(1)
जीवन भी इक 'खेल' है, कभी हार या जीत ।
कुदरत भी खेले कभी, सिखलाने को प्रीत ।।
(2)
'खेल'-खेल में सीखते, बच्चे पाते ज्ञान ।
खेलों में भी नाम है, और बनें विद्वान ।।
(3)
संँग कभी नहीं खेलना, जीवन में वह 'खेल' ।
सबकी अँगुली भी उठें, हो जाये फिर जेल ।।
(4)
'खेल' गेंद का खेल कर, नाथ दिया था नाग ।
चौपड़ का भी 'खेल' था, लगा दिया था दाग ।।
(5)
घर -बैठे ही खेलिए, अब हैं ऐसे 'खेल' ।
भाग-दौड़ अब कम हुई, नहीं जरूरी मेल ।।
(6)
सरकारी सेवा मिली, जाने कुछ अधिकार ।
'त्याग' पिया का घर कहे, मैं सशक्त हूँ नार ।।
(7)
'त्याग' भावना प्रेम से, चलता है घरवार ।
अहंकार अधिकार से, होता बंटाधार ।।
(8)
दुर्गुण चहुँदिशि फैलते, रहता मन अंजान ।
इनको जो भी 'त्याग' दे, पाता है सम्मान ।।
(9)
'त्याग' तपस्या कर सके, जिस मन कसी लगाम ।
जिसका मन चंचल हुआ, उसका नहिँ है काम ।।
(10)
कौन करेगा 'त्याग' जब, दिया 'त्याग' को 'त्याग' ।
पुस्तक तक सीमित हुआ, नहीं रहा अनुराग ।।
(11)
सब कान्हा के बाबरे , राधा से कम प्रीति ।
कान्हा राधा बाबरे, अजब लगी यह रीति ।।
(12)
भोले रखिए देश के, भोलों का भी ध्यान ।
पढ़े-लिखे विद्वान जो, करें न उनका मान ।।
(13)
'आजादी' में देखिए, जनता सब खुशहाल ।
जिसके मन जो भा रहा, दिखला रहा कमाल ।।
(14)
'आज़ादी' का हो रहा, आज बहु दुरुपयोग ।
भारत के टुकड़े करें, विपक्षी दलिय लोग ।।
(15)
'आज़ादी' इस देश में, नहिँ कोई प्रतिबंध ।
पढ़े-लिखें आगे बढ़ें, मधुर रखें संबंध ।।
(16)
सच देखो तो अब हुआ , भारत देश महान ।
डंका पूरे विश्व में, सब करते सम्मान ।।
(17)
मीठी वाणी बोलकर,रखा हुआ जो खोट ।
मिठबोला सब ही कहें,छवि पर लगती चोट ।।
(18)
किस के मन क्या चल रहा, मुश्किल है पहचान।
ओढ़ चदरिया राम की,घूम रहा हैवान।।
(19)
राधारानी संग में,नटखट नंदकिशोर।
शीश नवाता प्रेम से,वर्मा राम किशोर ।।
(20)
सेना के उपकार से, सोते पैर पसार ।
जीवन के हर रंग का, पाते सुख-संसार ।।
(21)
जनानियां अफ़ग़ान की, खरीद रहीं हिजाब ।
शिक्षा 'तालिबान' की, दिखती सभी जनाब ।।
(22)
अफ़ग़ान की जनानियां, 'तालिबान' का प्यार ।
मर्द उन्हें ऐसे लगें, हों ज्यों हिस्सेदार ।।
(23)
'तालिबान' अफ़ग़ान की, है भैयों की बात ।
कल फिर होंगे साथ में, सही न अब जज्बात ।।
(24)
दधि-माखन असली मिले, जिस घर पलती गाय ।
दुग्ध कमी अब भी नहीं, निर्मित बहु मिल जाय ।।
(25)
घर-घर पलती गाय थी, अब कुत्तों का दौर ।
यों थी नदियांँ दूध की, मिले कहाँ वह ठौर ।।
(27)
कहे नहीं श्रीकृष्ण-जय, 'राम-राम' बिसराय ।
अच्छा वह लगता कहाँ, हाय कहें या बाय ।।
(28)
दूध कहाँ अच्छा लगे, पय अब विविध प्रकार ।
बचपन तक सीमित हुआ, रुचिकर नहिँ गौ-धार ।।
(29)
कोरोना से डर नहीं, जब टीका लग जाय ।
इसका मतलब यह नहीं, नियम ताक रख आय ।।
(30)
उसके दिल से पूछिए, जिसके लगती चोट ।
पाने को इंसाफ फिर, चहिए समय व नोट ।।
(31)
समय बहुत बरवाद हो, एक न्याय में खोट ।।
मिलता तो पर न्याय है, एक यही है ओट ।।
(32)
कुछ हैं ऐसे मामले, लें विवेक से काम ।
बोझ अदालत पर नहीं, मिले सुखद परिणाम ।।
(33)
परिवारिक, गृह भूमि के , या मोटर के वाद ।
लोक अदालत जाइए, लघु जो वाद-विवाद ।।
(34)
लोक अदालत से मिला, जिसको जब भी न्याय ।
जीवन भी सुखमय बना, द्वार अपील न जाय ।।
(35)
न्याय शुल्क भी कब लगे, लगे अगर; मिल जाय ।
लोक अदालत ने सदा, मन के मैल मिटाय ।।
(36)
न्याय व्यवस्था आज भी, है गौरव की बात ।
मानव हित ही फैसला, नहीं धर्म या जात ।।
(37)
'अटल' विचारों को सभी , देते हैं सम्मान ।
अटल हमारी एकता, अटल राष्ट्र अभिमान ।।
(38)
'अटल' सभी को साधते, करते सबसे प्यार ।
उनके स्वप्नों को करें, मिलकर सब साकार ।।
(39)
भारत रत्नम् 'अटल' जी,राजधर्म के साथ ।
सत्य, वचन, जनभावना, खेले उनके हाथ ।।
(40)
अटल रखा विश्वास है, अटल रखी है बात ।
अटल राष्ट्र के हित रहे, अटल रखी थी मात ।।
✍️ राम किशोर वर्मा, रामपुर ,उ०प्र०, भारत
अप्रतिम दोहों के सृजन के लिए आदरणीय रामकिशोर वर्मा जी को हार्दिक बधाई
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