रविवार, 28 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार की ग़ज़ल ----चापलूसी की पुरानी प्रथा के सहारे भवसागर तर गये बहुत से लोग माना कि मुश्किल है विपरीत चलना धार के संग बहने को मन नहीं करता


फरेब और स्वार्थ से भरे ये लोग

साथ इनके रहने को मन नहीं करता

बहुत जख्म खाये हैं सीने पे हमने

अब और दुःख सहने को मन नहीं करता


तेरी दुनिया तो बहुत खूबसूरत है लेकिन

आदमी को न जाने क्या हो गया है

दरख्तों-पहाड़ों से हैं हम बात करते

आदमी से कुछ कहने को मन नहीं करता


चापलूसी की पुरानी प्रथा के सहारे

भवसागर तर गये बहुत से लोग

माना कि मुश्किल है विपरीत चलना

धार के संग बहने को मन नहीं करता


झूठ, दौलत और ताकत का संगम

सदियों से ये साजिश कामयाब है

मानते हैं सच को दिल में सभी

ज़ुबाँ से पर कहने को मन नहीं करता


सुविधाओं के लिए ऐसी दौड़ भी क्या

रिश्ते नातों का प्यार ही न रहे.

हर कोई व्यस्त है घन के लिए

इसके सिवा कुछ कहने को मन नहीं करता


तुम दबाने की कोशिश चाहे जितना करो

लड़ते रहेंगे "आमोद" न्याय के वास्ते

कोई अमर तो नहीं हम भी मर जायेंगे

यूँ खड़े-खड़े ढहने को मन नहीं करता

✍️ आमोद कुमार, दिल्ली


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