शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की दो लघुकथाएं ----"धार्मिकता " और "नई सोच''


1.  धार्मिकता

कैसे हिन्दू हो,नवरात्र के दिनों में भी शराब पी रहे हो , राजेश ने अपने मित्र समीर को टोका। फिर अपनी धार्मिकता पर घमंड करते हुए कहा -मेरा तो पक्का उसूल है, मैं इन दिनों शराब को हाथ तक नहीं लगाता।नवरात्र शुरू होने से पहले ही,पूरे नौ दिन का कोटा पूरा कर लेता हूं।


2  नई सोच 

शादी के 6 साल बाद,पहली बार नवरात्रि पर रुचिका सुसराल में थी। नवमी पर कन्याओं को हलवा पूरी खिलाने का रिवाज़ था। उसी की तैयारी चल रही थी। रुचिका को कुछ अटपटा सा लग रहा था। हिम्मत जुटा कर उसने अपनी सास से कहा - क्षमा करें मम्मी जी,हम अपने सम्पन्न परिचितों की बेटियों को घर बुला कर खाना खिला देते हैं।क्या आपको ये एक औपचारिकता मात्र नहीं लगता।कायदे में हमें गरीब बच्चियों की सहायता करनी चाहिए। मैं तो कई साल से अनाथ लड़कियों को नए कपड़े दिलवा देती हूं।मुझे देख कर धीरे धीरे पूरी सोसायटी में सबने ऐसा करना शुरू कर दिया है।क्या हम यहां ऐसा नहीं  कर सकते।

 तू सही कहती है,नई सोच से ही हम समाज को बदल सकते है। सास ने रुचिका को गले लगाते हुए कहा।


✍️ डॉ पुनीत कुमार

टी 2/505, आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

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