गुरुवार, 25 फ़रवरी 2021

वाट्स एप पर संचालित समूह 'साहित्यिक मुरादाबाद ' में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 23 फरवरी 2021 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों राजीव प्रखर, रवि प्रकाश, विवेक आहूजा, प्रीति चौधरी, डॉ शोभना कौशिक, अशोक विद्रोही, रेखा रानी, ज्ञान प्रकाश राही, वैशाली रस्तोगी की कविताएं और रेखा रानी की कहानी .....


चिड़िया रानी, मन है मेरा,

साथ तुम्हारे डोलूँ।

जबसे आंगन में तुम चहकीं,
सूनापन घबराया।
नित्य तुम्हारा कलरव करना,
हम बच्चों को भाया।
मनभावन यह प्रीत तुम्हारी,
किन शब्दों में तोलूँ।
चिड़िया रानी, मन है मेरा,
साथ तुम्हारे डोलूँ।

नन्हें-मुन्नों के मुख में तुम,
जब रखती हो दाना।
ममता की महिमा बतलाता,
ऐसा ताना-बाना।
चहक-चहक कर, उछल-उछल कर,
मैं भी मुख को खोलूँ।
चिड़िया रानी, मन है मेरा,
साथ तुम्हारे डोलूँ।

तिनका-तिनका एक घरौंदा,
तुमने यहाँ बनाया।
कष्ट उठाकर भी बच्चों को,
उड़ना खूब सिखाया।
बनकर एक चिरौंटा प्यारा,
चीं-चीं-चीं-चीं बोलूँ।
चिड़िया रानी, मन है मेरा,
साथ तुम्हारे डोलूँ।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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पढ़ने  के  दिन आ गए ,खोलें चलो किताब
खेलकूद  काफी   हुआ , पूरा  साल  खराब
पूरा  साल  खराब , महामारी   अब   भागी
कक्षा  की  तकदीर ,साल  में जाकर  जागी
कहते रवि कविराय ,चलें किस्मत को गढ़ने
मोबाइल  घर  छोड़ ,  पाठ  कक्षा  में  पढ़ने

✍️ रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
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बचपन के दिन याद है मुझको ,
याद नहीं अब , कुछ भी तुझको ।
तेरा मेरा वो स्कूल को जाना ,
इंटरवल में टिक्की खाना ,
भूल गया है ,सब कुछ तुझको ।
कैसे तुझको याद दिलाऊ ,
स्कूल में जाकर तुझे दिखाऊ ,
याद आ जाए ,शायद तुझको ।

भूला नहीं हूं , सब याद है मुझको ,
मैं तो यूं ही ,परख रहा तुझको ।
तेरा मेरा वो याराना ,
स्कूल को जाना , पतंग उड़ाना ,
कैसे भूल सकता हूं , मैं तुझको ।
याद है तेरी सारी यादें ,
बचपन के वो कसमे वादे ,
आज मुझे कुछ , बताना है तुझको ।
"तू सबसे प्यारा है मुझको"

✍️विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
Vivekahuja288@gmail.com 
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उज़ड़े हुए इक घर में
आज भी ढूँढती हूँ खुशियाँ
मिल जाये खिली कहीं
किसी कोने में सुन्दर कलियाँ
सूखे पत्तों से अटे नीम पर
मधुर गीत सुनाती चिडियाँ
जहाँ उतरती हो आज भी
आगंन में  रात को परियाँ
वो गुड्डे-गुड़िया खेलती
मिल जाये मुझे फिर सखियाँ
जिन्दगी ले चल उस मोड़ पर
दिखें जहाँ से बचपन-गलियाँ

✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
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 मैं बालक नादान
मैं बालक नादान ।
हूँ हर किसी से अनजान ।
करता हर दम मौज -मस्ती ।
बस यही है मेरा काम ।
       दौड़ -भाग कर शोर मचाना ।
        शोर मचा कर डांट खाना।
       भाता है बस यही काम ।
       मैं बालक नादान ।
       हूँ हर किसी से अनजान ।
पकड़म -पकड़ाई ,अकड़म - अकडाई।
बस यही मेरे शस्त्र हैं।
माँ की डांट के आगे ही ।
ये शस्त्र मेरे पस्त हैं।
       जिंदगी की मौज में मैं,
       भरपूर डूबा रहा।
       बचपन इसको कहते हैं ये ,
       याद यूँ ही करता रहा ।
मैं बालक नादान।
हूँ हर किसी से अनजान ।

✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद
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धूप छांव से इस जीवन में
           सुख दुख आते जाते हैं।
किंतु मेल से प्यारे बच्चों,
‌         काम कठिन बन जाते हैं।।

मधुमक्खी सा छोटा प्राणी,
                फूलों से रस लाती हैं।
और सभी मिलकर उस रस से
                मीठा शहद बनातीं हैं।। 
शहद यदि चाहो चखना तो ,
         ‌‌     मधुमक्खी से नहीं डरो !
ऊंचा हो आदर्श तुम्हारा ,
            जग में अच्छे काम करो!!
मेल मोहब्बत करने वाले,
             सबके मन को भाते हैं।

धूप छांव से इस जीवन में
           सुख दुख आते जाते हैं।
किंतु मेल से प्यारे बच्चों,
         काम कठिन बन जाते हैं।।

छोटी-छोटी ईंटें मिलकर ,
          भव्य इमारत बन जाती।
बिना जुड़े बिखरी सब ईंटें,
       कुछ भी काम नहीं आती।।
छोटी ईंटों ने ही मिलकर,
        रचा  कुतुबमीनार   को ।
मिलजुल कर हम रहें गिरायें,
         नफ़रत  की  दीवार को ।।
रंग बिरंगे फूल सभी मिल,
         अनुपम  हार  बनातें   हैं ।।

धूप छांव से इस जीवन में
           सुख दुख आते जाते हैं।
किंतु मेल से प्यारे बच्चों,
         काम कठिन बन जाते हैं।।

✍️ अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
82 188 25 541
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चित्रों वाली पुस्तक प्यारी मुझको बहुत लुभाती है।
इसमें लिखी हर एक कविता मेरे मन को  भाती है।

इस पुस्तक में  बंदर  मामा करतब नए दिखाते हैं।
नित करते हैं नई शरारत उछल पेड़ पर जाते हैं।
छीन- छीन कर फल ,मेवे सब झट से चट कर जाते हैं।
टोपी पहन के देखके शीशा  जम कर वो इतराते हैं।
तभी तो बच्चों बंदर मामा नकलची कहलाते हैं।
बंदर मामा जी की टोपी सबको बहुत सुहाती है।
इसमें लिखी हर एक कविता मेरे मन को भाती है।

इस पुस्तक में भालू राजा सर्कस में जब आते हैं।
अपनी दुम हिला -हिला साईकिल खूब चलाते हैं।
दो पैरों पर नाच -नाच कर मन को बड़ा रिझाते हैं।
पिछली ओर लटक कर बस में फिल्म देखने जाते हैं।
मगर सिंह राजा से देखो मन ही मन घबराते हैं।
भालू जी की लाचारी पर दया मुझे भी आती है।
इसमें लिखी हर एक कविता मेरे मन को भाती है।

एक कविता बिल्ली मौसी की  जब वो तीरथ जाती हैं। 
बड़े प्यार से चूहे ,कपोत, और मुर्गे  संग ले जाती हैं।
आंधी बारिश आने पर जब घर में रुक जाती हैं।
घात लगाकर बड़े प्यार से सब  को खाना चाहती हैं।
सब चौकस थे ,जान बचाई बिल्ली मौसी पछताती हैं।
इसमें लिखी हर एक कविता मेरे मन को भाती है।

रेखा यह पुस्तक निराली नित नई सीख सिखाती है।
चित्रों वाली पुस्तक प्यारी मुझको बहुत लुभाती है।

✍️रेखा रानी, गजरौला
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बाल कहानी : जैसे को तैसा
  नंदन वन में बड़ी ही चहल पहल सी दिखाई पड़ रही है। वन का कोना कोना सजा हुआ है "आख़िर हो भी क्यों न? शादी जो होने वाली है.......  चीकू खरगोश की। बड़ा ही होनहार समझ दार है चीकू। पढ़ाई लिखाई में भी अपनी कक्षा में सबसे होशियार रहा है । चीकू अपने घर में सबसे छोटा है सो प्यारा है। बेचारा बस एक ही बात से लाचार है। बचपन से ही शरारती रहा है, जिस वजह से उसकी एक आंख की रोशनी चली गई थी।
    चीकू के पिता को उसके ब्याह की चिंता खाए जाती थी। उनके सारे बच्चे घर परिवार में मस्त हैं, किन्तु चीकू जीवन के रास्ते पर अभी तक अकेले ही चल रहा था, उसने सोचभी लिया था कि "कोई नहीं वह अकेले ही मां बाबा की सेवा में जीवन गुजार लेगा"।
    कुछ दिनों बाद खरगोश दम्पत्ति ने चतुराई से  चीकू की आंख वाली बात को छुपा कर उसकी शादी तय कर दी ।
     वन के सब  जीव खुश हैं। चीकू भी बहुत खुश है, बस... एक ही बात उसे अंदर अंदर खाए जा रही है, कि उसकी जीवन संगिनी उस सच्चाई को स्वीकार करेगी या नहीं ।
     मन ही मन बुदबुदाता हुआ चीकू अंत में सोचता है कि उसे शादी से पहले ही सच्चाई बता दूं । कई बार फ़ोन करने को भी सोचता है , किन्तु सब मना कर देते हैं।
    ....  शादी वाला दिन आ ही  गया।
     बारात सज धज कर तैयार हो गई है चीकू राजा भी ग़ज़ब लग रहे हैं । ढोल बाजे बज रहे हैं सब नाच रहे हैं।.....          ...
     पड़ौस के चंपक वन में ही दुल्हन की गलियां हैं वहां तक बारात नाचते- गाते उछल कूद करते हुए ही जाएगी क्योंकि सभी उत्सुक हैं । बन्दर मामा ने भी ख़ुद दर्जी के पास बैठकर अपनी शेरवानी सिलवाई है।
       इसी बीच बारात नंदिनी (दुल्हन खरगोश) के द्वारे आ पहुंची। सखियों के साथ नंदिनी वरमाला हाथों में लेकर स्वागत में आंखे बिछाए खड़ी हुई है।
       अपने दोस्तों के साथ चीकू भी जयमाल के लिए स्टेज पर पहुंच जाता है । दोनों ही एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं। दोनों ही ख़ुश हैं।
       जयमाल के बाद फेरों की रस्म पूरी हो जाती है। विदाई के समय चीकू के पिता चालाकी से प्रेरित होकर कहते हैं कि                                          क्यों समधी जी....
       कैसी रही हमारी चतुराई      
       हमने का‌णे  चीकू की भवर कराई।।
इस पर नंदिनी के पिता कहते हैं ....
    "इसे कहते हैं नहले पे दहला
चीकू तो केवल काणा है,
नंदिनी निपट सूरदास  है।
इतना सुनते ही चीकू के पिता खिसियाकर माथा पीटने लगते हैं। पिता को संभालते हुए चीकू कहता है कि ,"पापा हम हमेशा ख़ुद को सबसे चालक और होशियार समझते रहते हैं ,और यह सोचते हैं कि हम जो चालाकी दूसरों के साथ कर रहे हैं ,उसे कोई नहीं समझता या जानता ,जबकि दूसरे भी हमसे कई गुना अधिक  चालाकी से हमें "टिट फॉर टेट "करते हुए सबक सिखा देते हैं ।
"अब इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए ..."हम दोनों एक दूसरे को हमेशा ख़ुश रखने की कसम खाकर नव जीवन की शुरुआत करते हैं।"

✍️ रेखा रानी, विजय नगर, गजरौला
जनपद अमरोहा

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