मंगलवार, 13 अक्तूबर 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 15 सितंबर 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ ममता सिंह , राजीव प्रखर, वीरेंद्र सिंह बृजवासी,डॉ रीता सिंह, राशि सिंह, मनोरमा शर्मा, धर्मेंद्र सिंह राजौरा, प्रीति चौधरी और शिव अवतार रस्तोगी सरस की रचनाएं.....

सूट बूट में बंदर मामा, 

फूले नहीं समाते हैं। 

देख देख कर शीशा फिर वह, 

खुद से ही शर्माते हैं।। 

काला चश्मा रखे नाक पर, 

देखो जी इतराते हैं। 

समझ रहे खुद को तो हीरो, 

खों-खों कर के गाते हैं।

सेण्ट लगाकर खुशबू वाला, 

रोज घूमने जाते हैं। 

बंदरिया की ओर निहारे

मन ही मन मुस्काते हैं।।


फिट रहने वाले ही उनको, 

बच्चों मेरे भाते हैं। 

इसीलिए तो बंदर मामा, 

केला चना चबाते हैं।। 


✍️डाॅ ममता सिंह 

मुरादाबाद

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नन्हीं निटिया करके मेकअप,

बन बैठी है नानी जैसी।


आँखों पर रख मोटा चश्मा,

चली सभी पर रौब जमाने।

और खिलौना-चक्की लेकर,

बैठी-बैठी लगी घुमाने।

बीत गये युग की प्यारी सी,

देखो एक कहानी जैसी।

नन्हीं निटिया करके मेकअप,

बन बैठी है नानी जैसी।


दादी-दादा चाचा-चाची,

सबको अपने पास बिठाती।

अपनी तुतलाती बोली में,

उनको अक्षर-ज्ञान कराती।

उसकी यह छोटी सी कक्षा,

दुनिया एक सुहानी जैसी।

नन्हीं निटिया करके मेकअप,

बन बैठी है नानी जैसी।


✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद

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 जंगल के  राजा को आया

इतना      तेज       बुखार

आंखें लाल  नाक से पानी

छीकें        हुईं       हज़ार

दौड़े - दौड़े   गए  जानवर

औषधिपति     के     द्वार

हाल बताकर कहा  देखने

चलिए      लेकर      कार।


नाम शेर का सुना हाथ  से

छुटे       सब       औज़ार

चेहरा देख सभी ने उनको

समझाया      सौ      बार

बच   जाएंगे   तो  दे  देंगे

दौलत      तुम्हें     अपार

चलिए श्रीमन  देर होरही

पिछड़    रहा     उपचार।


मास्क लगा,पहने दस्ताने

होकर     कार       सवार

डरते-डरते  पहुंचे   भैया

राजा        के      दरबार

पास  बैठके राजा जीका

नापा      तुरत     बुखार

बोले  सुई  लगानी  होगी

इनको    अबकी     बार।


सांस फूलते देख शेर की

करने      लगे      विचार

यह तो कोरोना है इसकी

दवा       नहीं       तैयार

ज़ोर ज़ोरसे  लगे चीखने

भागो      भागो      यार 

जान बचानी है तो रहना

घरके     अंदर       यार।

  

✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी

  मुरादाबाद/उ,प्र

मो0-   9719275453

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अ से अनार आ से आम , 

आओ सीखें अच्छे काम ।


इ इमली ई से ईख , 

माँगो कभी न बच्चों भीख ।


उ उल्लू ऊ से ऊन , 

कितना सुंदर  देहरादून ।


ऋ से ऋषि बडे तपस्वी , 

देखो वे हैं बड़े मनस्वी ।


ए से एड़ी ऐ से ऐनक , 

मेले में है कितनी रौनक ।


ओ से ओम औ से औजार , 

आओ सीखें अक्षर चार ।


अं से अंगूर अः खाली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली । 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


क से कमल ख से खत , 

किसी को गाली देना मत ।


ग से गमला घ से घर , 

अपना काम आप ही कर ।


ड़ खाली ड़ खाली , 

झूल पड़ी है डाली डाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


च से चम्मच छ से छतरी , 

लोहे की होती रेल पटरी ।


ज से जग झ से झरना ,

दुख देश के सदा हैं हरना ।


ञ खाली ञ खाली , 

गुड़िया ने पहनी सुंदर बाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


ट से टमाटर ठ से ठेला , 

सुंदर होती प्रातः बेला ।


ड से डलिया ढ से ढक्कन , 

दही बिलोकर निकले मक्खन ।


ण खाली ण खाली , J

रखो न गंदी कोई नाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकप ताली  ।


त से तकली थ से थपकी , 

मिट्टी से बनती है मटकी ।


द से दूध ध से धूप , 

राजा को कहते हैं भूप ।


न से नल न से नाली , 

गोल हमारी खाने की थाली ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली , 

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


प से पतंग फ से फल , 

बड़ा पवित्र है गंगाजल ।


ब से बाघ भ से भालू , 

मोटा करता सबको आलू ।


म से मछली म से मोर , 

चलो सड़क पर बाँयी ओर ।


य से यज्ञ र से रस्सी ,

पियो लूओं में ठंडी लस्सी ।


ल से लड्डू व से वन , 

स्वच्छ रखो सब तन और मन ।


श से शेर ष से षट्कोण , 

अंको का मिलना होता जोड़ ।


स से सड़क ह से हल , 

अच्छा खाना देता बल ।


क्ष से क्षमा त्र से त्रिशूल , 

कड़वी बातें देती शूल ।


ज्ञ से ज्ञान देता ज्ञानी ,

हमें देश की शान बढ़ानी ।


आओ बजाएँ मिलकर ताली ,

आओ बजाएँ मिलकर ताली ।


✍️डॉ रीता सिंह, मुरादाबाद

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हमें गेजैटस नहीं पैरेंट्स चाहिए

मम्मी पापा का प्यार चाहिए. 


हमें ट्रिप नहीं न टॉयज चाहिए 

माँ के हाथ का खाना चाहिए. 


हमें कार नहीं न थिएटर चाहिए 

पापा मम्मी का साथ चाहिए. 


हमें वीकेंड पर रेस्टोरेंट नहीं 

हर शाम साथ साथ चाहिए. 


हमें कार्टून न डिस्कवरी चाहिए 

अपना बचपन बस बचपन चाहिए. 


✍️राशि सिंह,मुरादाबाद

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दूध मलाई भर भर खावें 

मेरी ताई धूम मचावें

आलू मटर रसे की सब्जी

आलू परांठे मन से खावें 


मीठी मीठी खीर बनी हो 

पिस्ता किशमिश खूब पड़ी हो 

दो दो दोने खाकर भी मन 

डोंगे में जा टूट पड़ा हो ।


डायविटीज कहाँ से आई 

उफ ये नई मुसीबत लाई 

बैठी ताई मन ललचायें 

मेरी तो आँखें भर आईं 


मन तुम उदास न करना ताई 

जीवन ने यही रीत बनाई 

कुछ खोता कुछ मिलता भाई

किस्मत से क्यों करें लड़ाई ।।


✍️मनोरमा शर्मा 

अमरोहा 

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कितना भोला है बचपन

ना राग द्वेष ना कोई जलन

क्या धर्म जाति क्या छुआछूत

कोमल हृदय कोमल मन


चंचलता उत्साह उमंग

घर से निकले साथी संग

धमाचौकड़ी करते रहते

खेल कूद कटता हर क्षण


बचपन सबको रहता याद

याद आये जाने के बाद

 जीवन का यह काल अनोखा

बचपन जीवन का दरपन


✍️धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई

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खोयेंगे रास्ते

न मिलेंगे आसानी से

गिरोगे भी ,थकोगे भी

आलोचना सहोगे भी

आँसुओं के समंदर भी बहेंगे

जब अपनो के दरवाज़े बंद रहेंगे

बस वही से दिखेगी तुम्हें

दूर से आती एक लौ 

जो रास्ते पर तुम्हारे पड़ेगी

एक आस जो तुम्हें फिर से खड़ा करेगी

थका होगा तन

 पर मन को निर्मल करेगी

चोट तेरे दिल पर लगी

खुद मरहम का काम करेंगी

अरे रास्ता तो ख़ुद ब ख़ुद दिखेगा

जब मंज़िल की उसपर रोशनी होगी

तू बस उस रोशनी को देखना

और क़दम अपने मत रोकना

हालात चाहे हो कुछ भी 

बस  भरोसा ख़ुद पर रखना

दोस्त मेरे फिर देखना

कैसे राहें खुलेंगी

हर गुत्थी पल में सुलझेगी

हैरत होगी ख़ुद देख तुझे

जब ये तेरी क़िस्मत चमकेगी

और दिन वो  भी दूर न होगा जब

सूरज की रोशनी भी  तेरी मुट्ठी में होगी।

                       

✍️प्रीति चौधरी, अमरोहा

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