मिले न कल तो घर पर शायद
परसों के पास चलें ।
दिन जिनमें फुलवारी थे , उन
बरसों के पास चलें ।।
बिगड़ू मौसम घात लगाए
उपचार , स्वयं रोगी ।
मिलीभगत में सभी व्यस्त हैं
जोग-साधना , जोगी ।।
हार , समय भी तोड़ गया दम
नरसों के पास चलें ।
जीना - मरना राम हवाले
अस्पताल में जाकर ।
पहाड़ सरीखे भुगतानों की
सभी ख़ुराकें खाकर ।।
जिनमें सांसे अटकी हैं,उन
परचों के पास चलें ।
भगवान धरा के सब,जैसे
खाली पड़े समुन्दर ।
नदियों से अब पेट न भरते
इनके , सुनो पयोधर ।।
छींटें मारें इनके मुंह पर
गरजों के पास चलें ।
✍️ डॉ मक्खन मुरादाबादी
मुरादाबाद 244001
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