ने विज्ञप्ति दी होगी।"

"नहीं सर जी, उन्होंने भी नहीं दी है शायद....क्योंकि वे विज्ञप्ति देते तो प्रतियोगिता प्रभारी में आपका और कोर्डिनेटर में उनका भी नाम या फोटो जरूर होता।"

"मतलब.....?"

"मतलब, ये देखिए...।विजेता बच्चों के साथ गणपत सिंह जी का फोटो और हेडिंग में 'राज्य में जनपद का नाम:वरिष्ठ प्रतियोगिता प्रभारी गणपत सिंह जी का प्रयास' लिखा हुआ है।"

अखबार का वह पन्ना देखकर सतीश सर की आँखे खुली की खुली रह गयी।एक महीने से वह कोर्डिनेटर जी के सहयोग से साथी अध्यापकों और बच्चों को प्रोत्साहित कर इस प्रतियोगिता के लिए तैयार कर रहे थे।यों तो गणपत सिंह की भी यह जिम्मेदारी थी पर वह हमेशा की तरह जिम्मेदारी औरों पर डालकर बेफिक्र था।और अब...

"मैंने आपको कई बार कहा है सर जी,पर आप सुनते नहीं।हमेशा मन लगाकर काम के पीछे पड़े रहते हो,कभी नाम का भी जुगाड़ रखा करो।"

सतीश अखबार की हेडिंग 'वरिष्ठ प्रतियोगिता प्रभारी गणपत सिंह' पर नजरें गड़ाए हुए धीरे से बोले

"प्रतियोगिता प्रभारी तो मैं था !"

आँखों के इशारे से उन्हें समझाते हुए जुनैद ने रहस्यमयी आवाज में कहा,

"पर विभाग का मीडिया प्रभारी तो गणपत सिंह है न सर जी..."

🖊️हेमा तिवारी भट्ट , मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर की साहित्यकार रचना शास्त्री की लघुकथा ------ ---- तमसो मा ज्योतिर्गमय

 


दिन‌ ढल रहा था सूरज को चिंता होने लगी अब कुछ देर में ही उसे अस्त हो जाना है, उसके बाद कौन होगा जो #तमसो_मा_ज्योतिर्गमय का भार वहन करेगा।कौन जो होगा उसके प्रबल शत्रु अंधकार का उसके पुनः लौट आने तक सामना करेगा।

सूरज को चिंतित देखकर चांँद ने कहा आप चिंता न करें जरा सी रोशनी मुझे दे जाइए मैं आपके स्थान पर रहकर अपनी तारक सेना के साथ अंधकार का सामना करुँगा।

सूरज निश्चिंत भाव से चंद्रमा को अपना प्रकाश सौंप अस्त हो गया।चंद्रमा उसके स्थान पर सैन्य सहित आ डटा।

सूरज को गया देख अंधेरे की प्रसन्नता का पारावार न रहा ,उसने जोर की अंगड़ाई ली और चारों ओर से गहरे काले बादलों ने चंद्रमा को सैन्य सहित घेर लिया, बादलों को आता देख चाँद ने पराभव निश्चित जान मंदिर में जलते दिये को पुकारा दिये ने कहा वह अंदर अंदर चुपके से जलकर अपना दायित्व निभायेगा।अब तक चाँद सैन्य सहित बादलों ‌में समा चुका था। समस्त मार्गों पर अपनी विजय पताका लहराते अंधकार ने मंदिर में ‌जलते उस नन्हें दिये को देखा तो भयानक अट्टाहस किया जिससे तेज आँधी आई और दिये की लौ फड़फड़ाकर बुझ गई।अंधकार प्रसन्न‌ था, उसने अपने सहयोगियों ‌को उत्सव मनाने का आदेश दिया चारों ओर गरज के साथ पानी बरसने लगा,तेज हवाएं चलने लगीं, चारों ओर अपना साम्राज्य पा अंधकार अत्यंत प्रसन्न‌ हुआ।

      रात ढलने लगी प्राची में भोर का आगमन हुआ,भोर ने देखा पानी पर तैरते दो पत्तों‌के बीच एक नन्हा जुगनू मरणासन्न पड़ा है पर उसके पंख अब भी चमक रहे हैं,भोर ने उसका माथा चूम लिया और कहा मेरे बच्चे! तुम्हारी ये हालत कैसे हुई?

क्षीण मुस्कुराहट के साथ जुगनू ने कहा माँ‌ मैं नन्हा होने के कारण अंधकार को पराभूत न कर सका पर मैंने उसे जीतने भी न दिया,कहकर उसने माँ की गोद में पलकें मूँद लीं।भोर रो उठी, उसके अश्रुकण ओसकणों‌ के रूप में यत्र तत्र झिलमिलाने लगे।

सूरज ने ‌भोर की उदासी का कारण जानना चाहा तो उसने जुगनू का मृत शरीर सम्मुख रख दिया,सूर्यदेव‌ सब समझ गये। उन्होंने अपने सुनहरे उत्तरीय से भोर के आँसू पोंछे, तभी मंदिर में घंटाध्वनि हुई, पुजारी ने देवता की आराधना में ऋचापाठ करते हुए गाया--

#तमसो_मा_ज्योतिर्गमय....।

✍️रचना शास्त्री

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी ------सबक

 


अपने परिवार के बारे में बड़ी-बड़ी बातें बखान करने में रविंद्र का कोई सानी नहीं था ।  मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल में रविंदर आए दिन अपने परिवार के बड़प्पन के किस्से सुनाया करता था , कि उसके पास सैकड़ों बीघा जमीन है दसियो नौकर हैं ,गाड़ियां हैं ,आदि आदि ..... एक दिन एक मैले कुचेले कपड़ों में सुबह सुबह एक  व्यक्ति मेडिकल कॉलेज के गेट पर पहुंचा और गार्ड से पूछा "भाई डॉक्टर रविंद्र का कमरा कौन सा है,  मैं उसका पिता हूं" गार्ड ने उन्हें गेट पर ही इंतजार करने को कहा और रविंद्र को बुलाने के लिए उसके कमरे पर चला गया , क्योंकि रविंद्र का कमरा गेट के ठीक सामने था उसने गार्ड से कहा आप उन्हें मेरे कमरे में ही भेज दें । रविंद्र के यार दोस्त भी उस समय कमरे में मौजूद थे, उन्होंने   रविंद्र से पूछा डॉक्टर साहब आपसे कौन मिलने आया है   । रविंद्र ने थोड़ा हिचकते हुए अपने मित्रों से कहा पिताजी ने किसी नौकर को भेजा है , मेरी फीस जमा कराने के लिए । 

वृद्ध व्यक्ति के कमरे में प्रवेश करते ही रविंद्र के यार दोस्त कमरे से चले गए । वृद्ध ने रविंद्र से कहा बेटा मेरे चाय नाश्ते का इंतजाम करो , जब तक मैं तैयार होता हूं ,फिर तुम्हारे कॉलेज जाकर फीस जमा कर देंगे । रविंद्र अपने पिताजी के लिए चाय नाश्ते का इंतजाम करने चला गया   । रविंद्र के सभी यार दोस्त कमरे की खिड़की से झांक रहे थे तो रविंद्र के पिताजी ने उन्हें कमरे में बुला लिया । रविंद्र के पिताजी ने उनसे पूछा क्या बात हो रही है , तो उन्होंने बताया की रविंद्र ने उनसे कहा है कि उसके पिताजी ने किसी नौकर को भेजा है,  उसकी फीस जमा करवाने के लिए ।  यह सुन रविंद्र के पिताजी का चेहरा गुस्से से लाल हो गया ,  लेकिन उन्होंने रविंद्र के मित्रों के सामने कुछ भी जाहिर नहीं किया । कुछ देर में रविंद्र भी चाय नाश्ता लेकर कमरे में आ गया यार दोस्तों को वहां पर देख वह घबरा गया कि कहीं उन्होंने उसके पिताजी से कुछ कहा तो नहीं है । रविंदर को देख जब उसके मित्र कमरे से जाने लगे तो उसके पिताजी ने मित्रों को रोक दिया और कहा "आपके दोस्त ,डॉ रविंद्र कुमार जी ने जो मेरा परिचय दिया है वह अधूरा है मैं उसे पूरा करना चाहता हूं" वह आगे बोले ..."मेरी हैसियत इनके घर में एक नौकर की ही है , पर मैं इनका नौकर नहीं हूँ,  मैं तो इनकी माँ का नौकर हूं" 

यह सुन रविंदर अपने दोस्तों के समक्ष शर्म से पानी पानी हो गया । इसके पश्चात रविंद्र के पिताजी ने तैयार होकर कॉलेज में रविंद्र की फीस जमा करवाई ,व दोपहर वाली गाड़ी से गांव वापस चले गए ।

✍️विवेक आहूजा 

बिलारी , जिला मुरादाबाद 

@9410416986

Vivekahuja288@gmail.com

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -----दोषी कौन


घर में चल रहे भाइयों के बीच सम्पत्ति विवाद में कविता ने दोनों को समझाने की बहुत कोशिश की।मगर बात बहुत बिगड़ गयी कचहरी मेंं मुकदमे हुए।सालों के बाद अब समझौता हो गया। भाई तो मिल गये मगर वह सब से दूर हो गयी क्योंकि दोनो ने झगडे़ का दोषी उसे बना दिया।


✍️श्वेता पूठिया,मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा----उचित निर्णय

"कब तुम्हारा... वो सम्बोधन ..मेरे जीवन की पहचान बन गया, मझे पता ही नही चला ।वह सम्मेलन जहाँ तुम्हारी कविता की शीतल बरखा मुझे अनजाने ही भिगो कर चली गई । अनजाने में ही सही ,पर तुमने ही मेरे अन्तर्मन में कविता का बीज वो दिया था ।कालेज में तुमको सम्मानित होते देख मेरा हृदय मयूर नर्तन करने लगता । किसी साहित्यिक परिचर्चा के सन्दर्भ में तुम्हारा क्षण भर का साथ असीम आनंद की अनभूति कराता ।फिर...... एक दिन ...उस मंच पर ,तुम और मैं ,एक साथ ।मुझको इंगित करके किसी गुरुजन ने कहा,"लङका बहुत आगे तक जाएगा ,पर किसी सहपाठी लङकी से आज कल इसके मेलजोल दिख रहे हैं, मेरा अच्छा शिष्य है ,.....इससे थोड़ा ....यह कहते कहते गुरुजी रुक गए।वो शब्द बहुत कुछ कह गए। अभी प्रेम का उदय कब अस्ताचल की ओर उन्मुख हुआ ,यह मैं ही जानती हूँ।यह निर्णय मेरा था ।तुमको ऊँचाई यों पर पहचान दिलाने के लिये यह उचित निर्णय लेना अपरिहार्य था । इस अपराध के लिए क्षमा की याचना तुमसे करूँ भी तो कैसे ?अवनि मन ही मनअपने उस बीस वर्ष पूर्व के युवा रूप और अतुलनीय व्यक्तित्व की सराहना  करने लगी ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा -----गुरु


पुरानी दिल्ली में लाल किले रोड की एक तरफ जूते का बड़ा शोरूम खुला और दूसरी तरफ रोड पर एक बुजुर्ग चलते फिरते  सी  किताबो की दुकान सजा रहे थे। बेडशीट को बिछाकर उस पर गीता, कुरान ,बाइबल ....आरती ,पूजा मंत्रों की छोटी-छोटी पुस्तके ,प्रेमचंद्र की कहानियां, चेतन भगत ,रॉबिन शर्मा ,शेक्सपियर .....आदि  की किताबें उन्होंने सजाई।  पर अचरज की बात तो यह है की आज जब हर दिन की तरह एक दूसरे से शर्माए लिपटी किताबों ने जूतों को उन पर हंसते हुए नहीं देखा ......बल्कि वो श्रद्धा पूर्वक सर झुका कर नमन कर रहे थे।तो फिर किताबों  ने एक दूसरे से पूछा कि आज इन घमंडी जूतों में  इतना बदलाव कैसे आ गया, आज ये अचानक हमारे सामने ऐसे झुक रहे हैं जैसे  हमें अपना गुरु समझते हो। तभी उनमें से एक किताब "हाउ टू सेल रिटन बाय प्रवीण राही" ने बाकी किताबों को कहा "कल इस जूते के शो रूम का मालिक हमारे बाबूजी के पास आया था। और बाबू जी से कहा कि हमारी दुकान की बिक्री नहीं चल रही है। इस तरीके से जूतों को फेंकना पड़ जाएगा या कौड़ी के भाव बेचना पड़ जाएगा। आप कोई रास्ता बताएं। कोई किताब बताएं ,जिस को पढ़कर मैं अपने तरीके में बदलाव ला सकूं और अपनी बिक्री बढ़ा सकूं"। फिर किताबों ने कहा अच्छा इसी वजह से  आज सुबह से ही इनके  दुकान में  ग्राहकों की भीड़ लगी हुई हैं। आज जूते खुद पर शर्मिंदा होकर अपनी इज्जत बचाने के लिए किताबों का आभार व्यक्त कर रहे थे।

✍️प्रवीण राही

संपर्क सूत्र 8860213526

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना के पत्र के उत्तर में प्रख्यात साहित्यकार गोपाल दास नीरज का यादगार पत्र । यह पत्र उन्होंने सत्रह वर्ष पूर्व 30 सितंबर 2003 को लिखा था ....…

 स्मृतिशेष महाकवि गोपालदास नीरज युवा साहित्यकारों को पत्रों के उत्तर  कम ही देते थे फिर भी मुरादाबाद के प्रसिद्ध कवि एवं बालसाहित्यकार दिग्गज मुरादाबादी जी के विशेष आग्रह पर मैंने  सन 2003 में एक पत्र उन्हें लिख ही दिया।दरअसल,नीरज जी की कश्मीर पर एक कविता पांचजन्य में छपी थी जिसमें छंद के कई दोष थे और छान्दसिक कविता के महारथी दिग्गज जी ने उन दोषों को  पकड़ लिया था । नीरज जी और छंद दोष,यह  मेरे  लिए भी एक हतप्रभ कर देने वाली बात थी।दिग्गज जी का आग्रह था कि इस कविता और उसके छान्दसिक दोषों को लेकर  मैं  नीरज जी को सीधे एक पत्र लिखूँ।बड़े संकोच और हीला हवाली के बाद आखिर  मैंने  नीरज जी को पत्र लिख ही दिया जिसका उन्होंने 30.09.03 को उत्तर भी मुझे भेज दिया।पत्र के आरंभ में नीरज जी ने अपनी कमी को स्वीकार नहीं किया किन्तु आखिर में चुपके से मान भी लिया।इसे  मैं एक बड़े कवि और शायद अपने समय के सर्वश्रेष्ठ कवि की महानता ही कहूंगा ।वरना आज तो  नवोदित कवि भी अपनी गलती कहाँ स्वीकार करते हैं?यहां प्रस्तुत हैं नीरज जी द्वारा मुझे लिखे गए पत्र की दो छवियां------



:::::::प्रस्तुति::::::::::
राजीव सक्सेना, मुरादाबाद

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 8 सितंबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों राशि सिंह, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, राजीव प्रखर, रवि प्रकाश, प्रीति चौधरी, श्री कृष्ण शुक्ल, डॉ पुनीत कुमार, अशोक विश्नोई, सीमा रानी, स्वदेश सिंह, सीमा वर्मा और कंचन खन्ना की रचनाएं----

 

चुन्ना मुन्ना थे दो भाई
दोनों ने डुबकी लगाई.

छप छप मस्ती करते
हँसते गाते आगे बढ़ते.

दूर रह गया किनारा
मुन्नू जोर से चिल्लाया.

चुन्नू भी था घबराया
उपाय कोई न सुझाया.

रोते बिलखते दोनों डूबे
घरवालों के आंसू छूटे.

मम्मी रोई पापा रोए
दोनों प्यारे बच्चे खोए

कभी न नदिया मे जाओ
घर में खेलो धूम मचाओ.

✍️राशि सिंह
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
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कहाँ जा रहे  पप्पू राजा,
लेकर     के    पिचकारी,
मम्मी  ने पूछा  तेजी  से,
चलदी    कहाँ    सवारी।

तेज हुई गर्मी  के कारण,
झुलस   गई    फुलबारी,
देख भयंकर गर्मी सबने,
अपनी   हिम्मत    हारी।

बदन  तपेगा  पैर जलेंगे,
थकन    बढ़ेगी    न्यारी,
सूरज की गर्मी में  होती,
छाया    ही    सुखकारी।

घर से बाहर जाओगे तो,
पकड़ेगी           बीमारी,
सुई  लगेगी  तब रोओगे,
होगी     पीड़ा      भारी।

पप्पू बोला  मैं सूरज पर,
छोडूंगा          पिचकारी,
सारीआगबुझाके उसकी,
रख   दूँगा    इस   बारी।

आग बुझाने पानी डालो,
कहती     मेंम     हमारी,
डरती आग स्वयं पानीसे,
कहती    नानी     प्यारी।

इतना काहे डरती मम्मी,
सुन    लो  बात   हमारी,
सूरज भी  सॉरी  बोलेगा,
देख - देख     पिचकारी।
    
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
9719275453
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मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,

अपना प्यारा सा संसार।

सुबह निकल जाते हो दोनों,
घर की खातिर दिन भर खपने।
साथ आपके जुड़े हुए हैं,
हम बच्चों के भी कुछ सपने।
आपस में यों चुप्पी रखना,


सुन लो बिल्कुल है बेकार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

दुनिया कहती हम हैं छोटे,
भला बड़ों को क्या समझायें।
उनके आपस के झगड़े में,
नहीं कभी भी टांग अड़ायें।
सुनो हमारी हम भी तो हैं,
इस नैया की ही पतवार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।                                         करो आज यह वादा हमसे,

आगे से अब नहीं लड़ोगे।
और हमारे नन्हें मन की,
भाषा को भी सदा पढ़ोगे।
घर मुस्काये, यही हमारे
जन्म-दिवस का है उपहार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

✍️ राजीव 'प्रखर'

मुरादाबाद
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                        (1)
बोर हो गए घर पर रहकर ,विद्यालय अब जाएँ
कक्षा  में  टीचर जी आकर फिर से हमें पढ़ाएँ
                              (2)
मिले हुए हो गया जमाना ,कब से दोस्त न दीखे
वही  पुराने हँसने - गाने  के  दिन वापस आएँ
                             (3)
हे भगवान सुनो बच्चों की ,अब हो खत्म कोरोना
मिलें-जुलें आपस में खुशियाँ बाँटें और मनाएँ
                       (4)
घर   पर   बैठे - बैठे   मोबाइल  से  हुई  पढ़ाई
सोच  रहे  इस  आफत .से छुटकारा कैसे पाएँ
                            (5)
गली - मोहल्ले के बच्चों के साथ रुकी गपशप है
काश  पुराने दिन फिर लौटें ,ऊधम खूब मचाएँ

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451
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नित गूगल ज्ञान बाँट रहा है
  रोज़ नयी ऐप  बना रहा है
  उलझा दिखता आधुनिक बच्चा
  फिर गुरू को ही ताक रहा है

  हमें सही आप राह दिखा दो
  सभी उलझी गुत्थी सुलझा दो
  भूल हुई राह भटक गये थे
  सच्चा-ज्ञान दर्शन करवा दो
     
✍️प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
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जन्म दिवस छोटू का आया।
खुद उसने प्रोग्राम बनाया।

यार दोस्त सारे आयेंगे।
सब बाहर खाना खायेंगे।
केक डबल डेकर मँगवाना।
यारों पर है रौब जमाना।

पापा ने उसको समझाया।
बीमारी का डर दिखलाया ।

बाहर जाने में खतरा है।
बाहर कोरोना पसरा है।
अबके बाहर नहीं चलेंगे।
हम घर में ही खुश हो लेंगे।

मम्मी ने फिर केक बनाया।
एमेजन से गिफ्ट मँगाया।
पिज्जा बर्गर भी खिलवाया।
जन्मदिवस इस तरह मनाया।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG - 69.
रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ।
मोबाइल 9456641400
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ताक धिना धिन
धिन धिन धिन
इम्तिहान के
आए  दिन

ता थई,ता थई
ता थई ता
समय खेल मेेें
दिया बिता

सा रे गा मा
पा धा नी
याद आ रही
अब नानी

सा नी धा पा
मा गा रे
ना जाने क्या
होगा रे

हल्ला गुल्ला
लाई ला
ना पढ़ने की
मिली सजा

✍️ डाॅ पुनीत कुमार
T --2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद
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मैं ,
दिन में कई बार
पापा को निहारती,
पापा मुझे देखते-
जैसे पूछना चाहते हों
गुड़िया क्या बात है ?
और मैं,
चाहकर भी कुछ नहीं कह पाती
क्योंकि
मुझे याद है वो दिन,
जब, खिलौने वाला मेरे
दरवाजे पर आया था,
तो, मैनें कहा था
पापा मुझे एक खिलौना दिला दो
इस पर,
पापा ने जो डांट पिलाई थी
वह मुझे आज तक याद है
कहा था,
तू खिलौनों से खेलेगी,
शर्म नहीं आती,
जा,
चौका - बर्तन में अपनी मां
का हाथ बटा,
तभी उधर से भैया आ गया
पीपी गुब्बारे की जिद्द
पापा ने पांच का नोट थमा दिया
भैया मेरी ओर देख कर
ताली बजता हुआ चला गया,
तब मुझे पहली बार,
लड़की होने का एहसास हुआ था ।।

✍️अशोक विश्नोई
मुरादाबाद
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नन्हीं चिड़िया आओ ना,
मीठा  सा गीत सुनाओ ना |
चहुँ दिशि पसरी है बेचैनी ,
प्यारी इससे मुक्त कराओ ना |

हम तो बन्द हुए घराें में,
पर तुमकाे मिली है आजादी
फिर कहाँ दुबक कर बैठी हाे
दौड़ कर आओ शहजादी |

मन शायद दुखी हुआ मेरा,
आकर इसे बहलाओ ना |
बेरहम वक्त की ऐसी घड़ी में ,
आकर मुझे समझाओ ना |

आओ हम तुम मिलकर दाेनाें,
एक प्यारा सा गीत बनाते हैं |
चाराे तरफ हम खुशी लुटायें,
फिर से सबकाे हँसाते हैं |

✍🏻✍🏻सीमा रानी
अमरोहा
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सिर पे टोपी पहन पजामा
चलें घूमने बंदर मामा

पहुँच आगरा देखा ताज
देख ताज को हुआ नाज

फिर आई मथुरा की बारी
खा-खा पेड़े पेट हुआ भारी

बड़ी शान से पहुँचे दिल्ली
वहां मिली सलोनी बिल्ली

बिल्ली से हुई आँखें चार
कर बैठे वह  उससे प्यार

घूम घूम कर जेब हुई खाली
पास बची ना एक  रूपल्ली

बिना टिकट टीटी ने पकड़ा
ले जाकर जेल में पटका

उतरा भूत प्यार-व्यार का
अब  बात समझ में आई

सबसे अच्छा सबसे प्यारा
अपना घर होता है भाई

✍️स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
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मेरा नन्हा सा जी पूछे
       मुझसे इतनी बातें
कौन बनाए चमकीले दिन
       कौन सजाए रातें
किसने फूलों को महकाया
      किसने चिड़ियों को चहकाया
इंद्रधनुष् को कौन है लाया
      किसने यह संसार बनाया
सूरज के गोले में किसने
        रंग भर दिए सारे
किसने धरती पर लहराए
        पौधे इतने सारे
चन्दा मामा कभी-कभी तो
        बिल्कुल ही छुप जाता है
और बुलाने पर इतराकर
       टुकड़ा-टुकड़ा आता है
हवा कभी तो साँस रोक कर
        जाने क्यों रुक जाती है
कभी दौड़ती है ऐसे की
       मुझे उड़ा ले जाती है
तितली  चिड़िया और परिंदों
         को ही क्यों पंख दिए
खुले आसमान में उड़ने को
         आजादी के संग दिए
जब भी पूछूँ एक नाम ही
        एक ही पता पाता हूँ
फिर भी उस "भगवान" को ही
          देख नहीं मैं पाता हूँ
         
✍️सीमा वर्मा
मुरादाबाद

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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज की ग़ज़ल ए टी ज़ाकिर के स्वर में


 


✍️डॉ कृष्ण कुमार नाज
🎤  ए टी ज़ाकिर
फ्लैट नम्बर 43, सेकेंड फ्लोर
पंचवटी, पार्श्वनाथ कालोनी
ताजनगरी फेस 2, फतेहाबाद रोड
आगरा -282 001
मोबाइल फ़ोन नंबर। 9760613902,
847 695 4471.
मेल- atzakir@gmail.com

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में बरेली निवासी) सुभाष रावत 'राहत बरेलवी' का गीत -----गुलमोहर सी तरुणाई, छलके यौवन में ! भरती है आवेश अनल सी, यह तन-मन में !!

 


गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !!


खिले कंवल के आकर्षण सी कोमल काया ,

स्पर्श   पवन  ने  उसे   किया,  तो  मदमाया !

इस  सुख  की अनुभूति  करा दो  जीवन  में ,

गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !!


चंचल    चितवन   देख    जिया   हर्षाता  है ,

नयन  बाण   से   उर  पंछी   बिंध  जाता  है !

स्वर  पीड़ा  के  दिये  सुनाई  मन-क्रन्दन  में ,

गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !


प्रेम - दृष्टि तुम तनिक  अकिंचन पर कर दो ,

अन्तस  ग्रीवा  प्रेम - सुधा   से  तर  कर  दो !

ज्यों  भ्रमर  करे  प्रेम, कली  से  मधुबन  में ,

गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !!


पीत   वसन   में   अंग - अंग   सिमटे   ऐसे ,

वृक्ष   तनों   पर   अमर  बेल   लिपटे   जैसे !

यों  मुझे  भी  ले  लो  हे  प्रिये  आलिंगन  में ,

गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !!


सम्मोहन   के    मंत्र    तुम्हें    किसने   बाँटे ,

धरा - गगन   के    टूट    गये    सब   सन्नाटे !

केवल  तुम हो आते -जाते, मन - उपवन  में ,

गुलमोहर   सी  तरुणाई,   छलके  यौवन  में !

भरती है आवेश अनल सी, यह  तन-मन  में !!

 

✍️ सुभाष रावत 'राहत बरेलवी'

मकान सँ० 41, तिरुपति विहार कॉलोनी

अंकुर नर्सिंग होम के पीछे, नेकपुर, बदायूँ रोड, बरेली-243001 (उत्तर प्रदेश)

मोबाइल फोन नंबर :- 09456988483/ 7017609930

ईमेल :-subhashrawat59@gmail.com