शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2021

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा ----करप्शन


रीता की हाल ही में विधवा पेंशन बनने वाली थी ।जैसे तैसे उसने अपने परिचित काम वाले वर्मा जी से जुगाड़ लगा कर पेंशन बनवाने का फॉर्म भरा था ।चार पाँच घरों में काम करके रीता अपने व बच्चों के गुजारे लायक ही तो कमा पाती थी ।सोचा था ,विधवा पेंशन बन जाने पर थोड़ा सहारा मिल जायेगा।सो फॉर्म भर दिया ,पता चला कि इसमें आधार कार्ड लगेगा ,सो वर्मा जी ने आधार कार्ड बनवा दिया ।रीता एक दिन सब कामों से निबट कर फॉर्म जमा करने ऑफिस पहुँची।पता चला कि फॉर्म जमा करने से पहले हजार -हजार रुपए जमा कराये जा रहे है ।कहाँ से लाये वह हजार रुपए ,जैसे तैसे तो वह घर का गुजर बसर कर रही है ।बचता ही कहाँ है ,जो वह आज हजार रुपए ला सके और अपनी विधवा पेंशन बनवा सके।वह ऑफिस के बाहर खड़ी सोचती रही ,कि क्या रिश्वत ,पेंशन जो कि एक बेसहारा के लिये उसकी जरूरत है उससे बड़ी है ।भारी मन लिये वापस अपने कामों पर आ जाती है ।

 ✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

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