सोमवार, 2 अगस्त 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से रविवार 1 अगस्त 2021 को आयोजित ऑनलाइन काव्य गोष्ठी ----

 


आओ  कोई   गीत  लिखें ,
अपनी-अपनी प्रीत लिखें ।
      करें कल्पना
      हम स्वप्न बुनें ,
      कली खिलायें
      शूल चुनें ,
एक नई हम रीत लिखें ।
       दर्द सहें
       कुछ रंग रचें ,
       खुशियां बाटें
       सजे -धजे ,
आज कही मनमीत लिखें ।
       सांझ ढल रही
       दीप जले ,
       शलभ उड़ रहे
       पंख जले ,
हार कहीँ , तो जीत लिखें ।
       शब्द जुटायें
       गीत गढ़े ,
       आराध्यों पर
       पुष्प चढ़ें ,
ग्रीष्म नहीं, हम शीत लिखें ।
आओ  कोई   गीत   लिखें ।।

✍️ अशोक विश्नोई, मुरादाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत
---------------------------------------------



भारत था सोने की चिड़िया,
प्यारा देश हमारा ।
त्याग और प्रेम से स्वर्ण काल
फिर लायें यहां दोबारा!
नफ़रत की चल रहीं आंधियां,
द्वेष की आग लगी है।
बारूदों के बड़े ढेर पर,
यह दुनिया बैठी है।
चलो विश्व बंधुत्व जगायें!
बहे प्रेम की धारा!
त्याग और प्रेम से स्वर्ण काल
फिर लायें यहां दोबारा।
जात पांत का भेद मिटा कर,
सबको गले लगाओ!
चैन मिले सबको ही जिससे;
वही पंथ अपनाओ!
लाल ही रंग लहू का सबके
झूंठा झगड़ा सारा!
त्याग और प्रेम से स्वर्ण काल
फिर लायें यहां दोबारा!
राजनीति और पद लोलुपता
मानवता पर भारी।
धन दौलत और मान प्रतिष्ठा
काल चक्र से हारी।
क्या लाये क्या लेकर जाओ
मन क्यों नहीं विचारा!
त्याग और प्रेम से स्वर्ण काल
फिर लायें यहां दोबारा!
सत्य सनातन धर्म अखंडित
पर सबको चलना है!
देश की रक्षा खातिर
सबको  शोलो में जलना है!
ध्येय समर्पित जीवन जाये
मातृ भूमि पर बारा !
त्याग और प्रेम से स्वर्ण काल
फिर लायें यहां दोबारा!

✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश, भारत,मोबाइल फोन नम्बर 82 188 25 541
------------------------------------------



कंक्रीट के जंगल में
गुम हो गई हरियाली है
    आसमान में भी अब
नहीं छाती बदरी काली है
पवन भी नहीं करती शोर
वन में नहीं नाचता है मोर
नहीं गूंजते हैं घरों में

अब सावन के गीत
खत्म हो गई है अब
झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत  
नहीं होता अब हास परिहास
दिखता नहीं कहीं
सावन का उल्लास
सजनी भी भूल गई
करना सोलह श्रृंगार
औपचारिकता बनकर
रह गए सारे त्यौहार
आइये थोड़ा सोचिए
और थोड़ा विचारिये
हम क्या थे और
अब क्या हो गए हैं
जिंदगी की भाग दौड़ में
इतना व्यस्त हो गए हैं
गीत -मल्हारों के राग भूल
डीजे के शोर में मस्त हो गए हैं
यह एक कड़वा सच है
परंपराओं से दूर हम
होते जा रहे हैं
आधुनिकता की भीड़ में
बस खोते जा रहे हैं

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन 9456687822
Sahityikmoradabad.blogspot.com
------------------------------------------



तुम्हें पता है? फिर से सच के
साथ हुआ षड्यंत्र

हरे पेड़ की जड़ में हर दिन
मतलब का तेज़ाब
ऐश कर रहा उत्तरदायी
देगा कौन जबाब
होने दिया मौन ने सच का
छिन्न-भिन्न हर तंत्र

चाटुकारिता के टीले पर
है उत्पाती झूठ
लगता जैसे उम्मीदों से
गई ज़िन्दगी रूठ
मनमर्ज़ी की जेलों में हैं
नियम सभी परतंत्र

बस उपदेशों तक ही सीमित
अब सच का अस्तित्व
लगातार हावी हैं सब पर
कुछ दुहरे व्यक्तित्व
पढ़े जा रहे मंदिर-मंदिर
मरघट वाले मंत्र

✍️ -योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
-------------------------------------------



(1)
चलो साथी पुनः लायें, पुराना प्यार सावन में।
खड़ी दीवार नफ़रत की, गिरे इस बार सावन में।
हताशा से परे हटकर, बहा दे जो सभी झगड़े,
प्रिये मेघा करो आकर, वही बौछार सावन में। 

(2)
हरे-भरे कलरव से पूरित, प्यारा सा संसार मिला।
घोर अकेलेपन से लड़कर, जीने का आधार मिला।
बरसों से सूनी क्यारी में, ज्यों ही पौधा रोपा तो,
मैंने पाया मुझको मेरा, बिछुड़ा घर-परिवार मिला।

कुछ दोहे
----------
कविताओं के रूप में, अन्तस के उद्गार।
सावन मेरी ओर से, तुझको यह उपहार।।

चलो मिटाएं इस तरह, आपस के सन्ताप।
कुछ उलझन कम हम करें, कुछ सुलझाएं आप।।

ढलने को है गीत में, मेरे मन की बात।
अभी नहीं तू बीतना, ओ पूनम की रात।।

मेघयान पर प्रेम से, होकर पुनः सवार।
भू माता से भेंट को, आये सलिल कुमार।।

सम्मुख मेरे आज भी, संकट खड़े अनेक।
लेकिन दुनिया देख ले, मैं भारत हूँ एक।।

भूख-प्यास में घुल गये, जिस काया के रोग।
उसके मिटने पर लगे, पूरे छप्पन भोग।।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
----------------------------------------



खो गयी हैं मंज़िलें भी, लड़खड़ाता देखकर,
छोड़कर वो चल दिये डूबा किनारा देखकर।।

वो पराया  हो गया ,जो था कभी मेरा सनम
हो गयी हैरान हूँ मैं ये नज़ारा देखकर।

ज़िंदगी नाराज़ है या ,है मुकद्दर की ख़ता
मौत भी खामोश है मुझको तड़पता  देखकर

फैसला तकदीर का जो हो गया अब आखिरी
मैं  अकेली ही चली,सबको पराया देखकर ।

आँधियों औकात में रहना ज़रा कुछ देर तक,
झुक सका क्या आसमाँ,टूटा सितारा देखकर ।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार,मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
---------------------------------------------



बड़ी ऊँची बाजी लगानी पड़ेगी।
बिना बात अपनी गवानी पड़ेगी।

हमे क्या पता था खुशियों की कीमत,
जख्म ले के कीमत चुकानी पड़ेगी।

किसे ये खबर थी के उलझन मिलेगी,
सभी शर्तें हमको निभानी पड़ेगी।

ख़ता कर के वो ही हावी रहेगा,
मुझे अपनी गर्दन झुकानी पड़ेगी।

बोले जुबां सच तो आरी चलेगी,
सजा में जुबां भी कटानी पड़ेगी।

हवाला दे इज्जत का लब चुप करेंगे,
अगर बात जग को सुनानी पड़ेगी।

सभी टूटे अरमान को जोड़ इन्दु,
लगी आग, दिल मे दबानी पड़ेगी।

✍️ इन्दु रानी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश,भारत
--------------------------------------


  
रामचरित रच आपने ,
किया जगत उद्धार ।
पावन सब धरती हुई ,
पा तुलसी अवतार । 1
रामचरित रस घोल के ,
हरी जगत की पीर ।
बड़े प्रेम से सब पियो,
राम नाम का नीर ।2
तुलसी सब जग झूठ है,
राम नाम ही साँच ।
प्रभु बसते जाके हिय,
क्या उसको है आँच ।3
राम भक्ति की गागरी ,
हिये हिलोरें खाय ।
एक बूँद से हे मनुज ,
सकल दोष धुल जाय ।4
जिस जननी ने तुम जने,
उसका जीवन धन्य ।
गाथा सीताराम की ,
पूरित अगनित पुन्य ।5

✍️ डॉ प्रीति हुंकार, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
----------------------------------------



क्यों धर्म और मज़हब की राजनीति भाईचारा तार-तार करती है,
क्यों गीता और कुरान की राजनीति ज्ञान पर प्रहार करती है,
आंखों से देखा तो लहू का रंग एक था,
रूप रंग बनावट में कोई न भेद था,
फिर न जाने क्यों ज्ञान पर प्रहार करती है,
क्यों धर्म और मज़हब की राजनीति मित्रता में शत्रुता का निर्माण करती है,

✍️ प्रशान्त मिश्र, राम गंगा विहार, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
-------------------------------------------



अपनी पुस्तक में लिखा है ,
किसी अंग्रेज विद्वान नेI
आधा नंगा फकीर ,
जो जी रहा है हिंदुस्तान मेI
महात्मा गांधी जैसा मानव,
कभी धरती पर चला था
लोग विश्वास भी नहीं करेंगे
एक शताब्दी के बाद I
मगर वो फिरंगी विद्वान ए आलम,
यह लगाना भूल गए थे हिसाब I
  महात्मा गांधी ना मर सकेगा,
जब तक हिंदुस्तान है आबाद I
किसी विशाल वटवृक्ष की ,
छांव में पनपा नन्हा पौधा
उस विशाल वटवृक्ष के
नष्ट  होने पर,
खुद एक विशाल वृक्ष,
बन जाता है I
एक गांधी  जाता है,
दूसरा गांधी आ जाता हैI

✍️ नकुल त्यागी, मुरादाबाद
-----------------------------------------



लगता इस बार ये श्रावण, बरस रहा है  झूम झूम के !
इसी बहाने गगन धरा को प्यार कर रहा चूम चूम के !!
हरित वस्त्र मे धरा आज यों निज
सोलह शृंगार कर रही !
मानो या मानो भैया,  धरा गगन से प्यार कर रही !!
सदा सदा यों  गगन धरा का आपस मे ये प्यार रहे जी !
न केवल इस वर्ष , प्यार हर वर्ष और हर बार रहे जी !!

✍️ विकास मुरादाबादी, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें