बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी-जॉम्बीज

   


मिश्रा जी ने आज छुट्टी ली हुई थी।उन्हें अपनी बहन के यहाँ सपरिवार सत्यनारायण कथा के लिए जाना था।शाम को इकलौते भान्जे की बर्थडे पार्टी थी,छुट्टी लिए बगैर चलता नहीं।वैसे भी ससुराल पक्ष की रिश्तेदारी अकेले निभाना मिश्राइन को पसंद नहीं था। क्योंकि कुछ उन्नीस बीस हो तो कम से कम ठीकरा मिश्रा जी के सिर पर फोड़ा जा सकता था।

      खैर छुट्टी थी तो इत्मीनान से सुबह की चाय बना कर,अपनी चाय और अखबार लेकर मिश्रा जी बालकनी में कुर्सी डाल कर बैठ गये। छुट्टी वाले दिन चाय बनाने की ड्यूटी अघोषित रूप से मिश्रा जी की होती थी,मिश्राइन उस दिन आराम से उठती थी और बनी हुई चाय का आनंद उठाती थी।वरना बाकि दिन तो बच्चों और पतिदेव का ब्रेकफास्ट, लंचबॉक्स आदि की भगदड़ में चाय या तो गरमागरम जल्दी जल्दी सुड़कनी पड़ती या ठण्डी होने पर पानी की तरह गले में उड़ेलनी पड़ती।

      मिश्रा जी ने चाय की चुस्की ली और अखबार उठाया। फिर ध्यान आया चश्मा तो टी वी वाले कमरे में ही रह गया है।उन्होंने बेटे रोहित को कमरे से चश्मा लाने के लिए आवाज दी।आज बच्चे की भी छुट्टी करा दी गयी थी और छुट्टी वाले दिन रोहित अन्य दिनों की अपेक्षा जल्दी उठ जाता था। शायद सब बच्चे ऐसे ही होते हैं।

      रोहित ने पापा का चश्मा देते हुए पूछा,"पापा मैं टीवी देख लूँ थोड़ी देर" मिश्रा जी ने यह कहते हुए हामी भरी कि टी वी का स्वर धीमा रखे ताकि मम्मी की नींद न खराब हो।पापा का यह कोमल रूप देखकर रोहित ने मुस्करा कर उनका गाल चूम लिया और थैंक्स पापा कहकर कमरे में चला गया। मिश्रा जी भी मुस्कुरा उठे,सुकून भरे भाव से उन्होंने चाय की अगली चुस्की ली और चश्मा पहनकर सामने अखबार खोल लिया।

      पहले ही पृष्ठ पर नक्सली और आतंकवादी हमलों की हेडलाइंस थीं।मिश्रा जी आज अच्छे मूड में थे,सो मन को उद्वेलित करने वाली खबरों को ज्यादा तवज्जो नहीं देना चाहते थे। उन्होंने पन्ना पलटा, "ऑनलाइन नशीले इंजेक्शन बेचने वाले गैंग का पर्दाफाश"

             मिश्रा जी ने पृष्ठ पर नीचे की ओर नजर दौड़ाई ,"पाँच साल की बच्ची के साथ सामूहिक दुष्कर्म" उसके पास ही चिपकी थी हेडिंग,"160रू.के लिए टेलर की हत्या" अगला पेज दिखा रहा था, "वृद्धा के साथ दुष्कर्म की कोशिश","डॉक्टर की लापरवाही से हुई नवजात की मौत","बेटों ने पिता को पीट पीटकर मार डाला" मिश्रा जी ने परेशान होकर फिर पृष्ठ पलटा "भ्रष्टाचार के कारण सरकारी योजनाएँ पात्रों तक नहीं पहुँचती", "बालिका गृह में सेक्स रैकेट संचालित","बेटी को जिंदा दफन किया माँ बाप ने" आदि आदि।हर पृष्ठ ऐसी ही नकारात्मक खबरों से भरा पड़ा था या फिर आज मिश्रा जी की आंँखों को केवल ये ही हेडलाइंस दिखाई पड़ रही थीं। 

       मिश्रा जी ने चश्मा सिर पर चढ़ाया और कप में बचे चाय के आखिरी घूँट को पिया।अब तक उन्हें बेचैनी सी होने लगी थी।वह आंँख मूंदकर कुर्सी पर पीछे की ओर सिर टिकाकर सोचने लगे।

         उन्हें याद आया,कल के अखबार में भी तो ऐसी ही खबरें थीं और कल के ही क्यों,कभी भी किसी भी अखबार में ऐसी खबरें ही तो बहुतायत में होती हैं। मिश्रा जी के दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी।उन्होंने दिमाग फेसबुक और वाट्स एप जैसे सोशल मीडिया की ओर दौड़ाया और पाया कि अखबार छोड़ो, फेसबुक ,वाट्स एप या न्यूज चैनल्स सब में ज्यादातर गिरती मानवता की खबरें ही तो देखने को मिलती हैं।पर अपनी व्यस्तता के बीच हम कब रुक कर विचारते हैं, तभी यह सब आम हो गया है और अब हमें उद्वेलित भी नहीं करता।पर आज मिश्रा जी फुर्सत के इन पलों में भी असहज हो गये थे।वह घबराकर बालकनी में टहलने लगे।

      तभी उन्हें बालकनी में सामने वाले पड़ोसी का बेटा नजर आया।वे उसे ध्यान से देखने लगे तो उन्हें वह व्याभिचारी नजर आने लगा जो कभी भी उनकी बेटी या पत्नी को अपनी हवस का शिकार बना सकता था।हो सकता है वह उनकी अम्मा को भी न छोड़े। मिश्रा जी पसीना-पसीना हो गये।अब वे आँखें मूँद कर फिर से कुर्सी पर बैठ गए।कल ऑफिस में बैंक लोन लेने आये बुजुर्ग का चेहरा उनकी आँखों के सामने आ गया,जिससे उन्होंने कमीशन लिया था,जिसमें मैनेजर की हिस्सेदारी भी थी।उन्हें दिखा कि वह बुजुर्ग रास्ते में मिलने वाले हर दफ्तर में हर कर्मचारी को पैसे बाँटते जा रहे हैं और जितना भी वह राह में आगे बढ़ते ऐसा लगता जैसे उनकी साँस रुक रही है और आखिर में वह निढाल होकर गिर गये हैं।मिश्रा जी घबरा कर उन्हें पकड़ना चाहते हैं,पर वह बुजुर्ग निष्प्राण हो गये हैं। घबराकर मिश्रा जी की आँख खुल जाती हैं और वह गमछे से अपना पसीना पोछते हैं।वह कुर्सी सरकाकर अन्दर कमरे की ओर देखने लगते हैं।उन्हें दिखता है कि उनका बेटा बड़ा हो गया है और उसे नौकरी नहीं मिली है।वह मृतक आश्रित कोटे की नौकरी पाने के लिए अपने पिता की ओर छुरा लेकर बढ़ रहा है।वह बेतहाशा चिल्लाना चाहते हैं,"मुझे मत मारो बेटा! मैं तुम्हारा पापा हूँ।" पर उनका गला सूख गया है और वह कुछ नहीं बोल पा रहे हैं।

      "पापा!पापा! क्या हुआ....?आप मुझे ऐसे क्यों देख रहे हैं?" 

          मिश्रा जी होश में आये और सँभलते हुए बोले,"कुछ नहीं बेटा....कुछ नहीं.....।" रोहित ने बोलना जारी रखा,"पापा,मैं अभी टीवी में एक सीरियल देख रहा था जिसमें जॉम्बीज थे।पता है पापा, जॉम्बीज इंसानों जैसे ही दिखते हैं पर उनमें संवेदनाएँ या भावनाएँ नहीं होती तभी तो वे अपने जैसै इंसानों को ही खा जाते हैं।जॉम्बीज क्या सच में होते हैं,पापा?" मिश्रा जी के मुँह से बेतहासा निकल पड़ा,"हाँ, हाँ,होते हैं,शायद....."

✍️हेमा तिवारी भट्ट, खुशहालपुर, मुरादाबाद (उ.प्र.)

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