बुधवार, 7 अक्तूबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी --क़ाबिल


 "अरेsssss..सँभलकर चलिए?"मैने अपनी स्कूटी को ब्रेक लगाकर चिल्लाते हुए बुर्कानशीं उस  महिला से कहा जो यकायक मेरी स्कूटी से टकराते हुए बची,उसके हाथ में कुछ किताबें थीं जो बचने की कोशिश में बाज़ार की  सड़क पर बिखर सी गयी थीं।मैं स्कूटी एक ओर खड़ी करके जब तक उसके पास पहुँची,तब तक वो अपनी किताबें सड़क पर से उठा चुकी थी और  अपने चेहरे से नकाब हटाते हुए करते हुए  मुझे गौर से देखने लगी ,तो खुशी से  मेरे हलक से  हल्की सी चीख निकल गयी। 

"रुख़साना!!!!!  ....तुम रुख़साना हो न..!रुखसाना खान??पहचाना मुझे?मैं हूँ मीनल...!मीनल सिंह...!!तुम्हारी क्लासमेट!!"

"अरे !!मीनल ........!! तुझे कैसे भूल सकती हूँ ।या अल्लाह..!! क्या खूब मिलाया है !!रुख़साना खुशी से चहकते हुए बोली.,"और बता यहाँ मुरादाबाद में कैसे?

"यहीं शादी हुई है मेरी....चल....! घर चल....।"

"नहीं मीनल ...आज घर नहीं।फिर कभी।यहाँ कुछ काम है आज।

"क्या काम है...???अच्छा चल...!!

 एक काम करते हैं वहाँ  रेस्टोरेंट में आराम से बैठकर काफी पियेंगे और बाते करेंगे।"मैने रुख़साना का हाथ पकड़ते हुए कहा तो वह भी हँसते हुए एक हाथ में किताबें थामे मेरे साथ रेस्टोरेंट की ओर चल दी।

   रेस्टोरेंट में एक कोने की सीट पर बैठकर मैनै वेटर को सैंडविच और काफी का आर्डर दिया। इस बीच मैने उसे अपने और अपने परिवार की पूरी  जानकारी दे डाली।

"मैं बहुत खुश हूँ यार...तू इतने दिन बाद मिली।कहाँ खो गयी थी? तेरा फोन नं. भी खो गया था ,तेरे घर बिजनौर भी गयीं थी,पर वहाँ ताला लगा हुआ था।अंकल आंटी कहाँ है अब...?तेरे पति क्या करते हैं....?बच्चे कौन सी क्लास में आ गये.?मेरे एक साथ  इतने सारे सवालों के उत्तर में रुख़साना के होठो पर हल्की फीकी मुस्कान तैर गयी।

 मैने गौर से देखा तो उसका खूबसूरत चेहरा अभी भी उतना ही खूबसूरत दिखता था, जितना पंद्रह बरस  पहले दिखता था,बस उसका फ़ूल सा नाज़ुक चेहरा वक़्त के हिसाब से थोड़ा सा सख़्त हो गया था,उम्र के हल्के फुल्के निशान भी दिखने लगे थे,जो लाज़िमी थे।

मेरे सवाल सुनकर उसकी बड़ी बड़ी आँखें नम हो गयीं ।मैने उसके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए धीरे से पूछा, 

"क्या हुआ...रुख़साना...??"

मेरी हमदर्दी भरे स्पर्श से उसकी बड़ी बड़ी आँखों से आँसूओं का सैलाब  बह निकला। इस बीच वेटर अजीब नज़रों  से हमें घूरता हुआ टेबल पर काफी व सैंडविच रखकर जा चुका था।मैने  बड़ी मुश्किल से उसे सँभाला।पाँच मिनट बाद संयत होकर उसने धीरे धीरे बोलना शुरु किया,

"तुझे तो पता ही है मीनल,मेरे अम्मी अब्बू हमेशा से चाहते थे कि मैं ऊँचे दर्जे की तालीम हासिल करूँ।  अपने पूरे खानदान में सबसे ज़्यादा  क़ाबिल बन जाऊँ।पी एच डी के दौरान ही हमारी बिरादरी के तमाम अच्छे घरानों से रिश्ते आने लगे थे,मगर कोई भी लड़का अब्बू को  मेरे जितना का़ब़िल न लगा....।.जो मेरे बराबर पढ़े लिखे थे ,वे शक्लो सूरत से अच्छे न थे,जो अच्छे थे उनका कोई खा़स रुतबा न था।सबमें कुछ न कुछ कमी थी।

"फिर.....?".मैने धीरे से काफी सिप करते हुए पूछा

फिर क्या मीनल....! अच्छे लड़के के इंतज़ार में धीरे धीरे शादी की उम्र बीत चली... और....और ...फिर तलाकशुदा,दोहेजे.. और मुझसे दस पंद्रह साल बड़े लड़कों के  रिश्ते आने लगे जो मुझे मंज़ूर न थे...।इस बीच बरेली विश्वविद्यालय में ही मेरा अपाइंटमेंट प्रोफेसर पद के लिये हो गया था और......।"

"और क्या....?"वह उदास होकर बोली

"अब्बू अम्मी मेरी शादी की ख़्वाहिश को दिल में ही  लिये इस दुनिया से रुख़सत हो गये।"

"मतलब... !तूने अब तक शादी नहीं की...?.मीनल ने हैरत से पूछा।

"नहीं...।" रुख़साना धीरे से बोली

"और अनवर मियां..? मैने सुना है वो भी किसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उनका क्या हुआ..?.तेरे ही मौहल्ले में  रहते थे न!!वो तो तुझे बहुत चाहते थे।तूने  अपने घर नहीं बताया कभी.!!"मैने  बात आगे बढ़ाते हुए कहा।

"बताया था....बहुत मिन्नतें भी की थीं अब्बू की..मगर वो जीते जी गैर बिरादरी में शादी करने को राज़ी न थे..।अनवर मियां ने तमाम पैगाम भेजे,मगर कुछ साल मेरे इतंज़ार के बाद उन्होंने किसी और से शादी कर ली...।"

"ओहहहहह.....!!!!"मैने एक लंबी साँस भरी।

कुछ देर हम दोनो के बीच ख़ामोशी रही।

रुख़साना को जाने की जल्दी थी।मैने टेबल पर बिल जमा कर दिया और धीरे से पूछा,"क्या काम है यहाँ?बताया नहीं तुमने..!!"

"अरे मीनल...!मैं बताना ही भूल गयी इसी महीने की बीस तारीख़ को मेरे एक उपन्यास का विमोचन होने जा रहा है,यहीं मुरादाबाद में...।इसी सिलसिले में यहाँ आना हुआ है।तुझे भी ज़रूर आना है।"वह थोड़ा खुश होकर बोली।

"अरे वाहहहहह!!तू लिखने भी लगी..।

ज़रूर आऊँगी..।क्या नाम है तेरे उपन्यास का? "

यह सुनते ही उसकी बड़ी बड़ी काली आँखों में इस बार पहले से ज़्यादा दर्द उभर आया था।वह बस हौले से बुदबुदायी,

"का़बिल...."

और फीकी मुस्कान बिखेरती हुई , तेजी से रेस्टोरेंट से बाहर निकल गयी।

✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद 


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