मुरादाबाद की प्राचीन साहित्यिक संस्था 'हिन्दी साहित्य सदन' के तत्वावधान में श्रीराम बिहार कालोनी स्थित 'विश्रांति' भवन में 75वें स्वतंत्रता दिवस के संदर्भ में आयोजित समारोह में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और ग़ज़लकार स्मृति शेष भगवत सरन 'मुम्ताज़' की ग़ज़ल-कृति "जज़्बाते-मुम्ताज़" का लोकार्पण किया गया। हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में प्रकाशित इन कृतियों का संपादन वरिष्ठ साहित्यकार डा. अजय अनुपम एवं डा. आसिफ़ हुसैन द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है ।
कार्यक्रम का शुभारंभ सरस्वती वंदना से हुआ। वरिष्ठ ग़ज़लकार डा. कृष्ण कुमार नाज़ ने लोकार्पित कृति के विषय में बताया कि लोकार्पित कृतियां हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में गुंजन प्रकाशन से प्रकाशित हुई है। उनकी एक देशभक्ति की ग़ज़ल का शेर है-
वतन अपना है अपनी सरज़मीं है
हमें जीना यहाँ मरना यहीं है
वतन की राह में कुर्बान होना
यही मुम्ताज़ फ़र्ज़े अव्वलीं है
कृति के संपादक वरिष्ठ साहित्यकार डा. अजय अनुपम ने कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन में मुरादाबाद की धरती का अतुलनीय योगदान रहा है। अनेक लोगों ने स्वतंत्रता संग्राम में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था , इन्हीं लोगों में भगवत सरन अग्रवाल भी थे जो कई बार जेल भी गये।
सह संपादक डा. आसिफ़ हुसैन ने कहा कि सन 1900 में जन्मे भगवत सरन अग्रवाल 'मुम्ताज़' ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ग़ज़लें और देशभक्ति की नज़्में लिखीं जो कहीं प्रकाशित नहीं हो पाईं। उनके भतीजे वीरेन्द्र अग्रवाल भट्टे वालों से उनकी डायरी प्राप्त हुई, फिर उन रचनाओं को हिन्दी और उर्दू में प्रकाशित कराया गया है। यकीनन "जज़्बाते-मुम्ताज़" किताब मुरादाबाद के साहित्य की अमूल्य धरोहर है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ. मक्खन 'मुरादाबादी' ने की। मुख्य अतिथि वरिष्ठ समाजसेवी जगन्नाथ प्रसाद अग्रवाल रहे। संचालन योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया। कार्यक्रम में के.के.गुप्ता, सुशील कुमार शर्मा, अशोक अग्रवाल आदि उपस्थित रहे। डा. कौशल कुमारी ने आभार व्यक्त किया।
:::::::: प्रस्तुति::::::::
डा. अजय अनुपम
प्रबंधक- 'हिन्दी साहित्य सदन'
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल-9761302577
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें