रेलवे लाइन के किनारे अचानक भीड़ जुटी देखकर मन में उठीं अनेकानेक शंकाओं को दूर करने भाई दीनदयाल जी तेज कदमों से वहाँ पहुँचे और भीड़ को चीरते हुए जो दृश्य उन्होंने देखा तो हैरान रह गए।
उन्होंने देखा एक लड़का जिसकी उम्र लगभग 18 या 20 वर्ष की रही होगी का बायाँ हाथ कोहनी के ऊपर से कटकर अलग हो चुका है।खून है जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा।बच्चा कभी अपनी आंखों को खोलता और तुरन्त ही बेसुध होकर लेट जाता।खून ज्यादा बह जाने के कारण उसका रंग भी पीला पड़ रहा था।
उन्होंने सोचा कि ऐसे तमाशबीन होकर तो कुछ काम नहीं चल सकता।कुछ तो करना ही होगा,नहीं तो इसकी सांसें भी इसका साथ कब तक दे पाएंगी।
भाई दीनदयाल जी ने आव देखा न ताव कुछ लोगों की मदद से उसे अपनी गाड़ी तक लाकर बहुत आराम से गाड़ी में पीछे की सीट पर लिटाया और स्वयं गाड़ी चलाते हुए शहर के सर्वमान्य अस्पताल में लाकर दिखाया।उन्होंने डॉक्टरों से कहा कि आप इस बच्चे पर तरस खाएं और इसकी यथा संभव शल्य चिकित्सा करके इसे बचाने की कृपा करें।
डॉक्टरों ने देखा और बड़ी गंभीर मुद्रा में कहा कि इसका तो ईश्वर ही मालिक है।खून अधिक बह चुका है। शल्य क्रिया भी बहुत जटिल और खर्चीली होगी।
लगभ ढाई तीन लाख अनुमानित खर्चा कौन देगा।इसके अतिरिक्त दवाओं का खर्चा रहा अलग।
भाई दीनदयाल जी ने सोचा कि हमने सारी उम्र पैसा ही कमाया है तथा उसे अनावश्यक रूप से उड़ाया भी है।अगर इस बच्चे की जान बचाने में कुछ धन खर्च हो भी जाएगा तो निश्चित ही पुण्य कार्य होगा।इसके साथ ही साथ हमारी गलतियों की माफी का सुलभ साधन भी बनेगा।
उन्होंने डॉक्टरों की हर शर्त को मानते हुए आने वाले पूरे खर्च की तरफ से आश्वस्त करते हुए इलाज को ही प्राथमिकता देने पर ज़ोर दिया।
आनन -फानन में बच्चे को भर्ती कर उसके आवश्यक परीक्षण पूरे करके शल्य क्रिया हेतु ओ,टी(ऑपरेशन थिएटर)में ले गए।करीब बाईस(22) घंटों तक निरंतर चली चिकित्सा के बाद डॉक्टरों ने उसे गहन चिकित्सा कक्ष में बहत्तर(72)घंटों के ऑब्जर्वेशन में रखकर उसपर पूरा ध्यान केंद्रित करते हुए मानवता का परिचय दिया।सभी चिकित्सक एवं सहायक स्टाफ उसके होश में आने की प्रतीक्षा करते हुए खाना -पीना तक भूल गए और अपनी योग्यता की कठिन परीक्षा का परिणाम जा
नने की उत्सुकता को नहीं रोक पाए।
अचानक बच्चे के कराहने की आवाज़ डॉक्टरों के कानों में पड़ी तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। कुछ समय के इलाज के बाद एक दिन बच्चे ने जुड़े हुए हाथ की उंगली को बहुत ही हल्के से हिलाकर शल्य क्रिया की तमाम आशंकाओं के निर्मूल होने का संकेत दिया।अब सभी चिकित्सक बच्चे के जीवन और उसके हाथ की सुरक्षा पर पूरा भरोसा कर चुके थे।
उन्होंने यह खबर भाई दीन दयाल जी को सुनाते हुए उनकी सभ्यता एवं इंसानियत को धन्यवाद देते हुए उनके चरण स्पर्श किए और कहा कि अब हम केवल द्ववाओं का खर्चा ही लेंगे।अपनी मेहनत,रूम का चार्ज तथा खान पान का कोई चार्ज नहीं लेंगे।
✍️वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र
9719275453
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें