सुबह सुबह शर्मा जी ने आंखों पर लगे चश्में को झुकाकर अखबार को थोडा एक तरफ करते हुए कुर्सी के नीचे रखी चाय को उठाकर चुस्की ली , चाय ठंडी हो चुकी थी। हमेशा ही उनकी चाय ठंडी ही जाती थी।
रसोई के बर्तनों की भी कयामत थी, जब उषा उन्हे साफ़ करती तो ऐसी आवाज़ आती थी जैसे बर्तन भी कह रहे हो, शर्मा जी चाय गर्म ही पी लिया करो ,क्यो हमारा रूप रंग बिगड़वा रहे हो।
उषा रानी की रोज सुबह रसोई से यही आवाज आती ,''अखबार तो पूरे दिन पढा जा सकता है,कौनसा आपको नौकरी पर जाना है। अदरक की चाय है गरम गरम पी लो , आराम करेगी।''
चाय हाथ में लेकर शर्मा जी उठ गये,अखबार को कुर्सी पर रखा और सूखे तुलसी के पौधें के पास जाकर धीरे से कहा,मिस यू उषा .........
✍️ प्रीति चौधरी ,गजरौला, अमरोहा
बहुत सुन्दर लघु कथा, प्रेरणाप्रद
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