सोमवार, 23 नवंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ शोभना कौशिक की रचना ----व्यथा


मैं वो अनसुलझी कहानी ।

मुझे कोई समझ न पाया ।

जीवन के हर मोड़ पे ,

मुझे कोई मिल न पाया।

       अकेली आई ,अकेली चल दी इन 

       राहों पर ।

        जिन राहों पर कोई और चल न  

        पाया।

मंजिल दूर-दूर होकर मुझसे चली ।

न जाने क्यों कहाँ कैसे मुझसे यूँ चली।

चाहा बहुत कुछ था ,जीवन में।

फिर भी कुछ मिल न पाया ।

          मैं वो अनसुलझी कहानी ।

           मुझे कोई समझ न पाया ।

           जीवन के हर मोड़ पे ।

           मुझे कोई मिल न पाया ।

थी ,एक आस सी मन में मेरे।

छू लू ये आसमान धरती तले ।

शायद वो आस मेरी आस 

बन के मन में रही ।

मेरी उस आस को कोई किनारा

मिल न पाया ।

मैं वो अनसुलझी कहानी ।

मुझे कोई समझ न पाया ।

जीवन के हर मोड़ पे ।

मुझे कोई मिल न पाया ।

 ✍️ डॉ शोभना कौशिक, मुरादाबाद

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