तपाकर ख़ुद को सोने -सा निखरना कितना मुश्किल है!
ख़ुद अपनी ज़िंदगी पुरनूर-1 करना कितना मुश्किल है!!
है आसाँ ख़ून से अपनी इबारत आप ही लिखना ,
मुकम्मल शेर में अपने उतरना कितना मुश्किल है !!
बहुत आसान है गुलपोश-2 राहों से गुज़र जाना,
मगर पथरीली राहों से गुज़रना कितना मुश्किल है!!
गुज़रती ज़िन्दगी जिसकी है औरों की भलाई में ,
नदी की धार-सा लेकिन गुज़रना कितना मुश्किल है!!
किसी निर्धन को मिल सकता है उजला पैरहन-3 लेकिन,
किसी चेहरे से कालिख का उतरना कितना मुश्किल है!!
बहुत आसान है कुछ खोट औरों में बता देना,
मगर अपनी कमी को दूर करना कितना मुश्किल है !!
मिला धोखा हो जिसको हर क़दम 'ओंकार सिंह'बोलो,
किसी पर भी उसे विश्वास करना कितना मुश्किल है !!
1-पुरनूर--चमकीला,आभायुक्त,
2-गुलपोश राहों =फूल बिछे रास्ते
3- उजला पैरहन =सफेद कपड़े
✍️ ओंकार सिंह 'ओंकार'
1-बी-241 बुद्धि विहार, मझोला,
मुरादाबाद( उत्तर प्रदेश)244103
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें