शनिवार, 28 अगस्त 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल के साहित्यकार (वर्तमान में मेरठ निवासी) सूर्यकांत द्विवेदी की चार घनाक्षरी

(1)
नया हर दिन रहे, नई हर प्यास रहे

भोर के क्षितिज का, अभिराम कीजिये

मन में तरंग रहे, तन में उमंग रहे

घेरे न उदासी फिर, राम राम कीजिए

दूर दूर ये दिशायें, कहतीं कुछ खास जी

चलते रहो निशिदिन, न आराम  कीजिए

राम सा चरित्र रख, कृष्ण सा पवित्र दिख

आये हो जगत में तो, नेक काम कीजिए।।

(2)

चंदा से चकोर गाल, सुरभित उच्च भाल

गोल गोल मुखड़े पे, वारी वारी श्याम जी

शीश पे मुकुट सज, देखा पँख मोर ने तो

झूम झूम नाचे फिरा, पूरे ग्राम ग्राम जी

दृश्य देख गोपियों ने, किया खुद से ही बैर

आग लगे सावनवां, गये कहाँ धाम जी

राधे राधे रट रहे,अपने तो घनश्याम

सांवरी सुरतिया पे, बलिहारी राम जी।।

(3)

कारे कारे कजरारे, अलकाएँ श्याम मुख

देख देख गोपियों का, मन भरमात है

सागर यह प्यार का,मन के ही त्योहार का

बदरी बैरन भई , काहे ललचात है

घोर घोर गरजना, अधरों पे है अर्चना

पड़े बूंद एक भी न, कैसी बरसात है

सावन की प्यास लिए, भादो की भी आस लिए

झूम झूम मनवा रे, श्याम श्याम गात है।।








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