शनिवार, 27 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघु कहानी----- चाय वाली अम्मा!


भीड़-भाड़ वाली सड़क के किनारे छोटे से खोखे में बूढ़ी अम्मा चाय बनाने में इतनी व्यस्त रहती की उसे नहाने खाने का समय भी मुश्किल से मिलता।

   चाय के साथ-साथ मीठे-नमकीन बिस्कुट,फैन, रस्क,और दालमोठ इत्यादि को सुंदर शीशों के जार में बड़े करीने से सजाकर रखती।

   सभी ग्राहकों से बड़े प्यार से बातें करती और खुशी -खुशी चाय बनाकर पिलाती,तथा उनकी पसंद के बिस्कुट आदि देना नहीं भी भूलती। सभी लोग उसे चाय वाली अम्मा कहकर बुलाते। और बड़ी ईमानदारी से उसके पैसे भी चुकता करते।

    एक दिन एक छोटा बच्चा, जिसके जिस्म पर सही से कपड़े भी नहीं थे। उसने पैरों में भी चप्पल नहीं पहन रखे थे। उसने अम्मा के पास आकर जार में रखे बिस्कुट का दाम पूछा। तो माँ में बताया एक रुपए में दो मिलेंगे  बोल कितने दूँ। बच्चा कुछ नहीं बोला और उदास होकर  वापस चला गया।

     दूसरे दिन वही बच्चा फिर आया और दूर खड़ा होकर चाय पीने वालों को चाय में डुबो-डुबोकर बिस्कुट खाते देखकर बड़े ललचाए भाव से  उनके बिस्कुट खाने की गति को निहारते हुए, मन ही मन बिस्कुट की मिठास का वास्तविक आनंद अनुभव  करता रहा। और सोचता रहा किसी का कोई बिस्कुट टूटकर ज़मीन पर गिर जाए तो अच्छा हो। मैं बाद में उसे उठाकर खा लूँगा।

     भाग्यवश एक ग्राहक का आधा बिस्कुट टूटकर नीचे गिर गया। बच्चा यह देखकर बड़ा खुश हुआ। परंतु अगले ही पल उसकी खुशी का अंत एक देसी कुत्ते ने उसे खाकर कर दिया। बच्चे का मन अंदर तक टूट गया। 

    तभी चाय वाली अम्मा ने चाय बनाते-बनाते, उस बच्चे को दूर खड़ा देखकर अपने पास बुलाया। उसे देखते ही समझ गई कि, यह तो वही बच्चा है जो कल आकर बिस्कुट के पैसे पूछ रहा था।

     अम्मा बोली बेटा तू बड़ी देर से इस तरह चुपचाप क्यों खड़ा है। क्या चाहिए तुझे बता।,,,,,बच्चे ने डरते-डरते बिस्कुट से भरे जार की तरफ उंगली उठाते हुए बिस्कुट पाने की इच्छा मौन संकेतों में बता दी।

    माँ तो माँ ही होती है वह चाहे मेरी हो या किसी और की।,, उसने उसका नाम पूछा, तो बच्चे ने बताया मोहन है मेरा नाम। अम्मा ने पुनः प्रश्न किया तुम्हारे माता-पिता कहाँ हैं। तब बच्चे ने सुबुकते हुए बताया मेरे माता-पिता अब नहीं हैं। उन्हें सड़क पर चलते समय तेज़ गति से आते एक ट्रक ने कुचलकर मार दिया। अब तो मैं और मेरी छोटी बहन छुटकी सामने वाली उस पुलिया के नींचे रहते हैं।

    यह सुनते ही अम्मा का दिल भर आया। वह बोली ईश्वर ऐसा किसी के साथ मत करना। अम्मा ने बच्चे को पुचकारते हुए चाय बिस्कुट खिलाए। और उसकी छोटी बहन को बुलाकर लाने के लिए कहा।

      मोहन थोड़ी देर बाद अपनी छोटी बहन  को बुलाकर माँ के सामने ले आया। अम्मा ने छुटकी को देखा और बोली अरे,,,, यह तो बड़ी सुंदर है। भूखी-प्यासी फटे कपड़ीं में भी कितनी खुश लग रही है। क्या करे हालात की सताई है बेचारी।

     अम्मा ने चुटकी से पूछा बिस्कुट खाओगी बिटिया, उसने झट से हाँ कर दी। अम्मा ने बड़े प्यार से उसे बिस्कुट,नमकीन खाने को दिए। फिर उसको अपने हाथों से नहला-धुलाकर साफ कपड़े पहनने को दिए और कहा। तुम दोनों बहन-भाई आज से मेरे साथ रहकर, मेरे काम में हाथ बंटाया करो। पास में ही एक स्कूल है वहां जाकर पढ़ाई भी किया करो।

    दोनों बच्चे हंसी-खुशी अम्मा के काम में हाथ बंटाते। और समय से स्कूल भी जाते।

    अम्मा बड़ी व्याकुलता से उनके स्कूल से लौटने की राह देखती। बच्चे भी आकर अम्मा को प्रणाम करते और सबसे कहते देखा,, कितनी अच्छी है हमारी चाय वाली अम्मा।

✍️  वीरेन्द्र सिंह "बृजवासी", मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत, मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

                  -----------

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें