सोमवार, 23 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार अशोक मधुप की रचना ---- ------मुझको न दिल्ली भाती है ना दिल्ली दरबार सखे! मुझको बस अच्छा लगता है, अपना घर और द्वार सखे!


मुझको न दिल्ली भाती है

ना दिल्ली दरबार सखे!

मुझको बस अच्छा लगता है,

अपना घर और द्वार सखे!

ये नगरी पैसे वालों की,

नगरी यह धनवानों की,

मुझको भाते बस बिजनौरी,

बिजनौरी हैं यार सखे!

चाहे कितनी घूमूॅ दुनिया,

चाहे कितना सफर करूँ।

मन रमता बिजनौर में आकर,

ये बिजनौरी प्यार सखे !

कहीं जाकर न मन मिलता है,

 ना ही मिलता है अपनापन ।

 बिजनौर ही है दुनिया अपनी ,

ये ही बस स्वीकार सखे !

जंगल से ये शहर लगे हैं,

बियाबान सी कालोनी ।

सब अपने में मस्त यहाँ है,

इनका पैसा प्यार  सखे।

यहां सड़क पर भी पहरा है,

गली -गली  फैला कोरोना।

साॅस यहां लेना दुष्कर है,

 है विषभरी  बयार सखे !

यहां दौड़ ही दौड़ मची है,

यहां दौड़ ही जीवन है,

तुमको ही ये रहे मुबारक,

 बेमुरव्वत  संसार सखे।

मेरे शहर में प्यार मिलेगा,

और  मिलेंगे दिलवाले,

तुम  तो राजा हो ,भूलोगे,

भूलोगे ये प्यार सखे,

पूरा शहर लगे है अपना,

 यहीं हुए सब पूरे सपना ।

यही बसे हैं मीत हमारे,

यहीं बसे हैं यार सखे।


✍️ अशोक मधुप

25- अचारजान

कुंवर बाल गोविंद स्ट्रीट, बिजनौर 246701

मोबाइल फोन नम्बर - 9412215678, 9675899803


2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-11-2020) को   "कैसा जीवन जंजाल प्रिये"   (चर्चा अंक- 3896)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  2. आपका हृदय से बहुत बहुत आभारी हूं भाई साहब ।

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