बुधवार, 25 नवंबर 2020

मुरादाबाद के रंगमंच को सर्वाधिक कलाकार दिए स्मृतिशेष बलवीर पाठक ने


::::जयंती 25 नवंंबर पर विशेष ::::: 
              मुरादाबाद नगर की सांस्कृतिक एवं रंगमंच की परंपरा में सर्वाधिक योगदान यहां जन्मे  बलबीर पाठक का रहा ,जिन्होंने न केवल नाटकों एवं एकांकियों का निर्देशन किया बल्कि शताधिक एकांकियों की रचना कर एकांकी साहित्य को समृद्ध भी किया। दिल्ली के परेड ग्राउंड मैदान पर वर्ष 1966 से निरंतर रामलीला मंचन को परिष्कृत व परिमार्जित रूप देकर रामायण दर्शन में परिवर्तित कर मुरादाबाद शैली के नाम से विख्यात किया। यही नहीं मुरादाबाद के रंगमंच को सर्वाधिक कलाकार देने का श्रेय भी श्री बलवीर पाठक को जाता है । नगर की प्रतिभाओं को प्रोत्साहन देने के लिए आपने रंग शिविरों और आदर्श कला माध्यम से संगीत एवं नृत्य प्रतियोगिताओं के आयोजन भी किए थे।

 

श्री पाठक का जन्म नगर के ही मोहल्ला गंज में 25 नवंबर 1929 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता स्वर्गीय कुंवर जीत पाठक रेलवे विभाग में कार्यरत थे । उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय पारकर इंटर कॉलेज में हुई जहां से उन्होंने वर्ष 1946 में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की ।हिंदू इंटर कॉलेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा 1948 में उत्तीर्ण की  । 1949 में रेलवे विभाग में माल बाबू के पद पर नजीबाबाद के निकट  एक स्टेशन पर उनकी नियुक्ति  हो गई जिसके कारण उनके शिक्षा अध्ययन में कुछ वर्षों के लिए व्यवधान पड़ गया।           
इसी बीच वर्ष 1951 में उनका विवाह हो गया। पत्नी का नाम उर्मिला पाठक था। बाद में वर्ष 1969 में स्नातक की परीक्षा डीएसएम कॉलेज कांठ से उत्तीर्ण की।  स्थानीय केजीके महाविद्यालय से वर्ष 1971 में स्नातकोत्तर की परीक्षा समाजशास्त्र विषय से उत्तीर्ण की। 


उन्हें रंगमंच के क्षेत्र में उतारने का श्रेय श्री राम सिंह चित्रकार को जाता है जब श्री पाठक कक्षा 9 में पढ़ते थे उस समय उनके मोहल्ले में एक विजयलक्ष्मी ड्रामेटिक क्लब था जिसके तत्वावधान में कुछ शौकिया कलाकार मुकटा प्रसाद की धर्मशाला में नाटक खेला करते थे उन्हें देखते देखते उनके मन में भी संगीत व नाटक के प्रति अभिरुचि जागृत हो गई वहीं श्री राम सिंह चित्रकार से उनकी भेंट हुई जिन के निर्देशन में मंचित नाटक सती वैश्या में उन्होंने सन् 1945 में पहली बार एक वेश्या का अभिनय कर अपने रंगमंचीय जीवन की शुरुआत की। इसी शुरुआत को निरंतर गति देने का श्रेय श्री कामेश्वर सिंह जी को जाता है। महिला कलाकारों को नगर के रंगमंच से जुड़ने का श्रेय श्री पाठक जी को जाता है प्रथम महिला कलाकार के रूप में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती उर्मिला देवी ने इंटरव्यू नाटक में भाग लेकर मंच पर महिला कलाकारों के आने का मार्ग प्रशस्त किया था। 
श्री पाठक वर्ष 1949 में जब इंटरमीडिएट में अध्ययन कर रहे थे तब उन्हें पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों के निर्देशन का सौभाग्य प्राप्त हुआ इसके बाद प्रतिवर्ष होने वाले श्री कृष्ण जन्माष्टमी समारोह का निर्देशन वह करते रहे वर्ष 1956 में उत्तर रेलवे वाद्यव्रन्द मंडली में चुन लिया गया और उसमें लगभग 10 साल तक जलतरंग बजाकर श्रोताओं को  सम्मोहित करते रहे निर्देशक के रूप में उन्होंने भारत भवन भोपाल में आयोजित ग्रीष्मकालीन नाट्य समारोह में 13 जून 1990 को पारसी रंगमंच  शैली में वीर अभिमन्यु नाटक का मंचन किया। 17 मार्च 1975 को लखनऊ के रवींद्रालय प्रेक्षागृह में संगीत नाटक अकादमी की ओर से आयोजित नाटक प्रतियोगिता में आपके निर्देशन में जियो और जीने दो एकांकी का मंचन किया गया। यही नहीं वर्ष 1979 में परेड मैदान दिल्ली वर्ष 1987 में श्री राम कला केंद्र दिल्ली 26 फरवरी90 को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रेक्षागृह  में भी आपको विभिन्न नाटकों का मंचन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसके अलावा हरिद्वार देहरादून रुड़की चन्दौसी अमरोहा बरेली रामनगर और शाहजहांपुर आदि अनेक नगरों में उन्होंने अनेक नाटकों व एकांकियों का मंचन किया। आपके द्वारा निर्देशित नाटक ख्वाबे शाहजहां लायंस क्लब मुरादाबाद द्वारा, सुनहरी किरण उत्तर रेलवे द्वारा, हिमालय की गुफा में लेडीज क्लब द्वारा तथा भारत महान श्री धार्मिक लीला कमेटी परेड ग्राउंड दिल्ली द्वारा पुरस्कृत किया जाना उल्लेखनीय है।

वर्ष 1948 के आसपास उन्होंने विद्यालयों के लिए एकांकियों व नाटकों का लेखन शुरू किया। आपका एक एकांकी संग्रह कर्फ्यू सख्त कर्फ्यू  भी वर्ष 1987 में प्रकाशित हो चुका है जिसमें राष्ट्रीय एकता एवं सद्भावना पर आधारित चार एकांकी संग्रहित हैं । आपके द्वारा लिखित एकांकी कर्फ्यू सख्त कर्फ्यू को आकाशवाणी रामपुर की नाट्य लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हो चुका है  ।

 वर्ष 1965 में उन्हें दिल्ली के परेड ग्राउंड में रामलीला मंचन करने का अवसर मिला लेकिन भारत पाक युद्ध होने के कारण उस साल वह मंचित ना हो सकी बाद में वर्ष 1966 से निरंतर उन्हीं के निर्देशन में नगर के कलाकारों ने परेड मैदान में रामलीला का मंचन किया। नगर में छिपी हुई प्रतिभाओं को उजागर करने के उद्देश्य से वर्ष 1962 में उन्होंने आदर्श कला संगम की स्थापना की । श्री पाठक आकाशवाणी रामपुर की कार्यक्रम सलाहकार समिति के सदस्य  भी रहे । उनका निधन 11 जुलाई 2017 में हुआ था ।


✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश,भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मंगलवार, 24 नवंबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 20 अक्टूबर 2020 को आयोजित बाल साहित्य गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों अशोक विद्रोही, प्रीति चौधरी, डॉ पुनीत कुमार, रामकिशोर वर्मा, विवेक आहूजा, कमाल जैदी वफा, मीनाक्षी ठाकुर, राजीव प्रखर, धर्मेंद्र सिंह राजोरा, डॉ शोभना कौशिक, दीपक गोस्वामी चिराग, श्री कृष्ण शुक्ल और शिव अवतार रस्तोगी सरस की बाल रचनाएं------


देखो एक मदारी आया ,

बंदर और बंदरिया लाया ।
   तरह तरह के खेल दिखाता ,
   गाता और डुगडुगी बजाता।।
   बजी डुगडुगी आए बच्चे ,
   लोग यहां के सीधे सच्चे।
सबने मिलकर शोर मचाया ।
देखो एक मदारी आया।।
   रामू, हैदर, डेविड आओ!
   मीरा सलमा को बुलवाओ!
   लगी भीड़ सब ताक रहे हैं,
   कुछ ऊपर से झांक रहे है।
सबका दिल इसने भरमाया।
देखो एक मदारी आया।।
     बंदर को कहते हैं गोपी,
     पहनी पैंट शर्ट और टोपी।
     घघरी चोली पहन बंदरिया,
     सजी हुई है बनी दुल्हनिया।
रूप निराला सब को भाया,
देखो एक मदारी आया।।
     ससुरे के संग मैं न जाऊं,
     जेठा संग हरगिज़ न आऊं।
     सास ननद से भी न मानूं,
     गोपी संग दौड़ी चली आऊं।।
आखिर गोपी को बुलवाया।
देखो एक मदारी आया।।
     ठुमक ठुमक कर नाच रही है.
     आयी चिट्ठी बांच रही है।
     रह रह देखे फिर फिर दर्पन
     छूट रहा बाबुल का आंगन।
विदा कराने गोपी आया।
देखो एक मदारी आया।।
      मंत्र मुग्ध सबको कर देता,
      ज़्यों चुनाव में करते नेता।
      भीड़ इकट्ठी कर लेता है,
      सबको बस में कर लेता है।
खेल गज़ब सबको दिखलाया। 
देखो एक मदारी आया।।
        
✍️अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर ,
मुरादाबाद, मोबाइल फोन 82 188 25 541
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  पापा गुडिया आपको  , करे बहुत ही  याद ।
  जग सूना लगता मुझे , एक आपके  बाद।।
  एक आपके बाद,  हुई मैं आज अकेली ।
  उलझाती हैं रोज़, ज़िंदगी हुई पहेली।
  सबल वृक्ष की छाँव, गया कब उसको मापा ।
  वह मजबूती-साथ ,कहाँ से लाऊँ, पापा !!

✍️ प्रीति चौधरी, गजरौला,अमरोहा
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सर्दी में भी लाए पसीना
मुश्किल कर देता है जीना
गर्मी में कंपकपी छुटाता
सबका इसने चैन है छीना

इम्तिहान का ये मौसम है
कोई ना इसका निश्चित क्रम है
जब मर्जी हो,तब आ जाता
करता सबकी नाक में दम है

जो बच्चे प्रतिदिन पढ़ते हैं
नियमित खेला भी करते हैं
उनको फर्क ना पड़ता कोई
वे इम्तिहान से नहीं डरते हैं

✍️ डॉ पुनीत कुमार
टी 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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मम्मी-दादी पूजा करतीं
नित्य मात से अर्चन करतीं ।
'राम' दिया है तुमने माता
देना उसको भी इक भ्राता ।
काज संँवारे तुमने देवी
लाज हाथ फिर तेरे देवी ।
नवरात्री के व्रत जब आये ‌
मम्मी से उपवास रखाये ।
अष्टमी को कन्या जिमायीं
बेटा हो इच्छा बतलायीं ‌।
'राम' नित्य सब देख रहा था
मन-ही-मन वह सोच रहा था ।
मांँ मुझको इक बहिना देना
राखी का सुख मुझको लेना ।
मम्मी के मन में भी आता
बेटी से चलता जग नाता ।
देवी ने मन की सुन लीनी
नवमी को लक्ष्मी इक दीनी ।
राम की मम्मी खुश अधिक थी
पापा को चिन्ता न तनिक थी ।
दादी बोलीं -- देवी इच्छा
मानव की वह लेंय परीक्षा ।
देवी ही मेरे घर आयीं
सही मार्ग लगता दिखलायीं ।
जब जग में कन्या कम होगी
जीवन में अधिक व्याधि होगी ।
लड़का-लड़की सभी जरूरी
इच्छाऐं होंगी तब पूरी ।
जय माता की सारे बोलो
राम नाम लो; कभी न डोलो ।
 
✍️राम किशोर वर्मा, रामपुर
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बचपन के दिन याद है मुझको ,
याद नहीं अब , कुछ भी तुझको ।
तेरा मेरा वो स्कूल को जाना ,
इंटरवल में टिक्की खाना ,
भूल गया है ,सब कुछ तुझको ।
कैसे तुझको याद दिलाऊ ,
स्कूल में जाकर तुझे दिखाऊ ,
याद आ जाए ,शायद तुझको ।
                  
भूला नहीं हूं सब याद है मुझको ,
मैं तो यूं ही ,परख रहा तुझको ।
तेरा मेरा  वो याराना ,
स्कूल को जाना पतंग उड़ाना ,
कैसे भूल सकता हूं , मैं तुझको ।
याद है तेरी सारी यादें ,
बचपन के वो कसमें वादे ,
आज मुझे कुछ , बताना है तुझको ।
"तू सबसे प्यारा है मुझको"

✍️विवेक आहूजा , बिलारी , जिला मुरादाबाद
मो 9410416986
Vivekahuja288@gmail.com
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बच्चो ने अखबार निकाला,
सबको हैरत में कर डाला।
अच्छी अच्छी खबरें छापी,
नहीं बनाया किसी को पापी।
मार धाड़ की खबर न छापी,
झूठी बातें नही अलापी।
गीत कहानी और पहेली,
दोस्त बना और बना सहेली।
अच्छी बातें सबकी मानी,
नही करी बिल्कुल मनमानी।
दूर दूर तक नाम हुआ,
सबके हित का काम हुआ।
बच्चो की आवाज़ उठाई,
कब तक घर पर करें पढ़ाई।
शासन तक बातें पहुँचायी,                                      तभी तो शाला भी खुल पाई।
बच्चो का अखबार है प्यारा,
सारे अखबारों से न्यारा।

✍️कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'                                          प्रधानाचार्य,अम्बेडकर हाई स्कूल
बरखेड़ा (मुरादाबाद)
सिरसी (सम्भल)9456031926
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एक बड़ा प्यारा सा बेटा
दो दिन से बिस्तर पर लेटा।

तीन तरह की दवा खिलाई,
लेकिन बात समझ न आयी ।

चार  डाक्टर बात बतायें
कुरकुरे चिप्स न इसे खिलायें

पंचो सुनो लगाकर कान
प्लास्टिक इनमें,कर लो ध्यान।

छह- छह इंजेक्शन लगवाये,
देख कलेजा मुँह को आये।

सात जन्म तक याद रहेगा,
क्रेक्स खाना भारी पड़ेगा।

आठवें दिन कुछ तबियत सँभली
कभी न आवे दुख की बदली।

नौवैं दिन कुछ मन हर्षाया,
बीमारी पर काबू पाया।

दसवें दिन फिर मना दशहरा
अब न खाना चिप्स कुरकरा ।।

✍️मीनाक्षी ठाकुर, मुरादाबाद
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मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

सुबह निकल जाते हो दोनों,
घर की खातिर दिन भर खपने।
साथ आपके जुड़े हुए हैं,
हम बच्चों के भी कुछ सपने।
आपस में यों चुप्पी रखना,
सुन लो बिल्कुल है बेकार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

दुनिया कहती हम हैं छोटे,
भला बड़ों को क्या समझायें।
उनके आपस के झगड़े में,
नहीं कभी भी टांग अड़ायें।
सुनो हमारी हम भी तो हैं,
इस नैया की ही पतवार।
मम्मी-पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

करो आज यह वादा हमसे,
आगे से अब नहीं लड़ोगे।
और हमारे आहत मन की,
भाषा को भी सदा पढ़ोगे।
घर मुस्काये यही हमारे,
जन्म-दिवस का है उपहार।
मम्मी पापा झगड़ा छोड़ो,
अपना प्यारा सा संसार।

✍️ राजीव 'प्रखर', मुरादाबाद
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बंदर राजा लगा के छतरी☔
आज अपनी ससुराल चले
होगी कैसी रानी बंदरिया
करके यही खयाल चले
जैसे सोहनी हो बंदरिया
बनकर वो महिवाल चले
सूट बूट डाले थे फिर भी
जेब से वो तंगहाल चले
आयेगी या ना 👰दुल्हनिया
मन में लिए सवाल चले

✍️धर्मेंद्र सिंह राजौरा बहजोई
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बंदर वाला आया ।
बच्चों के मन भाया ।
दौड़े दौड़े बच्चे आये ।
साथ में केला चना भी लाये।
खाया और खिलाया खूब।
बंदर भी मन भाया खूब।
खौं -खौं -खौं-खौं करता जाये।
बच्चों का डर घटता जाये।
तक-धिन -तक धिन नाच दिखाये।
कभी घुँघट में छिप जाये।
इधर मटक कभी उधर मटक।
बच्चे भी करते नकल।
खुशियों से दामन भर भर के।
लौट गये बच्चे हँसते-हँसते।

✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद
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सुबह-सुबह आता अखबार ।
हर मन को भाता अखबार।

दादा जी का यही नाश्ता,
खबरों का दाता अखबार।

पढ़कर भी बेकार नहीं है,
काम बहुत आता अखबार।

जग का ज्ञान हमें यह देता,
बहुत बड़ा ज्ञाता अखबार।

मुझको ऐसा शहर बता दो,
जहाँ नहीं आता अखबार।

कभी नहीं छुट्टी यह लेता,
सातों दिन आता अखबार।

हत्या-लूट और रेप-डकैती,
अब बस दिखलाता अखबार।

✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन, कृष्णाकुंज, बहजोई
पिन-244410(संभल), उत्तर प्रदेश
मो. 9548812618
ईमेल- deepakchirag.goswami@gmail.com
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बच्चों जरा बताओ तो ये, बिजली कैसे बनती है।
छोटू बोला सर जी, ये तो आसमान में बनती है।
जब जब बारिश होती है बादल खूब गरजते हैं।
तब तब घोर गर्जना से बिजली बहुत तड़कती है।
बात तुम्हारी भी सच है, टीचर जी ने समझाया ।
किंतु आसमानी बिजली अपने काम न आती है ।।
पंखा नहीं चलाती है, लाइट नहीं जलाती है।
ये बिजली तो मानव को स्वयं बनानी पड़ती है।
बाँध बनाकर बड़े बड़े, पानी की ही ताकत से,
जब टर्बाइन घुमाते हैं, तब बिजली बन जाती है।
कभी कोयला जला जला, तापमान से बनती है
यही ऊर्जा अणु से पाकर, भी बिजली बन जाती है।
पवन शक्ति से बनती है तो सूरज से भी बनती है।
और हमारे घर के कचरे से भी बिजली बनती है।
छोटू बोला , बात समझ में सोलह आने आई।
शायद इसीलिए ये बिजली मुफ्त नहीं मिलती है।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69, रामगंगा विहार, मुरादाबाद ।
मोबाइल नंबर 9456641400
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मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ सरोजिनी अग्रवाल की कृति 'छायावाद का गीतिकाव्य' की दुष्यन्त बाबा द्वारा की गई समीक्षा

डॉ. सरोजिनी अग्रवाल द्वारा अपने आदरणीय बाबूजी श्री कांति मोहन अग्रवाल को समर्पित पुस्तक 'छायावाद का गीति-काव्य' पुस्तक छायावाद काल में  रचित गीति-काव्यों का समीक्षात्मक संग्रह के रूप में उनके शोध प्रबंध का एक संक्षिप्त व संशोधित रूप है आप इसकी भूमिका में लिखती है कि भारतीय काव्य-शास्त्र में गीति-काव्य शब्द का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। वहाँ मुक्तक काव्य के दो भेद किए गए हैं- पाठ्य मुक्तक व गेय मुक्तक।  इसी गेय मुक्तक को गीत की संज्ञा मिली। पाश्चात्य साहित्य में उन गीतात्मक लघु।कविताओं को जिनमें कवि ने अपने व्यक्तिगत जीवन के सुख-दुखात्मक अनुभवों को प्रत्यक्ष रूप 'मैं', 'मेरी' शैली में अभिव्यक्त किया वे लिरिकल पोएट्री कहलाईं। इसी लिरिकल पोइट्री का हिंदी अनुवाद गीति-काव्य है।

        संयोग से जिस समय पश्चिम में शैली, किड्स, वायरन, वर्ड्सवर्थ आदि रोमांटिक काव्य धारा के कवि 'लिरिक' लिख रहे थे उसी समय हमारे यहां भी 'छायावाद' नाम से एक नया युग प्रारंभ हो चुका था और श्री जयशंकर 'प्रसाद' श्री सुमित्रानंदन पंत श्री सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' और श्रीमती महादेवी वर्मा की कविताओं में यही आत्मकपरक स्वर प्रधान था। प्रारंभ में आचार्य रामचंद्र शुक्ल आदि परंपरावादी समालोचकों ने इस बढ़ती हुई व्यक्तिवादी प्रवृत्ति का प्रबल विरोध किया और अपने तीखे व्यंग्य बाणों के प्रहार से इसे धराशाई करने का हर प्रयत्न किया पर इस कवि चतुष्टय की अद्भुत सृजन प्रतिभा का संयोग पाकर यह गीत विधा निरंतर अपने उत्कर्ष की ओर बढ़ती गई और कुछ ही वर्षों में यह प्रबंध और मुक्तक की तरह एक स्वतंत्र काव्य विधा के रूप में सर्वमान्य हो गई। जिस प्रकार महाकवि सूरदास के 'सूरसागर' के पदों के आधार पर 'वात्सल्य रस' को दसवें रस के रूप में प्रतिष्ठा मिली ठीक इसी प्रकार इन चारों कवियों की गीति-सृष्टि ने इस विधा को प्रतिष्ठित किया।

        इस पुस्तक को आपके द्वारा 7 अध्यायों में विभाजित किया गया है। प्रथम अध्याय गीति काव्य परिभाषा एवं तत्व।(पृष्ठ सं.01-29) 

2-गीतिकाव्य का वर्गीकरण (पृष्ठ सं.30-60)

3-छायावाद से पूर्व गीति-काव्य का स्वरूप(पृष्ठ सं.61-90)

 4- छायावादी काव्य में गीति भावना के विकास के           कारण(पृष्ठ सं.91-99)

 5-छायावाद के गीतिकाव्य(पृष्ठ सं.100-159)

 6-उत्तर छायावादी गीतिकाव्य(पृष्ठ सं.160-171)

 7- गीतिकाव्य की भावी संभावनाएं(पृष्ठ सं.172-178 तक)

 उपर्युक्त सात अध्यायों के माध्यम से लेखिका ने छायावाद के सभी गीति-काव्यों की समीक्षा की है। यदि छायावाद को भलीभांति समझना है तो इस पुस्तक का अध्ययन करना उपयोगी होगा। क्योंकि प्रसाद के नाटकों के गीत व महादेवी वर्मा की रहस्य भावना से ओत-प्रोत गीतों के साथ ही पन्त का गीतों के द्वारा किये गए प्रकृति चित्रण की शानदार समीक्षा की गयी है। 



 कृति : छायावाद का गीति-काव्य

लेखिका : डॉ सरोजिनी अग्रवाल

प्रकाशक : देशभारती प्रकाशन, सी-595, गली नं. 7, नियर वजीराबाद रोड़, दिल्ली-110093, भारत

 प्रथम संस्करण : 2017 ई ,मूल्य : 500₹

समीक्षक : दुष्यंत 'बाबा', पुलिस लाइन, मुरादाबाद। मो.-9758000057


सोमवार, 23 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ----- भीख


हमारे देश का

हर दूसरा व्यक्ति

हाथ में कटोरा लिए खड़ा है

किसी का कटोरा छोटा

किसी का बड़ा है

किसी का कटोरा मिट्टी

किसी का लोहे का है

किसी के पास चांदी

किसी के पास सोने का है

सबका अपना अलग कटोरा है

किसी किसी के पास

पूरा बोरा है

कटोरो का आकार और प्रकार

तय करता है

भीख की मात्रा का आधार

कुछ लोग होते है अत्यधिक गरीब

उनको कटोरा तक,नहीं हो पाता नसीब

वो भीख मांगने के लिए

अपने दोनों हाथ फैलाते हैं

उनमें जितना आता है

उससे ही काम चलाते हैं

कुछ फुटपाथ पर 

बैठ कर भीख मांगते हैं

कुछ वातानुकूलित ऑफिस में

ऐंठ कर भीख मांगते हैं 

भीख से हमारे देश का

बहुत पुराना नाता है

आधुनिक युग में भीख को

अलग अलग नामों से जाना जाता है


शादी के समय

लड़के का परिवार

लड़की के परिवार से

जो कुछ भी मांगता है

इस भीख पर समाज

दहेज़ का लेबल टांगता है

सरकारी विभागों में

सब काम विधिवत किया जाता है

अलग अलग कार्यों के लिए

अलग अलग धन लिया जाता है

इस भीख को रिश्वत कहा जाता है

इन विभागों में

एक और तरह की भीख चलती है

ये बॉस को अपने अधीनस्थों से

पारिवारिक आयोजनों में

उपहार के रूप में मिलती है

कुछ प्रशासनिक अधिकारी

बेटियो को लकी मानते है

किसी वजनदार जगह

नियुक्ति मिलते ही

उनकी शादी कर डालते है

बेटी को आशीर्वाद के नाम पर

ठेकेदारों और दलालों से

इतनी भीख मिल जाती है

बाकी बेटियो की शादी

निपटाने के बाद भी बच जाती है

नेता भी चुनाव के समय 

पब्लिक से भीख मांगते रहते हैं

इस राजनीतिक भीख को,

वोट कहते हैं

आजकल इस लिस्ट में

एक नई भीख का नाम जुड़ा है

जिस पर फाइव स्टार भीख का

लेबल लगा है

इसमें बैंकों से

मोटा कर्ज लिया जाता है

और उसको

वापस नहीं किया जाता है

विकास की कहानी

इस भीख के बिना अधूरी है

लेकिन इसे पाने के लिए

बडे़ राजनेताओं से

घनिष्ठता जरूरी है


भीख के लेन देन ने

पूरी रामायण रच डाली है

उन सबको कभी ना कभी

भीख मांगनी पड़ती है

जिनकी निगाह में

किसी दूसरे की थाली है

भीख मांगना हमारा

जन्मसिद्ध अधिकार है

भीख मांगने की प्रवृत्ति

ईश्वर का हम पर

बहुत बड़ा उपकार है

मैं भी आपसे अलग नहीं हूं

मुझे आपसे,ना कोई सलाह

ना कोई सीख चाहिए

केवल प्रशंसा की

थोड़ी सी भीख चाहिए।


✍️ डॉ पुनीत कुमार

टी 2/505 आकाश रेजीडेंसी, मधुबनी पार्क के पीछे, मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका शर्मा मासूम की ग़ज़ल ----तुमको पाने की तमन्ना उम्र भर करते रहे कुछ ज़ियादह ही यकीं तक़दीर पर करते रहे

 


तुमको पाने की तमन्ना उम्र भर करते रहे

कुछ ज़ियादह ही यकीं तक़दीर पर करते रहे


चांद की "मासूम" नज़रें थीं दरो-दीवार पर

और तारे रक़्स शब भर बाम पर करते रहे


तुम उधर मशगूल अपनी बज़्म की रानाई में

गुफ्तगू तन्हाइयों से हम इधर करते रहे


हँस दिए खुद पर कभी, क़िस्मत पे अपनी रो दिए

ग़म ग़लत करने को अपना  कुछ मगर करते रहे


वो समझ पाए नहीं इन धड़कनों की बंदिशें

दिल की दुनिया हम यूं ही ज़ेरो ज़बर  करते रहे

✍️ मोनिका मासूम, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक की ग़ज़ल --------लगें हैं ढेर हरिक सिम्त नंगी लाशों के, लहू ग़रीब का सस्ता है क्या किया जाए

वो  मक्रो-झूठ  का  शैदा  है  क्या  किया जाए,

 हमारा  सत्य   से  रिश्ता  है  क्या  किया  जाए।


 यकीं   है    मंज़िले - मक़सूद   पाँव   छू    लेती,

 कड़े  सफ़र  से  वो  डरता  है  क्या किया जाए।


 जो गुलसिताँ  की हिफ़ाज़त की बात करता है,

  उसी  का आग  से  रिश्ता  है क्या किया जाए।


 यकीं  है   ईद  का  होली  से   मेल  हो   जाता,

दिलों  में  ख़ौफ़-सा बैठा  है क्या किया जाए।


सदैव  रहता  है  जो  शख़्स  मेरी  ऑंखों   में,

वो  मेरे  नाम  से जलता है  क्या किया जाए।


लगें   हैं  ढेर  हरिक   सिम्त   नंगी  लाशों  के,

लहू  ग़रीब  का  सस्ता  है  क्या  किया जाए ।

✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर 

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार अशोक मधुप की रचना ---- ------मुझको न दिल्ली भाती है ना दिल्ली दरबार सखे! मुझको बस अच्छा लगता है, अपना घर और द्वार सखे!


मुझको न दिल्ली भाती है

ना दिल्ली दरबार सखे!

मुझको बस अच्छा लगता है,

अपना घर और द्वार सखे!

ये नगरी पैसे वालों की,

नगरी यह धनवानों की,

मुझको भाते बस बिजनौरी,

बिजनौरी हैं यार सखे!

चाहे कितनी घूमूॅ दुनिया,

चाहे कितना सफर करूँ।

मन रमता बिजनौर में आकर,

ये बिजनौरी प्यार सखे !

कहीं जाकर न मन मिलता है,

 ना ही मिलता है अपनापन ।

 बिजनौर ही है दुनिया अपनी ,

ये ही बस स्वीकार सखे !

जंगल से ये शहर लगे हैं,

बियाबान सी कालोनी ।

सब अपने में मस्त यहाँ है,

इनका पैसा प्यार  सखे।

यहां सड़क पर भी पहरा है,

गली -गली  फैला कोरोना।

साॅस यहां लेना दुष्कर है,

 है विषभरी  बयार सखे !

यहां दौड़ ही दौड़ मची है,

यहां दौड़ ही जीवन है,

तुमको ही ये रहे मुबारक,

 बेमुरव्वत  संसार सखे।

मेरे शहर में प्यार मिलेगा,

और  मिलेंगे दिलवाले,

तुम  तो राजा हो ,भूलोगे,

भूलोगे ये प्यार सखे,

पूरा शहर लगे है अपना,

 यहीं हुए सब पूरे सपना ।

यही बसे हैं मीत हमारे,

यहीं बसे हैं यार सखे।


✍️ अशोक मधुप

25- अचारजान

कुंवर बाल गोविंद स्ट्रीट, बिजनौर 246701

मोबाइल फोन नम्बर - 9412215678, 9675899803


मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी ) आमोद कुमार अग्रवाल का गीत ------------ ये प्यार तुम्हेंं दे सकता हूँ


जीवन के चौराहों पर आ मिलने वाली,

हर साँस -साँस की राहों से,

मृत्यु की सीमाओं पर फैली हर डाली की

 फाँस -फाँस की आहों से,

विशवास दिला दो किंचित भी तो,

जीवन के मंजुल सपनो का

बलिदान तुम्हेंं दे सकता हूँ,

ये प्यार तुम्हेंं दे सकता हूँ।


आशाओं के दीपों पर आ घिरने वाली,

रजनी की निश्छल बाहों का,

शत -शत जन्मों तक भी न मिलने वाली

अव्यक्त अधूरी चाहों का,

व्यवधान हटा दो इतना सा भी तो,

चिड़ियों के चंचल गीतों का,

मृदु गान तुम्हेंं दे सकता हूँ,

ये प्यार तुम्हेंं दे सकता हूँ।


भँवरों के गुंजन से ही क्यों

खिल उठती मुरझाए फूलों की लाली,

प्रियतम के वन्दन चिन्तन से ही क्यों

प्रिया हो जाती मतवाली, 

यह रहस्य बता दो मुझको तुम तो,

सान्ध्य गगन पर फैली अरुणा का

परिधान तुम्हेंं दे सकता हूँ,

ये प्यार तुम्हेंं दे सकता हूँ।

✍️ आमोद कुमार अग्रवाल

सी -520, सरस्वती विहार
पीतमपुरा, दिल्ली -34
मोबाइल फोन नंबर  9868210248

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की रचना ----व्यथा


मैं वो अनसुलझी कहानी ।

मुझे कोई समझ न पाया ।

जीवन के हर मोड़ पे ,

मुझे कोई मिल न पाया।

       अकेली आई ,अकेली चल दी इन 

       राहों पर ।

        जिन राहों पर कोई और चल न  

        पाया।

मंजिल दूर-दूर होकर मुझसे चली ।

न जाने क्यों कहाँ कैसे मुझसे यूँ चली।

चाहा बहुत कुछ था ,जीवन में।

फिर भी कुछ मिल न पाया ।

          मैं वो अनसुलझी कहानी ।

           मुझे कोई समझ न पाया ।

           जीवन के हर मोड़ पे ।

           मुझे कोई मिल न पाया ।

थी ,एक आस सी मन में मेरे।

छू लू ये आसमान धरती तले ।

शायद वो आस मेरी आस 

बन के मन में रही ।

मेरी उस आस को कोई किनारा

मिल न पाया ।

मैं वो अनसुलझी कहानी ।

मुझे कोई समझ न पाया ।

जीवन के हर मोड़ पे ।

मुझे कोई मिल न पाया ।

 ✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया निवासी ) वैशाली रस्तोगी की कविता -----क्या खोया क्या पाया


 

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ कृष्ण कुमार नाज की ग़ज़ल ------बंद कमरे में जो जलता था बड़ी शान के साथ वो दिया सहन में जलते हुए घबराता है


जब कोई अक्स निगाहों में ठहर जाता है

दिल तमन्नाओं को कपड़े नये पहनाता है 


ज़िंदगी होती है जब मौत की आग़ोश में गुम 
पंछी उड़कर कहीं आकाश में खो जाता है 

खाइयाँ लेती हैं बरसात के पानी का मज़ा 
ये हुनर ख़ुश्क पहाड़ों को कहाँ आता है 

बंद कमरे में जो जलता था बड़ी शान के साथ 
वो दिया सहन में जलते हुए घबराता है

आसमाँ आ गया क़दमों में ज़मीं के, वो देख 
तेरी औक़ात ही क्या, किसलिए इतराता है 

कौन दे पाया उसे उसके सवालों के जवाब
इस क़दर बातों ही बातों में वो उलझाता है

✍️ डा. कृष्णकुमार 'नाज़', मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर ) निवासी साहित्यकार इंद्रदेव भारती का गीत ----गुनगुनी धूप अब मन को भाने लगी


ओ री मन-मोहिनी !

क्यों  सताने  लगी ।

देर से आ,क्यूं जल्दी

तू    जाने     लगी ।।

धूप   सी,  रूपसी !

ये   तेरे   रुप   की ।

गुनगुनी   धूप   अब

मन को भाने लगी ।।

काहे   जाने  लगी  ?

काहे   जाने  लगी  ??


बाहर    शीतल   मेरे ।

भीतर   दहकन   मेरे ।

शीत रुत भी तो अंग-

अंग    जलाये    मेरे ।।

जो भी  होता है,  हो ।

जग  कहे  तो,  कहो ।

मै    तेरा     हो    रहूँ,

तू   मेरी    हो    रहो ।।

बात  जाने  की   कर,

कर न  ये   दिल्लगी ।

गुननगुनी  धूप   अब

मन  को  भाने  लगी ।।

काहे   जाने   लगी ?

काहे   जाने   लगी ??


हाला  से   तू   बनी ।

तुझ से  हाला  बनी ।

सर से  पाँ  तक तुही

मधुशाला.......बनी ।।

मुझको  पीने तो  दे ।

रूह  बहकने तो  दे ।

रूप   के   कुंड   में,

गिर  संभलने तो  दे ।।

अभी  पी  भी  नहीं,

और तू  जाने  लगी ।

गुनगुनी   धूप  अब

मन को  भाने  लगी ।।

काहे   जाने   लगी ?

काहे   जाने   लगी ??


तुझको मै पा तो लूँ ।

होश  में  आ  तो लूँ ।

दिल संभल जाएगा,

तुझको मैं गा तो लूँ ।।

रात    जाने  भी  दे ।

सुबह  आने  भी  दे ।

लिक्खा तुझपे है जो,

गीत   गाने  वो   दे ।।

ये  पिपासा  अजब,

ग़ज़ब    की   जगी ।

गुनगुनी   धूप   अब

मन को  भाने लगी ।।

काहे  जाने  लगी ? 

काहे  जाने  लगी ?

✍️ इन्द्रदेव भारती

 ए / 3 - आदर्श  नगर, नजीबाबाद - 246 763

   ( बिजनौर )  उत्तर  प्रदेश

मोबाइल फोन नम्बर 99 27 40 11 11

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल (वर्तमान में मेरठ )निवासी साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी का गीत ----रथ स्वर्णिम रुक गया खींच ली किसने डोर


 रथ स्वर्णिम रुक गया

खींच ली किसने डोर

आह! हस्ताक्षर भूला

वो, थी अरुणिम भोर


हुई मुद्दत, देखा नहीं 

मन का हमने क्षितिज

यूँ लिखे गीत अनगिन

भावना के कटु रचित


कोई तो सागर गिना दो

ला दो खो गया जो सीप

अगस्त्य जल पी गये हैं

बुझ गये आशा के दीप


अपनी सब कह रहे हैं

सुनने वाला कोई नहीं

व्यर्थ संजय कह रहे हो

महाभारत तो है ही नहीं।


छोड़ दें जब आंखें हया

और न हो मन में व्यथा

द्रोपदी की लाज ख़ातिर

सुने कौन कौरव कथा।।


निष्प्राण प्राण रण में पड़े

और कायर निज वीर कहें

क्या कहूँ मैं गीता अर्जुन ! 

कहे कलयुग सब वेद पढ़े।। 


सभी यहाँ पर संत ज्ञानी

कहना सुनना सब बेमानी

निर्लिप्त निर्जल ओ ! धरा

सोख ले,आंखों का पानी।।


✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी

शनिवार, 21 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ मीना नक़वी की ग़ज़ल , जिसे 15 फरवरी 2020 को उनके नोएडा स्थित आवास पर रिकार्ड किया था साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम ने .....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार फक्कड़ मुरादाबादी की व्यंग्य कविता ----


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी का गीत --- थोड़ी रोशनी दिखा दे मुझको ....


 

शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी ----------आँसू और मुस्कान


एक बार आँसू और मुस्कान में बहस छिड़ गयी।मुस्कान ने कहा,"ओहहहहह तुम कितने बदसूरत हो!!तुम्हें कोई भी पसंद नहीं करता...।

मैं अगर किसी नवयौवना के होठों पर खिल जाऊँ तो योगी अपना योग छोड़ दें,

किसी बच्चे के अधरों पर खिल जाऊँ तो देवदूत फूल बरसा दें।किसी राजा के होठों पर बिखर जाऊँ तो प्रजा सुखी हो जाए,ईश्वर  यदि हँस दे तो सृष्टि में नवनिर्माण हो जाए।"

तब आँसू ने कहा,"निश्चय ही तुम रूपगर्विता हो,हर कोई तुम्हें पसंद करता है। तुम्हारी उपस्थिति से सुख का संचार होता है। परंतु मैं यदि किसी सुंदरी की आँखों में आ जाऊँ तो राजपाट हिला दूँ। किसी अबोध बालक की आँखों से बूँद बनके गिर पड़ूँ  तो बांझ स्त्रियों के आँचल से दूध की धार बहा दूँ। देश के राजा की आँखों में आ जाऊँ तो प्रजा अपना सर्वस्व  जीवन न्योछावर करने को तत्पर हो जाए और यदि  ईश्वर की आँख से निकलूँ तो प्रलय आ जाये।"

यह बहस चल ही रही थी कि एक तपस्वी वहाँ से निकले।उन दोनो की बातें सुनकर उन्होंने कहा,"शांत हो जाओ...।तुम दोनो ही ईश्वर प्रदत्त, मनुष्य के हृदय में उत्पन्न होने वाली त्वरित भावनाएँ हों।दोनो में से यदि एक न हो तो मानव,मानवता को प्राप्त नहीं कर सकता। "

यह सुनकर मुस्कान ने इठलाते हुए कहा,"जो कुछ भी आपने कहा उचित है..परंतु...?परंतु ..सुंदर तो फिर भी मैं ही हूँ न...?हर कोई मेरा ही साथ पाना चाहता है।आँसू को कोई भी नहीं पाना चाहता।"

इस पर तपस्वी ने कहा",निःसंदेह तुम अति सुंदर हो...!! तुम्हारा कथन भी उचित ही जान पड़ता है।...परंतु जो मनुष्य के सुख -दुख में बराबर साथ निभाये,वस्तुतः वही श्रेष्ठ और सुंदर होता है।"

"अर्थात...?"मुस्कान ने तनिक आश्चर्यचकित होते हुए पूछा

तपस्वी ने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा,"आँसू सुख और दुख दोनो में साथ निभाने बिना बुलाये ही चले आते हैं।और तुम....?तुम  तो ...केवल सुख की सहभागिनी हो ।मित्र की सुंदरता,धन और पद चाहे कितना भी श्रेष्ठ हो यदि वह मनुष्य के दुख में काम नहीं आ सकता तब वह व्यर्थ है।मित्र यदि निर्धन,कुरूप और पदहीन होकर भी अपने मित्र का दुख में साथ निभाये तो वही श्रेष्ठतम होगा।मित्र को सुंदर न सही पर दुख में साथ निभाने वाला अवश्य ही  होना चाहिए।आँसू की तरह....!!!!"

यह सुनकर मुस्कान निरूत्तर हो गयी।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के सिरसी (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी ------------अपना मौहल्ला


हर हर महादेव, जय बजरंग बली, नारये तकबीर, अल्लाह हो अकबर.चारो ओर से  अचानक रात में आई आवाज़ो से  बुजुर्ग रागिब मियां और उनकी बीवी  जमीला बानो घबराकर उठ बैठे मकान के नीचे के पोर्शन में रह रहे मकान मालिक राजेन्द्र बाबू ने उन्हें बताया कि -'शहर में दंगा हो गया है सब एक दूसरे के खून के प्यासे बने हुए है इंसानियत नाम की कोई चीज़ नही रह गई है लेकिन आप लोग बिल्कुल परेशान न हो हमारा घर बिल्कुल सेफ है हमारे पड़ोस में कोई शरारती नही है सभी अच्छे लोग है ।' राजेन्द्र बाबू अपने किरायेदार रागिब मियां और उनकी बीवी को तसल्ली देते हुए बोले -'हमारा मौहल्ला बहुत अच्छा है यहां सभी पढ़े लिखे समझदार लोग रहते है .हर चुनाव से पहले शहर में कुछ न कुछ होता है चाहे धर्म को लेकर हो या जाति को लेकर लेकिन उनके मौहल्ले में शांति रहती है।' 

'लेकिन मुझे तो बहुत डर लग रहा है ।, रागिब मियां की अहलिया   डर से कांपते हुए बोली रागिब मियां ने भी अहलिया जमीला बानो को तसल्ली देते हुए कहा- 'डर की क्या बात है राजेन्द्र बाबू है तो'

रागिब मियां और जमीला बानो कमरे की बालकनी से अंदर कमरे में आ गये लेकिन थोड़ी ही देर में उनके मोबाइल पर रिश्तेदारों के फोन आने लगे हरेक से फोन पर बात करने के बाद दोनों और अधिक डर जाते सभी रिश्तेदार उन्हें सलाह दे रहे थे की इस मौहल्ले से निकल कर मुसलमानों के मौहल्ले में पहुँच जायें  कुछेक ने उन्हें मौहल्ले सुझाते हुए कई नाम भी बताए कि उनके घर चले जायें उनका मकान खाली भी है दोनों ने डरते - डरते किसी तरह रात काटी सुबह हुई तो उन्होंने राजेन्द्र बाबू से मुस्लिम मौहल्ले में जाने की इच्छा जताई राजेन्द्र बाबू ने उन्हें बहुत समझाया कि उन्हें यहां कोई खतरा नही है वह उनकी पूरी रक्षा करेंगे उनके जीते जी कोई उनकी तरफ आंख उठाकर भी नही देख सकता लेकिन जमीला बानो की ज़िद के आगे रागिब मियां भी मजबूर हो गये राजेन्द्र बाबू ने अपने रसूख का इस्तेमाल करते हुए बोझल मन से एक सिपाही के द्वारा दोनों को उनके बताये हुए पते पर मुस्लिम मोहल्ले में पहुँचा दिया।   घर अकेला था मकान मालिक बराबर के मकान में रहते थे और उनके बच्चे अरब में नौकरी कर रहे थे मुस्लिम मोहल्ले में पहुचकर जमीला बानो ने चैन की सांस ली बोली- 'अब अपने मौहल्ले में आ गये।' लेकिन रागिब मियां को कुछ अच्छा नही लग रहा था। रात हुई तो नारो की आवाज़ें यहां भी सुनाई दीं जिससे  दोनों का चैन सुकून गायब हो गया  सुबह को शहर के हालात और खराब हो गये प्रशासन को हालात पर काबू पाने के लिये अनिश्चित कालीन कर्फ्यू की घोषणा करनी पड़ी रागिब मियां और जमीला बानो के पास दवाईयां खत्म हो गईं उनका राशन लाने वाला भी यहां कोई नही था क्योंकि मौहल्ले में किसी को नही पता था कि इस घर मे कोई रह रहा है यह घर कई महीने से खाली पड़ा था इस मकान के मालिक का मिजाज़ भी अलग तरह का था वो किरायेदार से किराया वसूलने के अलावा कोई मतलब नही रखते थे उनका सोचना था कि किरायेदारों से ज्यादा घुलने मिलने से किराया वसूली में देर होती है लोग अपनी मजबूरियां बताकर कई कई महीने किराया रोक लेते हैं जिसकी वजह से वह किरायेदारों से कोई वास्ता नही रखते थे राशन खत्म होने और दवाओं के अभाव में रागिब मियां और जमीला बानो की हालत बिगड़ गई दो एक रिश्तेदारों को उन्होंने फोन किया तो उन्होनें कर्फ्यू लगे होने की बात कहते हुए मजबूरी ज़ाहिर कर दी  जमीला बानो ने भूख और दवा न मिलने से पलंग पकड़ लिया रागिब मियां से भी भूख के कारण चला फिरा नही जाता था लरज़ते हाथों से उन्होंने राजेन्द्र बाबू का नम्बर लगाया और  कांपती लरज़ती आवाज से रोते हुए बोले -'रा जे न्द्र बा बू ह में म ऑफ क र ना ह म ने य हा आ कर ग ल ती की हमारे पास यहां  न दवाएं हैं न रा श न हम कई दिन से भूखे है.'इतना कहते ही मोबाइल उनके हाथ से छूटकर ज़मीन पर गिर पड़ा और मोबाइल के साथ दो दिन से भूखे रागिब मियां भी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े रागिब मियां का फोन सुनते ही राजेन्द्र बाबू बेचैन हो गये उन्होंने सारी बात पत्नी सरिता को बताई तो वह भी दुखी हो गई राजेन्द्र बाबू  रागिब मिया के पास जाने की बात कहने लगे तो पत्नी सरिता ने  कहा -'कर्फ्यू के बीच वह उन्हें मुस्लिम मौहल्ले में नही जाने देगी।'लेकिन राजेन्द्र बाबू रागिब मियां के फोन के बाद से बेचैन थे आखिर अमेरिका में रह रहे रागिब मियां के बेटे नावेद ने बड़े भरोसे के साथ यह कहते हुए अपने माँ बाप को राजेन्द्र बाबू के मकान में छोड़ा था कि अंकल  आपसे अच्छा मकान मालिक मेरे माँ बाप को कोई दूसरा नही मिल सकता मैं दो एक साल में ही आकर अपने माँ बाप को साथ ले जाऊंगा नावेद और राजेंद्र बाबू का बेटा नवीन साथ साथ पढ़ते थे दोनों का एक दूसरे के घर आना जाना था अब दोनों साथ ही अमेरिका में जॉब कर रहे थे राजेन्द्र बाबू परेशान से कमरे में इधर उधर टहल रहे थे उनकी कुछ समझ मे नही आ रहा था पत्नी उन्हें जाने नही दे रही थी और रागिब मियां का फोन सुनकर वह बेहद परेशान थे आखिरकार उन्होंने फिर अपने रसूख का इस्तेमाल किया और पुलिस की गाड़ी से रागिब मियां के घर जा पहुचे देखा तो उनकी आंखों से आंसू बह निकले रागिब मियां जमीन पर और जमीला बानो पलंग पर पड़ी थी साथ आये थानेदार ने दोनों की नब्ज देखी तो सो सेड कहते हुए अफसोस ज़ाहिर किया अगले दिन अख़बारो के फ्रंट पेज पर बुजुर्ग दम्पत्ति के भूख से मरने की खबर सुर्खियां बनी हुई थी और राजेंद्र बाबू माथे पर हाथ रखे बुदबुदा रहे थे काश रागिब मियां ने जमीला बानो की बात न मानी होती।

✍️ कमाल ज़ैदी 'वफ़ा', सिरसी (सम्भल)

मोबाइल फोन 9456031926

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा -- -----आदमी

   


 " मैंने पहले ही कहा था कि कुत्ता न पालो।आखिर काट ही लिया इसने! अब कराती रहो अपना इलाज ।" पति ने झुंझलाकर पत्नी से कहा।

      पत्नी ने उत्तर दिया,"तो क्या हुआ ! आदमी तो हर पल काटता रहता है, कुत्ते के काटे का तो इलाज हो सकता है।परंतु आदमी के काटे का कोई इलाज़ ही नहीं है। यह आदमी से तो अच्छा है।भले ही कुत्ता है ।

✍️ अशोक विश्नोई,मुरादाबाद

मो० 9411809222

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की दो लघुकथाएं ----"धार्मिकता " और "नई सोच''


1.  धार्मिकता

कैसे हिन्दू हो,नवरात्र के दिनों में भी शराब पी रहे हो , राजेश ने अपने मित्र समीर को टोका। फिर अपनी धार्मिकता पर घमंड करते हुए कहा -मेरा तो पक्का उसूल है, मैं इन दिनों शराब को हाथ तक नहीं लगाता।नवरात्र शुरू होने से पहले ही,पूरे नौ दिन का कोटा पूरा कर लेता हूं।


2  नई सोच 

शादी के 6 साल बाद,पहली बार नवरात्रि पर रुचिका सुसराल में थी। नवमी पर कन्याओं को हलवा पूरी खिलाने का रिवाज़ था। उसी की तैयारी चल रही थी। रुचिका को कुछ अटपटा सा लग रहा था। हिम्मत जुटा कर उसने अपनी सास से कहा - क्षमा करें मम्मी जी,हम अपने सम्पन्न परिचितों की बेटियों को घर बुला कर खाना खिला देते हैं।क्या आपको ये एक औपचारिकता मात्र नहीं लगता।कायदे में हमें गरीब बच्चियों की सहायता करनी चाहिए। मैं तो कई साल से अनाथ लड़कियों को नए कपड़े दिलवा देती हूं।मुझे देख कर धीरे धीरे पूरी सोसायटी में सबने ऐसा करना शुरू कर दिया है।क्या हम यहां ऐसा नहीं  कर सकते।

 तू सही कहती है,नई सोच से ही हम समाज को बदल सकते है। सास ने रुचिका को गले लगाते हुए कहा।


✍️ डॉ पुनीत कुमार

टी 2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रीति चौधरी की लघुकथा ------सम्मान पत्र


रूचि बार बार घड़ी देख रही थी। शाम के 7 बज गये थे।वो सड़क पर लगभग दौड़ ही रही थी ......आज उसे
 जिलाधिकारी द्वारा  सम्मान पत्र दिया गया था। कार्यक्रम बहुत देर तक चला। फोन की बैटरी भी खत्म हो गयी थी।
उसका दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
उसने बेल बजाई तो बेटी अवनी ने दरवाज़ा खोला।
जल्दी से वह अन्दर आयी। सम्मान पत्र मेज पर रख वह जल्दी से मुहँ हाथ धोकर  किचन में चली गयी। पति राजेश अन्दर टीवी में मैच देखने में व्यस्त थे। वह वही से चिल्लाए   .........  .ये समय है घर आने का। कोई कहने सुनने वाला नही है। बच्चे भूखे है ,इसकी कोई फिक्र नही .......
अवनी ने मेज पर रखे सम्मान पत्र को उठाया ......माँ आपको ये मिला है। उसने पढ़ना शुरू किया .. 
श्रीमती रूचि आपके द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिये किये गये प्रयास सराहनीय है। आपको यह सम्मान पत्र देते हुए हम आपके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते है ।
रूचि अन्दर कुकर में जल्दी सब्जी बनाने के लिये तेज तेज चमचा चला रही थी
✍️ प्रीति चौधरी
 गजरौला ,अमरोहा 

गुरुवार, 19 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक आहूजा की कहानी -------सलाह न मानने की सज़ा


गर्मी के दिन चल रहे थे , डॉक्टर तिलक अपने अस्पताल पर आज जल्दी आ गए , क्योंकि आज नगर का साप्ताहिक बाजार का दिन था ।  डॉक्टर साहब का अस्पताल बाजार के बिल्कुल मध्य में स्थित था, इस कारण वहां काफी लोग ऐसे ही मिलने भी आ जाया करते थे ।सुबह 10:00 बजे डॉक्टर साहब के मित्र मांगीलाल अपने छोटे भाई को बैलगाड़ी में लेकर आए और डॉक्टर साहब से बोले "डॉक्टर साहब जल्दी से मेरे भाई को देखो इसके सीने में बहुत तेज  दर्द हो रहा है और इसे पसीना भी आ रहा है" डॉक्टर साहब ने अपने बाकी के मरीजों को छोड़कर इमरजेंसी मरीज को जल्दी से भाग कर देखा डॉक्टर साहब को समझते देर न लगी कि मांगीलाल के भाई को हार्ट अटैक आया है । मांगीलाल  डॉक्टर साहब का परम मित्र था डॉक्टर साहब ने उसे समझाया यह बहुत गंभीर बीमारी है और इसमें रिस्क भी बहुत ज्यादा होता है, यदि आप कहें तो मैं इसका इलाज कर सकता हूं ।मांगीलाल का डॉक्टर साहब में परम विश्वास था अतः मांगीलाल ने डॉक्टर साहब को इलाज की स्वीकृति दे दी ।

                       डॉक्टर साहब ने मरीज का इलाज शुरू कर दिया व मरीज के घर वालों को सख्त हिदायत दी कि दो-तीन घंटे तक सीधे होकर ही लेटना है और यह बिल्कुल भी ना हिले ,असल में गांव देहात की यह परंपरा रही है कि जब भी कोई गाड़ी ठेला आदि गांव से शहर की ओर आता है तो वह घरेलू सामान लाने के लिए पूरी लिस्ट बना लेते हैं ताकि एक ही बार में सब सामान आ जाए क्योंकि बार-बार गांव से शहर आना संभव नहीं हो पाता है ।यही सोच के साथ मांगीलाल अपने भाई को डॉक्टर साहब के अस्पताल पर छोड़ बाजार सामान लेने चला गया । मांगीलाल अपने परिवार के सदस्यों को मरीज के साथ मिजाज पुर्सी के लिए छोड़ गया ,डॉक्टर साहब भी जब मांगीलाल के भाई को थोड़ा आराम आया तो अपने मरीज में व्यस्त हो गए । 

                       दोपहर के 1:00 बजे होंगे तभी मंदिर के पुजारी सुमति बाबा भागे भागे डॉक्टर साहब के पास आए और बोले "डॉक्टर साहब जल्दी चलिए मंदिर में एक भक्त की अचानक बहुत तबियत खराब हो गई है

और वह चक्कर खाकर गिर गया है" डॉक्टर साहब ने तुरंत अपनी दवा की पेटी उठाई और सुमति बाबा के साथ मंदिर की ओर चल दिए रास्ते में डॉक्टर साहब ने समिति बाबा से पूछा बाबा मरीज को क्या परेशानी है, सुमति ने जवाब दिया डॉक्टर साहब यह व्यक्ति अभी-अभी स्कूटर से मंदिर आया था और अचानक इसके सीने में दर्द होने लगा और इसे पसीना भी आया और एकदम से यह चक्कर खाकर गिर गया । डॉक्टर साहब ने मंदिर पहुंचकर मरीज को देखा तो उन्हें बड़ी हैरानी हुई क्योंकि यह भी हार्टअटैक का ही मामला था डॉक्टर साहब ने इलाज शुरू किया कुछ देर में मरीज को होश आ गया , उसने बताया "मेरा नाम मिस्टर कपूर है और मैं शुगर मिल में काम करता हूं, हार्ट की बीमारी से पीड़ित हूं" यह सुन डाक्टर साहब ने मिस्टर कपूर को कहा "अगर आपका हार्ट का इलाज चल रहा है तो आपको स्कूटर चला कर ऐसे नहीं आना चाहिए था, इससे हार्ट पर जोर पड़ता है" मिस्टर कपूर ने अपनी गलती को माना और जल्द ही ठीक करने की डॉक्टर साहब से विनती की ,डॉक्टर साहब ने कहा यदि आपको ठीक होना है तो दो-तीन घंटे तक शवासन में लेटे रहे बिल्कुल भी नहीं हिले । मिस्टर कपूर ने डॉक्टर साहब की सलाह पर सीधे होकर मंदिर में ही एक चारपाई पर लेट गए । मिस्टर कपूर को थोड़ा आराम मिलने पर डॉक्टर साहब दो-तीन घंटे बाद दोबारा देखने को कहकर वापस अपने अस्पताल आ गए । 

                      जैसे ही डॉक्टर साहब अपने अस्पताल पर आए तो उन्होंने देखा कि मांगीलाल का भाई जिसे वह अपने अस्पताल पर आराम करता छोड़ गए थे ,वह अस्पताल से नदारद है उन्होंने तुरंत कंपाउंडर को बुलाया और पूछा "मैं उस मरीज को आराम करने को कह गया था फिर वह कहां चला गया" कंपाउंडर ने डरते डरते कहा, वह मरीज हमारी नजर से बचकर कहीं चला गया है ।डॉक्टर साहब अपने मरीजों में व्यस्त हो गए तभी कुछ देर पश्चात उन्होंने देखा कि मांगीलाल का भाई बाजार से थैला उठाए आ रहा है । उसने अस्पताल में थैला रखा और अस्पताल के सामने सड़क पार कर पेशाब करने बैठ गया यह देख डॉक्टर साहब बहुत नाराज़ हुए और उन्होंने तुरंत मांगीलाल को बुलवाया और उससे कहा "मैंने जब मना किया था तो आपका भाई चारपाई से उठा कैसे" मांगीलाल चुप रहा इतनी देर में मांगीलाल का भाई भी आ गया, डॉक्टर साहब ने उससे पूछा "आप कहां उठकर चले गए थे जब आपकी इतनी तबीयत खराब थी" तो मांगीलाल के भाई ने उत्तर दिया "अब मैं बिल्कुल ठीक हूं मैं जरा बाजार से गुड़ लेने चला गया था" इतना कहना ही था कि मांगीलाल के भाई के सीने में फिर जोर से दर्द होने लगा, उसे पसीना भी आने लगा ,यह देख डॉक्टर साहब ने उन्हें फौरन अपने मरीज को लिटाने को कहा और बताया "यह बहुत तीव्र हृदय आघात है ,अब मैं भी कुछ नहीं कर सकता" कुछ ही पलों में मरीज के प्राण पखेरू उड़ गए । पूरे बाजार में शोर मच गया कि डॉक्टर साहब की दुकान पर एक मरीज की मृत्यु हो गई है। मांगीलाल समझ चुका था कि उसके भाई की गलती है और उसे बगैर सलाह के ऐसे बाजार में नहीं जाना चाहिए था । 

                           अब डॉक्टर साहब को मंदिर वाले मरीज मिस्टर कपूर का ख्याल आया , क्योंकि उन्हें भी हृदयाघात हुआ था और डॉक्टर साहब भागे भागे मंदिर पहुंचे तो देखा मिस्टर कपूर चारपाई पर विश्राम कर रहे हैं ।यह देख डॉक्टर साहब की जान में जान आई और मिस्टर कपूर से उनका हाल पूछा मिस्टर कपूर ने बताया "मैं बिल्कुल ठीक हूं और आपकी सलाह के अनुसार बिल्कुल सीधे होकर लेटा हुआ हूँ, अब जब आप कहेंगे तभी मैं घर की ओर प्रस्थान करूंगा" मिस्टर कपूर की स्थिति देख डॉक्टर साहब ने राहत की सांस ली और पुजारी जी से कहा "बाबा आप स्वयं रिक्शे पर बिठाकर मिस्टर कपूर को उनके घर छोड़कर आए" और इस प्रकार मिस्टर कपूर ने डॉक्टर साहब की सलाह पर चलकर अपने जीवन को बचा लिया और मांगीलाल के भाई ने डॉक्टर साहब की सलाह पर कोई ध्यान नहीं दिया व डॉक्टर साहब की "सलाह ना मानने की सजा" उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी ।

आज के परिवेश में पूरे विश्व में कोरोना का प्रकोप है इस महामारी से रोज लाखों की तादाद में लोग मर रहे हैं सरकार , डब्ल्यूएचओ , स्वास्थ्य विभाग सभी जनता को समझाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं ।परंतु लोग सड़कों पर भीड़ लगाकर घूम रहे हैं और स्वास्थ्य कर्मियों की सलाह को दरकिनार कर नियमों की अवहेलना कर रहे हैं, मैं तो बस इतना ही कहूंगा कहीं डॉक्टर की सलाह ना मानना जनता को भारी न पड़ जाए ।

✍️ विवेक आहूजा, बिलारी, जिला मुरादाबाद

Vivekahuja288@gmail.com 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा -----सांड दादा


महानगर मेंं एक व्यापारी की मृत्यु के बाद जनता के शोर मचाने पर नगरनिगम ने सांड पकड़ने का अभियान शुरू किया।भूरा सांड  जोअपने क्षेत्र मे पेड़ के नीचे पड़ा पड़ा आराम करता था आज अपनी जान बचाने के लिए भागा भागा घूम रहा था।हाफँते हुए एक गली मे घुसा जहाँ गाडी़ नहीं जा सकती थी।देखा एक दीवार के पीछे कालु दादा छिपे थे लम्बी लम्बी साँसें ले रहे । भूरा बोला ," दादा आप भी ?"कालू बोला भाई सुबह से जान पर बन आयी है।भागते भागते थक गया हूं।भाई एक बात बताओ कि हमेंं सजा क्यों दी जा रही है?हमने क्या किया । उस गुस्सैल हीरा के कारण हम सबकी जान पर बन आयी है।"

साँस जब काबू मेंं आयी तब भूरा बोला,"दादा हमेंं भी विरोध करना चाहिए।एक की सजा सबको क्यों मिले?ये इंसान कितने विचित्र है खुद रोज एक दूसरे की जान लेते है और आजाद घूमते है ।हमारे एक साथी ने चोट खाने के बाद हमला किया।हमारी पूरी बिरादरी के पीछे पड़ गये।सुबह से कुछ खाने को भी नही मिला भाग भाग कर दम निकल रहा है।बस बहुत हुआ अब नही डरेगे"।भूरे सांड की बात पूरी भी नही हुई थी कि सरकारी गाड़ी का होर्न सुनाई दिया और भूरा और कालू बात छोड़ जान बचाने को विपरीत दिशा मेंं दौड़ पड़े ।

✍️ डा श्वेता पूठिया, मुरादाबाद


मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ----वह एक रात

 


.......... वाह क्या शानदार समारोह है?... शादी का !..... क्या लाजवाब इंतजाम.....? खाने में कोई ऐसी चीज नहीं छोड़ी गई थी जो ना हो इतना भव्य बड़ा पंडाल ....बड़े टेंट की शोभा देखते ही बनती थी ..

....."" बहुत ही आकर्षक "क्या अभी कुछ और भी बाकी है ?....

" क्यों नहीं ?

 वैसे काफी रात हो गई है ..! 

"परन्तु साहब......स्टेज सज गया.है यहां जौनपुर में आज भी शादी में नाच का प्रोग्राम न हो  तो उसे शान के खिलाफ माना जाता है".!

.. मुजरा शुरू हो गया... क्या सुंदर नृत्य था स्वर्ग लोक की अप्सराएं भी शर्मा जाएं....

बिल्कुल राजा महाराजाओ जैसा माहौल....

 अचानक नाचने वाली का चेहरा देखकर विनोद अवाक रह गया....."मिली! हां बिल्कुल हू वो हूं मिली ही तो है..... !"वही कद वही चाल वही.... ऐसी ही तो खूबसूरत थी...वह... बिल्कुल उसी की कॉपी  ....."यार मुझे मिलना है उससे....!"बस एक बार बात करा दो मिनट भर को"....!"मिलना चाहता हूं उससे...!" 

"परंतु यहां इतनी भीड़ में ! ....नहीं.... नहीं....  नहीं मिल सकते हो आप साहब!

"मुजरा चल रहा है। महफ़िल शबाब पर है"! 

ड्राइवर तारा सिंह ने कहा !

       "  मैं पार्टी से बात करके आता हूं" बिक्रम सिंह ही मुलाकात करा सकते हैं"!

       "गाड़ी पर ले आना जब दूसरी नाचनेवाली शुरू होगी तब ही ये आ सकेगी....!" 

        ..... ऐसा ही हुआ थोड़ी देर बाद दूसरी नाचने वाली आ गई तो  जिसको विनोद मिली समझ रहा था   उसको तारा सिंह ले आया।

      "विनोद ने पूछा"क्या नाम है तुम्हारा ?"

"प्रिया"! उत्तर मिला....

"तुम कहां से हो?"

" अरे बाबूजी कहां से क्या? हम लोगों का एक ठिकाना है?"कभी यहां कभी वहां"!

...... "फिर तुम यहां जौनपुर में कैसे?" 

"जौनपुर अंड्डा है नाचने वालियों का! साहब!

तभी...प्रिया की मांग का शौर मच गया और वह वापस चली गई। 

......विनोद ने प्रिया का नंबर ले लिया था

 प्रिया वही नाचने वाली 

ड्राइवर गाड़ी वापस ले चला परंतु विनोद के मन में चैन नहीं था...... 

तारा सिंह सोचता जा रहा था बेटी की उम्र की होगी प्रिया!! साहब को भी क्या पसंद आई !

*******         ******        ********       *****

    . विनोद उच्च प्रशासनिक पद पर आसीन था....... फोन करके और मोटी रकम देकर प्रिया को विनोद ने लखनऊ अपने बंगले पर बुलाया ।

 पूछा,"तुम अल्मोड़ा की रहने वाली हो"?

. "नहीं..". वहां मेरी मां थी "!

"मेरा जन्म समय से 3 महीने पहले ही हो गया था जिसके कारण मेरी मां को बापू ने झूठा इल्जाम लगा  कर घर से निकाल दिया .... कहकर

................"न जाने किसका पाप लेकर चली आई मेरे घर में मुझ से    शादी करके"!

अब वहां हमारा कुछ भी नहीं है ।

कुछ भी नहीं है हमारे पास" !

मां की बीमारी में सब खत्म हो गया!"

तुम्हारा मन करता है? पहाड़ में रहने का?

 मेरा मन बहुत करता है  वहां रहने के लिए... परंतु....  

"छूट गया सब कुछ मुझसे "!

"एक दोस्त भी था मेरा, जीवन, बचपन में ही,,

"अब किसी को पता भी नहीं है मैं कहां पर हूं"!

" मैं तुम्हें अल्मोड़ा बुलाऊं तो तुम आ सकती हो "जरूर आ सकती हूं पेमेंट करना होगा!"

"बिल्कुल पूरा!"

********

 पहाड़ी रास्ते मेंअचानक विनोद का एक्सीडेंट  हो गया..... अल्मोड़ा अस्पताल में उसको भर्ती कराया गया उसी के कहने पर फोन करके प्रिया को फिर मोटी रकम देकर बुलाया गया....! उसकी  हालत में अब थोड़ा सा सुधार था परंतु बचने की कोई उम्मीद नहीं थीं....... बिस्तर पर पड़े पड़े उसकी आंखों में अतीत की स्मृतियां चलचित्र की भांति ताजा हो रही थीं......

....वहअपने चार दोस्तों के साथ अपने मित्र मोहन की शादी में अल्मोड़ा गया था ।...

... बहुत सुंदर शानदार प्रोग्राम रहा जमकर खूब खाया पिया खूब हुड़दंग मचाया.... एक बड़े से शानदार होटल में बरात ठहरने का इंतजाम किया गया था उसे और उसके तीन दोस्तों को एक कमरा दे दिया गया था।......

.......परंतु अचानक.... इतना. बारिश आंधी तूफान.. आया कि सारे होटल की बत्ती गुल हो गई होटल ही क्या दूर दूर तक अंधेरा छा गया जिसको जहां आश्रय मिला उस जगह घुस गया।

 विनोद के दोस्त दूल्हे के साथ लड़की वालों के घर चले गए थे 

लड़की वालों का घर दूर था।

लड़की के पिता का विशेष आग्रह था कि लड़की के फेरे उसी के आंगन में पड़ेंगे इस भाग दौड़ में विनोद अकेला होटल में रह गया ....जैसे तैसे अपने कमरे में पहुंचा ...तभी अचानक कमरे का दरवाजा फिर  खुला उसे लगा उसके दोस्त वापस लौट आए हैं!

"यहां कोई है "!

अचानक मीठी सी आवाज आई ।

"हां आ जाओ जब तक तूफान है बेझिझक अंदर आ जाओ!"

विनोद ने आगंतुक को अंदर बुला लिया।

 ढूंढ कर मोमबत्ती जलाई मोमबत्ती के प्रकाश में जो दिखाई दिया विनोद उसे देखकर आश्चर्यचकित था बहुत ही सुंदर परी जैसी लड़की 17- 18 साल की कमरे में आ चुकी थी उसने दरवाजा बंद कर दिया था !

        तूफान रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था कमरे में एक डबल बेड था उसी पर विनोद ने उसे बुला लिया और फिर...... अनायास ही मिले दो हंसों के जोड़े की तरह ही वे एक दूसरे में कब खो गए पता ही नहीं चला!

      ‌‌ विनोद को खुमारी में कुछ भी नहीं सूझा ..... बस इतना ही पता चल सका उसका नाम मिली था

उसका घर कर्नाटक खोला अल्मोड़ा में था..... सुबह 5:00 बजे विनोद की आंख खुली ,मिली, कब की जा चुकी थी...

.........और उसका प्रतिरूप उसने प्रिया के रूप में इतने लंबे अरसे पाठक देखा....उसके जीवन की वह रात फिर उसे कभी नहीं भूली ,मिली, कि उसने बहुत तलाश की पर फिर दोबारा नहीं मिली!......

...... अल्मोड़ा में उसने एक शानदार बंगला बनवाया था ,मिली, की याद में जब कभी जिंदगी में वह उदास होता उसी बंगले में चला आता था बंगले से लगे हुए ही दो बगीचे भी थे जो फूलों और फलों से गुलजार रहते थे।

 *****

....... विनोद के पास वक्त बहुत कम था और प्रिया थी कि पहुंच ही नहीं पा रही थी....

अस्पताल में आईसीयू में जैसे ही प्रिया के कदम पड़े विनोद ने उसे देखा..... मुंह से निकला बेटी! प्रिया!!और उसने अंतिम सांस ली.....!

        .... चलते-चलते विनोद एक बड़ा सा लिफाफा छोड़ गया जिस पर लिखा था" मेरी प्यारी बिटिया के लिए"....

     लिफाफे में प्रिया के नाम बंगले, बगीचों के स्वामित्व के कागजात , नकदी और जेवरात थे।  ।

✍️ अशोक विद्रोही, 412 प्रकाश नगर, मुरादाबाद 

 मोबाइल फोन  82 188 25 541






...

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की लघुकथा -------क्या ये घर मेरा नही ?


अनिता के विवाह को आठ वर्ष बीत चुके थे। इन आठ वर्षों के दरमियाँ वह दो बच्चों की माँ बन चुकी थी।पति शैलेश से उसकी कोई शिकायत न थी।

कुल मिला कर उसका हंसता-खेलता परिवार था।अगर किसी को उससे शिकायत थी, तो वह थीं उसकी सासू माँ। न जाने वह अनिता से क्या चाहती? कभी उसके किसी काम से संतुष्ट नही रहतीं।चाहे वह उनके लिये कितना कुछ करती।शुरू में तो अनिता जरा-जरा सी उनकी बात दिल पर ले लेती।करती भी क्या, आखिर उसके अपने पीहर में तो ये कभी नही देखा था उसने। उसके भी माँ ,ताई, चाची, भाभी सभी साथ रहते ,संयुक्त परिवार था उसका। कब हंस-बोल कर समय निकल जाता पता ही नही चलता।यहाँ आ कर उसे शुरू में बड़ा अखरा।एक तो इकलौती बहु थी वह उस घर की।उस पर सासू माँ की उससे यही अपेक्षा रहती कि वह सबकी अपेक्षाओं पर खरी उतरे।दिन बीतते गये।अनिता के बच्चे भी बड़े हो गये थे।लेकिन अनिता और उसकी सास आपस में कभी सामंजस्य नही बना पाये।आखिरकार अनिता ने शैलेश से रसोई अलग करने की बात कह ही दी।उसका कहना भी सही था, कि बच्चे बड़े हो रहे हैं, इन रोज-रोज की लड़ाई-झगड़ों का उन पर क्या असर पड़ेगा।शैलेश ने अपने पिता से इस बारे में बात की।वह अपनी बहू को अच्छी तरह समझते थे।आखिरकार वह इस बात के लिये राजी हो गये।अनिता अलग हो चुकी थी ।फिर भी कभी उसके मन में ये सवाल कौंध जाता, कि जिस घर के लिये मैने इतना कुछ किया, क्या वो घर मेरा नही था, क्या वो मेरे अपने नही थे।   

 ✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार स्वदेश सिंह की लघुकथा ----नयी शुरुआत

 


शादी के कुछ दिनों बाद रागिनी अपने पति के साथ अपनी नौकरी वाले शहर पहुंच गई। रागिनी को यह शादी बिल्कुल भी पसंद नहीं थी ....परंतु मम्मी- पापा की वजह से मजबूरी बस करनी पड़ी।.... क्योंकि रागिनी एक डॉक्टर थी और  वह चाहती थी कि उसका पति भी डॉक्टर ही हो.. परंतु.....  उसके पापा ने उसकी शादी  इंजीनियर से कर दी।...  रागिनी  बहुत उदास थी उसे सुनील पसंद नहीं था। कमरे पर पहुंचने के बाद उसने बेमन से रात का खाना तैयार किया  ...... जब रात को रागिनी और उसका पति सुनील खाने के  लिए बैठे... तो रागिनी की माँ का फोन  आ जाने के कारण  वह बात करने लगी ।  तब तक  सुनील  अपना खाना  खत्म कर चुका था। फोन रखने के बाद रागिनी ने जैसे ही  पहला कोर मुहँ में रखा.... वह  थूकने के लिए भागी ।यह देख कर सुनील ने कहा क्या हुआ .....क्या दाल में कुछ कंकड़ आ गई।..... रागिनी ने कुछ नहीं कहा और  आश्चर्य के साथ सुनील को देखते हुए बोली.... आपको दाल में नमक ज्यादा नहीं लगा !....दाल में इतना ज्यादा नमक  आपने कुछ भी नहीं कहा....... और आपने सारा खाना खा लिया।...सुनील ने मुस्कुराते हुए कहा..... अभी हमारे  जीवन की  नई शुरुआत है। .. और इसे  हम दोनो को ही प्यार से शुरू करना है .....  यह सुनकर  रागिनी को अपनी सोच पर बहुत ग्लानि हुई ।...और उसकी आंखों में आंसू टप टप गिरने लगे । यह देख कर  सुनील ने रागिनी के आँसू पोछतें हुए अपने सीने से लगा लिया।

✍️ स्वदेश सिंह, सिविल लाइन्स, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के बहजोई (जनपद सम्भल ) निवासी साहित्यकार धर्मेंद्र सिंह राजौरा की लघुकथा ----नसीब

 


मुंह अंधेरे वो वो घर से निकल पड़ता । नदी के आंचल से रोज एक बुग्गी रेत  भरता और निकल पड़ता किसी गाँव की ओर । बरस के आठ महीने यही उसका रोजगार था ।इसके लिए उसे रोज सौ डेढ़ सौ रुपये चुकाने पड़ते पर परिवार का खर्चा चल ही जाता । चिंता में उसके आधे बाल सफेद हो गये थे।  वो औरों के पक्के घरों के लिए रेत मसाला ढोता लेकिन खुद रहता मिट्टी के कच्चे घर में, जिसका छप्पर भी पिछली बरसात में जवाब दे गया था। बड़ी बिटिया सयानी हो गयी थी। उसके हाथ कैसे पीले हो इसी फिक्र में वो आधा रह गया था ऊपर बैल भी बूढ़ा हो चला था ।

सुबह के धुंधलके में वो रेत की बुग्गी भरकर नदी की गहराई से कछार की ओर बढ़ रहा था/ बूढा बैल सहसा ठिठका । एक लाल पत्थर, जो कटान रोकने के लिए लगे थे एक पहिये के नीचे आ गया। वो झटके से बुग्गी से उतरा और बैल की नाथ पकड़ कर खींचने लगा लेकिन उस ऊचाई पर पहुँच कर बैल ने घुटने टेक दिए । क्षणभर में बुग्गी लुढ़क कर नदी की रेतीले मैंदान में जा गिरी । लाखन ने दौड़ कर बल्लियों में फंसे बैल की रस्सियाँ ढीली की लेकिन बैल के प्राण  पखेरू उड़ चुके। 

 वो घुटनों के बल गिर पड़ा । नयनों से अश्रुधारा फूट पड़ी। कौन था दुनिया में उसका । एक वही तो सुख दुःख का साझेदार था/ एक पल में उसकी रोजी रोटी छिन गयी थी/अब उसके सामने परिवार के भरण पोषण का भीषण संकट था।      

✍️धर्मेंद्र सिंह राजौरा, बहजोई

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की लघुकथा ---आस्तीन का साँप

 


नेता जी को साँप पालने का बहुत शौक था। एक से एक जहरीले साँप उनकी बगिया में पलते थे। नेताजी साँपों से बड़ा लाड़ करते थे, अपने हाथों से उन्हें दूध पिलाते थे। लेकिन इनमें से भी नागराज से उन्हें बड़ा लगाव था।

जब भी नेताजी कहीं जाते नागराज उनकी आस्तीन में छुपा रहता।

न जाने कितने मौकों पर नागराज ने चुपचाप नेताजी के दुश्मनों को निपटा दिया था। 

इसी बात का नागराज को घमंड हो गया था।

एक दिन नेताजी को अपनी आस्तीन में जरूरत से ज्यादा सरसराहट महसूस हुई तो उन्होंने नागराज को छिटक दिया। उस दिन उन्होंने उसे दूध भी नहीं पिलाया।

बस नागराज गुस्सा हो गया और उसने सोचा लिया मेरा इतना बड़ा  अपमान । अभी मालिक को निपटा देता हूं, और उसने मौका देखकर नेताजी को काट खाया।

लेकिन यह क्या, नेताजी को कुछ नहीं हुआ, उल्टे नागराज ही छटपटाता हुआ मर गया।


✍️ ,श्रीकृष्ण शुक्ल, 

MMIG 69, रामगंगा विहार,  मुरादाबाद 

मोबाइल नंबर 9456641400

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा की लघुकथा ----- - 'अपेक्षा '

 


मिस्टर ओम के दो स्कूल कॉलिज चल रहें हैं और एक डिग्री कॉलिज । दोनों कॉलिज सफलता पूर्वक शत प्रतिशत अपना रिजल्ट दे रहें हैं ।समाज में बड़ा नाम है ।कई राजनैतिक संगठनों से भी जुड़े हुए हैं कुल मिलाकर समाज में नारी शिक्षा के उदार पक्षधर होने के नाते नारी की सामाजिक प्रतिष्ठा के लिए कई संगठनों को आर्थिक सहायता देने भी कभी पीछे नही हटते ।घर में उच्च शिक्षा प्राप्त पत्नी है ।पत्नी के नाम मिस्टर ओम ने बहुत जायदाद कर रखी है ।वह बड़ी निर्भीक और हंसमुख , बड़ी मनमौजी स्वभाव की है और एक पुत्री है ।पति -पत्नी दोनों का ही सारा ध्यान अपनी बेटी सारा पर ही रहता है। उनका बस चले तो वह अपनी बेटी को आज ही बड़ी एम.बी बी . एस डाक्टर की उपाधि दिलवा दें ।नीट की दूसरी बार परीक्षा दी है लेकिन वह क्वालिफाई कर पायेगी अथवा नही ,उसे स्वयं विश्वास नही हो पा रहा था । लेकिन मिस्टर ओम दिल और दिमाग से किसी भी तरह चाहते थे कि वह कम से कम क्वालिफाई तो कर ही ले जिससे वह उसका दाखिला बड़े से बड़े मेडिकल काॅलिज में करवा सकें आखिर वह किसके लिए कमा रहे हैं अगर वह अपनी बच्ची को ही प्रतिष्ठित और सबसे मंहगा मुकाम न दिलवा सके तो ।समाज में उनके नाम की धज्जी उड़ जायेगी कि वह अपनी बेटी को ही कुछ न बना सके ।उनका रात दिन का चैन उड़ गया ,ईश्वर से बहुत प्रार्थनाएं कीं ।न खाने को दिल चाहता था न कुछ पीने को ।यह सब देखकर सारा सहम गई थी ।उसका खून मानो सूखता जा रहा था वह अपने पापा को जानती थी कि वह जो भी चाहते थे उसे पूरा करने में एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं चाहे कुछ हो जाये ।नही तो वह जाने क्या क्या कर सकते थे ।मम्मी को ताने मारना ,भला बुरा कहना ।तुम कुछ नही कर सकतीं ।अपनी बेटी पर ही तुमसे ध्यान नही दिया गया और क्या करोगी ? कौन सी सुविधा देने में मुझसे कमी हुई ।वह कुछ कह ही नही पा रही थी ।टेंशन में उसकी शुगर बढ़ने लगी ।बस सारा को एहसास भी नही होने देना चाहती थी ।जैसे ही मिस्टर ओम घर में घुसते ,आतंक सा छाने लगता।सारा और उसकी मम्मी विनीता का दम हर समय घुट रहा था ।सारा चुपके -चुपके रोती रहती लेकिन भयवश वह अपने पापा मम्मी से कुछ कह नही पा रही थी लेकिन बहुत सारे सवालों का बबंडर उसके दिमाग में था ।

✍️ मनोरमा शर्मा , अमरोहा 

बुधवार, 18 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेन्द्र शर्मा सागर की कहानी ---- दादी


चिंटू अरे ओ चिंटू,,,, 

अस्सी बरस की रामकली बिस्तर पर लेटे लेटे अपने पोते को पुकार रही है। 

रामकली बूढी अवश्य हो गई है किंतु जीवन जीने की आशा ने उसे कभी जीर्ण होने नहीं दिया। खाल सिकुड़ अवश्य गई है किंतु मन की तरुणाई कहीं उसके मनन करते मन के किसी कोने में अभी भी जीवित है और जीवन की इसी आशा ने कभी उसके हाथ पांव को जड़ करने की जुर्रत नहीं की लेकिन अब हाथ पांव में कम्पन अवश्य होने लगा है। 

क्या हुआ जो चन्द कदम चलने के प्रयास में साँस चढ़ जाती है। इस से उसके मन के दौड़ते मनोभावों को तो विराम नहीं लगता। 

वह पुनः अपनी खटिया में लेट कर मन की कल्पना के अश्व पर सवार हो चल पड़ती है, अपनी विचार यात्रा पर। 

उसका साठ साल का बेटा रामधन जो खुद भी बूढ़ा हो चला है , किन्तु माँ की दृष्टि उसे अभी भी तरुण ही समझती है , और अपनी नसीहत न मानने पर ,मन ही मन खीझती है।

रामकली की कल्पना कभी उसे खेत पर ले जाती है जहाँ, रामधन अपने खुद की तरह जीर्ण होते बैलों के कंधे पर जुआ रखे, उसमे हल बांधे  इनके पीछे-पीछे हाथ में लकड़ी लिए कभी पुचकरता कभी भद्दी गालियां देता कभी मारता हुआ चल रहा है। 

रामकली सोचती कितने निकम्मे बैल हो गए हैं । मार से भी नहीं बढ़ते ,बेचारा 'रामधन' इस गति से कैसे इतने बड़े खेत को जोत पायेगा ,अभी तो तीन हिस्सा बाकी है। 

यही बैल रामधन के बापू की एक हांक पर कैसे हवा से आंधी बन जाते थे और आज देखो,,,!!!

रामधन के बापू का ख्याल आते ही रामकली के झुर्रियो भरे गाल लाल हो गए और कुछ क्षण के लिए झुर्रियों के बीच से बीस वर्ष की लजाती हुई सोहनलाल को छिप कर देखती हुई रामकली प्रकट हो गई। 

जो दोपहर को मटकती लहराती रोटी की पोटली बांधे पतली मेड़ो से होकर रास्ता छोटा करते हुए खेत पर जा रही है। उसे मन मीत से मिलने की शीघ्रता है या उन्हें जल्दी खाना खिलाने की लालसा ये तो उसका मन ही बेहतर जाने।

इसे दूर से आता देख सोहन भी बैलों को हल से मुक्त कर पेड़ के नीचे घास पर बैठ जाता।

बैल भी शायद उसके आने से प्रसन्न हो जाते ,ये कार्य मुक्ति की प्रसन्नता है,,, 

"नहीं नहीं" रामकली बैलों के लिए गुड़ के ढेले लेकर आती है उसी लालच में बैल पूंछ पटकते हैं। 

सोहन जब तक भोजन करता रामकली उसके मुख को तकती लजाती रहती। कितना प्यार करते थे रामधन के बापू उसे।

और वह खो जाती प्रेम मिलन की उस अद्भुत कल्पना में जिसमेंं उसके पूरे बदन में जोश और लज्जा के साझा रक्त संचार से ,कुछ पल को जवान रामकली लौट जाती। उस कल्पना में रामकली कभी मुस्कुराती कभी लजाती कभी खुद में ही सिमट जाती कितने भाव उसके मुख की भाव भंगिमा की बदलते रहते। 

अब रामकली अपने मन की कल्पना के घोड़े को एड लगाती चली जाती मोहन की दुकान पर । 

मोहन रामकली का पोता और रामधन का लड़का है ,पैंतीस बरस का मजबूत सुंदर जवान। 

रामकली को उसमेंं सोहन की छवि दिखती है वो उसे देख कर बलिहारी जाती है ।

जुग-जुग जिए मेरा मोहन बिलकुल अपने दादा पर गया है। आज अगर बो होते तो देखते रत्ती भर का बी फर्क नई पडा सूरत में बोही नयन नक्शा बैसे ही चौड़े कंधे।

काश !!!  वह होते आज ,,,

सोचकर रामकली की आँखे गीली हो गईं ।

यही मोहन दो बरस का था जब इसे बरसात की उस  रात उलटी दस्त लग गए थे । 

गांव के हकीम जी ने कहा सोहन शहर ले जा बच्चे को यहाँ इलाज़ ना है अब इस बीमारी का। सारे गांव में बीमारी फैली है साफ सफाई बी ना है गांव में जल्दी कर । 

और सोहन रात में ही मोहन की छाती से लगाए दौड़ गया था शहर की और ।

कोई सवारी का साधन नहीं था बस बही बैल गाड़ी। और सोहन ने कहा बैलगाड़ी से जल्द तो मैं पहुंच जाऊंगा बटिया से दौड़ कर ।  भीगते भागते दौड़ते उसने मोहन को तो बचा लिया, शहर ले जा कर, लेकिन खुद को मियादी बुखार से न बचा पाया ,और छोड़ गया रामकली को बेसहारा । 

तब से मोहन को रामकली ने अपना साया देकर पाला । अपनी सारी शक्ति अपना सारा सुख और मन के सारे कोमल भाव लगा दिए रामकली ने परिवार को पालने में।

चिंटू उसी मोहन का सात बरस का बेटा है। आजकल रामकली सोच रही है रामधन के बापू ने जन्म लिया है चिंटू के रूप में और अपना संपूर्ण वात्सल्य लुटा रही है ,अपने इस पड़पोते पर। 

आज कोई उसे लड्डू दे गया था सुबह बस वही पल्लू के कोने में बांधे पुकार रही है,, चिंटू अरे ओ चिंटू कहाँ है रे,,, 

तभी कहीं से चिंटू लौट आया,, क्या है दादी,, ?

हर वक्त चिंटू- चिंटू बोल क्या काम है,,??

ये वात्सल्य के परदे से बंद आँखे सब अनदेखा करती टटोल कर पल्लू खोलती लड्डू निकलती है।

हैं !!लड्डू,, 

कहाँ से लाई दादी ,

मेरी प्यारी दादी कहते हुए चिन्टू उसकी गोद में घुसकर लड्डू में मुँह मारने लगता है।

✍️ नृपेन्द्र शर्मा "सागर",ठाकुरद्वारा




मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा -----हार्न

 


सडक़ पर जाती लड़कियों के समूह पर फब्तियों की बौछार करनेवाले कुछ मजनुओं की मंडली को तितर -बितर करने के लिए राहुल ने फुल आवाज में बिना आवश्यकता के हार्न बजाया । सुरक्षा को महसूस करती वे सब आगे बढ़ गयीं ।उनकी मंद मुस्कान में मुझे अपनी  बेटी का चेहरा दिखने लगा ।

✍️डॉ प्रीति हुँकार, मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी ----एक खत जिन्दगी के नाम


डियर जिन्दगी,

पता है मैं तुम्हें हमेशा प्यार करती आयी हूँ।लेकिन कभी-कभी बहुत झल्लाया है तुमने और बहुत बहुत रूलाया भी,इतना कि ……

मौत से दोस्ती करने को जी चाहा......हाँ-हाँ उसी मौत से जो तुम्हारी दुश्मन है|

पर कुछ तो है तुम में कि तुम्हारे दिए इतने जख्मों के बावजूद मौत मुझे तुम्हारे खिलाफ बरगला न सकी,

अच्छा ही हुआ.....वरना मैं उन खूबसूरत पलों के तोहफे कैसे खोल पाती जो तुमने छुपाकर रखे थे अपने पहलू में मेरे लिए|कैसे जान पाती कि तुम जो मुझे इतनी बुरी लगती हो कभी कभी......अनिर्वचनीय सुन्दर,रोमांचक और अद्भुत भी हो|

  वक्त की भट्टी में तपते तपते तुमसे मेरी दोस्ती अब गहराती जा रही है और तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम भी बढ़ता जा रहा है|मैं अब तुम्हें समझने लगी हूँ,समझने लगी हूँ कि ये जो तुम कभी-कभी रूखी और कठोर हो जाती हो न,वो तरीका है तुम्हारा मुझे सँवारने का,मुझे निखारने का|वाकई तुम मेरी बेस्ट फ्रेण्ड हो,डियर जिन्दगी|पर एक बात कहूँ.....जब कुछ लोग तुम्हें समझ नहीं पाते और तुम्हारे दिए हुए चंद जख्मों के कारण तुम्हें खलनायक समझकर छलावी मौत से दोस्ती कर लेते हैं न,तो मुझे बड़ा अफसोस होता है|उस वक्त मेरा मन करता है काश मैं या मुझ जैसे वे लोग जिन्होंने जिन्दगी से दोस्ती कर ली है और जो मौत के छलावे से बच निकल आये हैं,उन्हें तुमसे रूठकर मौत से दोस्ती करने जा रहे लोगों को समय पर पहचानने और समझाने का एक मौका मिल जाता तो असमय होने वाली मृत्यु-मित्रता को रोका जा सकता|

   मैं तुम्हारी दोस्ती की अहमियत समझती हूँ डियर जिन्दगी और इसीलिए मैं तुम्हें प्यार करने वाले,तुम्हें चाहने वाले,तुम्हें शिद्दत से जीने वाले दोस्तों की संख्या बढ़ाना चाहती हूँ|

  आशा करती हूँ मेरी इस कोशिश में तुम भी मेरा साथ दोगी।दोगी न....

✍हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की लघुकथा ----कोई खास बात तो कही नहीं

     


रश्मि ने दादाजी के कमरे से बाहर आकर घबराहट भरे स्वर में सभी घरवालों को बताया कि दादा जी ने सबको अपने कमरे में बुलाया है । सुनकर सब सोच में पड़ गए कि आखिर दादा जी क्या कहना चाहते हैं ? अभी थोड़ी देर पहले जब रश्मि दादा जी को चाय देने गई थी तब उससे यह बात उन्होंने कही थी।

         दादाजी की आयु लगभग 75 वर्ष हो गई है । परिवार में उनके तीन बेटे और तीन बहुएँ हैं । पोते - पोतियाँ हैं। रमेश ने सन्नाटे को तोड़ा और कहा " हो सकता है ,दादा जी वसीयत बना रहे हो और हम सबको सूचित करने के लिए बुलाया हो ?"

           सुनते ही विमल की पत्नी विनीता भड़क गई ।"यह भी कोई समय है वसीयत बनाने का ? कल ही तो चाय देने में मुझे देरी हो गई थी और दादा जी नाराज हो गए थे।  लेकिन इसका मतलब यह थोड़ी है कि वह वसीयत बना दें!"

        आनन्द ने इस पर सबको शांत किया और कहा " हो सकता है ,मकान बेचने की बात कर रहे हों। क्योंकि हम लोग सिविल- लाइन शिफ्ट होना चाहते थे तथा दादाजी ही इस पर आपत्ति करते रहे थे।"

       रश्मि का कहना कुछ अलग था ।  उसने कहा " मेरे ख्याल से दादाजी घर के खर्चों   के बारे में चिंतित हैं । हमारे खर्चे ज्यादा हैं। बैंक से लोन बहुत ज्यादा है और उनको चुका भी हम नहीं पा रहे हैं। ऐसे में हो सकता है ,कार बेचने की बात या अम्मा जी के पुराने जेवर बेचने की बात दादाजी करना चाहते हों ! बुलाया किसी भी कारण से क्यों ना हो , लेकिन अब चलकर दादाजी की बात तो सुननी ही होगी ।"

          सब डरे - सहमे हुए और मन में अनेक आशंकाएँ लिए हुए दादा जी के कमरे में दाखिल हुए । दादाजी कुर्सी पर बैठे हुए थे। सब को देखते ही उन्होंने कहा "थोड़ा दूर- दूर बैठो ।"

        सब लोग दूर-दूर बैठ गए । दादा जी ने कहा "मैं कई दिनों से एक बात नोट कर रहा हूँ  कि तुम लोग घर से बाहर निकलते समय मास्क नहीं लगा रहे हो। इतना ही नहीं मुझे यह भी सुनने में आया है कि तुम भीड़भाड़ वाले इलाकों में भी अब जाने लगे हो । लौटकर आ के  साबुन से हाथ भी नहीं धो रहे हो ?"

      विमला ने बीच में ही टोक कर कहा "दादा जी ! मैं तो कहीं भी आती - जाती नहीं हूँ । "

     इस पर दादाजी थोड़ा क्रोधित हुए और बोले " मैं किसी की सफाई माँगने के लिए आज मौजूद नहीं हूँ। न मैं कोई आदेश तुम लोगों को दे रहा हूँ। मैं तो केवल एक पिता के नाते तुम को सलाह दे रहा हूँ कि अपनी भी भलाई का काम करो, मेरी भी भलाई का काम करो और जिसमें घर के छोटे- छोटे बच्चों की भी भलाई निहित है ,वही आचरण करो । जब भी घर से निकलो तो मास्क पहनो , भीड़ वाले इलाकों में मत जाओ , जिन लोगों से मिलो उनसे 2 गज की दूरी रखो और जरूरी काम से बाजार जाना पड़े घर से बाहर निकलना पड़े, यह तो जरूरी है लेकिन जब भी लौट कर आओ तो साबुन से हाथ जरूर धोओ । साफ - सफाई का जितना ध्यान रखोगे ,उतना ही बीमारी से  बचे रहोगे और स्वस्थ रहोगे । अब तुम लोग जा सकते हो ।"

       सुनकर सब लोग एक - एक करके दादा जी के कमरे से बाहर चले गए और बाहर जाकर सब की फुसफुसाहट सुनने में आई " कोई खास बात तो कही नहीं ,जिसके लिए दादा जी ने हम सब को बुलाया हो ? "

               उसी समय टेलीफोन की घंटी बजी और रमेश ने फोन उठाया ।फोन पर बात करते-करते उसने धीमे से यह शब्द कहे " क्या मौसा जी की मृत्यु कोरोना से हो गई ???"

        सुनते ही सबको साँप सूँघ गया। मौसा जी का  स्वास्थ्य उनकी उम्र के हिसाब से अच्छा था। लेकिन यह सुनने में आ रहा था कि वह और उनके बच्चे बहुत लापरवाही बरत रहे थे।

 ✍️ रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)

मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी की लघुकथा ----बेचारी मां


तीनों भाई आपस में इसी बात का फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि माँ को कौन अपने पास रखेगा।बड़ा भाई दूर नौकरी करने की दलील देकर बच कर साफ निकल जाता है।मंझला भाई पत्नी की  तबियत खराब चलने के कारण मां की सही देख भाल न हो पाने की बात कह कर अपना पीछा छुड़ा लेता है। 

    सबसे छोटा भाई शर्माते हुए अपनी पत्नी से पूछता है शोभा तुम बताओ क्या किया जाए।मेरी तो माँ है,मैं तो तुम्हारे ही ऊपर हूँ। तुम अगर माँ की सही देख-भाल कर सको तो मुझे खुशी होगी।

      तभी शोभा तुनककर बोली देखो जी दो बड़े भाइयों ने तो अपनी अपनी गाथा गा दी और पीछा छुड़ा लिया, क्या हम पर ही कुबेर का खजाना गढ़ा है।छोटी सी नौकरी दो-दो बच्चों की पढ़ाई लिखाई,हारी-बीमारी,इन्हीं के कपड़े-लत्ते बनाना भारी पड़ता है।ऊपर से इनका मुश्तकिल बोझ भी हमीं उठाएं यह तो खूब रही।तुम्हारी तो मति मारी गई है भाइयों के आगे तो भीगी बिल्ली हो जाते हो।जुबान को लकवा सा मार जाता है।मैं कुछ कहना भी चाहूँ तो,,,,,,,

          अब साफ साफ सुन लो जी, या तो ये ही रहेंगी या फिर तुम ही रहना अपने बच्चों के साथ।मेरी बात मानों तो माँ को

वृद्धाआश्रम में भेज दो सारा झंझट ही खत्म।में तो खुद ही बीमार सी रहती हूँ।

      जैसा तुम कहो,,,,,,,,

तभी अचानक भाइयों की इकलौती बहन बीना आ गई ।सारी बातों को सुन कर हैरान रह गई ।तुरत ही मां से बोली माँ,जल्दी चलो अब यह घर तुम्हारे रहने लायक नहीं रह गया है।अब तुम हमारे साथ रहोगी।हमें भी तुम्हारे आशीर्वाद की ज़रूरत है।

      बिटिया माँ को अपने साथ ले जाती है।घर को मुड़-मुड़कर निहारती रहती है "बेचारी माँ"              

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी , मुरादाबाद, उ,प्र, 

मो0-    9719275453