मम्मी जी ने तेज धूप में,
गेहूं चने सुखाए,
रखवाली को डंडा लेकर,
हम बच्चे बैठाए।
चिड़िया,कौआऔर कबूतर,
पास कभी जो आए,
डंडा देख उड़ गए सारे,
दाना चुग ना पाए।
गेहूं खाने को गैया ने,
ज्यों ही कदम बढ़ाए,
हट-हट करके सारे बच्चे,
एक - साथ चिल्लाए।
भाग गई गैया भी अपनी,
लंबी पूँछ उठाए,
गौ माता पर जान बूझकर,
डंडे नहीं बजाए।
घुर-घुर कर सूअर के बच्चे,
गेहूं खाने आए,
हम बच्चों ने सारे सूअर,
पत्थर मार भगाए।
तभीअचानक खोंखों करते,
बंदर मामा आए,
मार झपट्टा सारे गेहूं,
धरती पर फैलाए।
भूल गए सारी रखवाली,
कुछ भी कर ना पाए,
भागो - भागो, कहते - कहते,
घर के अंदर आए।
✍️ वीरेन्द्र सिंह 'ब्रजवासी', मुरादाबाद/उ,प्र,भारत, मोबाइल फोन नम्बर-- 9719275453
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कभी सुनहरा, पीला भूरा
दादा देखो ! आसमान को
इतने रंग बदलता कैसे
थोड़ा सा समझा दो मुझको ।
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दादा ने फिर भेद बताया
बादल को सूरज की किरणें
लाल सुनहरे पीले, भूरे
रंगों में रंग देतीं किरणें ।
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वैसे अम्बर नीला रहता
टहलते फिरते इसमें बादल
आसमान क्यूँ रात में दादा
गहरा नीला हो जाता है
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तारे इतने छा जाते हैं
जैसे मोती बिखरे सारे
गोद में लेकर फिर दादा ने
भोले बच्चों को समझाया
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दिन में तारे छुप रहते हैं
सूरज से डरकर सोते हैं,
डूबा सूरज हुआ अंधेरा
तारे फिर टिमटिम करते हैं।
***
घूम रही है धरती सारी
काट रही सूरज के चक्कर
रात दिन का भेद यही है
नहीं है इसमें कुछ भी चक्कर ।
✍️ उमाकांत गुप्त, मुरादाबाद 244001,उत्तर प्रदेश, भारत
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बंदर मामा करें तमाशा,
कूद कूद कर आते हैं ।
कभी शर्ट तो कभी पेन्ट,
झट कपड़े ले जाते हैं ।
कूद कूद कर बंदर जी ने
मम्मी को परेशान किया।
डंडा लेकर दौडे हम ओर,
बंदर का चालान किया।
खो खो कर बंदर जी ने,
सारी पार्टी बुलायी है ।
दौडा दौडा कर सबने
हमको नानी याद दिलाई है ।
दादी बोली सुनो हनुमान
बहुत हुआ अब जाओ तुम।
इधर उधर दौड लगाकर,
लंका यहां न बनाओ तुम।
✍️ सीमा रानी, पुष्कर नगर, अमरोहा, उत्तर प्रदेश, भारत
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नन्ही काव्या प्यारी काव्या
क्यों इतनी इठलाती हो।
बात-बात पर करती गुस्सा,
पल भर में मुस्काती हो।
ढेर खिलौने पास तुम्हारे,
फिर भी ज़िद कर जाती हो।
पापा संग बाजार से नित
नए खिलौने लाती हो।
बड़े चाव से उन्हे सजाती
सबको खूब लुभाती हो।
अपने घर की सारी चीज़ें,
काव्या हमें दिखाती हो।
नित नई शैतानी करके,
सबको खूब रिझाती हो ।
मम्मा की प्यारी सी गुड़िया
पापा की दुलारी हो।
फुदकती रहती चिड़िया सी
घर आंगन चहकाती हो।
तुमसे आंगन महक उठा है,
रौनक घर में लाती हो।
रोज़ शरारत देख तेरी,
मैं मन में हर्षाती हूं ,
तेरे रूप में बिटिया रानी
मैं बचपन जी पाती हूं।
रेखा नैनों की खिड़की से
बचपन में चली जाती हूं।
✍️ रेखा रानी, विजय नगर, गजरौला,जनपद अमरोहा, उत्तर प्रदेश, भारत।
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आओ वीरों का मान करें इनसे मान हमारा है
जन-गण-मन की विजय सदा हो चन्दन तिलक हमारा है
इस देश धरा पर जन्म लिया इसने हमको है पाला इसका अमृत जल पी पी कर प्राणों में भरती है ज्वाला
अमरत्व यहां से सिंचित कर हमने जन्म संवारा है
आओ वीरों का मान करें इनसे मान हमारा है ।
जन-गण-मन की विजय सदा हो चंदन तिलक हमारा है ।
जय हिन्द के नारों से गूँजे काल कराल महाकारा फांसी के फन्दों को चूमे देश के वीरों की हाला
मतवाले भारत सौंप चले सुख वैभव सब वारा है
माँ की रज का सम्मान करें इनसे मान हमारा है ।
जन-गण-मन की विजय सदा हो चंदन तिलक हमारा है
✍️ मनोरमा शर्मा, अमरोहा, उत्तर प्रदेश, भारत
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गुड़िया बैठी कर रही प्रार्थना,
भगवन बहुत है कहना सुनना।
अब न कहीं कहर आए,
अब न कहीं डर छाए।
मैं भी सजधज बाजार जाऊं,
भाई के लिए चुन राखी लाऊं।
बांध कलाई पर उसके राखी,
मस्तक उसके तिलक लगाऊं।
भाई है मेरा भोला भाला,
पसंद है उसको पतंग उड़ाना।
फिर से एक बार हम बच्चे,
घर की छत पर हों इकठ्ठे।
भाई मेरा पतंग उड़ाए,
मैं उसको चरखी दिखलाऊं।
बस यही छोटी सी प्रार्थना,
कर लो स्वीकार हे!भगवन
राखी त्यौहार हो खुशियों भरा,
हर्ष में हों हम सब मगन ।
✍️ वैशाली रस्तोगी, जकार्ता (इंडोनेशिया)
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अभी तो हम बच्चे हैं,
उम्र के अभी कच्चे हैं।
बिना परेशानी भागते इधर-उधर
पढ़ने के सिवा कुछ नहीं लगता दूभर
जैसे पंख लगे हैं पैरों में,
इर्द-गिर्द घूमते अपने गैरों के।
कभी तितली पकड़ने लगते,
और कभी बंदरों से डरते।
अच्छी लगती है बारिश पहली,
बदन पे जैसे बिजली दहली।
वायु के झौंके जैसे चलते,
कभी एक दूसरे को पकडते।
करते हैं हम जब शरारत,
दौड़ते भागते न होती थकावट।
दादा दादी का देख बुढ़ापा,
ध्यान रखा उनका कहते है पापा।
बडों से हमें रहती हैं आशायें,
उनको भी हमसे हैं आशायें।
हमारी भी पूरी हो आशायें,
सबकी पूर्ण हो आशायें।
✍️ सुदेश आर्य, गौड़ ग्रेशियस, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
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मनोज कुमार शर्मा धनारी संभल
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