गुरुवार, 26 अगस्त 2021

मुरादाबाद जनपद के मूल निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ कुंअर बेचैन का नवगीत ---बहुत प्यारे लग रहे हो-


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बहुत प्यारे लग रहे हो 

ठग नहीं हो, किन्तु फिर भी 

हर नजर को ठग रहे हो 

                         बहुत प्यारे लग रहे हो


दूर रहकर भी निकट हो 

प्यास मैं, तुम तृप्ति घट हो 

मैं नदी की, इक लहर हूँ

तुम नदी का, स्वच्छ तट हो

सो रहा हूँ किन्तु मेरे 

स्वप्न में तुम जग रहे हो 

                        बहुत प्यारे लग रहे हो


देह मादक, नेह मादक

नेह का मन गेह मादक 

और यह मुझ पर बरसता 

नेह वाला मेह मादक 

किन्तु तुम डगमग पगों में,

एक संयत पग रहे हो 

                       बहुत प्यारे लग रहे हो 


अंग ही हैं सुधर गहने

हो बदन पर जिन्हें पहने 

कब न जाने आऊँगा मैं

यह जरा-सी बात कहने

यह कि तुम मन की अंगूठी के

अनूठे नग रहे हो 

                      बहुत प्यारे लग रहे हो

✍️ डॉ कुंअर बेचैन

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