शुक्रवार, 27 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार का संस्मरण---- जब स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास जी ने मुझसे कहा -- ... जो चाहते हो,उसे हिम्मत के साथ करोगे, तभी आगे बढ़ पाओगे


मैं आजकल जो कुछ लिख रहा हूं, उसमें आदरणीय पंडित मदन मोहन व्यास जी का महत्वपूर्ण योगदान है। मैंने कक्षा 6 से 12 तक की शिक्षा, पार्कर इंटरमीडिएट कॉलेज में प्राप्त की। आदरणीय व्यासजी वहां हिंदी पढ़ाया करते थे। यह मेरा परम सौभाग्य था, कि कक्षा 9 और 10 में मुझे आदरणीय व्यासजी से हिंदी पढ़ने और समझने का अवसर मिला।  मैं उस समय तक छोटी मोटी तुकबंदियां करने लगा था। लेकिन संकोची स्वभाव के कारण,अपने तक ही सीमित था।इसमें तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं है कि मेरे अंतस में उमड़ रही काव्य घटाओं को, आदरणीय व्यासजी के मार्ग दर्शन और प्रेरणा से ही बरसने का मौका मिला।

     पार्कर कॉलेज में उन दिनों,हर वर्ष,फर्स्ट डिविजनर्स डे मनाया जाता था,जिसमे ईसाई समुदाय के, बरेली मंडल के प्रमुख,जिनको बिशप कहा जाता था, मुख्य अतिथि होते थे। कई दिन पहले से इस कार्यक्रम की तैयारी की जाती थी। यह शायद 1972 या 73 की घटना है। बिशप महोदय के स्वागत में,एक स्वागत गीत,आदरणीय व्यासजी के निर्देशन में,तैयार किया जा रहा था। यह गीत लिखा भी आदरणीय व्यास जी ने था । उसके मुख्य बोल थे --- " खुश है धरती गगन ,आपके स्वागत में"
मैंने उस गीत की एक पैरोडी बना डाली,जिसकी
दो पंक्तियां मुझे आज भी याद हैं
"स्कूल का पुता भवन,आपके स्वागत में
पढ़ना ,लिखना दफन,आपके स्वागत में"

आस पास बैठे साथियों को इसका पता चल गया और उन्होंने आदरणीय व्यासजी तक,ये बात पहुंचा दी।अगले दिन उन्होंने,मुझे स्टाफ रूम में बुलाया। मैं डरते डरते उनके पास गया।," ये तुमने लिखा है" उन्होंने कड़क आवाज में पूछा। मैंने कांपते हुए, स्वीकृति में सिर हिलाया।" लिखते हो तो डरते क्यों हो .... जो चाहते हो,उसे हिम्मत के साथ करोगे, तभी आगे बढ़ पाओगे।" इतना कह कर उन्होंने, मेरी पीठ थपथपाई। मेरी आंखों से खुशी के आंसू छलक पड़े।आज, लगभग 50 साल बाद भी,जब परिस्थितिजन्य व्यथाओं से मन विचलित होता है,उनके ये शब्द, मुझे संतुलन प्रदान करते हैं।


✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
आदर्श कॉलोनी रोड
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नम्बर 9837189600

     

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